जो श्रेय का हकदार है उसे श्रेय दिया ही जाना चाहिए. पहले प्रत्यक्ष और फिर अप्रत्यक्ष कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी के बारे में आप जो भी धारणा रखते हों, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनकी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ एक जोरदार उपलब्धि रही है. 7 सितंबर से शुरू हुई यह यात्रा 150 दिनों में पूरी होगी. कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 3,570 किलोमीटर की दूरी राहुल पैदल चलकर ही पूरी करेंगे.
यह यात्रा अब तक जबरदस्त सफल रही है. राहुल अभी तक किसी कांग्रेस शासित राज्य से होकर नहीं गुजरे हैं (अभी उन्हें राजस्थान पहुंचना बाकी है) लेकिन वे जहां से भी गुजरे हैं प्रायः हर जगह उनके लिए भारी भीड़ जुटी है. उनके भाषणों की व्यापक प्रशंसा हुई है. एक स्थान पर तो लोग उन्हें सुनने के लिए आंधी-बारिश में भी जमे रहे. कर्नाटक में, जहां भाजपा की सरकार लड़खड़ाती दिख रही है, यात्रा ने कांग्रेस समर्थक भावना को फैलाने का काम किया है.
आसमां भी आज झुक गया,
इन हौसलों में इतनी ताक़त है!#BharatJodoWithSoniaGandhi #BharatJodoYatra pic.twitter.com/35zbWfFIHZ— Bharat Jodo (@bharatjodo) October 6, 2022
शुरुआती संकेत यही हैं कि इस यात्रा ने पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने लोगों को असली राहुल गांधी को देखने-समझने का मौका दिया है, न कि राहुल की उस छवि को जिसका मखौल भाजपा उड़ाती है और जो टीवी की खबरों और सोशल मीडिया पर पेश की जाती रही है.
और पूरे रास्ते पैदल यात्रा करके राहुल ने इस भारतीय मान्यता पर अमल किया है कि नेता वही है जो जनता के साथ चले. यह वह नेता नहीं है जो हजारों पुलिसवालों द्वारा सुरक्षित किए गए मैदान पर हेलिकॉप्टर से उतरता है. उनके भाषण दिल से निकले लगते हैं जिनमें कोई एजेंडा नहीं छिपा होता, उन अधिकतर राज्यों में कोई चुनाव नहीं होने वाला है इसलिए वे कोई वोट आकर्षित करने के लिए नहीं गए हैं.
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अब तक राहुल ने क्या गलत किया
जब मैं फुटेज देखता हूं कि किस तरह राहुल बारिश में भी पैदल चलते जा रहे हैं या सड़क के किनारे खड़े लोगों को संबोधित करने के लिए रुकते हैं तब मुझे हमेशा यही ख्याल आता है कि राहुल इस रूप में हमारे सामने पहले क्यों नहीं आए? इस राहुल से भारत जुड़ाव महसूस कर सकता है.
I could walk a thousand miles for a moment like this.❤️ pic.twitter.com/c7ybGjAMew
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 28, 2022
लेकिन राहुल ने कई साल वैसे काम करने में बरबाद कर दिए जिन्हें करने के लिए वे नहीं बने थे, और ऐसा करते हुए उनकी छवि ऐसी बन रही थी मानो उन्हें इसके लिए विशेषाधिकार हासिल हो. पहले तो उन्हें मनमोहन सिंह की यूपीए-2 सरकार में उनके अधीन प्रधानमंत्री की मर्जी के मुताबिक काम करना चाहिए था. लेकिन इसकी जगह वे सत्ता के एक अलग केंद्र बन गए और यहां तक कि उन्होंने मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर अध्यादेश को फाड़ डालने की बात कर डाली.
अध्यादेश के बारे में उनकी राय सही थी लेकिन उसे सार्वजनिक रूप से खारिज करके प्रधानमंत्री को छोटा दिखाना गलत था. राहुल के विशेषाधिकार के बारे में भाजपा जो कहानी प्रचारित करती है उसे उस प्रकरण ने पुष्ट ही किया.
इसके अलावा उन्होंने वह काम हाथ में ले लिया जिसमें वे निपुण नहीं थे. इतिहास हमें यह बता चुका है कि अगर आप एक संगठन को चलाना नहीं जानते तो आप कभी एक अच्छे कांग्रेस अध्यक्ष नहीं साबित हो सकते. राहुल के पास विचार अच्छे थे, मसलन पार्टी के पदों के लिए चुनाव काराना, यूथ कांग्रेस में नई जान फूंकना, उत्तर प्रदेश में पार्टी काडर का शून्य से पुनर्गठन करना. लेकिन जल्दी ही यह साफ हो गया कि ये विचार चाहे जितने भी अच्छे क्यों रहे हों, वे उन्हें लागू नहीं करा पाए. उन्हें यह कबूल कर लेना चाहिए था और पार्टी की कमान किसी और को सौंप देनी चाहिए थी, भले ही वे इसके प्रमुख चेहरों में शामिल रहते.
हम पहले भी तूफानों से कश्ती निकाल कर लाए हैं, हम आज भी हर चुनौतियों की हदें तोड़ेंगे, मिलकर भारत जोड़ेंगे। pic.twitter.com/RCR46zYXZJ
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 6, 2022
व्यक्तियों के आकलन में भी उन्होंने गलती की. कांग्रेस में सामान्यतः कहा जाता है कि राहुल गांधी ने जिन युवा वंशजों को अपने इर्दगिर्द जुटा लिया था वे सब अपना मतलब साधने आए थे और मौका मिलते ही भाग कर भाजपा में शामिल हो गए. ठीक बात है. लेकिन उन्हें अपने सिर पर चढ़ाया किसने? उन लोगों के बारे में राहुल के गलत आकलन ने ही उन्हें इतना महत्वपूर्ण बना दिया था.
अंतर्मुखी और अनिच्छुक सोनिया गांधी अगर पार्टी को नेतृत्व दे पाइन तो इसकी एक वजह यह थी कि उनके साथ अहमद पटेल जैसे नेता थे जो पार्टी से जुड़े रहते थे. राहुल के साथ ऐसा कोई अहम नेता नहीं है. आप किसी भी कांग्रेसी से बात कीजिए, वह यही कहेगा कि राहुल पहुंच से दूर हैं, कि वे अक्षम लोगों से घिर गए हैं जिन्होंने पार्टी को बंधक बना लिया है. आपके बारे अगर ऐसी धारणाएं हों, तो आप प्रभावशाली पार्टी अध्यक्ष नहीं साबित हो सकते.
राहुल को क्या करना चाहिए
आज राहुल को जिन तमाम बातों के लिए दोषी ठहराया जाता है उनकी वजह है संगठन चलाने की उनकी अक्षमता. उन्होंने हरेक राज्य में अपनी बढ़त हाथ से फिसल जाने दी. मसलन गुजरात में कांग्रेस हार सकती है हालांकि वहां उसे जीतने का असली मौका था. पंजाब के स्वभाव को वे समझ न सके और वह राज्य दूसरे को सौंप दिया. केरल में वे पार्टी की भीतरी कलह को रोक न पाए और पार्टी को हारना पड़ा.
राहुल की एक मुख्य कमजोरी यह है कि वे खुद को उस रूप में नहीं देख पाते जिस रूप में देश उन्हें देखता है. आप अगर ऐसे लोगों से घिरे रहेंगे जो आपको हमेशा ‘जीनियस’ कहते हों, तब अपने बारे में वस्तुनिष्ठ नजरिया रखना मुश्किल है. इसलिए लगता है, राहुल यह नहीं समझ पा रहे कि अधिकांश भारत उन्हें एक वंशज के रूप में देखता है जिसे खुद विशेषाधिकार संपन्न होने का एहसास तो है लेकिन दिखाने को अपनी को वास्तविक उपलब्धि नहीं है.
भारत में कामयाब वंशज भी हुए हैं लेकिन उनका प्रायः जातीय या क्षेत्रीय आधार रहा है. यह कहना कि आप एक उदार, योग्यता की कदर करने वाले समाज में विश्वास रखते हैं, और किसी पार्टी की कमान इस अधिकार से थामना कि आप इसके लिए ही पैदा हुए थे, दोनों बातें परस्पर विरोधी हैं.
लोग सोनिया की इसलिए इज्जत करते हैं क्योंकि उन्होंने 1991 में पार्टी की अध्यक्षता और 2004 में प्रधानमंत्री की गद्दी अस्वीकार कर दी थी. दूसरी ओर, राहुल गांधी 60 वर्षों में गांधी परिवार के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिसने अपनी मर्जी और उत्साह से राजनीति में कदम रखा. इसलिए उन्हें यह विनम्रता दिखने की जरूरत है कि वे सिर्फ अपने माता-पिता के बेटे ही नहीं हैं. अफसोस की बात है कि उन्होंने यह स्पष्ट करने की ज्यादा कोशिश नहीं की. बल्कि वे अपने विशेषाधिकार का हर तरह से इस्तेमाल किया, लोगों को इंतजार करवाए, कुछ-कुछ महीने पर छुट्टी मनाने के लिए विदेश जाते रहे और ऐसे मुद्रा दिखाते रही मानो वे सर्वज्ञाता हों.
लेकिन एक और राहुल गांधी भी हैं, जो कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं, जो गर्मजोशी से भरे और चहेते हैं, जो निंदक या कुटिल नहीं हैं, जो तेज और पढे-लिखे हैं और उन मूल्यों में गहराई से विश्वास रखते हैं जो भारत का आधार हैं. लेकिन दुख की बात है कि इस राहुल गांधी को हम शायद ही देख पाते हैं. भारत जोड़ो यात्रा का महत्व यह है कि यह राहुल को अपने स्वाभाविक रूप में आने का और लोगों को उनका यह रूप देखने का मौका दे रही है. आज जब भारत नफरत के माहौल के कारण इतना बंटा हुआ है तब ऐसी यात्रा का कौन समर्थन नहीं करेगा जो इस बात पर ज़ोर देती हो कि हम एक हैं, कि आपसी प्रेम ही भारत को जोड़े रख सकता है?
आगे क्या होगा? सच में मुझे नहीं मालूम. मैं सोच रहा था कि संगठन का काम करने का अनुभव रखने वाला, अशोक गहलोत या कमलनाथ सरीखा कोई नेता कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा और पार्टी खुद को फिर से संभालेगी. उस परिदृश्य में राहुल वह काम कर सकते थे जो वे अच्छी तरह कर सकते है— पूरे देश की यात्रा करके कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करना, जो कि वे इस यात्रा में कर रहे हैं.
मैं नहीं कह सकता कि मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में ऐसा परिदृश्य बनेगा या नहीं. लेकिन यह उम्मीद करता हूं कि राहुल खुद पार्टी को चलाने के मोह में नहीं फंसेंगे. वे यह काम अच्छी तरह नहीं कर सकते और तब वे भाजपा के लिए ही रास्ता आसान बनाएंगे.
इसकी जगह वे भारत जोड़ो यात्रा की भावना को आगे बढ़ाकर और सदभावना को जिलाए रखकर ही मजबूती हासिल करने की कोशिश करें. फिल्म ‘द वेस्ट विंग’ से लेखक-निदेशक आरोन सोरकिन की मशहूर उक्ति का इस्तेमाल करते हुए हम यही कहना चाहेंगे कि वे राहुल को राहुल ही रहने दें.
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(वीर सांघवी भारतीय प्रिंट और टीवी पत्रकार, लेखक और टॉक शो होस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त विचार निजी हैं)
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