वाटरगेट कांड पर बनी फिल्म ‘डीप थ्रोट’ में इस घोटाले की पड़ताल कर रहे दो रिपोर्टरों को जो सलाह दी गई थी वह डायलॉग ‘पैसे का पीछा करो’ काफी मशहूर हुआ था. यह डायलॉग सोवियत संघ से अलग होने के बाद यूक्रेन की राजनीति और उसके इतिहास में आए मोड़ों को समझने में भी काफी मदद कर सकता है. क्योंकि, अगर किसी देश की बागडोर इसके कुलीनतंत्र (राजनीति और नीति निर्माण में दखल रखने वाले व्यवसायी) के हाथों में हो, तो यह वही उन्मादी वर्ग है जो मुख्यतः मूल यूक्रेनी और (दूसरी पहचानों के अलावा) रूसी भी है और वही पूरब और पश्चिम की इस पुरानी रस्साकशी में फंस गया है.
यह कहानी शायद 2006 में यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यूशचेंकों द्वारा बुलाई गई बैठक से शुरू होती है जिसमें उन्होंने अपने प्रधानमंत्री, वरिष्ठ मंत्रियों और देश के वाणिज्य संगठन के अध्यक्ष तथा कुलीन दिमित्री फिर्ताश को भी शामिल किया था. फिर्ताश ने हाल में ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ को बताया कि पश्चिम समर्थक राष्ट्रपति ने उस बैठक में कहा था कि रूस ज्यादा ताकतवर हो इससे पहले ही यूक्रेन को नाटो में शामिल हो जाना चाहिए ताकि रूस उसे इसमें शामिल होने से रोक न सके. रूस के प्रति झुकाव रखने वाले प्रधानमंत्री विक्टर यानूकोविच इससे सहमत नहीं थे और बहसबाजी के बाद बैठक से निकल गए थे.
फिर्ताश ने रूसी पाइपलाइन का इस्तेमाल करके तुर्कमेनिस्तान से लाया तेल यूक्रेन में बेचकर दौलत बनाई है. जब यानूकोविच की जगह यूलिया टाइमोशेंको प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने फिर्ताश का तेल का कारोबार बंद करवा दिया और व्लादिमीर पुतिन तथा गैजप्रोम से सीधे सौदा किया, जिसके बाद यूक्रेन में तेल की कीमतें बढ़ गईं. टाइमोशेंको को पश्चिमी देशों में यूक्रेन के 2004 की ‘ऑरेंज क्रांति’ की हीरोइन माना जाता है, जिसने रूस समर्थक राष्ट्रपति का तख़्ता पलट दिया था. यूक्रेन में उन्हें ‘तेल की रानी’ के रूप में जाना जाता है जिसने पुतिन से सौदा किया. दोनों तरफ से फायदा उठाना काफी चतुराई मानी जाएगी मगर टाइमोशेंको ने फिर्ताश को अपना कट्टर दुश्मन बना लिया.
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‘तेल की रानी’ ने 2010 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा. फिर्ताश ने उनके विरोधी की, जिसे हटाकर वे प्रधानमंत्री बनी थीं, पूरी मदद की. फिर्ताश ने ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ को बताया कि उन्होंने यानूकोविच का समर्थन किया लेकिन इसका रूस का समर्थन या विरोध करने से कोई वास्ता नहीं था. वे केवल टाइमोशेंको से हिसाब बराबर कर रहे थे, जिन्हें तेल के सौदे के लिए जल्दी ही जेल जाना पड़ा. देश के बाहर और भीतर के कई लोगों ने इसे राजनीतिक मामला माना, जैसे भारत में ‘एजेंसियां’ कार्रवाई करती हैं.
फिर्ताश यूक्रेन के कई कुलीनों में एक हैं. उनसे बड़े हैं यूक्रेन में भारी उद्योग का गढ़ माने गए डोनबास के वास्तविक शासक रीनाट आख्मेतोव. पुतिन की नज़र उसी डोनबास पर टिकी है. बताया जाता है कि ये दोनों तय करते हैं कि मंत्री कौन बनेगा. संसद में यानूकोविच की आधी पार्टी उनके कब्जे में है. दोनों मालामाल हुए हैं. ‘स्पीगेल’ का कहना है कि राजनीति पर उनका नियंत्रण ‘संयुक्त व्यावसायिक उपक्रम’ है. शातिर खिलाड़ी होने के नाते ये दोनों 2014 की मैडन क्रांति फूटने से पहले अपने राजनीतिक दांव बचाने लग गए थे. फिर्ताश को डर था कि ‘तेल की रानी’ फिर वापस न आ जाए. लेकिन यानूकोविच को भागकर रूस जाना पड़ा. नाराज पुतिन ने क्रीमीय पर कब्जा कर लिया और डोनबास में अलगाववादियों की मदद शुरू कर दी.
तीसरे कुलीन इगोर कोलोमोइस्की ने 1990 के दशक में चौथे कुलीन हेनाडीय बोहोलीयूबोव के साथ मिलकर बैंक शुरू किया, जो यूक्रेन का सबसे बड़ा बैंक बन गया. जैसा कि वहां का चलन है, कोलोमोइस्की और नये राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको में नहीं बनी. पोरोशेंको खुद एक कुलीन हैं और ‘चॉकलेट किंग’ के नाम से मशहूर हैं. कोलोमोइस्की विदेश भाग गए, घोटाले के आरोप में उनके बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया.
लेकिन 2019 में चुनाव के दौरान कोलोमोइस्की फिर मैदान में आ गए. उनके टीवी चैनल ने पोरोशेंको के विरोधी, कमेडियन वोलोदिमायर जेलेंस्की को आगे बढ़ाया, जो आज रूस के खिलाफ यूक्रेन के युद्ध में डटे हुए हैं. जेलेंस्की ने अपना चुनाव अभियान भ्रष्टाचार विरोध के नाम पर चलाया और शानदार जीत हासिल की, लेकिन वे इस तस्वीर में बिलकुल फिट बैठते हैं. पहले, ‘पैंडोरा पेपर्स’ ने पिछले साल खुलासा किया कि नये राष्ट्रपति और उनके प्रमुख सहायक विदेशी कंपनियों के जाल से कमाई कर रहे हैं. इसके बाद जेलेंस्की ने अपने पूर्व प्रायोजनकर्ता की नागरिकता दो महीने पहले रद्द कर दी.
यूक्रेन उन तमाम देशों के लिए एक चेतावनी है, जो कुलीनतंत्र की गिरफ्त में हैं. कीव में उन्होंने विशाल दौलत बना ली है जबकि उन्होंने और उनके मीडिया साम्राज्य ने राजनीतिक उम्मेदवारों को चढ़ाया और गिराया है, यह तय किया है कि किसके आदमी को कौन मंत्रालय मिलेगा, कौन किस कीमत पर तेल बेचेगा, किस पार्टी को आगे बढ़ाना है और किस पर लगाम कसनी है, और पुतिन के ढाल की भूमिका कौन निभाएगा. इस बीच, गौरतलब है कि युद्ध से पहले यूक्रेन की जीडीपी उतनी ही थी जितनी 15 साल पहले थी. कुलीनों ने तो अपना खजाना बेरोकटोक भरा लेकिन देश सोवियत संघ के विघटन से पहले यूरोप के निर्धनतम देशों में बना रहा. अब इसकी करीब एक तिहाई आबादी ने पड़ोसी देशों में शरण ले ली है. ऐसे पिछड़े देश के कारण परमाणु युद्ध होने का खतरा पैदा हो गया है.
(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)
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