बहुत जिगर चाहिए इसके लिए कि दो बार हारने और बरसों तक उपहास का शिकार होने के बाद भी अपने देश की चिंता में आप फिर सामने डट जाएं, जिसके बहुमत ने एक राष्ट्रीय नेता की भूमिका के लिए आपको नकार दिया हो. राहुल गांधी हमें लगातार आश्चर्य में डाल रहे हैं. उन्होंने आसानी से हार नहीं मानी. वो सिर्फ दोष ढूंढ़कर सबकुछ छोड़ के नहीं जाना चाहते हैं.
वो बार-बार वापस आते हैं, वैश्विक महामारी से उपजी गंभीर समस्याओं के प्रति सहानुभूति और उनके व्यवहारिक समाधान तलाशने की अपनी तत्परता के साथ, अर्थव्यवस्था में आई मंदी, लाखों-करोड़ों प्रवासी मज़दूरों की समस्या, जो एक मानवीय संकट में बदल हो रही है और साथ ही कोविड पॉज़िटिव मरीज़ों की मैपिंग के लिए सरकार द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे ‘आरोग्य सेतु’ एप की पारदर्शिता. प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनिच्छा की पृष्ठ्भूमि
में देखने पर, राहुल गांधी की ये वापसी और भी स्पष्ट दिखती है.
राहुल बोलने को तैयार
राहुल गांधी हमेशा एक ऐसे बच्चे की तरह हैं, जिसे बिठाया नहीं जा सकता. भारत में कोविड ने जो समस्याएं खड़ी की हैं, उनके हल तलाशने की प्रक्रिया में लगातार साझेदारी से राहुल गांधी मीडिया की नज़रों में बने रहने में कामयाब रहे हैं.
उन्होंने दो बहुत ही उत्कृष्ट अर्थशास्त्रियों के साथ बातचीत की है- पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और नोबल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी. इसके साथ ही सोनिया गांधी ने प्रवासी मज़दूरों के लिए सहायता पैकेज की पेशकश की, जिसमें कांग्रेस ने हर उस प्रवासी मज़दूर का रेल किराया देने की बात कही, जो घर जाना चाहता था. इस ‘मास्टर स्ट्रोक’ ने कांग्रेस के घोर विरोधियों को भी, गांधी परिवार की सराहना करने पर मजबूर कर दिया. गांधी परिवार जानबूझकर और बहुत स्पष्ट रूप से अपने आपको नरेंद्र मोदी के सीधे विरोधी के रूप में पेश कर रहा है. मोदी जिस भी चीज़ से बच रहे हैं, गांधी परिवार उसका सीधे तौर पर सामना कर रहा है.
दक्षिणपंथी संपादकीय दावा कर रहे हैं कि राहुल गांधी ‘बुद्धिजीवी’ दिखने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसा व्यक्ति, जिसका हाल तक वो बहुत कटुता से मज़ाक़ उड़ा रहे थे. लेकिन ये अवधारणा अब टूट रही है, क्योंकि पहली बार बीजेपी की पूरी पीआर मशीनरी, राहुल गांधी के उपहास के लिए नहीं, बल्कि दो अर्थशास्त्रियों के साथ हुई उनकी बातचीत को, बदनाम करने के लिए इस्तेमाल की जा रही है या तो बातचीत को ‘फिर से पैकेज किया हुआ समाजवादी स्नेक ऑयल बताकर‘ या फिर मेहमानों के बारे में फ़र्ज़ी ख़बरें चलाकर. मनीकंट्रोल डॉटकॉम और न्यूज़ 18 में अभिजीत बनर्जी का झूठा हवाला देते हुए कहा गया कि उन्होंने यूपीए की स्कीमों की आलोचना की है. बनर्जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था.
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मोदी के सम्मोहन का अंत
उसके बाद (ज़ूम के ज़रिए) राहुल गांधी की दो प्रेस वार्ताएं हैं. हमें एक ऐसे बेहद शांत और ध्यान मग्न राहुल दिखाई पड़े, जो छ: वर्षों से बीजेपी या मीडिया के हाथों मिल रही बदनामी से तनिक भी विचलित नहीं हैं, जिसने अकसर उनके साथ अनुचित बर्ताव किया है. उन्होंने अतीत के राहुल का अपना व्यवहार काफ़ी हद तक बदल लिया है, जिसमें वो या तो ‘चौकीदार चोर है कहकर’ मोदी पर हमले करते थे या फिर संसद में उन्हें गले लगाकर कहते थे कि उन्हें प्रधानमंत्री पसंद हैं.
मोदी से राहुल का अलगाव तब स्पष्ट होता है, जब वो सरकार से आग्रह करते हैं कि ग़रीबों को पैसा सीधे भेजा जाए, जैसा कि कांग्रेस की ‘न्याय’ स्कीम में परिकल्पना थी. ये कहते हुए कि ‘इसे ‘न्याय’ कहिए या कोई भी दूसरा नाम दीजिए, लेकिन कर दीजिए.’
ऐसा प्रतीत होता है कि राहुल ने खुद को सियासी ओछेपन से दूर कर लिया है और उनके बयानों में एक राजनीतिक परिपक्वता झलकती है. ‘अगर हम साथ मिलकर काम करें, तो इस वायरस को हरा सकते हैं, लेकिन अगर हम आपस में लड़े, तो हार जाएंगे.’ उन्होंने ये भी कहा कि हालांकि अधिकतर बातों पर वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सहमत नहीं हैं, लेकिन फिर भी वो ‘रचनात्मक सुझाव’ पेश करना चाहते हैं.
सरकार के लिए सुझावों के साथ सही निशाने पर लगाए उनके ट्वीट्स का अब एक्सपर्ट्स भी अनुमोदन कर रहे हैं.
आरोग्य को अपने फायदे में पलटा
इधर बीजेपी राहुल गांधी या दो अर्थशात्रियों की ओर से कही गई किसी भी अहम बात को तर्कहीन रूप से नकार रही है, उधर एक नैतिक हैकर ने सरकार को तुरंत इसका नोटिस लेने और अपनी ग़लती को मानने पर मजबूर कर दिया. फ्रांसीसी हैकर इलियट एल्डरसन ने, ट्विटर पर आरोग्य सेतु की जांच की और राहुल गांधी के उस डर की पुष्टि कर दी, कि ये एक ‘जटिल निगरानी सिस्टम’ से अधिक कुछ नहीं है. एप के यूज़र एग्रीमेंट में कहा गया है कि भविष्य में क़ानूनी ज़रूरत पड़ने पर डेटा का इस्तेमाल महामारी नियंत्रण के अलावा दूसरे उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है. एप की निजता पॉलिसी में कहा गया है कि एप के आंकड़ें उतनी एंजेंसियों के साथ शेयर किए जा सकते हैं जितना सरकार मुनासिब समझती है.
एल्डरसन ने इस बात की भी पुष्टि की और सरकार को ट्वीट किया कि ‘आपके एप में सुरक्षा की एक समस्या पाई गई है. 9 करोड़ भारतीयों की निजता दांव पर है.’ ट्वीट का अंत करते हुए उन्होंने उप-लेख में लिखा ‘@राहुल गांधी सही थे.’
हालांकि, मोदी सरकार ने पुष्टि करते हुए कहा कि एप में सिक्योरिटी का कोई उल्लंघन नहीं हो सकता. लेकिन सरकार से सम्पर्क करने के लिए उसने नैतिक हैकर का धन्यवाद किया. दूसरी ओर एल्डरसन ने भी इस बात की पुष्टि की है, कि कुछ मुद्दे जो उन्हें उठाए थे, उन्हें एप में ठीक कर लिया गया है और उन्हें दोनों सरकारी इकाइयों- नेशनल इनफॉर्मेशन सेंटर (एनआईसी) और इंडियन कम्प्यूटर इमर्जेंसी रेस्पॉन्स टीम (आईसीईआरटी) की ओर से फोन आए थे.
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दरअसल प्रेस नोट में इस मुद्दे पर (उनके साथ) जुड़ने के लिए एल्डरसन का धन्यवाद किया गया. ‘हमारे साथ जुड़ने के लिए हम एथिकल हैकर का धन्यवाद करते हैं. यूज़र्स से आग्रह है कि किसी को यदि कोई कमज़ोरी दिखे, तो हमें तुरंत सूचित करे.’ एल्डर्सन का फिर भी यही कहना था कि एप को ‘झूठ बोलना, खण्डन करना’ बंद कर देना चाहिए.
राहुल की शुरूआती वॉर्निंग, जो 12 फरवरी को दी गई थी और जिसमें सरकार को इस संक्रामक रोग की अनदेखी से मना किया गया था, आज लगभग एक भविष्यवाणी सी लगती है. बीजेपी उन्हें ख़ारिज कर सकती है, लेकिन कोविड के इस समय में, पार्टी और सरकार के लिए राहुल को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होता जा रहा है.
(लेखक एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)
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पत्थर को घिस-घिस कर चिकना तो किया जा सकता है,पर वह हीरा नहीं बन सकता।आप लोगों को ऐसे फरेबी लेख लिखने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती होगी। अपने किन स्वार्थों के लिए आप देश को ऐसी मुसीबतों में डालना चाहते हो।
O Bai Congressi camcchi…….papu kitna b effort Kar le….bo kabhi pass nahi ho payga……pata hai kun……kunki uska syllabus different hai….uska man politics Mai nahi.hai…..usko uske man ka Kam karne do…..isi Mai sabhi ki bhalai hai