scorecardresearch
Thursday, 28 March, 2024
होममत-विमतपाकिस्तान और श्रीलंका के संकट के लिए चीनी पंडितों ने लगाई भारत पर तोहमत और की इमरान की तारीफ

पाकिस्तान और श्रीलंका के संकट के लिए चीनी पंडितों ने लगाई भारत पर तोहमत और की इमरान की तारीफ

श्रीलंका और पाकिस्तान के हालात पर चीन का कोई आधिकारिक बयान तो अब तक नहीं आया है मगर खबरों में और उसके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वेइबो तथा बायदू पर हलचल बढ़ गई है.

Text Size:

अंतरराष्ट्रीय संबंधों की दुनिया आंतरिक रूप से वर्चस्ववादी है. चीन दक्षिण एशिया में जो निवेश कर रहा है उससे उसकी यह मंशा उजागर हो रही है कि वह इस क्षेत्र में आर्थिक संबंधों की नयी व्यवस्था स्थापित करना चाहता है. लेकिन उसके ये इरादे खटाई में पड़ते दिखे क्योंकि दक्षिण एशिया के दो देश- जो चीन से विकास के मद में खुली सहायता लेते रहे हैं- गहरे राजनीतिक और आर्थिक संकट में फंस गए हैं.

चीन ने श्रीलंका और पाकिस्तान के हालात पर आधिकारिक टिप्पणी करने से अब तक परहेज ही किया है. चीनी सरकारी मीडिया उनके बारे में अब तक केवल तथ्यात्मक खबरें ही देता रहा है. लेकिन इन दो देशों में व्याप्त अनिश्चितता को लेकर वहां के सोशल मीडिया पर खूब चर्चाएं जारी हैं. चीनी सरकारी मीडिया में पाकिस्तान के राजनीतिक संकट पर ज्यादा खबरें आ रही हैं, जबकि श्रीलंका के आर्थिक संकट पर चीनी जनता के बीच काफी चर्चा हो रही है.

श्रीलंका के लिए केवल चीन को दोष न दें

चीन के सरकारी अखबार ‘द पेपर’ ने खबर दी है कि श्रीलंका ने ‘टिकटॉक’ पर रोक लगा दी है.

इस अखबार में छपा एक लेख कहता है- ‘खबरें हैं कि श्रीलंका में ट्विटर, यूट्यूब, मेटावर्स, टिकटॉक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को लोगों की पहुंच से दूर कर दिया गया है और लोग उनमें लॉग-इन नहीं कर सकते.’ हैशटैग ‘श्रीलंका इकोनॉमिक क्राइसिस’ का कुछ समय तक वाइबो ने इस्तेमाल किया लेकिन वह ट्रेंड के रूप में बढ़ नहीं पाया.

चीनी सरकारी मीडिया ने देश में इमरजेंसी लगाए जाने की राष्ट्रपति कार्यालय की घोषणा की खबर जारी की. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ रविवार को हुए प्रदर्शन के बाद कोलंबो में चीनी दूतावास ने लोगों से स्थानीय घटनाओं पर नज़र रखने की हिदायत दी. कुछ चीनी टिप्पणीकार चीन को श्रीलंका की राजनीतिक उथल-पुथल से बचाने की कोशिश भी कर रहे हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

भारत के सैन्य समाचारों पर करीबी नज़र रखने वाले एक प्रमुख वाइबो ब्लॉगर ने लिखा कि ‘हालांकि श्रीलंका को मिले विदेशी कर्ज का आधा हिस्सा अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाज़ार से आता है लेकिन इसमें चीन का हिस्सा केवल 10 फीसदी है और वह जापान (एडीबी) के हिस्से से भी कम है. लेकिन भारतीय मीडिया यही राग अलाप रहा है कि श्रीलंका के मौजूदा राजनीतिक और आर्थिक संकट के लिए चीन से मिले कर्ज जिम्मेदार हैं और वह ‘बेल्ट ऐंड रोड’ पहल को बदनाम कर रहा है.’ यही रुख चीन के सरकार समर्थित दूसरे मीडिया ने भी अपनाया है.

फीनिक्स टीवी ने खबर दी कि ‘एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) 14.3 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ दूसरे नंबर पर है, जिसने 4.6 अरब डॉलर का कर्ज दिया है. जापान का हिस्सा 10.9 फीसदी और चीन का 10.8 फीसदी है और हरेक ने 3.5 अरब डॉलर का कर्ज दिया है. बाकी कर्ज भारत जैसे देशों ने और विश्व बैंक तथा संयुक्त राष्ट्र जीईसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने दिया है.’

श्रीलंका को ‘कर्ज के जाल’ में फंसाने के आरोपों पर चीन का आधिकारिक जवाब यह था कि यह सब ‘पश्चिम’ का खेल है. कुछ जानकार इस तर्क के पक्ष में हैं.

हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी के मानद प्रोफेसर बैरी सौटमैन ने फीनिक्स टीवी को दिए इंटरव्यू में कहा कि ‘चीनी कर्ज का जाल’ साजिश का सिद्धान्त है, जो चीन की ‘बेल्ट ऐंड रोड’ पहल में अमेरिकी अड़ंगा का उदाहरण है और जो कि एक राजनीतिक चाल है. श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह, जिसे एक चीनी कंपनी ने बनाया और पट्टे पर दिया, कर्ज के जाल का हिस्सा नहीं है और वह कोई भारी बोझ नहीं है, न ही वह इक्विटी के लिए कर्ज की अदला बदली का मामला है, न ही वह श्रीलंका की संप्रभुता में हस्तक्षेप है.’

चीनी विदेश मंत्रालय ने श्रीलंका में उथल-पुथल या पाकिस्तान के राजनीतिक संकट पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की है. श्रीलंका में चीनी दूतावास के ट्विटर एकाउंट ने भी रविवार को हुए विरोध प्रदर्शन पर कोई कुछ कहने से परहेज ही किया है.


यह भी पढ़ें : LAC की बंजर भूमि की जगह भारत को असली खतरे ‘चीन’ से निपटना होगा


चीन में पाकिस्तान की चर्चा

इस बीच, चीन के प्रमुख बुद्धिजीवी झांग वेईवेई ने एक वार्ता में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की जम कर तारीफ की है.

झांग ने इंरांकी तुलना पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल ज़िआ-उल-हक़ से की है. उन्होंने कहा, ‘अपने पिछले भाषण में मैंने कहा था कि इमरान खान 24 फरवरी को रूस गए थे, जब सैनिक कार्रवाई शुरू की गई थी. पुतिन ने उनसे तीन घंटे बात की. क्या बात की, हमें नहीं मालूम. लेकिन इसका बहुत प्रतीकात्मक महत्व है क्योंकि रूस का भारत के साथ अच्छा रिश्ता है. लेकिन चूंकि भारत अमेरिका की ‘इंडो-पैसिफिक रणनीति’ में शामिल हो गया है इसलिए रूस उससे दूरी बनाता दिख रहा है.’

चीन के विशेषज्ञ फिलहाल इमरान का समर्थन करते दिख रहे हैं लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि जब इमरान गद्दी से हटा दिए जाएंगे तब वे क्या रुख अपनाएंगे. हैशटैग ‘पाकिस्तान’ सोमवार को वाइबो पर सबसे अव्वल ट्रेंड में था. हैशटैग ‘पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बरखास्त’ बायदू पर नंबर दो ट्रेंड पर था. सर्च ट्रेंड ‘पाकिस्तानी प्रधानमंत्री गद्दी से बरखास्त’ ‘वीचैट’ पर नंबर वन ट्रेंड था.

इमरान द्वारा ‘विदेशी दखल’ के आरोप चीनी जनता को सबसे आकर्षक थीम लगी, जो चीन में काफी लोकप्रिय विषय बन गया है. हैशटैग ‘पाकिस्तान ने अपने आंतरिक मामलों में दखल देने के लिए अमेरिका का खुलकर नाम लिया’ को वाइबो पर 48 लाख बार देखा गया. दूसरे हैशटैग ‘पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने 24 घंटे में तीन बार अमेरिका पर उनका तख़्ता पलटने की कोशिश करने का आरोप लगाया’ को 47 लाख बार देखा गया.

वाइबो के एक यूजर ने कमेंट्स सेक्शन में लिखा, ‘यह सिर्फ बदलाव का मामला है, घबराएं नहीं. बा टाई अमेरिकी साम्राज्यवादियों की साजिश को नाकाम कर देगी. पाकिस्तान में अमन और स्थिरता कायम होगी.’ ‘बा टाई’ जुमला चीन और पाकिस्तान के करीबी रणनीतिक सहयोग के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

इन दिनों चीन खुद को गूढ़ जुमलेबाजी में उलझा हुआ पा रहा है क्योंकि ‘चीन विरोधी ताक़तें’ जैसी पुरानी लफ्फाजियां चीन की बढ़ती आलोचना का जवाब देने के लिए काफी नहीं साबित हो रही हैं. दक्षिण एशिया में चीन को अभी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.

(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो फिलहाल लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (एसओएएस) से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एमएससी कर रहे हैं. इससे पहले वो बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में एक चीनी मीडिया पत्रकार थे. वो @aadilbrar पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


यह भी पढ़ें : यूक्रेन अगर शर्ते मान ले तो हम वहां से सैन्य अभियान खत्म कर देंगे- रूस


 

share & View comments