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Friday, 1 November, 2024
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पटेल ने गोडसे को पागल और उसके साथियों को शैतानों का झुंड करार दिया था

सरदार ने अपने व्यक्तिगत जीवन में बदलाव और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने में भी गांधी को प्रेरणा का प्रमुख स्रोत बताया और कहा था कि अगर गांधी न होते तो मेरा कोई अस्तित्व नहीं होता.

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‘नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, हैं और रहेंगे’, भोपाल से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा के इस बयान ने, जिसके लिए बाद में माफी मांग ली गई. भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस की कलई खोल दी है. भाजपा अब चाहे जितनी सफाई दे और खुद को गांधी, पटेल, आंबेडकर के सिद्धांतों का अनुयायी करार दे, अब उसके ऊपर सवाल उठना लाजिम है कि वह ऐसी विचारधारा के लोगों के साथ खड़ी है, जिन्हें सरदार बल्लभभाई पटेल ने ‘पागल’ और ‘शैतान’ करार दिया था.

गोडसे के समर्थन में बयान अचानक नहीं आया है. आरएसएस वर्षों से शाखाओं में बच्चों को यही सब बातें सिखा रहा है, इसके असर में आए बच्चे, बड़े होने के बाद भी इस ज़हरीले प्रचार से मुक्त नहीं हो पाते.

प्रज्ञा ठाकुर का बयान और सरदार पटेल

आतंकवाद के आरोप में मुकदमे का सामना कर रही है और अभी ज़मानत पर रिहा साध्वी प्रज्ञा के इस बयान के संदर्भ में सरदार बल्लभ भाई पटेल को याद किया जाना चाहिए. जब महात्मा गांधी की गोडसे ने हत्या की थी, तब सरदार पटेल ही देश के गृह मंत्री थे. सरदार की सबसे बड़ी प्रतिमा गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगवाई और कथित रूप से वह पटेल के प्रशंसक हैं.

गांधी की हत्या के बाद 2 फरवरी 1948 को आयोजित शोकसभा में सरदार के दिए गए भाषण को इस वक्त याद करना अहम हो जाता है. पटेल जब भाषण देने खड़े हुए तो उनकी आंखों में आंसू थे. वह बोलने की हालत में नहीं थे. लेकिन जवाहरलाल नेहरू के बाद देश के दूसरे बड़े नेता के रूप में बोलना उनकी मजबूरी थी और वे बोले भी.


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उन्होंने कहा, ‘जब दिल दर्द से भरा होता है, तब जबान खुलती नहीं है और कुछ कहने का दिल नहीं होता है. इस मौके पर जो कुछ कहने को था, भाई जवाहरलाल नेहरू ने कह दिया, मैं क्या कहूं?’

पटेल ने कहा था, ‘हां, हम यह कह सकते हैं कि यह काम एक पागल आदमी ने किया. लेकिन मैं यह काम किसी अकेले पागल आदमी का नहीं मानता. इसके पीछे कितने पागल हैं? और उनको पागल कहा जाए कि शैतान कहा जाए, यह कहना भी मुश्किल है. जब तक आप लोग अपने दिल साफ कर हिम्मत से इसका मुकाबला नहीं करेंगे, तब तक काम नहीं चलेगा. अगर हमारे घर में ऐसे छोटे बच्चे हों, घर में ऐसे नौजवान हों, जो उस रास्ते पर जाना पसंद करते हों तो उनको कहना चाहिए कि यह बुरा रास्ता है और तुम हमारे साथ नहीं रह सकते.’ (भारत की एकता का निर्माण, पृष्ठ 158)

महात्मा गांधी से प्रभावित था सरदार पटेल का जीवन

सरदार ने अपने व्यक्तिगत जीवन में बदलाव और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने में भी गांधी को प्रेरणा का प्रमुख स्रोत बताया और कहा था कि अगर गांधी न होते तो मेरा कोई अस्तित्व नहीं होता. उन्होंने कहा था, ‘जब मैंने सार्वजनिक जीवन शुरू किया, तब से मैं उनके साथ रहा हूं. अगर वे हिंदुस्तान न आए होते तो मैं कहां जाता और क्या करता, उसका जब मैं ख़्याल करता हूं तो एक हैरानी सी होती है. तीन दिन से मैं सोच रहा हूं कि गांधी जी ने मेरे जीवन में कितना परिवर्तन किया? इसी तरह से लाखों आदमियों के जीवन में उन्होंने किस तरह से बदला? सारे भारतवर्ष के जीवन में उन्होंने कितना बदला. यदि वह हिंदुस्तान में न आए होते तो राष्ट्र कहां जाता? हिंदुस्तान कहां होता? सदियों हम गिरे हुए थे. वह हमें उठाकर कहां तक ले आए? उन्होंने हमें आजाद बनाया.’ (भारत की एकता का निर्माण, पृष्ठ 157)

सरदार पटेल ने गोडसे और उसके समर्थकों को सबसे बड़ा कायर करार दिया था. पटेल ने कहा था, ‘उसने एक बूढ़े बदन पर गोली नहीं चलाई, यह गोली तो हिंदुस्तान के मर्म स्थान पर चलाई गई है. और इससे हिंदुस्तान को जो भारी जख्म लगा है, उसके भरने में बहुत समय लगेगा. बहुत बुरा काम किया. लेकिन इतनी शरम की बात होते हुए भी हमारे बदकिस्मत मुल्क में कई लोग ऐसे हैं तो उसमें भी कोई बहादुरी समझते हैं.’

उस समय सांप्रदायिक दंगों की आग में जल रहे भारत में सरदार पटेल और खून खराबा नहीं चाहते थे. लोगों में आक्रोश था. उन्होंने अपने भाषण में ज़िक्र किया कि कम्युनिस्टों का गांधी की हत्या के विरोध में एक जुलूस निकला, उस जुलूस में वे कहते थे कि हम बदला लेंगे. सरदार ने इसका जिक्र करते हुए बदला लेने की भावना को गांधी की विचारधारा के विरुद्ध करार देते हुए कहा, ‘बदला लेना हमारा काम नहीं है. अगर आपको कोई चीज मालूम हो तो तुरंत हुकूमत को बता देना चाहिए कि इस प्रकार के लोग काम करते हैं.’ पटेल का संदेश साफ था कि हत्यारी और पागलपन वाली विचारधारा से सरकार को निपटना है और किसी भी हालत में खून खराबा नहीं होना चाहिए.

गांधी की हत्या के बाद देश भर में गोडसे के विचारधारा के लोगों ने जश्न मनाया था. गोडसे भले ही मर गया है, लेकिन उसकी विचारधारा आज भी नहीं मरी है. अभी भी भारत में तमाम ऐसे लोग हैं, जो उस हत्यारे को महान मानते हैं और उसका महिमामंडन करते हैं. उसे वैचारिक और देशभक्त करार देते हैं. तमाम तरह की कहानियां भी बनाई गई हैं कि एक हिंदूवादी महंत ने गोडसे को रिवाल्वर मुहैया कराई थी.

इस समय भाजपा और आरएसएस से जुड़े युवा सरदार पटेल को लेकर दिग्भ्रमित हैं. प्रधानमंत्री मोदी बार-बार अपने भाषणों में ज़िक्र करते हैं और यह जताने की कोशिश करते हैं कि पटेल के साथ नाइंसाफी की गई और संकेतों में कहते हैं कि वह नाइंसाफी जवाहरलाल नेहरू ने की. साथ ही भाजपा समर्थक गांधी को भी आरोपित करते हैं कि उन्होंने अपना उत्तराधिकारी पटेल को नहीं चुना. पटेल के मन में गांधी को लेकर कभी कोई पीड़ा नहीं रही. उन्होंने गांधी के बारे में कहा है, ‘उनका कमजोर बदन था. इतने कमजोर बदन में से जो पतली सी आवाज निकलती थी, वह इतनी जबरदस्त आवाज थी कि वह सीधे हमारे हृदय पर लग जाती थी.’


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इस समय आम लोगों के मन में जातीय और धार्मिक घृणा फैली हुई है. इसी तरह की धार्मिक घृणा स्वतंत्रता के समय भी फैली हुई थी और पूरे देश, खासकर सीमावर्ती इलाकों में खून खराबा मचा हुआ था. गांधी की मौत के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लोग सदमे में थे और धीरे-धीरे खून खराबा बंद हो गया. उस समय पटेल ने कहा था, ‘हमें निश्चय कर लेना चाहिए कि हिंदुस्तान में जितने लोग हैं, सबको हिल मिलकर, भाई-भाई की तरह रहना है. एक दूसरे के साथ घुड़का घुड़की करने से कोई काम नहीं होगा और इस तरह से नहीं करना चाहिए. कोई भी कौम हो, हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो, पारसी हो, ईसाई हो, सबको यह समझना चाहिए कि यही हमारा मुल्क है. इसी मुल्क, इसी युग में दुनिया में सबसे बड़ा व्यक्ति (गांधी) पैदा हुआ, जिसने हमारी इज्जत दुनिया में बढ़ाई और इतना बड़ी विरासत हमारे सामने रखी, उसे फेंक नहीं देना है बल्कि उसको ज्यादा बढ़ाना है.’ (गांधी जी से हमने क्या सीखा, पेज 162)

जातीय, धार्मिक, क्षेत्रीय उन्मादों, समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने जैसी घटनाओं के बीच सरदार पटेल को याद करना ज़रूरी हो जाता है कि वह भारत को किस तरह का देश बनाने का सपना देखते थे.

(लेखिका सामाजिक और राजनीतिक मामलों की टिप्पणीकार हैं.)

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1 टिप्पणी

  1. द प्रिंट केवल भारतीय जनमानस को बहका ही सकता है, और एजेंडा पत्रकारिता ही करने को इसका जन्म हुआ है,जो तानाजी के खिलाफ लिखता है वो गोडसे को कैसे as it as दिखा सकता है।द प्रिंट अंबेडकर द्वारा गांधी जी आचरण और मान्यताओं को मूर्खतापूर्ण और postive राष्ट्रद्रोही क्यों कहा कभी नहीं बताएगा,,,

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