जनता का आक्रोश कब तक रहेगा? और क्या इससे कोई फर्क पड़ता है – मध्यम अवधि में भी? निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या के ग्यारह साल बाद, मैं अनिच्छा से इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि हम जो सामूहिक आक्रोश व्यक्त करते हैं वह आम तौर पर अचानक होता है, केवल थोड़े समय के लिए रहता है, और लंबे समय में कोई फर्क नहीं पड़ता है.
यह दुख की बात है. लेकिन ये बिल्कुल सच है.
मैं प्रज्वल रेवन्ना के मामले पर थोड़ा विचार करूंगा जो कि शायद भारत के इतिहास में गंदगी वाला होगा. लेकिन पहले, आइए दिसंबर 2012 में निर्भया मामले के बाद हुए हंगामे को याद करें. एक युवा महिला के साथ क्रूर सामूहिक बलात्कार और हत्या वास्तव में चौंकाने वाला और भयावह था, जब उसकी पूरी जिंदगी उसके सामने पड़ी थी. यह समझ पाना आसान था कि हम सब इससे क्यों भयभीत थे. निर्भया का गुनाह सिर्फ इतना था कि वह एक शाम दिल्ली में बस में चढ़ी थी. उसके साथ हुई क्रूरता की हद ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.
आक्रोश सड़कों पर फैल गया. पूरे भारत में प्रदर्शन हुए. राजनेताओं को ध्यान देने के लिए मजबूर होना पड़ा. दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, जिनका पुलिस पर कोई नियंत्रण नहीं था (दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार को रिपोर्ट करती है), को राजधानी को महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं बना पाने के लिए दोषी ठहराया गया था. संभवत: इसने अगले चुनाव में उनकी हार में बड़ी भूमिका निभाई. वास्तव में, 2014 के लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ यूपीए के हुए पतन का जनता के आक्रोश से भी कुछ लेना-देना हो सकता है.
उस समय, मैंने सोचा कि यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है. हम अंततः भारत की महिलाओं के सबसे बुनियादी अधिकार – सुरक्षा के अधिकार – के लिए खड़े हुए और राजनीतिक व्यवस्था को सुनने के लिए मजबूर किया.
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राजनेता, छेड़छाड़ करने वाले
जब भारत के लोगों ने उन लोगों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जिन्होंने निर्भया कांड होने दिया था, तो हम केवल बलात्कारियों और हत्यारों के लिए सजा की मांग नहीं कर रहे थे. बल्कि हम भारत के राजनेताओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. जिन्होंने देश को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने के लिए कुछ नहीं किया. सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया और नाबालिग आरोपी को छोड़कर सभी को फांसी की सजा दे दी गई.
अब, मुझे एहसास हुआ कि मैं खुद से मजाक कर रहा था.
पूरे देश में, पुरुषों द्वारा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और छेड़छाड़ की गई, उन्हें चोट पहुंचाई गई, उनका बलात्कार किया गया और उनकी हत्या कर दी गई क्योंकि उन्हें लगा कि वे इससे बच सकते हैं – और उनमें से अधिकांश के साथ ऐसा हुआ भी. हमारी न्याय प्रणाली इतनी ढीली थी कि उन्हें शायद ही कभी उस तरह की सज़ा का सामना करना पड़ा जिसके वे हकदार थे. और राजनेताओं ने सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए कुछ नहीं किया.
अच्छा अंदाजा लगाए? 2012 के आक्रोश के बावजूद, चीजें वास्तव में बदतर हो गईं. न केवल ऐसा है कि राजनेता परवाह नहीं करते, बल्कि संभवतः वे खुद ही महिलाओं के साथ छेड़छाड़ भी करते हैं.
मैं यह बताने के लिए ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख कर सकता हूं कि कैसे सिस्टम महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और छेड़छाड़ करने वाले राजनेताओं को बचाता है. लेकिन इनमें से केवल एक ही घटना का जिक्र हमें यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि हम कितने नीचे गिर गए हैं.
जनता दल (सेक्युलर) से निलंबित हासन के सांसद रेवन्ना पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते हैं. मेरे विचार से, देवेगौड़ा मूलतः एक छिछले व्यक्ति थे, जिन्हें इतिहास की एक दुर्घटना के कारण प्रधानमंत्री बनने के बाद, अपने सौभाग्य के लिए भगवान को धन्यवाद देना चाहिए था और अपने पूरे परिवार को साथ लेकर राजनीति छोड़ देनी चाहिए थी.
इसके बजाय, अतीत के किसी भयानक राक्षस की तरह, गौड़ा कर्नाटक की राजनीति में सक्रिय बने रहे हैं और जो कोई भी उनके साथ समझौते करने को इच्छुक है, उसके साथ सौदेबाजी कर रहे हैं. उनका हालिया गठबंधन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ है. (यदि भाजपा उनकी सहयोगी न होती तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद उनकी पार्टी का जिक्र ‘परिवारवाद’ के उदाहरण के रूप में करते.)
गौड़ा के पोते रेवन्ना ने राजनीतिक नेता बनने के अधिकार का, जो सभी पारिवारिक पार्टियों के लिए सामान्य बात है, प्रयोग किया है. वह लोकसभा के लिए फिर से चुनाव में खड़े हुए, यहां तक कि मोदी ने उनके लिए प्रचार भी किया.
प्रधानमंत्री को किसी ने यह नहीं बताया कि उनके सहयोगी, जब वह लोकसभा में राजनीति नहीं कर रहे होते हैं, कथित तौर पर बलात्कार, छेड़छाड़ और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार में व्यस्त रहते हैं. और हां, थोड़ी सी वीडियोग्राफी भी करते हैं.
वीडियोग्राफी? हां और क्या. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कर्नाटक में पेन ड्राइव के माध्यम से प्रसारित हजारों वीडियो से यह पता चलता है कि रेवन्ना न केवल महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करते हैं, बल्कि इसे कैमरे पर रिकॉर्ड करने में भी आनंद लेते हैं. कुछ अनुमानों के अनुसार, कम से कम 3,000 वीडियो क्लिप हैं जिनमें रेवन्ना या तो महिलाओं का यौन उत्पीड़न करते हुए या उनके साथ छेड़छाड़ की रिकॉर्डिंग करते हुए दिखाई दे रहे हैं. यह कहना मुश्किल है कि वीडियो में कितनी महिलाएं हैं लेकिन अनुमान है कि यह संख्या सैकड़ों तक पहुंच जाएगी.
इसमें हर उम्र की महिलाएं हैं, किशोरों से लेकर 60 साल की उम्र तक. उनमें जो समानता है वह यह है कि वे अधिकतर कमज़ोर वर्ग से हैं और अपनी सुरक्षा करने में असहाय हैं. छेड़छाड़ उनकी तुलना में रेवन्ना के शक्तिशाली होने को दिखाता है. एक वीडियो में, एक बुजुर्ग महिला को उनसे मारपीट न करने की भीख मांगते हुए यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उन्होंने वर्षों तक उनके परिवार की सेवा की है और यहां तक कि उनके पिता को भी खाना खिलाया है.
एक महिला द्वारा दर्ज की गई एफआईआर और रेवन्ना के वीडियो के साक्ष्य के अनुसार, जब वह आसपास होता था तो कोई भी महिला छेड़छाड़ से सुरक्षित नहीं होती थी.
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सिस्टम दुर्व्यवहार करने वालों को बचाता है
ये सब वाकई चौंकाने वाला है. लेकिन रेवन्ना को बेनकाब करने वाली घटनाओं का विवरण और भी चौंकाने वाला है. जहां तक हम बता सकते हैं, वीडियो क्लिप रेवन्ना परिवार के एक पूर्व ड्राइवर द्वारा लीक किए गए थे. ड्राइवर का कहना है कि उसने ये क्लिप भाजपा नेता देवराजे गौड़ा को दी, जिन्होंने बाद में पार्टी नेतृत्व में अपने आकाओं को सूचित किया.
देवराजे का कहना है कि उन्होंने आरोपों के बारे में 2023 में कर्नाटक बीजेपी प्रमुख बीवाई विजयेंद्र को लिखा था. इस पत्र की एक प्रति सामने आ गई है लेकिन विजयेंद्र ने इसे प्राप्त होने से इनकार किया है, हालांकि देवराजे का कहना है कि उन्होंने इसे भाजपा कार्यालय में सौंपा था. देवराजे इसका श्रेय “कम्युनिकेशन गैप” को देते हैं.
फिर भी, जब रेवन्ना के निर्वाचन क्षेत्र में मतदान हुआ, तब तक वीडियो पर काफी चर्चा हो चुकी थी, कर्नाटक की राजनीति में शामिल कई लोग छेड़छाड़ के बारे में बात कर रहे थे क्योंकि पेन ड्राइव सर्कुलेट हो रहे थे.
हालांकि, किसी ने भी प्रधानमंत्री को हासन के निर्वाचन क्षेत्र में जाने और लोगों से रेवन्ना के लिए वोट मांगने का आग्रह करने से नहीं रोका. और बाद में, रेवन्ना के पिता, एचडी रेवन्ना ने यह कहकर मामले को खारिज कर दिया कि वीडियो “चार या पांच साल पुराने” हैं, जैसे कि यौन उत्पीड़न की कोई समय सीमा होती है.
हालांकि, जेडी (एस) ने अब रेवन्ना को निलंबित कर दिया है और भाजपा ने खुद को उनसे दूर कर लिया है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि सिस्टम उन्हें बचाने के लिए एकजुट हो गया है. उन्हें जर्मनी भागने की इजाजत दे दी गई और वह अपनी बेगुनाही घोषित करने और यह कहने के लिए स्वतंत्र है कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई है. (लेकिन उनके पिता की मानें तो इससे “चार या पांच साल पहले” छेड़छाड़ की गई थी)
यह बिल्कुल स्पष्ट है कि भाजपा के जिम्मेदार लोगों को वीडियो के बारे में पता था और फिर भी उन्होंने उन्हें चुनाव लड़ने दिया. इसी तरह से, हालांकि वीडियो प्रसारित किए गए थे, कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने रेवन्ना के खिलाफ तब तक कार्रवाई नहीं की जब तक कि हंगामे की वजह से मामला बेकाबू नहीं हो गया और उन्हें पहले ही देश से भागने की अनुमति दे दी गई.
सच तो यह है कि जब महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की बात आती है, तो पूरी राजनीतिक व्यवस्था दोषी होती है और हर कोई छेड़छाड़ करने वालों के समर्थन में खड़ा हो जाता है – यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी इन शर्मनाक हमलों के बारे में काफी हद तक चुप रहा.
मेरा कहना यह है: अपने आप को यह विश्वास करने में कभी मूर्ख मत बनाइए कि सार्वजनिक आक्रोश से फर्क पड़ता है. जब राजनेताओं की बात आती है तो ऐसा कम ही होता है. हां, कुछ अल्पकालिक प्रभाव होगा – जैसा कि हमने निर्भया मामले में देखा. लेकिन लंबे समय में, भारतीय राजनेताओं के लिए यह सामान्य बात है.
और हां, हम, जनता भी दोषी हैं. हम अपना आक्रोश प्रदर्शित करते हैं. और जैसे-जैसे समय बीतता है, हम आगे बढ़ जाते हैं. अगर हमने निर्भया के बाद भी सिस्टम से जवाब-तलब करना जारी रखा होता, तो रेवन्ना को इतने लंबे समय तक इससे बच निकलने की इजाजत कभी नहीं मिलती.
लेकिन हमने ऐसा नहीं किया. और हम सभी-राजनेताओं, टीवी चैनलों और आम जनता को-अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए.
(वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी.)
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