पिछले दिनों यूक्रेन ने ‘ऑपरेशन स्पाइडर वेब’ के तहत रूस के हवाई अड्डों पर जो हमले किए उनसे रूस की सैन्य ताकत को काफी नुकसान पहुंचा. इसने न केवल यूक्रेन की बदलती युद्ध नीति के बारे में ठोस संकेत दिए बल्कि दुनिया भर की सेनाओं को ड्रोन से बढ़ते खतरे से आगाह भी किया.
यूक्रेन ने 1 जून 2025 को रूस के पांच बड़े हवाई अड्डों पर एक साथ ड्रोनों से हमले किए जिन्हें पानी वाले जहाज के कंटेनरों में भवन निर्माण सामग्री के रूप में तस्करी के जरिए पहुंचाया गया था. यूक्रेन की सेना ने एक साथ 117 ड्रोनों का इस्तेमाल करके रूस के अंदरूनी इलाके में यूक्रेन से 4,000 किमी (भारत की लंबाई-चौड़ाई से भी ज्यादा) दूर तक घुसकर अचानक हमले किए. इस ऑपरेशन के कारण रूस के कई विमान नष्ट हो गए जिनमें टीयू-22 और टीयू-95 सरीखे बमवर्षक भी शामिल हैं जो रूस की लंबी दूरी तक मार करने वाली परमाणु मिसाइलों के लिए बेहद ज़रूरी हैं.
सैन्य विशेषज्ञ इसे इज़रायली पेजर हमले जैसा बता रहे हैं. यह गुप्त हमला इज़रायली खुफिया सेवाओं ने सितंबर 2024 में हिज्बुल्लाह के खिलाफ किया था. इस ‘ऑपरेशन ग्रीम बीपर’ में लेबानन और सीरिया में हिज्बुल्लाह के लड़ाकों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हज़ारों पेजरों और वाकी-टॉकी को नष्ट आकर दिया गया था. इन दोनों में एक समानता यह थी कि दोनों में गैर-पारंपरिक तरीके का इस्तेमाल किया गया जिसने विषम, गतिज और बिना सीधी भिड़ंत वाली युद्धशैली को एक नया आयाम दे दिया.
यह पूरी तरह साफ हो चुका है कि भारत को अपनी ज़मीन पर ऐसे हमलों से बचना है तो इसकी तैयारी जल्दी से कर लेनी होगी. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारी ‘इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस सिस्टम’ (आईएडीएस) ने पाकिस्तानी ड्रोनों को नाकाम करने का कम अच्छी तरह पूरा किया, लेकिन सुरक्षा के ये उपाय पाकिस्तान की सीमा के इर्द-गिर्द ही सीमित थे. हम विरोधी या उन देशों से घिरे हैं जो आतंकी गुटों को शह देते हैं. इन हकीकतों के मद्देनज़र, हमारे अहम साजो-सामान किसी भी सीमा से चंद सौ किमी की दूरी पर ही स्थित हैं. इस वजह से संगठन को 360 डिग्री वाली सुरक्षा और सावधानी के उपाय बेहद ज़रूरी हैं.
अंदरूनी क्षेत्रों और हवाई अड्डों पर ड्रोन हमले का मुकाबला करने के लिए टेक्नोलॉजी, टैक्टिस और इन्फ्रास्ट्रक्चर की तैयारी का मेल ज़रूरी होगा. निम्नलिखित प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं :
इंटीग्रेटेड सेंसर नेटवर्क: निगरानी की विस्तृत व्यवस्था बनाने के लिए रडार, रेडियो फ्रिक्वेंसि डिटेक्टर, ऑप्टिकल सेंसर को इकट्ठा तैनात करने की ज़रूरत होगी. ड्रोनों की टोह लगाने, पीछा करने और वर्गीकरण करने के लिए आधुनिक ‘आईएडीएस’ की ज़रूरत होगी, जो सभी दिशाओं से चेतावनी दे सके और पूरे भारतीय आकाश की स्थिति की जानकारी दे सके.
जीओफेन्सिंग: जब अनधिकृत ड्रोन प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश करें तब महत्वपूर्ण क्षेत्रों के इर्द-गिर्द आभासी सीमाबंदी की ओर से चेतावनी देने वाली व्यवस्था बनाई जाए. भौगोलिक क्षेत्र और ऑपरेशन की ज़रूरतों के मुताबिक, काम करने वाली 3डी मॉडलिंग के इस्तेमाल से बेहतर जीओफेन्सिंग सुरक्षा का दायरा ऑपरेशन की आजादी को कम किए बिना बढ़ाया जाए.
रेडियो फ्रिक्वेंसी जैमिंग: ड्रोन और उसके ऑपरेटर के बीच संपर्क को भंग करने के लिए डाइरेक्शनल आरएफ जैमर का इस्तेमाल ड्रोन को वापस अपने अड्डे पर लौटने को मजबूर कर सकता है, लेकिन यह तरीका आरएफ लिंक वाले ड्रोन पर ही कारगर हो सकता है, प्रोग्राम्ड ड्रोन पर नहीं.
माइक्रोवेव और ‘डिउ’: केंद्रित माइक्रोवेव पल्सेस देने वाली हाई पावर माइक्रोवेव (एचपीएम) सिस्टम ड्रोन के इलेक्ट्रॉनिक्स को नाकाम कर सकती है और यह कई ड्रोनों के झुंड के खिलाफ ज्यादा कारगर होती है क्योंकि उसमें एक साथ कई लक्ष्यों को साधने की क्षमता होती है. रेडियो फ्रिक्वेंसी डाइरेक्टेड एनर्जी वेपान्स (आरएफडीईडब्लू) सिस्टम ड्रोन के इलेक्ट्रोनिक पुर्जों को नष्ट करने वाली आरएफ इनर्जी उत्सर्जित करती है. यह सैन्य अड्डों और संवेदनशील इलाकों की सुरक्षा का सस्ता उपाय उपलब्ध कराती है. ऐसी परियोजनाओं पर काम कर रहे ‘डीआरडीओ’ को इन सिस्टम्स के विकास पर नज़र रखनी चाहिए.
एंटी-ड्रोन मेश या कोप केजेज़: विमान और महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर को ड्रोन की सीधी टक्कर से बचाने के लिए उन्हें धातु के लैटिस ढांचे से ढाका जा सकता है और विस्फोटक के हमले से बचाया जा सकता है, लेकिन इस तरह की जालियों की सुरक्षा सीमित होती है, खासकर तब जब उपकरण संवेदनशील हो. सख्त ढांचा बेहतर होगा या सामान को अंडरग्राउंड ही रखा जाए. ‘एफपीवी’ ड्रोन को धुएं से अंधा करना भी बेहतर विकल्प हो सकता है.
क्विक रिएक्शन टीमें (क्यूआरटी): ड्रोन के खतरे का जवाब देने के लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त वायुसेना की ‘गरुड़’ या नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स (एनएसजी) जैसी टीमों का गठन हमलों को नाकाम करने या उन्हें नष्ट करने की तीव्र कार्रवाई को संभव बनाएगा. हर एक सैन्य अड्डे को ‘निगरानी’ टीम बनानी होगी जो किसी अनजानी उड़ती चीज़ को देखते ही खतरे की घंटी बजा दे.
ट्रेनिंग और तैयारी: सैनिकों की तैयारी और ड्रोनों की घुसपैठ का जोरदार जवाब देने के लिए निरंतर अभ्यास और ट्रेनिंग जारी रहनी चाहिए. इसमें पहचान की सिस्टम, सहयोग के प्रोटोकॉल, तालमेल शामिल हैं. स्थानीय आबादी का सहयोग अहम होता है, जो ‘स्पॉटर’ का काम कर सकती है और नागरिक-सेना सहयोग को बढ़ा सकती है.
इन उपायों को लागू करने से हवाई अड्डों और अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर को ड्रोन के हमलों से बचाया जा सकता है, चाहे हमला सीमा से बहुत अंदर घुसकर किया गया हो. नागरिक दायरे में सरकार द्वारा किए गए कुछ काम इतने ही महत्वपूर्ण हैं.
ड्रोनों के इन हमलों ने इस तथ्य को और स्पष्ट कर दिया है की आज युद्ध में कोई सीमारेखा नहीं है, पूरा देश ही युद्धक्षेत्र है. इसलिए, जिन नियमों-कायदों की कानूनी या राजनीतिक नज़रिए से उपेक्षा की जाती रही है उन पर ध्यान देने की ज़रूरत है. संवेदनशील क्षेत्रों के पास ‘नो फ़्लाइ ज़ोन’ की घोषणा को अधिसूचित करने और दंडनीय अपराध बनाने की ज़रूरत है जिनके उल्लंघन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत भारी दंड दिया जा सके और उसे केवल छोटा-मोटा अपराध न माना जाए.
सैन्य अड्डों के आसपास निर्माण पर रोक को सख्ती से लागू किया जाए. फिलहाल तो ‘वर्क्स ऑफ डिफेंस एक्ट 1903’ के तहत रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के निर्देशों का खुला उल्लंघन जारी है. इन उल्लंघनों की जानकारी और इत्तिला के बाद भी स्थानीय अधिकारी से लेकर अदालतें और पुलिस भी स्थानीय आबादी के प्रति सहानुभूति जताते हुए इनकी उपेक्षा कर देती है.
कर्नाटक हाइकोर्ट ने ऐसे एक मामले में निर्माण कार्यों को लेकर ‘एमओडी’ के निर्देशों की अनदेखी करने का आदेश तक जारी कर दिया था. राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में ऐसी अदूरदर्शिता के दूरगामी, भयावह परिणाम हो सकते हैं. चारदीवारी से सटकर खड़ी ऊंची इमारत से खास चीज़ों और सैनिकों को निशाना बनाया जा सकता है और एफपीवी ड्रोन काफी खतरा पैदा कर सकते हैं.
ड्रोन और एंटी-ड्रोन बनाने वाली असंख्य कंपनियों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है, जो पिछले कुछ वर्षों में उग आई हैं. ऐसे सभी कंपनियों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाए और उनसे उनकी उत्पादन क्षमता के ब्योरे देने को कहा जाए. उनकी बिक्री के आंकड़े और खरीदारों की जांच भी की जाए. ड्रोन के कालाबाज़ार को पनपने नहीं दिया जा सकता. सभी ड्रोनों को करीबी पुलिस थाने में रजिस्टर्ड करवाना और उनके तकनीकी ब्योरे दर्ज कराना ज़रूरी किया जाए. अनधिकृत रूप से ड्रोन रखना या उसकी बिक्री करना अपराध माना जाए और इसके लिए आर्म्स एक्ट जैसा कानून बनाया जाए. इस उभरते खतरे से निबटने के लिए सभी एजेंसियों को मिलकर काम करना होगा.
रूसी हवाई अड्डों पर यूक्रेनी ड्रोन हमले को रूस का पर्ल हार्बर कांड कहा गया है. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान ने जिस तरह अमेरिका के पर्ल हार्बर में अमेरिकी बेड़े पर अचानक हमला करके भारी नुकसान पहुंचाया था उसी तरह आज रूस को नुकसान पहुंचाया गया है. यह मत भूलिए कि अमेरिका इस क्षति से उबरा और ध्वस्त हुए जहाजों के मलबे में से उठकर युद्ध जीता था. भविष्य में क्या होगा यह कहना मुश्किल है, लेकिन हमें हर नतीजे के लिए तैयार रहना है. पहले ही चेत जाना पहले ही हथियारबंद हो जाना है.
(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ें: खतरे अभी खत्म नहीं हुए हैं, भारत को अपनी किलेबंदी करनी ही पड़ेगी