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Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतप्रणव मुखर्जी एकमात्र भारतीय राजनेता हैं जिनकी अस्थियों को गंगा ने आंचल फैला कर स्वीकारा है

प्रणव मुखर्जी एकमात्र भारतीय राजनेता हैं जिनकी अस्थियों को गंगा ने आंचल फैला कर स्वीकारा है

लोहारी- नागपाला गंगा के उद्गम पर बनने वाली 600 मेगावाट की विशाल बिजली परियोजना पर स्टे लगाते हुए प्रणव मुखर्जी ने कहा था गंगा ही नहीं रहेगी तो आपकी बिजली का हम क्या करेंगे.

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वह साल 2009 था. यूपीए सत्ता में थी और उर्जा मंत्री थे सुशील कुमार शिंदे. जीडी अग्रवाल गंगा आंदोलन का चेहरा बन चुके थे उनके दवाब में उत्तराखंड सरकार ने राज्य की दो बांध परियोजनाओं को निरस्त कर दिया था. अब अग्रवाल बड़ी लड़ाई यानी केंद्र की बड़ी परियोजना लोहारी- नागपाला के खिलाफ अनशन पर थे.

लोहारी- नागपाला गंगा के उद्गम पर बनने वाली 600 मेगावाट की विशाल बिजली परियोजना थी. परियोजना का ज्यादातर काम हो चुका था. इस परियोजना के पूरी होने के बाद गंगा पहाड़ पर दिखना बंद हो जाती.

अग्रवाल को अंदाजा नहीं था कि लड़ाई कितनी कठिन होने वाली है. सत्ता में ही गंगा को बेचने और बचाने वाले दोनों मौजूद थे. और हमेशा की तरह बाजार यानी बेचने वाले हावी थे. पर्यावरण जैसे निकृष्ट मुद्दों पर सुनवाई कभी आसान नहीं रही. क्योंकि मामूली मुद्दे किसी कंपनी का करोड़ों रूपए का नुकसान करवा सकते हैं.

केंद्र और जीडी अग्रवाल के बीच नेगोशिएशन चल रहा था. केंद्र की तरफ से सुशील कुमार शिंदे बात कर रहे थे. शिंदे पर दवाब था- चाहे जैसे आंदोलन खत्म होना चाहिए और शिंदे कतई समझौते के मूड में नहीं थे वे नहीं चाहते थे कि बांध का काम अपने अंतिम चरण में आकर थम जाए.


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अडिग प्रणब

अग्रवाल की ओर से बात करने वालों में भी कुछ लोग शिंदे से मेलजोल रखते थे. उर्जा मंत्री ने जीडी के साथियों से कहा कि आप 16 घनमीटर फ्लो की मांग कर रहे हैं मैं 20 घनमीटर फ्लो देने को तैयार हूं और जब तक एनवायमेंटल फ्लो तय नहीं होता बांध का काम पूरी तरह बंद रहेगा बस शर्त यह है कि अग्रवाल का उपवास आज ही टूटना चाहिए.

गंगा अविरल बहेगी और बांध का काम रूक जाएगा, बस और क्या चाहिए था. मांगें मान ली गई और अग्रवाल ने उपवास तोड़ दिया. उपवास टूटने के दूसरे दिन ही एक याचिका नैनीताल हाईकोर्ट में लगाई गई जिसमें कहा गया कि केंद्र सरकार ने अग्रवाल के दवाब में गलत नोटिफिकेशन जारी किया है इसे रद्द होना चाहिए, और हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया.

आम चुनाव की घोषणा भी हो चुकी थी, हाई कोर्ट के स्टे के बाद अग्रवाल हाथ मलते रह गए. बाद में पता चला कि बांध बनाने वाली कंपनी एनटीपीसी और याचिका लगाने वाले का वकील एक ही है और यह सारा ड्रामा उपवास तुड़वाने के लिए शिंदे की शह पर पूर्वनियोजित था.

खैर चुनाव हुए, यूपीए की दूसरी पारी प्रारंभ हुई और अग्रवाल ने अपना अनशन फिर शुरु कर दिया. इस बार पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बातचीत की शुरुआत की. रमेश और अग्रवाल का पारिवारिक दोस्ताना रहा है. रमेश अपनी कोशिशों से मामले को देश के वित्त मंत्रालय तक ले गए. और फिर शुरु हुई वह बहुप्रतिक्षित बैठक जिसकी अध्यक्षता कर रहे थे देश के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी. अग्रवाल और सरकार की तरफ से बैठक में कई लोग शामिल थे. अग्रवाल की ओर से भी कुछ मुखौटे थे. आशंका यही थी कि बांध का काम नहीं रूकेगा.

एनटीपीसी ने अपना पक्ष रखा कि टनल और बाकी इंफ्रास्टक्चर पूरा बन चुका है और उस पर छह सौ करोड़ रुपए भी खर्च हो चुका है और अब इस पर वापस नहीं जाया जा सकता.

प्रणव मुखर्जी ने कहा कि गंगा ही नहीं रहेगी तो आपकी बिजली का हम क्या करेंगे. रही बात पैसे की तो देश के पास पैसे की कोई कमी नहीं है. हमने आपको छह सौ करोड़ माफ किया.

मात्र चंद मिनटों में चार साल से चल रहे आंदोलन का फैसला हो गया. भगवा चादर पहने और सफेद कुर्ता पजामा वाले कुछ कथित गंगा पुत्रों ने मामले को मंत्रिमंडल के सामने रखने यानी सोनिया गांधी के सामने रखने का सुझाव दिया लेकिन मुखर्जी अडिग थे.

सरकार ने लोहारी- नागपाला को हमेशा के लिए बंद कर दिया. प्रणव मुखर्जी ने यह भी तय किया कि गंगा के उद्गम से उत्तरकाशी तक यानी 130 किलोमीटर तक नदी किनारे 200 मीटर तक कोई निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा.

परियोजना बंद तो की गई लेकिन ऐसे कि उसके शुरु होने की गुंजाइश बनी रही.


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नागपाला, विकास और राष्ट्रभक्ति

लोहारी – नागपाला की विशाल टनल के मुहाने पर छोटा सा गेट लगा दिया. परियोजना के दोबारा शुरु होने का दवाब हमेशा बना रहा लेकिन जब तक मुखर्जी थे किसी की हिम्मत नहीं हुई कि बांध परियोजना का खुलकर समर्थन करे. 2014 में जब सत्ता बदली तब लोहारी-नागपाला को लेकर सुगबुगाहट शुरु हुई लेकिन राष्ट्रपति पद पर बैठे मुखर्जी के रहते यह संभव नहीं था. उनके राष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद लोहारी- नागपाला के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है. इससे क्या फर्क पड़ता है कि वर्तमान सरकार को खुद गंगा ने बुलाया है.

कल को लोहारी – नागपाला को राष्ट्रभक्ति के लिए आवश्यक योजना बताकर लागू कर दिया जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

आज प्रणव मुखर्जी नहीं है. वे अंतिम रूप से उसी गंगा में समा गए जिसे वे भारतीय सभ्यता की मां मानते थे. उन्होने खुद को कभी गंगा पुत्र कहकर प्रचारित नहीं किया, जय गंगे का नारा भी नहीं लगाया. लेकिन विश्वास मानिए उनकी अस्थियों को गंगा सरकारी नालों से बचते- बचाते अपने आंचल में संभाले बैकुंठ तक ले जा रही होंगी, जहां प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उनकी आगवानी के लिए खड़े होंगे.


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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)

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