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Monday, 7 April, 2025
होममत-विमतपंजाब पुलिस अपने अफसरों को बचाने में जुटी, सेना ने कर्नल बाथ को अकेला छोड़ा

पंजाब पुलिस अपने अफसरों को बचाने में जुटी, सेना ने कर्नल बाथ को अकेला छोड़ा

सैनिकों के साथ अक्खड़ पुलिसवालों की ज्यादतियों के बढ़ते मामलों से इसका मनोबल प्रभावित हो रहा है क्योंकि यह उनके सब्र के इम्तेहान जैसा है. संभलना होगा, स्थिति कभी भी बेकाबू हो सकती है.

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पंजाब पुलिस ने हाल में एक कामयाब ‘ऑपरेशन’ को अंजाम दिया, जिसमें उसने सात साल के एक बच्चे को अपहरणकर्ताओं से 24 घंटे के अंदर छुड़ा लिया और मुख्य आरोपी को एक विवादास्पद ‘एनकाउंटर’ में मार गिराया. 13 मार्च को पंजाब के डीजीपी गौरव यादव ने इस टीम को 10 लाख रुपये का इनाम और नौकरी में पदोन्नति देने की घोषणा कर दी.

इस कामयाबी के और कथित तौर पर से दारू के नशे में यह पुलिस टीम आधी रात को पार्टी करने के लिए पटियाला के राजेंद्र अस्पताल के पास हरबंस ढाबा पहुंची. टीम में शामिल चार इंस्पेक्टर वहां पार्किंग को लेकर एक पिता-पुत्र से उलझ गए. इसका नतीजा यह हुआ कि पिता-पुत्र को कई जख्मों के साथ अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा. किसी का एक हाथ तोड़ दिया गया था, तो किसी की नाक तोड़ दी गई थी.

भारत में पुलिस का जिस तरह राजनीतिकरण हो गया है और आज भी उसका चरित्र सांस्कृतिक रूप से जिस तरह उपनिवेशवादी है उसके मद्देनज़र उसके इस कारनामे को सामान्य ही माना जाएगा. यह घटना सुर्खियों में नहीं आती अगर पीड़ित व्यक्ति सेवारत कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाथ और उनके पुत्र अंगद न होते और उनकी पत्नी श्रीमती जसविंदर कौर बाथ अकाट्य सबूत जुटाकर मामले को दर्ज किए जाने की मांग पर अड़ न जातीं.

आठ दिन के संघर्ष — जिसमें पंजाब के राज्यपाल ने और सेना की कमान ने दखल दी, मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में खूब शोर मचा और पूर्व सैनिकों ने विरोध प्रदर्शन किए — जिसके बाद पीड़ितों के बयान के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन ‘अपनों’ को बचाने के पुलिस के पिछले प्रयासों और भारत की सुस्त न्याय-प्रक्रिया (जो उसी पुलिस की जांच पर आधारित होती है) की बदौलत यह सवाल स्थायी रूप से कायम रहता है कि दोषियों को कभी सज़ा मिलेगी भी या नहीं.

सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेस (सीएपीएफ) समेत सभी सशस्त्र बल और पुलिस ही हिंसा के कानूनी इस्तेमाल के मामले में सरकारी एकाधिकार का उपयोग करती है. सैनिकों के साथ अक्खड़ पुलिसवालों की ज्यादतियों के बढ़ते मामलों ने सेना के मनोबल को प्रभावित किया है और सैनिकों के सब्र का इम्तेहान लिया है, संभलना होगा, स्थिति कभी भी बेकाबू हो सकती है और सैनिक कानून को अपने हाथ में ले सकते हैं. ऐसा हुआ तो यह देश के लिए बहुत बुरा होगा. सेना को 30 साल से अपनी सेवाएं दे रहे 52-वर्षीय कर्नल बाथ के साथ पुलिसवालों ने जैसा दुर्व्यवहार किया वह कोई मामूली बात नहीं है, लेकिन यह ठहकर सोचने का वक्त है.

घटनाक्रम

कर्नल बाथ से मेरी बातचीत से यह घटनाक्रम सामने आया, जिसकी पुष्टि मीडिया में छपी खबरों से भी होती है.

कर्नल बाथ दिल्ली में तैनात हैं, वे छुट्टी लेकर अपने बेटे अंगद के साथ 13 मार्च की रात 12:15 बजे पटियाला आए. वे कुछ स्नैक्स लेने के लिए हरबंस ढाबा पर गए. दोनों रात 12:20 बजे ढाबे पर पहुंचे और बाहर भरी हुई पार्किंग में किसी तरह अपनी कार पार्क की. उन्होंने मैगी नूडल्स का ऑर्डर दिया. ढाबा पूरी तरह भरा हुआ था इसलिए उन्होंने नूडल्स की अपनी प्लेटें कार की डिग्गी में रखीं. बगल से गुज़र रहा अंगद का दोस्त भी उनके साथ बैठ गया.

रात करीब 12:30 बजे पुलिस की स्कोर्पिओ आगे की बत्तियां चमकाते हुए आई, उसके पीछे एक और स्कोर्पिओ और फॉर्च्यूनर भी थी. तीनों वाहन सड़क की गलत तरफ से आए. करीब 10 पुलिसवाले, उन वाहनों से उतरे. उनमें से कुछ सादी पोशाक में थे और पिस्तौल लिए हुए थे. उनमें से दो पुलिसवाले हथियारबंद थे और खाकी वर्दी में थे. एक ने कर्नल को पंजाबी में गाली देते हुए अपनी कार को हटा लेने को कहा ताकि उनके वाहन पार्क किए जा सकें, वरना नतीजे भुगतने के लिए तैयार हो जाएं. कर्नल बाथ ने उनसे कहा कि वे सेना के अधिकारी हैं और गाली-गलौज की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने अपने बेटे से अपनी कार हटा लेने को कहा.

कर्नल के विरोध से कुपित एक पुलिसवाले ने, जिसकी पहचान बाद में समाना के एसएचओ इंस्पेक्टर रॉनी सिंह के रूप में की गई, उनके मुंह पर घूंसा जड़ दिया. इसके साथ ही तीन-चार पुलिसवाले उनकी पिटाई करने लगे. पिता को पिटते देख अंगद अपनी कार छोड़कर वहां पहुंचे और पुलिसवालों को धक्का देते हुए पिता को बचाने की कोशिश की. उन्हें भी पुलिसवालों ने मुक्कों और अपने वाहनों से निकाली गईं लाठियों से मारना शुरू कर दिया. एक पुलिसवाले ने अंगद को धमकाया कि वह अभी-अभी एक एनकाउंटर करके आ रहा है और अब एक और एनकाउंटर हो सकता है.

अंगद ने किसी तरह खुद को उनसे छुड़ाया और अपने स्तब्ध पिता को कार में बिठाया. कर्नल बाथ ने अपना पहचानपत्र पुलिसवालों को दिखाने की कोशिश की, जिसे उन लोगों ने छीन लिया और उनका मोबाइल भी छीन लिया. उन्होंने कर्नल बाथ और उनके बेटे को कार से खींचकर बाहर निकाला और सड़क पर घसीटते हुए मुक्कों और लाठियों से पीटने लगे. आसपास खड़े लोगों और ढाबे पर आए मेहमानों ने रोकने की कोशिश की तो उन्हें भी पीटा. यह क्रूरता 20-25 मिनट चली और इसके बाद पुलिसवाले चले गए.

कर्नल की पत्नी को जब अंगद के दोस्तों से इस घटना की खबर मिली, तो उन्होंने रात 12:42 बजे ही पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया. उस समय उन लोगों पर हमला जारी था.

अंगद कर्नल बाथ को घर ले आए, लेकिन उन दोनों को जैसी चोटें पहुंचाई गई थीं, उनके कारण दोनों को रात करीब 1:10 बजे राजेंद्र अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. शुरू से ही इस मामले को मेडिको-लीगल मामला माना गया, जिसके तहत अल्कोहल के इस्तेमाल की संभावना को खारिज कर दिया गया.

पीड़ितों की हालत सुधरी तो मिसेज बाथ और उनके देवर गुरतेज सिंह ढिल्लों पुलिस के तौर-तरीके का अंदाज़ा लगाते हुए रात 2:25 बजे हरबंस ढाबा पहुंचे. ढाबे के मालिक ने उन्हें सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग दिखाई, जिससे चार पुलिस इंस्पेक्टरों की पहचान की गई. मिसेज बाथ ने ढाबे के मॉनिटर स्क्रीन से पूरी रिकॉर्डिंग अपने फोन पर दर्ज कर ली.

ढिल्लों ने मॉडल टाउन थाने के एसएचओ, एएसआई सुरेश को फोन किया, जो ढाबे पर पहुंचे और उन्होंने ढाबे के मालिक से मूल डिजिटल वीडियो रिकॉर्डिंग (डीवीआर) अपने कब्जे में ले ली और उससे पूछताछ भी की. पटियाला के एसएसपी नानक सिंह को बार-बार फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. रात 2:48 बजे डीआईजी मनदीप सिंह सिद्धू से संपर्क किया गया. उन्होंने ज़रूरी कार्रवाई का वादा किया. उन्होंने डीएसपी सतनाम सिंह को जांच अधिकारी नियुक्त किया.


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पुलिस की भद्दी लीपापोती

14 मार्च की सुबह ढिल्लों ने पंजाब के एडीजीपी (कानून-व्यवस्था) अर्पित शुक्ल से बात की, जिन्होंने उपयुक्त कार्रवाई करने का वादा किया. ज़ाहिर है, उनके कहने पर मिनटों में नानक सिंह ने अंततः सुबह 7:22 बजे ढिल्लों से बात की और घटना के लिए बहुत माफी मांगी और अगली कार्रवाई करने का वादा किया, लेकिन उन्होंने दोषियों से माफी मंगवाने और सदभावपूर्ण सुलह कराने का भी संकेत किया.

इसके तुरंत बाद, कथित रूप से उस मारपीट में घायल दो पुलिसवालों की प्राइवेट अस्पताल में मेडिकल जांच कारवाई गई ताकि मामले को द्विपक्षीय रंग दिया जा सके. पुलिस की एक टीम ने 10:30 बजे अस्पताल में कर्नल बाथ का बयान दर्ज किया और सभी सबूत तथा अस्पताल के दस्तावेज़ इकट्ठा किए.

कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई.

एसएसपी नानक सिंह ने कर्नल की पत्नी से अपने कैंप ऑफिस में दोपहर 12 बजे मुलाकात की. उन्होंने एक बार फिर सुलह करने का सुझाव दिया, लेकिन मिसेज बाथ ने एफआईआर की कॉपी मांगी, तो उन्हें मॉडल टाउन और सिविल लाइन्स थानों के बीच दौड़ाया गया. छह घंटे के इंतज़ार के बाद भी कोई एफआईआर नहीं दर्ज की गई.

15 मार्च की सुबह 10:30 बजे उन्हें एक बार फिर मॉडल टाउन थाने बुलाया गया, लेकिन एफआईआर की कॉपी नहीं दी गई. बातचीत सुलह करवाने पर ही केंद्रित रही. चारों आरोपी पुलिस इंस्पेक्टरों को माफी मांगने के लिए बुलाया गया. मिसेज बाथ ने जब इससे मना कर दिया तो उन्हें इशारों में धमकी दी गई कि पटियाला में रह रहे उनके परिवार को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

इसके बाद कर्नल की पत्नी बाथ ने सेना के अधिकारियों को सूचित किया तो उन्होंने नानक सिंह को फोन किया. 36 घंटे की जद्दोजहद के बाद अंततः डेढ़ बजे दोपहर को ढाबा मालिक के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. यह भी दर्ज किया गया कि कर्नल बाथ, अंगद और उनके दोस्त शराब पी रहे थे, उन्होंने अपनी कार गलत तरीके से पार्क की थी जिससे रास्ता जाम हो रहा था और इसी वजह से अज्ञात लोगों के साथ मामूली झड़प हुई.

मीडिया में खूब खबरें आने, पूर्व सैनिकों द्वारा धरना दिए जाने और राज्यपाल की ओर से दखल दिए जाने (जिनसे कर्नल बाथ और उनकी पत्नी ने अपील की थी) पर ही घटना के आठ दिन बाद 22 मार्च को पीड़ितों की ओर से एफआईआर दर्ज की गई. आरोपी पुलिसवालों को अंततः नौकरी से सस्पेंड किया गया और पटियाला शहर से बाहर किया गया, लेकिन पटियाला पुलिस के अधिकार क्षेत्र के अंदर रखा गया. एक एडीजीपी के अधीन एक विशेष जांच टीम (एसआइटी) का गठन किया गया और मजिस्ट्रेट जांच का भी आदेश दिया गया.

पंजाब पुलिस अपने मामलों को इसी तरह लटकाकर निबटाने का तरीका अपनाती है. इस तरीके में सबूतों को नष्ट करना; गवाहों पर दबाव डालना; ऐसे नैरिटव गढ़ना ताकि एफआईआर में पीड़ित ही आरोपी बन जाए; मीडिया, जनता और सरकार की ओर से दबाव को टालने के लिए एसआईटी का गठन करना और मजिस्ट्रेट जांच के आदेश देना शामिल है. आरोपी और उसका बचाव करने वाले अधिकारियों के बीच की नज़दीकी के कारण उनके और जांचकर्ता के बीच हितों का जो टकराव होता है उसकी उपेक्षा कर दी जाती है. इसका नतीजा यह होता है कि मामला अदालतों में वर्षों तक लटका रहता है और अंततः सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया जाता है.


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सेना अधिकारियों को गुमराह करना

अफसोस की बात है कि सेना वालों को पुलिस के सोच और उन तौर-तरीकों की कोई जानकारी नहीं होती या अधूरी जानकारी होती है. ऐसे तरीके वह तब अपनाती है जब उनका ‘अपना’ कोई आरोपी होता है. आज़ादी के बाद ऐसा कोई मामला नहीं हुआ है जिसमें पुलिस ने अपने लोगों के खिलाफ निष्पक्षता से कार्रवाई की हो. सीबीआई भी जिन मामलों की जांच कर रही होती है वह भी वर्षों तक चलते रहते हैं और पीड़ित थक जाते हैं.

उपरोक्त मामले में सेना ने ‘अज्ञात लोगों’ के खिलाफ दर्ज एफआईआर को कबूल कर लिया, जिसमें बताया गया था कि कर्नल बाथ नशे में थे और झगड़ा कर रहे थे, जबकि सेना के अधिकारियों को मालूम था कि कर्नल ने क्या बयान दिया था. सेना सही एफआईआर दर्ज करने के लिए पंजाब पुलिस और सरकार पर ज़रूरी दबाव नहीं डाल पाई. सही एफआईआर कर्नल बाथ और उनकी पत्नी के प्रयासों और राज्यपाल की ओर से दखल दिए जाने के बाद ही दर्ज की गई.

सेना के अधिकारी कर्नल बाथ के यहां गए हो या उनसे मिले हो, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है. निजी मुलाकात से कोई बात नहीं बनती. पूरे प्रचार के साथ मुलाकात की जाती तो उससे काफी फर्क पड़ता. सेना के अधिकारी अभी भी वास्तविकता से अनजान रहते हुए खुद को सही माने बैठे हैं. विडंबना यह है कि पुलिस आरोपी पुलिसवालों को बचाने में जुटी हुई है जबकि सेना ने कर्नल बाथ को अपनी लड़ाई खुद लड़ने के लिए छोड़ दिया है. इसका सेना के कर्मचारियों पर क्या उलटा असर पड़ेगा इसकी सहज कल्पना की जा सकती है.

यही वक्त है कि सेना आत्म-निरीक्षण करे और अपने लोगों के बचाव की कोई व्यवस्था बनाए , ताकि सेना के कर्मचारी अपना बचाव करने के लिए खुद उठ खड़े न हों. ऐसी कोई व्यवस्था बनाई जाए कि किसी भी सैनिक को कहीं भी पुलिस की ज्यादती का सामना करना पड़े तो वह मिलिटरी पुलिस या किसी फौरी जवाबी कार्रवाई टीम से संपर्क कर सके. यह शर्म की ही बात है कि पटियाला मिलिटरी स्टेशन से महज़ 500 मीटर की दूरी पर कर्नल बाथ पर हमला किया गया. रक्षा मंत्री को यह मामला गृह मंत्रालय के समक्ष उठाना चाहिए ताकि सेना के किसी कर्मी के साथ पुलिस के दुर्व्यवहार के मामले को लेकर कोई साफ नीति तय की जाए.

अब आगे क्या?

कर्नल बाथ ने निष्पक्ष सीबीआई जांच की अपील करते हुए पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट में मामला दायर किया है. इस बीच बड़ी घटना यह हुई है कि हाइकोर्ट ने चंडीगढ़ (यूटी) पुलिस को आदेश दिया है कि वह इस मामले की जांच के लिए तीन दिन के अंदर नई एसआईटी का गठन करे और जांच चार महीने में पूरी करे और चंडीगढ़ पुलिस में तैनात पंजाब पुलिस के किसी कर्मचारी को इस एसआईटी में शामिल न किया जाए. मेरा विचार है कि मामला जब सुनवाई के लिए पेश हो तब रक्षा मंत्रालय भी भारत के एटॉर्नी जनरल के जरिए इस मामले में एक पक्ष बनकर शामिल हो.

सरकार और सेना कर्नल बाथ के साथ हुई बर्बरता को एक ऐसे मामले के रूप में ले, जिससे न केवल सेना के कर्मचारियों के साथ किए जाने वाले बरताव को लेकर कानून बने बल्कि पुलिस में भी सुधार किए जाएं, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 19 साल पहले 2006 में ही आदेश जारी किए थे. कर्नल बाथ ने पंजाब के राज्यपाल और मुख्यमंत्री से लेकर रक्षा मंत्री और शायद सेना अध्यक्ष और आर्मी कमांडर तक से मुलाकात की है. अब भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला तो यह एक राष्ट्रीय शर्म की बात ही होगी.

लेफ्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, एवीएसएम, ने 40 साल तक भारतीय सेना में सेवा की. वे उत्तरी कमान और केंद्रीय कमान के कमांडर रहे. रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में सदस्य के रूप में काम किया. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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