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Sunday, 22 December, 2024
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पलानीस्वामी को जयललिता या MGR बनने की जरूरत नहीं, उन्हें पता है कि सत्ता में कैसे बने रहना है

एआईएडीएमके सरकार नहीं गिरी और उसने अपना कार्यकाल पूरा किया, जो पलानीसामी की स्वाभाविक राजनीतिक सूझबूझ और योग्यता की गवाही देता है.

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तमिलनाडु की राजनीति में लंबे समय से कुछ दिग्गज हस्तियों का दबदबा रहा है. खासकर 1967 में द्रविड़ मुनेत्र कज़गम या डीएमके के सत्ता में आने के बाद, जब सीएन अन्नादुरई मुख्यमंत्री बने थे. एम करुणानिधि, एमजी रामचंद्रन और जे जयललिता अपने आप में बड़े स्टार थे. उनमें अदा भी थी और सार भी था. अभी भी डीएमके के चुनावकर्ता प्रशांत किशोर की इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी से जुड़ने के बाद एमके स्टालिन को तमिलनाडु के रक्षक के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है और 6 अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के प्रचार में उनकी तस्वीरें छाई हुई हैं. इसके अलावा चुनावों में एक और राजनीतिक मोर्चे की अगुवाई कर रहे हैं एक्टर से राजनेता बने कमल हासन, जो खुद एक बड़े स्टार हैं.

इसके बिल्कुल विपरीत वो इंसान है, जो ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कज़गम (एआईएडीएमके) के प्रचार की अगुवाई कर रहे हैं. एडप्पडी के पलानीस्वामी, जो फरवरी 2017 में बिल्कुल आकस्मिक परिस्थितियों में मुख्यमंत्री बने थे, न सिर्फ शांत रहते हैं बल्कि अपने आपको धरती पुत्र के तौर पर पेश करके ही खुश हैं. वो अच्छी तरह समझते हैं कि उनके पास, वो करिश्मा या भाषण देने का कौशल नहीं है, जो अपने आपको प्रोजेक्ट करने और भीड़ जुटाने के लिए चाहिए होती है. पलानीस्वामी, जो चुनाव के दस दिन बाद 12 मई को 67 साल के हो जाएंगे- एक थकाऊ और अंधाधुंध प्रचार के बाद, सत्ता में वापसी के लिए वो उस साख के सहारे होंगे, जो पार्टी और ‘दो पत्तियों’ के उसके चुनाव चिन्ह ने कमाई है.

वो भले ही पूरी तरह अनपेक्षित और नाटकीय हालात में मुख्यमंत्री बने हों लेकिन बहुत कम लोगों को लगता था कि पलानीस्वामी बाकी बचा कार्यकाल पूरा कर पाएंगे. कोई दिन ऐसा नहीं गुज़रता था, जब कोई न कोई ये टिप्पणी न करता हो कि सरकार बस गिरने वाली है. वो नहीं गिरी और उसका कार्यकाल पूरा होना, पलानीस्वामी की स्वाभाविक राजनीतिक सूझबूझ और योग्यता की गवाही देता है.


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आकस्मिक मुख्यमंत्री

पिछले चार सालों में पलानीस्वामी ने, जो तमिलनाडु के ‘आकस्मिक’ मुख्यमंत्री थे, अपने विरोधियों को समय-समय पर गलत साबित किया. उन्होंने सरकार पर अपनी पकड़ को मज़बूत किया, पार्टी में अपनी स्थिति सुदृढ़ की और अपने पूर्ववर्त्ती तथा प्रतिद्वंदी ए पनीरसेल्वम के साथ, अपने संबंध इतने ठीक किए कि दोनों अब एक मंच पर नज़र आते हैं. वो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ सौदेबाज़ी में भी माहिर साबित हुए हैं और उन्होंने सुनिश्चित किया है कि उनकी पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टी को बहुत अधिक सीटें नहीं दीं. पलानीस्वामी ने पत्ताली मक्कल काची (पीएमके) को, गठबंधन में साथ लाने के लिए भरसक कोशिश की है जिसकी राज्य के उत्तरी ज़िलों में मज़बूत पकड़ है. लेकिन उन्होंने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि ये एआईएडीएमके है जो गठबंधन की अगुवाई कर रहा है और वो उनके मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं.

लेकिन 6 अप्रैल को पलानीस्वामी अपने तकरीबन पांच दशक लंबे राजनीतिक करियर की सबसे कठिन परीक्षा से गुज़रेंगे- वो 1970 में एक वॉलंटियर के तौर पर एआईएडीएमके में शामिल हुए थे और तब तक उन्हें बड़ी संख्या में मतदाताओं को विश्वास दिलाना होगा कि और पांच साल तक सरकार की अगुवाई करने के लिए उनसे अच्छा कोई विकल्प नहीं है. अभी ओपीनियन पोल्स या सर्वेक्षणों का समय नहीं आया है क्योंकि गठबंधन अभी बने हैं और सीटों का बटवारा भी अभी हुआ है लेकिन टाइम्स नाउ-सी वोटर के एक सर्वेक्षण में, डीएमके की अगुवाई वाले मोर्चे को 154-162 सीटें दी गईं हैं, जिसमें 60 सीटों का उछाल है, जबकि एआईएडीएमके को 65 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है.

पलानीस्वामी का सत्ता में चार साल गुज़ार लेना, दर्शाता है कि उनमें इस परीक्षा का सामना करने का माद्दा है लेकिन चुनाव परिणाम बहुत से घटकों पर निर्भर करता है, जिनमें सारे उनके कंट्रोल में नहीं हैं. जहां तक उनका सवाल है, बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल में पलानीस्वामी, सभी अपेक्षाओं पर पूरे उतरे हैं और उन्होंने बहुत से तूफान झेले हैं. उनकी सरकार ने 12,110 करोड़ के सहकारी कृषि ऋण माफ किए हैं, जिससे 16.43 लाख किसानों को लाभ पहुंचा है, राज्य विधानसभा ने अति-पिछड़ी जातियों और विमुक्त समुदायों के लिए आरक्षित 20 प्रतिशत कोटा में से वन्नियार समुदाय के लिए नौकरियों तथा शिक्षा में 10.5 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की, पार्टी ने ये भी वादा किया है कि परिवारों की महिला मुखिया को साल में छह मुफ्त कुकिंग गैस सिलिंडर्स और 1,500 रुपए मासिक दिए जाएंगे.

पलानीस्वामी ने उस समय साबित कर दिया कि वो अपने फैसले ले सकते हैं, जब सरकार ने ऐलान किया कि कावेरी डेल्टा – जिसे राज्य का खलिहान कहा जाता है- कावेरी डेल्टा सुरक्षित विशेष कृषि जोन के अंतर्गत आएगा, जिससे वहां किसी भी प्रकार की औद्योगिक या व्यवसायिक गतिविधि नहीं हो सकेगी. इस कदम ने डेल्टा क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन की खोज बढ़ाने के केंद्र के कदम के खिलाफ बढ़ रहे विरोध को शुरू में ही खत्म कर दिया. निवेश जुटाने के लिए पलानीस्वामी ने यूके, अमेरिका और दुबई का दौरा किया- बहुत लंबे समय बाद, ऐसा करने वाले वो पहले मुख्यमंत्री थे. उनके दौरे का उद्देश्य ये संदेश देना था कि वो अपनी स्थिति को लेकर आश्वस्त थे और इस बात से भी कि उनके अंतर्गत तमिलनाडु, निवेश को आकर्षित करने के लिए, जो भी आवश्यक होगा वो करेगा. उस दौरे के फौरन बाद उनके प्रचारकों ने सूट-बूट पहने उनके फोटोग्राफ्स की तुलना, पलानीस्वामी की उन तस्वीरों से की जिनमें वो सफेद क़मीज़ और घुटनों तक चढ़ी धोती पहने, किसी खेत में खड़े हैं. संदेश साफ था: वो एक ऐसे धरती पुत्र हैं, जो पश्चिमी पोशाक में भी सहज हैं.


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जयललिता की छाया में, लेकिन अपनी छवि

याद रखना चाहिए कि ये पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की करीबी सहयोगी और मित्र वीके शशिकला थीं, जिन्होंने भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद, पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठा दिया था. इसलिए पलानी को अपनी जगह बनाने में थोड़ा समय लगा. उन्हें पार्टी तथा सरकार में अपना अधिकार जताना पड़ा, ताकि हर कोई जान ले कि बॉस कौन है. ऐसा करने और अपने पूर्ववर्त्ती ओ पनीरसेल्वम से रिश्ते सुधारने के बाद मुख्यमंत्री ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.

महत्वपूर्ण पदों के लिए उन्होंने खुद नौकरशाहों को चुना, उनपर अपने काम के लिए भरोसा किया और कार्यों को पूरा करने की आज़ादी दी. पलानीस्वामी मुद्दों को समझते थे और एक बार आश्वस्त हो जाने पर कि क्या करने की ज़रूरत है, वो तेज़ी से फैसले लेते थे. मुख्यमंत्री ने ये भी सुनिश्चित किया कि उद्योगपति और आम लोग उन तक पहुंच सकें, जो कि जयललिता के काम करने के अंदाज़ से बिल्कुल जुदा था. लॉकडाउन के दौरान भी तमिलनाडु, निवेश को आकर्षित करता रहा है, राज्य में बिजली चालित दोपहिया वाहन बनाने का सबसे बड़ा कारखाना स्थापित होने जा रहा है.

जयललिता के विपरीत पलानीस्वामी ने केंद्र के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाकर रखे हैं, यहां तक कि विपक्षी डीएमके ने आरोप लगाया कि उनकी सरकार ने राज्य के हित, नरेंद्र मोदी सरकार के हाथों गिरवी रख दिए हैं. डीएमके ने लगातार पलानीस्वामी पर प्रधानमंत्री मोदी के जागीरदार होने का आरोप लगाया है. लेकिन मुख्यमंत्री इन आरोपों से तनिक भी विचलित नहीं हुए हैं और उन्होंने इनका जवाब देने की भी परवाह नहीं की है. बल्कि, बदले में उन्होंने डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन को किसी भी विषय पर खुली बहस की चुनौती दी है, जिसमें वो किसी तरह के नोट्स का इस्तेमाल नहीं करेंगे. ये एक छिपा हुआ इशारा था कि स्टालिन अपने भाषणों में नोट्स इस्तेमाल करते हैं.

पलानीस्वामी सरकार ने काफी हद तक कोविड-19 महामारी को अच्छे से संभाला है, हालांकि एक समय ऐसा भी था, जब चीज़ें काबू से बाहर जाती दिख रहीं थीं. राज्य सरकार ने तेज़ी के साथ कुछ नौकरशाहों में फेरबदल किया और उन्हें स्थिति को वापस नियंत्रण में लाने का ज़िम्मा सौंप दिया.

चैन्नई स्थित एक व्यवसाई ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि उनके परिवार ने हमेशा कांग्रेस, या उस गठबंधन को वोट दिया था, जिसका वो हिस्सा होती थी, लेकिन इस बार, वो एआईएडीएमके को वोट देने के बारे में सोच सकते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि वो लोग क्या करने में सक्षम हैं.

एआईएडीएमके के पोस्टरों में पलानीस्वामी और ओ पनीरसिल्वम, दोनों को बराबर प्रमुखता दी गई है, जिसमें सबसे ऊपर जयललिता और पार्टी संस्थापक एमजीआर के फोटो लगे होते हैं. पार्टी अम्मा ( जयललिता को कहा जाता है) के शासन को जारी रखने का वादा करती है. इसके प्रचार का फोकस है ‘प्रगति के पथ पर अग्रसर तमिलनाडु’.

2016 विधानसभा चुनावों में एआईएडीएमके को 40.8 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे और उसने 135 सीटें जीतीं थीं. इस बार भी गठबंधन तथा जातीय गणित के भरोसे, पार्टी को उम्मीद है कि वो सत्ता में वापस आएगी. अपनी चुनावी रणनीति को धार देने के लिए पार्टी ने चुनाव रणनीतिकार सुनील कानूगोलु की सेवाएं ली हैं, जिन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी के साथ काम किया था. पार्टी जानती है कि उसका सामना दोहरी विरोधी लहर और डीएमके से है, जिसके लिए ये करो-या-मरो की लड़ाई है. ये चुनाव कामकाज बनाम वादों की लड़ाई बनने जा रहा है. एआईएडीएमके को उम्मीद है कि पलानीस्वामी के एक कल्ट फिगर न होने की वजह से उनकी और पार्टी दोनों की नैया पार लग जाएगी.

(एन रामकृष्णन एक चेन्नई स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं, जिनके पास मुख्यधारा तथा बिज़नेस पत्रकारिता में, तीन दशकों से अधिक का अनुभव है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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