scorecardresearch
Monday, 4 November, 2024
होममत-विमतपेगासस की सूची साबित करती है कि राहुल गांधी अपने विरोधियों के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं

पेगासस की सूची साबित करती है कि राहुल गांधी अपने विरोधियों के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं

मोदी की अधिकांश राजनीतिक और चुनावी ऊर्जा एक ऐसे नेता को अपमानित करने पर खर्च होती रहती है जिसने कांग्रेस को गर्त में पहुंचाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है.

Text Size:

पेगासस घोटाले के तहत ‘फोन हैकिंग’ के निशाने पर रहे व्यक्तियों की सूची में राहुल गांधी का नाम एक ऐसे तथ्य को रेखांकित करता है जिसकी व्याख्या मुश्किल है. वह तथ्य यह है कि उनकी अहमियत कायम है. राजनीतिक कौशल और चुनावी सफलताओं के लिहाज से उन्हें ‘हेवीवेट’ या वजनदार नेता नहीं कहा जा सकता, बल्कि वे शायद उन नेताओं में शुमार हैं जिनका सबसे ज्यादा मज़ाक उड़ाया गया है. लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वियों में उनको लेकर मानो सनक सवार है.

शुरू में ही यह साफ कर देना जरूरी है कि किसी को यह मालूम नहीं है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने जासूसी करने वाले इजरायली उपकरण के इस्तेमाल की मंजूरी दी थी या नहीं. इस मामले में अटकलें ज्यादा लगाई जा रही हैं. लेकिन हकीकत यह है कि जिन लोगों को इस जासूसी में निशाना बनाया गया उनके नामों की एक सूची सामने आई है, जिसमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम भी दर्ज है.

राहुल के आलोचकों और प्रतिद्वंद्वियों के लिए वे उपहास के एक पात्र हैं. उनकी अपनी पार्टी में कुछ लोग उन्हें शायद एक बोझ तक मानते हैं. फिर भी, मोदी की तरह शक्तिशाली और लोकप्रिय नेता के तौर पर राहुल प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक मुहिमों और निरंतर हमलों के केंद्र बने रहे हैं. यह एक विडम्बना और एक पहेली भी है, क्योंकि वायनाड के सांसद राहुल को कई बार खारिज किया जा चुका है (इस लेखिका के द्वारा भी) और वे ऐसा कोई वास्तविक सूत्र भी नहीं देते जो उनमें नया भरोसा पैदा करे.

मोदी ने मंगलवार को भाजपा सांसदों की बैठक में कहा कि कांग्रेस ‘हर जगह नीचे जा रही है मगर वह अपनी चिंता करने से ज्यादा हमारी चिंता में डूबी रहती है.’ इसलिए, यह भी एक विरोधाभास लगता है कि मोदी इस पतनशील पार्टी पर जरूरत से ज्यादा ध्यान क्यों देते हैं.

जाना-पहचाना राहुल-राग

यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मोदी ने खुद को आज़ाद भारत के अब तक के शायद सबसे शक्तिशाली नेता के तौर पर स्थापित कर लिया है. इंदिरा गांधी तक को अपनी पार्टी में फूट का सामना करना पड़ा था.

इसके वजूद मोदी की अधिकांश राजनीतिक और चुनावी ऊर्जा एक ऐसे नेता को अपमानित करने पर खर्च होती है, जिसने अपनी पार्टी को गर्त में पहुंचाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है. मोदी राहुल का नाम कभी नहीं लेते मगर उनके अभियान हमेशा उनके खिलाफ केन्द्रित होते हैं.

2018 के विधानसभा चुनावों को देख लीजिए या 2019 के लोकसभा चुनाव को, ‘कामदार बनाम नामदार’ ही मोदी के हमलावर अभियानों का नारा था. ‘स्वनिर्मित’ नेता के तौर पर खुद को ‘चांदी के चम्मच वाले’ नेता कांग्रेस अध्यक्ष से अलग बताने के लिए वे उस नारे का जम कर प्रयोग करते रहे हैं. 2108 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में प्रचार करते हुए मोदी ने राहुल को लिंगविस्टिक लैंग्वेज के मामले में 15 मिनट की चुनौती तक दे डाली थी. प्रधानमंत्री कांग्रेस के इस युवा नेता पर निरंतर कटाक्ष करते रहते हैं. उनकी पार्टी भी उनका ही राग अलापती रहती है. भाजपा राहुल को उनके गढ़ में हराने वाली स्मृति ईरानी को अक्सर उनके मुक़ाबले खड़ा करती रहती है. भाजपा राहुल के राजनीतिक बयानों का मखौल उड़ाती रहती है, चाहे राहुल ने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से बातचीत में ‘तानाशाही मॉडल’ का जिक्र किया हो या कोविड महामारी से निबटने में मोदी सरकार की खामियों की आलोचना की हो.


यह भी पढ़ें : स्मृति ईरानी का कैबिनेट ग्राफ दर्शाता है कि मोदी सरकार के HR मैनेजमेंट में कुछ तो गलत है


इसमें शक नहीं कि राजनीतिक और चुनावी मोर्चों पर आप अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी पर हमला करते हैं. लेकिन यहां सामान्य बात यह है कि भाजपा वैसे तो राहुल को सिरे से ही खारिज करती है और उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में पेश करती है जिन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है. इसके बावजूद भाजपा की पूरी मशीनरी उन्हें लगभग सारे समय गंभीरता से लेती रहती है. राहुल तो अब पार्टी अध्यक्ष भी नहीं हैं, लेकिन गांधी होने के कारण वे पार्टी का चेहरा हैं.

भाजपा में कुछ लोगों का कहना है कि राहुल की ‘नाकामियों और खामियों’ पर ज़ोर देने से पार्टी को अपना प्रभाव जताने में, मोदी और देश में उपलब्ध उनके राजनीतिक विकल्प के बीच का तीखा फर्क उजागर करने में मदद मिलती है. लेकिन इस तर्क से भी यही लगता है कि राहुल पर जरूरत से ज्यादा ही ध्यान दिया जा रहा है, कि उनके नाम पर ही उसकी सुई अटक गई है.

पेगासस की पहेली

पेगासस की ‘हैकिंग’ वाली सूची में ज्यादा विपक्षी नेताओं के नाम नहीं हैं. अब तक केवल राहुल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के नाम ही सामने आए हैं.

इस हैकिंग के लिए जिस किसी ने भी मंजूरी दी हो, जाहिर है उसने यही सोचा होगा कि और किसी नेता की बजाय राहुल के फोन की हैकिंग से मिली जानकारियां 2019 के लोकसभा चुनाव में काफी काम की होंगी. जासूसी करने वाले ने न तो कॉंग्रेस के धाकड़ रणनीतिकार अहमद पटेल को निशाना बनाया, न सर्वशक्तिमान सोनिया गांधी को, और न 2018 में जिन चार राज्यों के चुनाव हुए उनमें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों को, जिन राज्यों में कांग्रेस जीती. केवल राहुल और उनके करीबी सहायकों अलंकार सवाई तथा सचिन राव को निशाना बनाया गया.

वैसे, राहुल इस नये खुलासे को हथियार बनाकर प्रधानमंत्री मोदी पर हमले कर रहे हैं और इस घड़ी का लुत्फ उठा रहे हैं जो उन्हें एक ऐसे अहम नेता के रूप में पेश कर रही है जिसकी जासूसी की जा सकती है, और उनके विरोधी को असुरक्षित महसूस कर रहा ‘जासूस’ साबित कर रही है.

राहुल आधुनिक राजनीति की सबसे बड़ी नाकामी की कहानी के नायकों में भले गिने जाते हों, जिसने अपनी पार्टी का वजन कम कर दिया; फिर भी, राहुल में ऐसा कुछ तो जरूर है जो उनके आलोचकों और ताकतवर विरोधियों को उनमें उलझाए रखती है और उन्हें बेहद प्रासंगिक बनाए रखती है, हालांकि वे खुद को अप्रासंगिक बनाने की पूरी कोशिश में जुटे रहते हैं.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments