राजस्थान में सरकारी नौकरियों में पूर्व सैनिकों को आरक्षण देने का विवादास्पद मामला पूरे राज्य को परेशान किए है. यह राज्य तीनों सेनाओं को बड़ी संख्या में सैनिक देता है. राजस्थान राज्य पूर्व सैनिक लीग के अध्यक्ष ले.जनरल सत्यपाल सिंह कटेवा ने 28 नवंबर को राज्यपाल को अर्जी भेजकर मांग की कि अशोक गहलोत सरकार ने पूर्व सैनिकों के आरक्षण कोटे में जो फेरबदल की है उस पर रोक लगाएं. यह मामला तब उभरा जब ओबीसी नेताओं ने हाल में हुई प्रतियोगिता परीक्षाओं में पूर्व सैनिकों को मिले लाभ के खिलाफ आंदोलन किया.
ले.जनरल कटेवा ने इस तथ्य का खुलासा किया कि 2016 से लेकर सितंबर 2022 तक सरकारी नौकरियों के मात्र 2.63 प्रतिशत खाली पदों पर पूर्व सैनिकों की नियुक्ति की गई. उनका कहना है कि राजस्थान सरकार ने सभी श्रेणियों के कुल 1,73,103 पदों पर नौकरी देने की पेशकश की. तीन स्तरों के 20,919 पदों पर पूर्व सैनिकों को नियुक्त किया जाना चाहिए था लेकिन वे केवल 4,552 पदों को ही भर सके. यानी उनके लिए अधिकृत 97 फीसदी पद उन्हें नहीं मिले और वे अन्य श्रेणी में समाहित हो गए.
राजस्थान में 1988 से सरकारी नौकरियों के दो स्तरों पर पूर्व सैनिकों के लिए खाली पद निश्चित किए जाते रहे हैं. उस साल 27 दिसंबर को राज्य के कार्मिक विभाग ने राजस्थान सिविल सर्विसेज (एब्जोर्प्शन ऑफ एक्स-सर्विसमेन) रूल्स की अधिसूचना जारी की थी. इन नियमों के अनुसार पूर्व सैनिकों के लिए ‘मिनिस्टरी एवं उप सेवाओं’ के 12.5 फीसदी और सबसे निचली, क्लास-4 सेवाओं के 15 फीसदी पद आरक्षित किए गए. उनकी सबसे ज्यादा नियुक्ति ‘मिनिस्टरी एवं उप सेवाओं’ में शिक्षकों से लेकर विशिष्ट सेवाओं या मंत्रालयों में की गई. 17 अप्रैल 2018 को एक आदेश जारी करके इसमें संशोधन किया गया और पूर्व सैनिकों को राज्य की सिविल सेवाओं में 5 फीसदी आरक्षण दिया गया.
यह भी पढ़ें: गुजराती वोटर राज्य में बीजेपी का विकल्प तो चाहते हैं, मगर मोदी का नहीं
पूर्व सैनिकों के लिए कोटा क्यों
पूर्व सैनिकों को आरक्षण देने का तर्क यह था कि उन्होंने देश को विशिष्ट सेवाएं दी हैं इसलिए उनके बाकी बचे जीवन में नौकरी करने की उम्र तक आजीविका की व्यवस्था की जाए. यह आरक्षण उन्हें उनकी शिक्षा या सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर नहीं दिया गया. इन आधारों से इसका कोई संबंध नहीं था. वह उन पदों के लिए था जो ‘विशेष वर्ग’ के हैं, और उनके मामले में यह देश के लिए की गई उनकी सेवाओं के कारण था. उस विशेष वर्ग में विकलांग और विधवाएं शामिल हैं और वे अपने जीवन की विशेष परिस्थितियों और मुश्किलों के इस वर्ग में शामिल किए गए हैं.
इस योजना से प्रवेश पाने के बाद पूर्व सैनिकों को उनके जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर अलग वर्ग में शामिल किया जाता है, जैसा कि विशेष वर्ग वाले दूसरे उम्मीदवारों और सिविल सेवा के नियम आदि लागू किए जाते हैं. 2018 के संशोधन के नियम 2 के अनुसार, ‘पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण को क्षैतिज आरक्षण माना जाएगा और पूर्व सैनिक को उसके अपने वर्ग के मुताबिक समायोजित किया जाएगा.’ 1988 में इस पर नियम 2(4) लागू किया गया जिसमें कहा गया कि ‘अनुसूचित जाति/जनजाति के किसी पूर्व सैनिक का चयन अगर प्रावधान (1) के तहत पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित पद के लिए किया जाता है तो उस चयन को अनुसूचित जाति/जनजाति को मिलने वाले कुल कोटा में गिना जाएगा…’
चूंकि 1988 में ओबीसी के लिए आरक्षण नहीं लागू था इसलिए नियम अनुसूचित जाति/जनजाति तक ही सीमित थे. और चूंकि सेना से ऐसे उम्मीदवारों की संख्या काफी कम होती है इसलिए ओबीसी नेताओं के ध्यान में यह नहीं आया. 2018 में संशोधन होने तक ओबीसी के लिए खाली पद बनने लगे, और राजस्थान में इस वर्ग से सैनिकों की संख्या बड़ी है. वे राज्य की प्रतियोगिता परीक्षाओं और विभागों के रिक्त पदों के लिए अच्छा प्रदर्शन करने लगे. राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) की परीक्षाओं के नतीजों ने सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों की आंखें खोल दी.
अब ओबीसी नेता चाहते हैं कि विशेष वर्ग में कुल सीटों के एक निश्चित प्रतिशत में पूर्व सैनिकों का चयन किया जाए. अब राजस्थान सरकार ने मांगें मान ली तो उन्हें एकमुश्त की जगह अलग-अलग जाति वर्गों में बाँट दिया जाएगा. अब तक वे सिर्फ पूर्व सैनिक वर्ग के माने जाते रहे हैं और वे समान कट-ऑफ अंकों के लिए परीक्षा देते थे, लेकिन अब प्रक्रिया के शुरू में ही विभाजित कर दिया जाएगा. यह उनके सोच, प्रशिक्षण, और सामाजीकरण के उलट है. आखिर वे जाति के आधार पर नहीं बल्कि सिर्फ सैनिक के रूप में प्रशिक्षण पाकर सेवा दे चुके हैं.
सामान्य गणित यही कहता है कि क्षैतिज आरक्षण के इस वर्गीकरण राज्य की सरकारी नौकरियों के लिए पूर्व सैनिकों का चयन घटता जाएगा. उदाहरण के लिए, अगर आरएएस में उनके लिए 50 पद खाली हैं तो उसमें से 5 फीसदी का अर्थ होगा 2.5 फीसदी. पूर्व सैनिकों के लिए इस वर्गीकरण के क्या नतीजे होंगे यह सहज कल्पना की जा सकती है. वकीलों और अदालतों का काम निश्चित ही बढ़ जाएगा लेकिन पूर्व सैनिकों को को काम नहीं मिलेगा, बावजूद इसके कि उन्होंने अपने जीवन के सर्वोत्तम साल देश को दिए और वर्दी के नाम पर एकजुट रहे लेकिन अब जाति के नाम पर बांटे जा रहे हैं. जाहिर है, इसका शुभ परिणाम नहीं निकलेगा.
मानवेंद्र सिंह कांग्रेस नेता, डिफेंस ऐंड सेक्युरिटी अलर्ट के एडिटर-इन-चीफ और राजस्थान में सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के अध्यक्ष हैं. उनका ट्विटर हैंडल @ManvendraJasol है. व्यक्त विचार निजी हैं.
(अनुवाद- हरिमोहन मिश्रा)
(संपादन- ऋषभ राज)
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘संगत से ऊपर कुछ भी नहीं’- सिख गुरु के पुत्रों पर बनी पंजाबी फिल्म पर प्रतिबंध क्यों चाहती है SGPC?