अपने प्रदर्शन को लेकर चिंतित रहने वाली इमरान ख़ान सरकार का नवीनतम निशाना सोशल मीडिया है. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार का मंसूबा नए नियमों के सहारे देश में सोशल मीडिया की ताकत पर अंकुश लगाने का है. देश पर शासन करने, महंगाई पर लगाम लगाने या पाकिस्तानियों को रोजगार देने में नाकाम रहे इमरान ख़ान ने हालात पर काबू पाने के लिए आभासी दुनिया को नियंत्रित करने का फैसला किया है. यदि लोगों को बात नहीं करने दिया जाए, तो क्या पता समस्याएं गायब हो जाएं!
नए नियमों के अनुसार ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, टिकटॉक, डेलीमोशन और इस तरह की अन्य सोशल मीडिया कंपनियों और प्लेटफॉर्मों को तीन महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन कराना होगा और इस्लामाबाद में अपना दफ्तर खोलना होगा.
पीटीआई सरकार की इन कंपनियों से ये अपेक्षा भी है कि सरकार द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने के कुछेक घंटों के भीतर ही वे अपने प्लेटफॉर्म से ‘अवैध सामग्री’ हटा लेंगी. इसी तरह सोशल मीडिया कंपनियों को अपने डेटा सर्वर पाकिस्तान में रखने होंगे, और साथ ही ‘सरकारी संस्थानों को निशाना बनाने’ या ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ को नुकसान पहुंचाने के दोषी पाए जाने वाले अकाउंटों से संबंधित जानकारियां खुफिया और कानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों को उपलब्ध कराने होंगे.
यह भी पढ़ेंः वेलेंटाइन डे से पाकिस्तान की विचारधारा को होने वाला नुकसान उसके वजूद पर मौजूद किसी भी खतरे से बड़ा है
पर ये स्पष्ट नहीं किया गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाए जाने वाले कार्यों को कौन परिभाषित करेगा, या राष्ट्रीय हित क्या हैं या किन परिस्थितियों में सरकारी संस्थानों की आलोचना को उन पर अवैध हमला करार दिया जा सकता है.
बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां भला पाकिस्तान के इन फासीवादी मांगों को क्यों मानेंगी जो कि अभिव्यक्ति की बुनियादी आज़ादी के साथ-साथ निजता और डिजिटल अधिकारों को छीनती हैं, जिन पर कि इन कंपनियों की नींव खड़ी है.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया अधिकार संगठनों ने नए नियमों को अत्यधिक कठोर बताते हुए इमरान ख़ान सरकार से इन्हें रद्द करने की मांग की है.
हमेशा की तरह यू-टर्न
ये देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान को नया उत्तर कोरिया बनाने के लिए इमरान ख़ान की सरकार किस हद तक जाती है. ये किसी से छुपा नहीं है कि विपक्ष में रहते हुए इमरान ख़ान ने ही मुख्यधारा के मीडिया और सोशल मीडिया पर उपलब्ध आज़ादी का सर्वाधिक फायदा उठाया था लेकिन अब भूमिकाएं पूरी तरह बदल चुकी हैं. हर मुद्दे की तरह इस पर भी यू-टर्न लिया जा चुका है.
पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ की पिछली सरकार के दौर में, इमरान ख़ान सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के प्रयासों के सबसे मुखर आलोचकों में से एक थे. तब उनका मानना था कि कोई भी सोशल मीडिया को नियंत्रित नहीं कर सकता है, और कोई मूर्ख ही ऐसा करने की कोशिश करेगा. उन्हें लगता था कि सरकार उन्हें ‘साइबर कानून का डर दिखा रही है’.
उन्होंने नवाज़ शरीफ़ को चेतावनी दी थी कि यदि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की कोई भी कोशिश की गई तो वे चुप नहीं बैठेंगे. तब उन्होंने कहा था कि ये लोकतंत्र नहीं बल्कि शरीफ़ की तानाशाही है. साफ है कि वह अब आईना देखना भूल चुके हैं.
ये तो मानना ही पड़ेगा कि विपक्ष के लोकतंत्रवादी इमरान ख़ान सत्ता में तानाशाह जैसे हैं. विपक्ष में रहते हुए वह स्वतंत्रताओं और ब्रिटेन के आदर्शों के हामी थे, और सत्ता में आने के बाद वह स्वतंत्रताओं को कम करना और पाकिस्तान में चीन के समान सेंसरशिप लगाना चाहते हैं. क्या ही अद्भुत दोमुंहापन है.
बुरा ना देखो, बुरा ना सुनो
एक समय था जब इमरान ख़ान पीटीआई की सफलता का श्रेय मुख्यधारा के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देते थे लेकिन अब वो बात नहीं रही, मीडिया अब ‘माफिया’ है. ख़ान ने माफिया का एक नया मुहावरा गढ़ा है जिसका इस्तेमाल वह दूसरों पर अपनी नाकामी का ठीकरा फोड़ने में करते हैं.
पिछले 18 महीनों से ख़ान मीडिया से नाराज़ चल रहे हैं और उसके ‘दुष्प्रचार’ की आलोचना करते रहते हैं. माइक लेकर घूमने वाले रिपोर्टरों से उनकी शिकायत ये है कि वे राह चलते गरीब लोगों से पहले तो ये पूछते हैं कि ‘क्या देश में महंगाई है?’ और उनका अगला सवाल हमेशा ये होता कि ‘आपका नया पाकिस्तान कहां गया?’.
वह व्यथित हैं कि ऐसे सवालों पर गरीब आदमी उनकी सरकार के बारे में बुरी बातें ही कहेगा. उनका मानना है कि रिपोर्टर ऐसा जान बूझ कर करते हैं. हम तो ये सलाह देंगे कि प्रधानमंत्री अपने खुद के लोगों को माइक के साथ जनता के बीच भेजें और उनसे सरकार और नया पाकिस्तान के बारे में कैमरे से परे कही जाने वाली कुछेक बातें रिकॉर्ड कर लाने को कहें.
यह भी पढ़ेंः ‘मेक चाय, नॉट वॉर’- अपने इस संदेश के कारण इमरान ख़ान को 2019 का नोबेल शांति पुरस्कार मिलते-मिलते रह गया
शहंशाह के पास मीडिया की आलोचना झेलने की क्षमता नहीं है, जो कि स्वभावत: हर सरकार के विरोधी होते हैं, न कि सिर्फ उनकी सरकार के. पिछले महीने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में इमरान ख़ान ने कहा था कि वह समाचारों के कार्यक्रम नहीं देखते और अपने मंत्रियों को भी ऐसा ही करने की सलाह देते हैं. प्रधानमंत्री का मंत्र है- ‘सरकार में रहने पर बुरा न देखें और बुरा न सुनें, और सरकार से बाहर रहने पर बुरा ही बोलें’.
अपनी डिजिटल पाकिस्तान योजना के कसीदे पढ़ने वाली सरकार का असली चेहरा आज मनमाने प्रतिबंधों के कारण उजागर हो गया है. यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब डिजिटल पाकिस्तान बिना इंटरनेट के होगा. यदि मौजूदा सरकार नए नियमों को लेकर सचमुच में गंभीर है तो फिर ये कुछ महीनों की बात है जब (चीजें उसके हिसाब से नहीं होने पर) सोशल मीडिया ठप पड़ जाएगा. वैसे, यू-टर्न के पिछले उदाहरणों को देखते हुए, आश्चर्य नहीं जो इस यू-टर्न पर भी यू-टर्न ले लिया जाए. हम शिकायत नहीं करेंगे.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
पाकिस्तान के पत्रकार के लेख छापने के बजाय क्यों न किसी अपने पत्रकार के लेख डाले जिसमे आये दिन होने वाले इंटरनेट बैन पर दो चार बात हो?