scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होममत-विमतअसामयिक मौतों को रोकिए, कोविड से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवज़ा मिलना ही चाहिए

असामयिक मौतों को रोकिए, कोविड से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवज़ा मिलना ही चाहिए

कोविड जैसी महामारी में बड़ी संख्या में मौतों को सामान्य मौतों से अलग वर्ग में रखा जाना चाहिए. इन्हेंहवाई हादसे या औद्योगिक हादसे में हुई मौतों के समान माना जा सकता है लेकिन वैसी ही मौतों में शुमार नहींकिया जा सकता.

Text Size:

भारत में सामान्य तौर पर एक साल में औसतन 1 करोड़ लोगों की मौत हो जाती है. लेकिन पिछले असामान्य 14 महीनों में कोविड की महामारी से हुई मौतों की संख्या सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3,60,000 से ज्यादा हो गई. अधिकतर टीकाकारों का मानना है कि असली आंकड़ा इससे दोगुना से लेकर पांच गुना तक ज्यादा होगा. अगर हम इसे तीन गुना भी मान लें तो कोविड से 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए, सामान्य औसत के दसवें हिस्से के बराबर. अनुमान है कि महामारी के वाले महीनों में देश में हुई मौतों की दूसरी सबसे बड़ी वजह कोविड थी.

इतनी बड़ी संख्या में मौतों को सामान्य मौतों से अलग वर्ग में रखा जाना चाहिए. इन्हें हवाई हादसे या 1984 की भोपाल गैस त्रासदी जैसे औद्योगिक हादसे में हुई मौतों के समान माना जा सकता है लेकिन वैसी ही मौतों में शुमार नहीं किया जा सकता. लेकिन कोई भी देश 9/11 कांड या रेलवे हादसों के विपरीत कोविड से हुई मौतों के लिए मृतकों के परिवारों को मुआवजे का भुगतान नहीं कर रहा है. इसके पीछे सोच यही है कि औद्योगिक हादसों के विपरीत महामारी से होने वाली मौतों पर किसी का नियंत्रण नहीं होता. लेकिन यह तर्क टिकता नहीं. अलग-अलग देशों में कोविड से मौत के आंकड़े अलग-अलग हैं, जो यह बताते हैं कि महामारी से निबटने में अलग-अलग सरकारों ने अलग-अलग क्षमता का इस्तेमाल किया. कई मौतों को रोका जा सकता था. इसलिए, सरकारों ने बेरोजगार हुए लोगों या बिलकुल निर्धन लोगों को मुआवजा देने का जैसे फैसला किया है उसी तरह उन्हें कोविड से जान गंवाने वालों के परिवारों को मुआवजा देने की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए.

इसका वित्तीय मतलब क्या होगा? यह इस पर निर्भर होगा कि आदमी की जिंदगी को सस्ता समझा जाता है या मूल्यवान. पिछले साल जब एअर इंडिया एक्सप्रेस का विमान हादसे का शिकार हो गया तो एयरलाइन ने हरेक मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा दिया. इसके विपरीत, मोंट्रियल संधि विमान हादसे में मारे गए व्यक्ति की जान का मूल्य 1.2 करोड़ रु. के बराबर आंकती है. जान की एक कीमत भोपाल गैस त्रासदी के मामले में लगाई गई. इसमें मारे गए 15,300 लोगों के परिजनों को जो औसत मुआवजा दिया गया.


यह भी पढ़ें : प्रवेश से रोकने पर 8 सांसदों ने लक्षद्वीप प्रशासक के खिलाफ विशेषाधिकार उल्लंघन का नोटिस दिया


वह आज के हिसाब से 4.6 लाख रु. बैठेगा. जीवन बीमा निगम जिसे मानव जीवन मूल्य कहता है उसका आकलन किस तरह करता है इस पर भी गौर कीजिए. वह 30,000 रु. प्रति माह कमाने वाले 50 साल के व्यक्ति की जिंदगी का मूल्य 26 लाख रु. आंकता है.

आनुषंगिक लाभ

कोविड से जान गंवाने वालों के परिवारों को पैसे का कितना नुकसान हुआ? आप विमान सेवा या भोपाल कांड या बीमा निगम का आंकड़ा चुनें और कुल मौतों का सरकारी आंकड़ा (जांच के लिए दूसरा आंकड़ा न होने के कारण) चुनें तो मानव जीवन की हानि का मूल्य 16,500 से 94,000 करोड़ रु. के बीच आएगा. ऊपरी सीमा पिछले साल की जीडीपी के 0.50 प्रतिशत के बराबर होगी, जबकि अमेरिका ने 2001 के 9/11 कांड के पीड़ितों (करीब 2,800 मृतकों और इससे ज्यादा घायलों) को जीडीपी के 0.66 प्रतिशत के बराबर मुआवजा दिया था. दूसरे शब्दों में, राशि सीमा के अंदर है.

ये आंकड़े कोविड से हुई मौतों के कारण हुए नुकसान को दर्शाते हैं. कुल आर्थिक क्षति तो बेशक इससे कहीं ज्यादा है (जिसमें उदाहरण के लिए, जीवित बचे मगर रोजगार गंवा चुके लोग शामिल हैं). ऐसा लगता है कि जान की हानि और आर्थिक नुकसान के आंकड़े साथ-साथ चलते हैं. जिन देशों (ब्रिटेन और ब्राज़ील उदाहरण हैं) में ज्यादा मौतें हुई हैं उनकी अर्थव्यवस्था को भी ज्यादा नुकसान हुआ है. पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान चयन को लेकर भ्रम को मिटा देता है.

आनुषंगिक लाभ भी मिलते हैं. मुआवजे की संभावना पीड़ितों के परिवारों को मौतों के बारे में सही सूचना देने की प्रेरणा देती है. इस तरह हमें मौतों के ज्यादा सही आंकड़े मिलते हैं. इसका असर यह होता है कि नीचे से दबाव आता है, जो सरकारों को स्थिति को काबू में करने के लिए मजबूर करता है. अंत में, कोविड के चलते उन मौतों पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकता है जिन्हें रोका जा सकता है, मसलन रेल और सड़क हादसों में मौतों पर, नवजात शिशुओं की मौतों, आदि पर. भारत में ये मौतें इतनी बड़ी संख्या में होती हैं, तो इन्हें रोकने कितने पैसे की जरूरत पड़ेगी? हरेक असामयिक मौत को रोकने की अतिरिक्त लागत अगर मानव जीवन के आर्थिक मूल्य से कम होगी, चाहे उसके लिए मुआवजा दिया गया हो या नहीं, तो व्यक्तिगत दृष्टि से वह खर्च अच्छा माना जाएगा, और समाज के हित में भी.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments