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Friday, 22 November, 2024
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राहुल गांधी ने गंभीर राजनेता होने का एक और अवसर गंवा दिया है

बीजेपी को सलाह दी जाती है कि वह राहुल गांधी के 'झूठ, आधे-अधूरे और मनगढंत' बयानों के लिए उनके खिलाफ कोई गंभीर कानूनी कार्रवाई करने से परहेज करे.

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विदेश में अपने दस दिवसीय दौरे के दौरान कांग्रेस पार्टी के वंशज राहुल गांधी का ब्रिटिश संसद में भाषण देने, प्रवासी भारतीयों से मिलने, प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने, निजी व्यावसायिक बैठकें आयोजित करने और चैथम हाउस में भाषण देने का कार्यक्रम था. आयोजकों में से एक के अनुसार, ये सभी एक बहस को आगे बढ़ाने वाले थे. यह केवल राजनीतिक भविष्य तक सीमित नहीं था, लेकिन उन्हें सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यावसायिक संबंधों को आगे बढ़ाने वाले था, जो दोनों देशों के बीच एक पुल का निर्माण करता है.

लेकिन पुल बनाने से दूर, राहुल गांधी ने मौजूदा संबंधों सहित अपनी पार्टी की छवि को भी ध्वस्त कर दिया है.

अपने ढुलमुल भाषणों, सवालों के बेतुके जवाबों और असमर्थनीय कथनों को देखते हुए उन्होंने न केवल खुद को बेवकूफ बनाया है बल्कि अपने पार्टी के कुछ सहयोगियों के लिए भी उनका बचाव करना बेहद मुश्किल बना दिया है.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि विदेशों में उनके द्वारा की गई आलोचनात्मक टिप्पणियां उन वास्तविक मुद्दों को समझने में उनकी अक्षमता को दर्शाती हैं, जिनका सामना उनकी पार्टी कर रही है और खुद को एक गंभीर राजनेता के रूप में पेश करने के अवसर को बर्बाद कर रही है.


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आप विदेश में क्या नहीं कहते हैं

बताया जाता है कि विदेश में अपने एक भाषण में, उन्होंने श्रोताओं से ‘शिकायत’ की थी कि उनके मोबाइल फोन की सुरक्षा से समझौता किया गया था और उसमें इजरायली स्पाइवेयर पेगासस द्वारा जासूसी करवाई गई थी. 25 अगस्त 2022 को, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि सरकार के खिलाफ ऐसे सभी आरोपों की गहन जांच करने के लिए गठित सुप्रीम कोर्ट की समिति द्वारा जांचे गए फोन में स्पाईवेयर के उपयोग पर कोई सबूत नहीं मिला. कथित तौर पर पेगासस द्वारा जासूसी में शामिल सैकड़ों फोन में से केवल 29 को जांच के लिए समिति के पास प्रस्तुत किया गया था.

CJI एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त की गई समिति ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें कहा गया था कि उन्होंने जांच किए गए 29 फोनों में से 5 में कुछ मैलवेयर पाया था, लेकिन इस बात का कोई निर्णायक प्रमाण नहीं था कि मैलवेयर पेगासस ही था.

संयोग से, भाजपा ने खुलासा किया है कि राहुल गांधी ने ऐसा करने के लिए कहा जाने के बावजूद फोरेंसिक जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त जांच समिति को अपना फोन जमा नहीं किया. पार्टी ने यह भी आरोप लगाया है कि यूपीए-2 शासन के दौरान नौ हजार से अधिक फोन टैप किए गए थे.

यहां एक बड़ा तथ्य यह भी है कि जिस स्थान और समूह को राहुल गांधी ने अपने मोबाइल की जासूसी का आरोप लगाने के लिए चुना, वह जगह अनुचित थी. एक परिपक्व नेता ऐसे मुद्दों को सरकार के सामने उठाता या अपने देश में मौजूदा सरकार के खिलाफ ये आरोप लगाते, तो ठीक रहता. किसी विदेशी सरकार और दर्शकों के सामने नहीं, जिनका यहां कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है.

उनका आरोप (एक सिख सज्जन का जिक्र करते हुए) था कि, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगता है कि मुसलमान और ईसाई दूसरे दर्जे के नागरिक हैं.’ यह एक और निराधार बयान है जो न केवल निंदा के योग्य है बल्कि एक तरह की गालीनुुमा भर्त्सना है. ऐसे समय में जब पंजाब और अन्य जगहों पर छोटे लेकिन खतरनाक रूप से सुसंबद्ध तत्व खालिस्तान की मांग को पुनर्जीवित करने और विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे संदर्भों से बचना ही बेहतर होगा.

जहां तक भारत में लोकतंत्र को बहाल करने के लिए विदेशी सरकारों की मदद मांगने की बात है, 1975 में उनकी दादी के कार्यकाल में ही न्यायपालिका, मीडिया और लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे पर सबसे बुरा हमला आपातकाल लागू करके किया गया था.


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राहुल को कहां फोकस करना चाहिए

भारत जोड़ो यात्रा के बाद, राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी की स्थिति का जायजा लेने, उत्तर पूर्व में होने वाले चुनावों और देश के अन्य उपचुनावों के लिए चुनावी रणनीति में अगले कदम की योजना बनाने की सलाह देनी चाहिए थी. जहां तक कांग्रेस के लिए राजनीतिक लाभ का संबंध है, भारत जोड़ो यात्रा ने स्वयं बहुत कम हासिल किया है.

संभवत: इसका उद्देश्य केवल कांग्रेस के उत्तराधिकारी को पार्टी के सर्वोच्च और निर्विवादित (और निर्विवादनीय) नेता के रूप में पेश करना था. यात्रा ने चुनावी उद्देश्यों को पूरा भी नहीं किया है क्योंकि उत्तर पूर्व के चुनावों में राहुल के चुनावी अभियान से पार्टी को न के बराबर वोट मिले.

अगर भारत जोड़ो यात्रा और उसके बाद विदेश में होने वाली गड़बड़ियों को एक साथ लिया जाए, तो राहुल गांधी ने अकेले ही कांग्रेस पार्टी की बड़ी बदनामी की है. पार्टी अध्यक्ष के रूप में खड़गे के ‘चुनाव’ के बाद, संगठन एक गैर ‘गांधी परिवार’ व्यक्ति को शीर्ष पर पेश करने की ओर बढ़ रहा था.

हालांकि कई राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना था कि कांग्रेस में ऐसा हो नहीं सकता है, लेकिन यह पार्टी के लिए ‘परिवार से संचालित’ टैग से छुटकारा पाने का एक अच्छा अवसर था. यह कांग्रेस में समझदार लोगों के लिए है कि जो कुछ भी बचा है, उसे प्राप्त करने और पार्टी को विनाशकारी ‘सीरियल लूजर’ से बचाने के लिए जरूरी है. लेकिन यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल. 

जैसा कि उम्मीद की जा रही थी, बीजेपी ने राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा है, लेकिन आगे उम्मीद यह की जा सकती है कि यह ओवरकिल का मामला न बने. बीजेपी को सलाह दी जाती है कि वह राहुल गांधी के ‘झूठ, आधे-अधूरे और मनगढ़ंत बातों’ के लिए उनके खिलाफ कोई गंभीर कानूनी कार्रवाई करने से परहेज करे.

मज़ाक में बहुत कुछ सच कहा जाता है, जैसे कि राहुल गांधी भाजपा के सबसे बड़े प्रचारक हैं. इसमें कुछ हद तक सच्चाई भी नजर आ रही है क्योंकि हर बार जब भी कांग्रेस के नेता फूट-फूटकर बयान देते हैं, कांग्रेस गुमनामी के करीब पहुंच जाती है.

(शेषाद्री चारी ‘ऑर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख़ को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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