कटरीना-विक्की की शादी ट्रेंड कर रही थी. राजस्थान अब शादी रचाने का लाजवाब ठिकाना है और एक बार फिर वह सपनों की खुशी हासिल करने का गंतव्य बना, जहां बहुतों ने ‘शाही ठाट-बाट’ में ब्याह करने का सपना देखा.
भारत में शादियों का आयोजन करण जोहर के यूनिवर्स की नकल जैसा होता है, जिसमें आम लोग खुद को सितारों की तरह महसूस कर उनके नक्शे कदम पर चलने की कोशिश करते हैं.
सितारों की शादियां लोगों में उम्मीद जगाती हैं, उनमें भी, जो विवाह को पितृसत्तात्मक सामाजिक ताने-बाने की समस्या मानते हैं, लेकिन आप खूबसूरत सेलेब्रेटियों को मुस्कराते हुए गदगद होकर इंस्टाग्राम-अनुकूल तस्वीरें खिंचवाते देखें तो शादी में उनकी अनास्था को मुल्तवी करने की छूट दे देनी चाहिए.
यह सेलेब्रिटी शादी जब हो रही थी, ठीक उसी वक्त राजस्थान में कई अलग तरह की शादियां हो रही थीं.
कुछ हफ्ते पहले उदयपुर के एक गांव के पास दलित समुदाय की एक बारात सामान्य नाच-गान करते गुजर रही थी, न जाने कहां से दबंग जाति के कुछ लोग आए और दूल्हे तथा उसके परिवार पर पत्थर बरसाने लगे. उस घटना में दूल्हा, उसकी बहन और कई रिश्तेदार बुरी तरह घायल हो गए.
राजस्थान में दलितों की शादियां किसी रोमांचक दुखद थ्रिलर से कम नहीं होतीं, जिसमें दूल्हे के परिवार को यह तक मालूम नहीं होता कि वे नाराज और ईर्ष्यालु दबंग जातियों से मार खाए बिना दुल्हन के दरवाजे तक पहुंच पाएंगे या नहीं. दबंग जातियों का वजूद यही देख हिल उठता है कि कोई दलित दूल्हा कैसे घोड़ी चढ़कर अपनी प्रेमिका तथा जीवन संगिनी से मिलने जा रहा है और वे उसे रोकने दौड़ पड़ते हैं. ऐसी घटनाएं शादियों के मौसम में आम हैं.
मुझे अपने बचपन की वह घटना खासकर याद है, जो 1998 में हमारे पारिवारिक आयोजन में हुई थी. मेरे मामा की राजस्थान के सीकर जिले के मरडाटू नामक गांव के पास होने वाली थी. शादी के एक दिन पहले महिला संगीत के दौरान स्पीकर पर बॉबी दओल की ताजा-ताजा रिलीज हुई फिल्म सोल्जर के गाने बज रहे थे. स्पीकर का वाल्युम कम करना पड़ा क्योंकि बीएसएनएल लैंडलाइन फोन की घंटी देर से बजे जा रही थी. मेरे नाना ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से फुसफुसाती-सी आवाज आई, ‘कल अगर दूल्हा घोड़ी चढ़ा तो गोली मार देंगे.’ ऐसा लगा जैसा मानो वह फोन पर रूमाल लपेट कर बोल रहा हो, इसलिए उसकी आवाज फुसफुसा रही थी.
उस एक फोन कॉल से खुशियां हवा में उड़ गईं और मायूसी तथा घबराहट फैल गई. अगले दिन बारात बेहद घबराहट में गांव में गई, क्योंकि कोई नहीं जानता था कि कब गोलियां चलने लगेंगी या पत्थर बरसने लगेंगे, जिससे नाच-गाने का यह जुलूस खून-खच्चर और पछतावे में बदल जाएगा.
अब आइए 2018 में. मैं अपने होम टाउन सीकर के करीब एक हेलिकॉप्टर वाली शादी में गया. गांव में एक खेत के बीच विशाल हेलिकॉप्टर सबकी आकर्षण का केंद्र था. उसके उतरने से उड़े धूल का गुबार रेगिस्तान में दबदबे का भाव पैदा कर रहा था. यह सवाल अपनी जगह था कि हेलिकॉप्टर के पंखों से उड़ी धूल की आंधी दबंग जातियों के लोगों की आंखों में कितनी जलन पैदा कर रही थी?
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हेलिकॉप्टर वाली एक दूसरी शादी
कुछ हफ्ते पहले राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक दलित दूल्हे ने तय किया कि घोड़ी चढ़ने के बदले वह हेलिकॉप्टर में चढ़ेगा. उसके परिवार ने जो पहला हेलिकॉटर बुक किया, उसके मालिक ने आखिरी मौके पर कथित तौर पर दबंग जातियों के दबाव में आकर मना कर दिया. इस तरह उन्हें हेलिकॉप्टर की सवारी के लिए 1 लाख रु. अतिरिक्त देने पड़े.
राजस्थान में अफरा-तफरी और बेहूदगी बोली-व्यवहार का हिस्सा है. इन शादियों में भी वैसा ही माहौल बना रहता है. यह भी सही है कि भारत में शादियां ताकत और सामाजिक हैसियत जताने का मौका होती हैं. इन हेलिकॉप्टर वाली शादियों को जाति हैसियत जताने जैसा भी कहा जा सकता है. उन्हें पुराने सामंती तथा मध्ययूगीन दबंग जातियों और राज्य में उभरती टेक-सेवी मध्यवर्गीय दलितों की नई पीढ़ी के बीच टकराव के रूप में भी देखा जा सकता है.
इससे यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या ईष्यालु दबंग जातियों को भी अब बदले में हेलिकॉप्टर बुक करना और दलितों को हेलिकॉप्टर से उतारने की कोशिश करनी चाहिए? तो क्या निकट भविष्य में हमें राजस्थान के आसमान में स्टार वार्स जैसा नजारा दिखेगा?
राजस्थान के भरी धूप वाले आसमान में उड़ते हेलिकॉप्टरों की तस्वीरें किसी समाजशास्त्रीय सवाल की ओर इशारा कर रही हैं. एक तो यही है: क्या पूंजी के संचय से जाति आधारित समाज में सामाजिक हैसियतें बदल जा सकती हैं?
एक हद तक यह भी सही है कि वही हेलिकॉप्टर जब जमीन पर उतरता है तो सारी फंतासियां फुर्र हो जाती हैं. जमीन पर तो उसी समाज से पाला पड़ता है और कई बार ऐसी हैसियत का प्रदर्शन ताकतवर दबंग जातियों की तरफ से सामाजिक बहिष्कार का कारण बन जाता है. इसी वजह से आसमान में उड़ना या राहुल गांधी के शब्दों में ‘ज्यूपीटर की रफ्तार से बच निकलना’ जमीनी अर्थ में बड़ा फर्क नहीं डालता.
जाति इस गणतंत्र के डीएनए में भी रची-बसी है. इस कदर कि जब एलन मस्क मंगल पर कॉलोनियां बना रहे होंगे, भारत में लोग मुखर्जी नगर और आंबेडकर नगर नामक कॉलोनियों में बंटे होंगे.
पूंजी और जाति
ये दिलचस्प है कि भारतीय समाज में हमेशा किस कदर जाति प्रभावी वजह रहेगी, एक मायने में वर्ग से ज्यादा बड़ी. पैसेवाले होने के बाजूद बाड़मेर के दलित परिवार को अपनी जाति की वजह से हेलिकॉप्टर बुक कराने में मुश्किल का सामना करना पड़ा. धन-संपत्ति के संचय से भारतीय समाज में ऊंच-नीच के पदानुक्रम की वास्तविकताएं नहीं बदलती हैं.
दूसरा सवाल यह उठेगा कि ऐसी शादी की जरूरत ही क्यों है, जिसमें दलितों को ऐसी रस्में अपनानी पड़ती हैं, जिसकी जड़ें ब्राह्मणवादी आयोजनों में हैं? घोड़ी या हेलिकॉप्टर में चढ़ना क्यों जरूरी है?
मुझे उम्मीद है कि आखिरकार भविष्य में हाशिए की जातियां तड़क-भड़क वाले आयोजनों से तौबा कर लेंगी, भले फिलहाल न करें. समाज आज परिवर्तन के दौर में है, जब दलित हर उस विकल्प को आजमाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उन्हें गरिमापूर्ण जीवन हासिल हो सके. उनके लिए हेलिकॉप्टर पर चढ़ना भौतिक नहीं तो मनोवैज्ञानिक राहत की तरह हो सकता है.
जाति आधारित समाज में दलितों के लिए जब यह सब वर्जित है तो अपनी शादी में घोड़ी या हेलिकॉप्टर पर चढ़ना हैसियत जताने का बहाना बन सकता है. दबंग जातियों का मौज-मजा या हंसी-खुशी पर एकाधिकार हो तो सुखी दलित की छवि भी प्रतिरोध का संकेत है.
मुख्यधारा की विवाह संस्कृति में कहा जाता है कि जोड़िया स्वर्ग में बनती हैं. लेकिन असलियत में यह जाति, वर्ग, धर्म, गोत्र, त्वचा के रंग, कुंडली और न जाने किस-किस बात की सोची-समझी व्यवस्था होती है. राजस्थान में यह गुणा-भाग इतना पेचीदा है कि सीमा आंटी जैसी किसी अभिमानी मैचमेकर का सिर भी चकराने लगे.
जाति, वर्ग, रंग वगैरह के अंतहीन पैमानों के बीच दलित को खुश होने की कल्पना कैसे की जा सकती है?
राजस्थान दुनिया का शादी के लिए सबसे दिलचस्प ठिकाना हो सकता है, मगर दलितों के लिए तो यह शादी का सबसे खतरनाक ठिकाना है. राजस्थान सरकार को अपने पर्यटन नारे ‘जाने क्या दिख जाए’ को बदलकर ‘जाने कौन-सी जाति उत्पीड़न दिख जाए’ कर देना चाहिए.
(अनुराग मल्टीमीडिया आर्टिस्ट और अनुराग माइनस वर्मा पॉडकास्ट के होस्ट हैं. उनका ट्विटर @confusedvichar . विचार निजी हैं.)
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