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Friday, 26 April, 2024
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इंटरनेट पर रोक की भारी कीमत चुका रहे हैं कश्मीर के लोग

शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य और कारोबार से लेकर यात्रा तक जीवन के हर क्षेत्र में इंटरनेट का समावेश है. इसे पानी, बिजली की तरह जीवन की बुनियादी सुविधाओं की सूची में शामिल माना जा सकता है.

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आर्टिकल 370 को कश्मीर में हटाए जाने के संसद के फैसले को एक महीने से ज्यादा समय बीत चुका है. घाटी और आसपास के ज़िलों में इंटरनेट शटडाउन को भी लगभग इतने ही दिन हो चुके हैं. कश्मीर चैम्बर ऑफ़ ट्रेड एंड कॉमर्स के मुताबिक – घाटी में प्रतिदिन 175 करोड़ से 200 करोड़ रुपये का नुकसान व्यापारियों को उठाना पड़ रहा है. स्पष्ट है कि इंटरनेट शटडाउन और साथ में आवाजाही पर घोषित और अघोषित पाबंदियों का व्यवसाय और सामान्य जन-जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

इंटरनेट शटडाउन का अर्थ आमतौर पर सरकार के आदेश पर एक विशेष इलाके में खास समय के लिए इंटरनेट सेवाओं को रोक दिया जाना है. ऐसा विभिन्न कारणों से किया जाता है. मकसद हिंसा को काबू में करना, अफवाहों को फैलने से रोकना, राजनीतिक गतिविधियों को रोकना समेत कुछ भी हो सकता है. इसके लिए कई कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें आईपीसी की धारा 144 प्रमुख है.

लोकतांत्रिक देशों में ये बहस काफी पुरानी है कि लोगों के जानने और खुलकर बोलने के अधिकार को ज्यादा महत्व दिया जाए या कानून-व्यवस्था और लोगों की सुरक्षा को. इंटरनेट के विस्तार ने इस बहस में नया आयाम जोड़ दिया है. इंटरनेट पर पाबंदी बेशक इस घोषित उद्देश्य से लगाई जाती है लोग अफवाहों या गलत सूचनाओं से प्रभावित न हों और विरोध प्रदर्शनों को संगठित करना मुश्किल हो जाए या हिंसा को रोका जा सके, लेकिन आम जीवन में इसका कई तरह से प्रभाव पड़ता है.

जिंदगी की जरूरत बन गया है इंटरनेट

हमारे जीवन में इंटरनेट अब सिर्फ सूचनाएं और अफवाहें लेकर नहीं आता. ये हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुका है. आजकल कई तरह के बिज़नेस इंटरनेट आधारित हैं. टैक्सी बुक करनी हो या खाने का ऑर्डर देना हो, विमान या रेल का टिकट बुक करना हो चाहे होटल या सिनेमा का टिकट लेना हो, पैसे ट्रांसफर करने हों या ऑनलाइन शॉपिंग – इंटरनेट के बगैर ये सब मुमकिन नहीं है. इंटरनेट काम न करने से विद्यार्थी परीक्षा के ऑनलाइन फॉर्म नहीं भर सकते, युवा नौकरियों के लिए ऑनलाइन आवेदन न देख सकते हैं न भर सकते हैं. अपने प्रियजनों से संपर्क करना भी मुश्किल हो जाता है. आर्थिक के अलावा ये सामाजिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक पीड़ा का भी कारण बनता है.


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कुल मिलाकर देखें तो शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य और कारोबार से लेकर यात्रा तक जीवन के हर क्षेत्र में इंटरनेट का समावेश है. इसे पानी, बिजली की तरह जीवन की बुनियादी सुविधाओं की सूची में शामिल माना जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने माना है कि स्वतंत्रता और प्रगति के मानवीय लक्ष्यों को पूरा करने में इंटरनेट की महत्वपूर्ण भूमिका है. इसने कई बार ये कहा है कि इंटरनेट इस्तेमाल करने की छूट मानवाधिकारों में शामिल है. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की वैश्विक घोषणा के अनुच्छेद 19 के तरह इस बात को माना गया है कि लोगों को जो अधिकार ऑफलाइन उपलब्ध हैं, वे अधिकार उन्हें ऑनलाइन भी मिलने चाहिए और इस पर पाबंदी नहीं होनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने ऑनलाइन सूचनाओं तक पहुंच या उसे शेयर करने पर लगाई गई किसी भी मनमानी रोक को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन माना है.

जम्मू-कश्मीर में इंटरनेशन शटडाउन का इतिहास

ऐसे में इंटरनेट शटडाउन का जनजीवन पर कितने तरह से असर पड़ सकता है, इसकी कल्पना की जा सकती है. हालांकि, जब बात कश्मीर की हो तो राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के प्रश्न विमर्श में इतने अहम हो जाते हैं कि नागरिक सुविधाओं और अधिकारों के उल्लंघन की बात हाशिए पर चली जाती है. लेकिन, इन सवालों की अनदेखी करके कोई लोकतंत्र खुद को कमजोर ही बनाएगा.

संयोग से देश में सबसे लम्बे समय तक इंटरनेट शटडाउन जम्मू कश्मीर में ही हुआ था. 8 जुलाई 2016 को बुरहान वानी (कश्मीर के अलगाववादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर) की सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मौत के बाद हुए भड़के आंदोलन के कारण जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन किया गया था. 133 दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया था. पोस्टपेड नंबरों पर मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को 19 नवंबर, 2016 को बहाल किया गया. प्रीपेड उपयोगकर्ताओं के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को जनवरी 2017 में फिर से शुरू किया गया था. यानी कि लगभग छह महीने तक इंटरनेट बंद का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा गोरखालैंड आंदोलन के कारण 2017 में दार्जीलिंग और आसपास के इलाकों में 100 दिनों का इंटरनेट शटडाउन किया गया था. गुजरात में तो परीक्षा के दौरान चीटिंग रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन किया गया था.

देश के कई हिस्सों में हुआ है इंटरनेट शटडाउन

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर द्वारा संचालित वेबसाइट internetshutdowns.in के अनुसार जनवरी 2012 से लेकर जनवरी 2019 के बीच में देश में 278 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया, जिसमें से 160 बार निवारक उपाय के रूप में इसे एतिहातन लागू किया गया. 118 बार कानून व्यवस्था को कायम रखने के लिए इसे प्रतिक्रिया के तौर पर लगाया गया था. इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की एक रिपोर्ट के अनुसार 2012-17 के दौरान देश में इंटरनेट शटडाउन के कारण लगभग 21 हजार करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ है.


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दुनिया भर में इस बारे में बहस है कि इंटरनेट से लोगों को वंचित करना क्या उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन है. आज के आधुनिक संसार में जहां तकनीक – फ़ोन, व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर- सूचना और संचार के मुख्य माध्यम बन चुके हैं, वहां इंटरनेट शटडाउन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन भी माना जा सकता है.

बांग्ला कवि और दार्शनिक रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था, ‘किसी भी देशप्रेम से बड़ी मानवता होती है और मैं कभी भी देशप्रेम को मानवता पर भारी नहीं पड़ने दूंगा’. अगर हम अपने ही देश के लाखों लोगों के मौलिक अधिकारों को सुनियोजित तरीके से छीन लें और उन्हीं लोगों से देशप्रेम और विश्वास की उम्मीद रखें तो ये ज्यादती होगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. यह लेख उनका निजी विचार है)

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