कांग्रेस पार्टी के पुनरुत्थान का जिक्र होते ही जिन चिर-आशावादियों की धड़कन एक पल के लिए रुक जाती है, उनके लिए शायद ईस्टर वाला रविवार समय से कुछ पहले आ गया था. इसके एक दिन पहले, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में जान फूंकने के कार्यक्रम का खाका 10, जनपथ में प्रस्तुत किया. उनके प्रस्तावों का अध्ययन करने के लिए सोनिया गांधी ने एक कमिटी बनाने का फैसला किया है.
लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस की किसी कमिटी की रिपोर्ट आखिरी बार कब सबके सामने आई और उसकी कितनी सिफारिशों को लागू किया गया? सोनिया गांधी ने पार्टी के सामने ‘भावी चुनौतियों’ का आकलन करने के लिए 2007 में 13 सदस्यीय कमिटी बनाई थी, जिसके एक सदस्य राहुल गांधी भी थे. उस कमिटी के कई सदस्य- ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीरप्पा मोइली, मुकुल शर्मा, आनंद शर्मा, पृथ्वीराज चौहान और संदीप दीक्षित- आज गांधी कुनबे के लिए ‘वर्तमान चुनौतियों’ में तब्दील हो गए हैं. सिंधिया भाजपा में चले गए हैं, दूसरे अब ख्यात ‘जी-21’ (मूलत: जी-23) के हिस्से हैं. ए.के. एंटनी से पूछ लीजिए कि उन्होंने कितनी कमिटियों की अध्यक्षता की और उनकी रिपोर्टों का क्या हुआ.
प्रशांत किशोर (पीके) ने जो खाका पेश किया है इसके अध्ययन के लिए जो ताजा कमिटी बन रही है उसका शायद वह हश्र न हो. ‘पीके’ अपने प्रस्तावों पर गांधी परिवार से करीब दो साल से विचार-विमर्श कर रहे हैं और दोनों पक्ष ’90 फीसदी’ मसलों पर एकमत हैं. शेष 10 प्रतिशत मसलों पर उनकी बातचीत पिछले साल सितंबर में टूट गई थी. अगर गांधी परिवार ने उन्हें पिछले शनिवार को फिर से बुलाया है तो जाहिर है कि उनके मतभेद कम हो रहे हैं.
गांधी परिवार ‘पीके’ को साथ लेने के लिए बहुत उत्सुक है. कांग्रेस बिखर रही है. गांधी परिवार और पार्टी के साथियों के बीच अविश्वास की खाई गहरी होती जा रही है. ‘पीके’ चाहे जिस भी हैसियत से कांग्रेस से जुड़ेंगे उससे यही होगा कि गांधी परिवार पर दबाव घटेगा. ऐसी उम्मीद वे कर सकते हैं. जिन्हें कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं नज़र आता, वे जादुई चुनाव रणनीतिकार के रूप में ‘पीके’ की ख्याति के कारण पुनर्विचार कर सकते हैं और अपने कदम रोक सकते हैं.
यह भी पढ़ें: सुरजेवाला ने कहा- जनता की जेब काटने का नया तरीका अपना रही मोदी सरकार
‘पीके’ की रणनीति
आखिर, कांग्रेस के लिए ‘पीके’ ने क्या रणनीति बनाई है? इसके लिए आपको उनके द्वारा तैयार किया गया खाका देखने की जरूरत नहीं है. जैसा कि दिग्गज पत्रकार अरुण शौरी कहते हैं, गुप्त दस्तावेज़ की तलाश में हम उपलब्ध सार्वजनिक रिकॉर्ड को पढ़ते तक नहीं हैं. पिछले तीन महीने में ‘पीके’ ने कई इंटरव्यू में काफी संकेत दिए हैं कि भाजपा को हराने और कांग्रेस में जान फूंकने की उनकी योजना में क्या कुछ शामिल है. उन्होंने अपनी रणनीति की मोटी-मोटी रूपरेखा पेश की है, बेशक उसे क्रियान्वित करने के ब्योरे नहीं बताए हैं. मूल रूप से ‘पीके’ के पास ‘4 एम’ वाला फॉर्मूला है- मेसैज, मेसैंजर, मशीनरी और मैकेनिक्स यानी संदेश, संदेशवाहक, पार्टी तंत्र और प्रक्रिया.
2024 में कांग्रेस का बड़ा संदेश क्या होगा? विपक्ष को पहले यह विचार करना होगा कि क्या है जो भाजपा को कामयाबी दिलाती है. ‘पीके’ का कहना है कि मूलत: ये तीन चीजें हैं— हिंदुत्व, उग्र राष्ट्रवाद, जनकल्याणवाद. तो इसका मुकाबला कैसे किया जाए? ‘पीके’ इस सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं देते, सार्वजनिक तौर पर तो नहीं ही लेकिन वे इनकी सीमाओं को पहचानते हैं.
उनका कहना है कि, उदाहरण के लिए चुनावी आंकड़ों को देखें. उनसे जाहिर होता है कि दो में से एक हिंदू ने भाजपा को वोट दिया. दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के ‘ऑफ द कफ’ कार्यक्रम में हाल में दिए इंटरव्यू में ‘पीके’ ने कहा, ‘हिंदुत्व की सीमाएं हैं. इसके बूते आप 50-55 फीसदी हिंदुओं को अपने साथ ला सकते हैं लेकिन हिंदुओं में उदार, खुले विचार वालों की संख्या भी काफी है… हिंदू धर्म और हिंदुत्व पर बहस में उलझना बेमानी है.’
जहां तक उग्र राष्ट्रवाद की बात है, ‘पीके’ को यह बात ‘अकल्पनीय’ लगती है कि जिस पार्टी ने देश की आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व किया उसे आज भाजपा द्वारा विपक्ष पर लगाए गए इस आरोप का जवाब देना मुश्किल पड़ रहा है कि वह ‘राष्ट्र विरोधी’ है. हैरत और बेचैनी से भरकर वे कई सवाल उठाते हैं— कांग्रेस सरदार पटेल सरीखी विभूति पर भाजपा को कब्जा करने की छूट कैसे दे सकती है? कितने कांग्रेसी हैं जो जवाहरलाल नेहरू के बचाव में प्रेस कांफ्रेंस करने के सिवा वास्तव में लड़ाई लड़ रहे हैं? इसलिए, ‘पीके’ जब इस विपक्षी पार्टी के साथ जुड़ जाते हैं तब उम्मीद कीजिए कि वह फिर से ‘राष्ट्रवादी’ कहलाने और अपने दिग्गजों को अपने कब्जे में लेने की कई पहल करेगी.
जहां तक भाजपा के जनकल्याणवाद की बात है, विपक्ष के पास लोगों के लिए वैकल्पिक प्रस्ताव होना चाहिए कि वह अगर सत्ता में आया तब क्या बेहतर पेशकश करेगा. वह विकल्प विश्वसनीय और कायल करने वाला हो.
ये विपक्ष की ओर से संभावित जवाबी कार्रवाई के व्यापक स्वरूप हो सकते हैं, जिन पर ‘पीके’ विचार करते रहे हैं.
यह भी पढ़ें: भारत में हिंदुत्ववादी हिंसा की जानबूझकर अनदेखी करना कहीं देश के लिए एक बड़ा खतरा न बन जाए
कोई गैर-गांधी होगा कांग्रेस का संदेशवाहक?
कामयाबी के उपरोक्त मंत्रों में ‘संदेशवाहक’ वाला मंत्र कांग्रेस के मामले में सबसे जटिल और पेचीदा है. अपने तमाम इंटरव्यू में ‘पीके’ जेपी नड्डा मॉडल के असर की चर्चा करते रहे हैं. भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ही चला रहे हैं लेकिन उन्होंने नड्डा को पार्टी अध्यक्ष बनाया है. यह भाजपा को अपनी यह कहानी सुनाने में मदद करती है कि वह हरेक को शीर्ष पर पहुंचने का मौका देने वाली पार्टी है. ‘मोजो स्टोरीज़’ की बरखा दत्त को दिए इंटरव्यू में ‘पीके’ ने कहा, ‘भाजपा में मोदी और शाह संगठन को चलाते हैं लेकिन नड्डा अध्यक्ष हैं. भाजपा कैसे काम करती है? वह कहती है कि उसका बूथ स्तर का कार्यकर्ता भी अध्यक्ष बन सकता है. ऐसा वास्तव में होता है या नहीं, यह अलग बात है, वह जनता में यह संदेश तो देती ही है.’
‘पीके’ कहते रहे हैं कि प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष के काम अलग-अलग हैं और उनके लिए अलग-अलग काबिलियत चाहिए. इसलिए, संगठन चलाने वाले को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनना चाहिए, जिसका मुख्य काम जनता से अपने तार जोड़ना है, उसे लोगों को यह बताना है कि उनके बारे में उसके क्या-क्या सपने हैं और इस तरह उनका दिल जीतना है.
लेकिन कांग्रेस के लिए यह एक समस्या है. मनमोहन सिंह कोई मोदी नहीं थे लेकिन सोनिया-सिंह मॉडल की वापसी मुमकिन नहीं दिखती है. हालांकि ‘पीके’ मानते हैं कि सोनिया अभी भी पार्टी को चलाने की क्षमता रखती हैं और वे यह भी मानते हैं कि राहुल अगर कमान संभालते हैं तो भी कोई मुश्किल नहीं लेकिन इससे नड्डा मॉडल के बारे में उनके विचार बदल नहीं जाते. शेखर गुप्ता को दिए उपरोक्त इंटरव्यू में ‘पीके’ ने कहा, ‘अगर आप परिवार वाली पार्टी चलाते हैं तो आप लंबे समय तक राजनीतिक ताकत नहीं बने रह सकते.’
75 की हो चुकीं सोनिया का फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने का कोई सवाल नहीं है. वैसे, कांग्रेस के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता. अगर राहुल अपनी आजमाई हुई क्षमता या पद के लिए अपनी अक्षमता के बावजूद वापस आते हैं, तो ‘पीके’ की रणनीति के अनुसार उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनना चाहिए. यह विचार गांधी परिवार को कितना भाएगा? अगर गांधी परिवार सितंबर में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में अपनी दावेदारी छोड़ कर किसी नड्डा को आगे बढ़ाता है, तो यह ‘जी-21’ को शांत करेगा और पार्टी पर से परिवारवादी का ठप्पा मिटाने में भी मदद मिलेगी. लेकिन गांधी परिवार का जो पुराना रिकॉर्ड रहा है उसके मद्देनजर यह आसमान से तारे तोड़ लाने वाली बात हो सकती है.
यह भी पढ़ें: भोजन, पानी, टेंट्स और डे-केयर के साथ श्रीलंका के प्रदर्शनों का मुख्य केंद्र बना ‘गोटा गो’
राहुल के सिपाहियों का क्या होगा
‘पीके’ कांग्रेस को नीचे से पुनर्गठित करने की योजना के लिए जाने जाते हैं— बूथ से लेकर ब्लॉक और जिला स्तर की कमिटियां बनाने की योजना के लिए. जब वे पार्टी में ऊपर से ही जवाबदेही तय करना शुरू करेंगे तब उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
‘पीके’ अक्सर कहा करते हैं कि कांग्रेस अपनी नाकामियों के लिए जनता के साथ संवाद बना पाने में अपनी कमजोरी को जिम्मेदार ठहराती है. वे उलझन में है कि रणदीप सिंह सुरजेवाला सात वर्षों से पार्टी के संचार विभाग के मुखिया कैसे बने हुए हैं? अगर ‘पीके’ राहुल के करीबियों के पिछले रिकॉर्ड देखने लगें और जवाबदेही की मांग करने लगें तो पाएंगे कि कांग्रेस नेता का 12, तुगलक लेन वाला आवास खाली हो गया है.
वर्तमान राजनीति और पार्टियों की मजबूतियों तथा कमजोरियों के आकलन के बारे में ‘पीके’ सार्वजनिक तौर पर एक विचार रखने और करीबी मंडली दूसरा विचार रखने के लिए जाने जाते हैं. जो भी हो, सवाल यह है कि वे पार्टी में जो गहरा मंथन चाहते हैं उसके लिए गांधी परिवार क्या तैयार है? अब, सवाल यह है कि ‘पीके’ कांग्रेस को बदल डालते हैं या उसका उल्टा होगा? इस सवाल का जवाब अभी किसी के पास नहीं है.
(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: प्रशांत किशोर ने 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने पेश किया प्रेजेंटेशन