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Sunday, 22 December, 2024
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पाकिस्तान के जनरलों की बेवकूफी की बदौलत, लोकतंत्र के हितैषी की छवि में उठ रहे हैं नवाज़ शरीफ

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शरीफ का कारावास उनके राजनीतिक करियर को खत्म नहीं करेगा और यह उनके पतन की योजना बनाने वाले जनरलों और कर्नलों के रिटायरमेंट के बाद तक कायम रहेगा।

पाकिस्तान लौटने और जेल जाने का नवाज़ शरीफ का फैसला देश की राजनीति में एक नए चरण को चिन्हित करता है। शरीफ अपने राजनीतिक जीवन के पहले चरण में प्रतिष्ठान के हाथों की कठपुतली थे और 1993 से इसके सिर्फ एक सजग प्रतिद्वंदी थे। वह ऐसे पहले पंजाबी राजनेता बन गए हैं जिन्होंने पंजाबियों के दबदबे वाले प्रतिष्ठान का उस प्रकार विरोध करने की हिम्मत की है जैसा की पहले सिर्फ गैर पंजाबी नेताओं ने की थी।

इस लेख का विषय शरीफ की खामियों या गुणदोष के लिए नहीं है बल्कि पाकिस्तान की राजनीति के भविष्य के बारे में है। पाकिस्तानी राजनेताओं ने अक्सर सैन्य नेतृत्व वाले संस्थानों को नागरिक लोकतांत्रिक शासन के मुखौटे को बनाए रखने दिया है जबकि अधिकांश निर्णय राजनेताओं द्वारा ही लिए गए हैं। निर्वासन में रहने के बजाय जेल स्वीकार करने के शरीफ के फैसले ने प्रतिष्ठान को चौंका दिया जो यह अनुमान लगा रहा था कि शरीफ को राजनीति से बाहर ले जाने के लिए जेल का डर पर्याप्त होगा। आखिरकार, पुराने शरीफ ने 1999 के सैन्य तख्तापलट में सत्ता से बाहर होने के बाद निर्वासन में जाने का विकल्प जो स्वीकार किया था। इस निर्णय ने दीर्घकालीन टकराव से बचने में मदद की और जनरल परवेज़ मुशर्रफ के सैन्य शासन के अस्तित्व की रक्षा की।

इस बार शरीफ की वापसी ने प्रतिष्ठान के सौम्य सत्तावाद के दिखावे को समाप्त करते हुए इसे एक बड़े पैमाने पर दमन को उजागर करने के लिए मजबूर किया। शरीफ के सैकड़ों समर्थकों को पहले ही गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी 85 वर्षीय मां को हिरासत में लिया गया। पंजाब की राजधानी लाहौर में यातायात को लगभग बंद कर दिया गया।

शरीफ की वापसी और योजनाबद्ध स्वागत की टेलीविजन कवरेज को कठोरता से सेंसर किया गया। लोगों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए मोबाइल टेलीफ़ोन नेटवर्क से छेड़छाड़ की गयी। और पूर्व प्रधानमंत्री को अबू धाबी से लाहौर ले जा रही अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइन की उड़ान का रास्ता बदलने के प्रयासों के साथ इसे देरी से उतारने की कोशिश की गयी क्योंकि प्रयास यह था कि नवाज़ शरीफ और उनके समर्थक एक दूसरे को न देख पाएँ।

पाकिस्तान मुस्लिम लीग (पीएमएल) के लाखों मतदाताओं के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों पर शरीफ की दोषसिद्धि सिर्फ विश्वसनीय ही नहीं है बल्कि अन्य कई लोगों के लिए जो पहले उनके समर्थक नहीं थे और उनकी खामियों को पहचानते थे उनके लिए वह अब एक अहंकारी और असहनशील प्रतिष्ठान के लिए चुनौती का प्रतीक हैं।

“न्यायाधीश और जनरल कौन होते हैं जो यह निर्णय लें कि हमारा प्रतिनिधित्व कौन करेगा? यदि हमारे निर्वाचित नेता भ्रष्ट हैं तो हम वोट करके उन्हें बाहर करने का अधिकार चाहते हैं”…ऐसा लगता है यह विचार शरीफ या उनके परिवार के लिए लोगों के भावनात्मक पहलू को बढ़ावा दे रहा है।

मजबूत संस्थानों के साथ विधि-नियम के तहत एक लोकतन्त्र के रूप मे विकसित होने की पाकिस्तान की विफलता और नागरिक-सैन्य अल्पतन्त्र द्वारा इसका अभिशासन स्थायी राजनीतिक संकट का माहौल बनाता है जिसे शरीफ के कारावास द्वारा और ज्यादा बल मिलने की संभावना है।

सत्ता के लिए अल्पतन्त्र के सदस्य साजिश, अफवाह और कानाफूसी वाले अभियानों के माध्यम से धोखा देते हैं। लोकप्रिय राजनेताओं को राजनीतिक क्षेत्र से बाहर रखा जाता है या उन समझौतों को करने के लिए मजबूर किया जाता है जो उन्हें सैन्य अधिकारियों और सिविल सेवकों के अधीन बनाते हैं। 1947 में आज़ादी के बाद से राज्य और सरकार के प्रत्येक पाकिस्तानी प्रमुख को या तो जेल भेज गया है, हत्या की गयी है, मौत की सजा दी गयी है या एक सैन्य तख्तापलट या एक सैन्य समर्थित विद्रोह में सत्ता से हटा दिया गया है।

देश के दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास में सरकारों को चुनाव के माध्यम से बिठाया तो गया है लेकिन निकाला किसी को भी नहीं गया है। देश के जनरल और उनके वंशज केवल टेक्नोक्रेट और सिविल सेवकों के साथ ही सहज महसूस करते हैं जो सरकारी अधिकारी निवास (जीओआर) और छावनी में पले बढ़े हैं।

पाकिस्तानियों का एक पूरा वर्ग ‘निम्न वर्ग’ पर क्रोधित होता है जो ‘राष्ट्रवादी दृष्टिकोण’, जोकि पाकिस्तान की उत्पत्ति और आशावाद के बारे में बहुत सारी मिथकों के बीच सेना को एक उचित सम्मान देता है, में विश्वास करते हैं और वोट करते हैं।

1954 की शुरुआत में जनरल अयूब खान ने ‘ए शॉर्ट ऐप्रीसिएशन ऑफ प्रज़ेंट एंड फ्यूचर प्रॉब्लम्स ऑफ पाकिस्तान’ नाम से एक स्मृतिपत्र लिखा जिसमें राज्य के मौजूदा तंत्र के नेतृत्व में एक पाकिस्तानी राष्ट्र बनाने के ऊपर से नीचे तक के एजेंडे का खाका खींचा गया था। एक तरफ जहां यह पाकिस्तान को “एक मजबूत, दृढ़ और एकजुट राष्ट्र, जो विश्व इतिहास में अपनी नियत भूमिका निभाने में सक्षम हो, बनाने के लिए आवश्यक प्रशासनिक उपायों को विस्तार से बताता है वहीं दूसरी तरफ इसमें लोगों की इच्छाओं के लिए या राजनीतिक भागीदारी के लिए कोई संदर्भ नहीं है।

दुर्भाग्यवश पाकिस्तान के लिए, अयूब खान का उदाहरण कायम रहा है जो सेना को अंतिम निर्णयकर्ता और पाकिस्तान के वास्तविक प्रयोजन के रूप में प्रस्तुत करता है। समय-समय पर किसी न किसी राजनेता को लोकप्रियता हासिल हुई है लेकिन सेना अपने फायदे के लिए उस राजनेता का इस्तेमाल करने में सक्षम रही है। इस प्रकार ‘ज़ुल्फिकार अली भुट्टो विपक्ष के लिए असहिष्णु थे’, ‘बेनज़ीर भुट्टो ने एक भ्रष्ट और अक्षम प्रशासन की अध्यक्षता की’ और ‘नवाज़ शरीफ प्रतिष्ठान के हाथों की कठपुतली हैं जो आरामपसंद व्यक्ति हैं।

लेकिन चार तख्तापलट और कई अन्य अप्रत्यक्ष हस्तक्षेपों के बाद पाकिस्तान का प्रतिष्ठान स्थिरता और प्रगति, जो यह अपने कुचक्र के जरिये देने का प्रयास करता है, प्रदान करने से बहुत दूर है। इस बार भी इसके सफल होने की संभावना नहीं है।

राजनीति को अक्सर संभाव्य की कला के रूप में वर्णित किया जाता है और शासन को राजनीति का एक कार्य माना जाता है। सुशासन का अर्थ है राज्य को प्राप्य और यथार्थवादी उद्देश्यों के मापदण्डों के भीतर सफलतापूर्वक प्रशासित करने की कला। कोई भी व्यक्ति यदि एक ही समय में सभी चीजों को सही करने का प्रयास करता है तो शायद वह सपना देख रहा है। इस तरह के कार्यों को न तो व्यावहारिक राजनीति कहा जा सकता है और न ही वे सुशासन का आधार हो सकते हैं।

इसके अलावा, सैन्य अधिकारियों का उपयोग संगठित मस्तिष्कों से निपटने के लिए किया जाता है। उनके नियंत्रण वाले सैनिक आदेशों का पालन करते समय कोई सवाल नहीं पूछते हैं। जब नागरिकों को नियंत्रित करने के लिए कहा जाता है तो सेना के लोगों को निरंतर बहसों और असहमतियों के साथ-साथ बराबर वाक्पटुता के साथ पेश होने वाले कई विकल्पों से निपटना मुश्किल लगता है। नागरिक मुद्दों की विविधता सरकार चलाने की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। पाकिस्तान के सैनिक-शासक और उनके आश्रित नागरिक इस सबक को सीखने से इंकार करते हैं कि सैनिकों का पेशा शासन के कार्य के लिए अपर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करता है।

इस बार, ‘पाकिस्तान को बचाने’ के लिए स्क्रिप्ट ऐसे पिछले प्रयासों से थोड़ा अलग थी। यह उम्मीद की गई थी कि एक बार सुप्रीम कोर्ट ने शरीफ को अयोग्य घोषित कर दिया, तो उनका समर्थन लुप्त हो जाएगा और उनकी पार्टी उन्हें छोड़ देगी। फिर पूर्व क्रिकेटर इमरान खान (जिन्हें उनके ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के दिनों से ‘Im the Dim’ के रूप में जाना जाता है) समेत प्रतिष्ठान के पसंदीदा लोगों से, व्यापक तौर पर स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से देखे जाने वाले, एक चुनाव को जीतने की उम्मीद थी। इसके बाद पाकिस्तान को हमेशा खुशी से जीना था।

लेकिन शरीफ की पार्टी ने शरीफ को नहीं छोड़ा और कुछ स्थानीय प्रभावशाली नेताओं जिन्होंने ऐसा किया उन्हें मजबूर किया गया कुछ ऐसे तरीक़ों से जो गुप्त नहीं रखे जा सकते। सेना और आईएसआई ने विशिष्ट निर्देशों, कि चुनाव प्रचार में किसे समर्थन देना है और किसका विरोध करना है, के साथ मीडिया से सख्ती से निपटने का फैसला किया। यह भी गुप्त नहीं रह सका।

सैन्य-खुफ़िया गठजोड़ के पसंदीदा उम्मीदवारों की तरफ से इसके अन्य प्रयासों में वोट बैंक वाले उम्मीदवारों को पीएमएल, अल्ताफ़ हुसैन की मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम), या पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) छोड़ने और पीटीआई या अन्य छोटे प्रतिष्ठान समर्थक गुटों से जुड़ने के लिए कहना शामिल था। गुस्ताख़ राजनेताओं को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा और कुछ लोगों को अयोग्य भी घोषित किया गया जबकि आज्ञाकारी लोगों को सुरक्षा दी गयी और प्रतिफल का वादा किया गया।

सैन्य जीवन में एक वरिष्ठ अधिकारी का प्रतिकूल आदेश करियर को समाप्त करता है या इसका स्तर नीचे लाता है लेकिन राजनीति में दमन और अत्याचार सिर्फ सहानुभूति पैदा करता है। अपने बेढंगे नज़रिये के जरिये पाकिस्तानी प्रतिष्ठान ने नवाज़ शरीफ और उनकी बेटी मरियम के खिलाफ जनता का ध्यान जनता की शिकायतों से भटका दिया। इसके बजाय, पिता और बेटी को अब एक प्रतिष्ठान, जिसने एक लोकतन्त्र के रूप में पाकिस्तान के विकास को लगातार कमजोर किया है, में चुनौती के प्रतीक के रूप में देखा जाएगा।

यहां तक कि यदि 25 जुलाई को मतदान के बाद सेना एक चयनित प्रधान मंत्री को कार्यालय में स्थापित करने में सफल हो भी जाती है, फिर भी यह एक विश्वसनीय, प्रभावी, नागरिक मुखौटा बनाने के अपने मुख्य उद्देश्य में सफल नहीं होगी। शरीफ का कारावास उनके राजनीतिक करियर को खत्म नहीं करेगा और यह उनके पतन की योजना बनाने वाले जनरलों और कर्नलों के रिटायरमेंट के बाद तक कायम रहेगा। सैनिकों को सैनिक ही रहना चाहिए। राजनीति दुश्मनों को खोजने और मिटाने से कहीं अधिक कठिन है।

वॉशिंगटन डीसी में हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण और मध्य एशिया के निदेशक हुसैन हक्कानी 2008 से 2011 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत थे। उनकी नवीनतम पुस्तक ‘रिइमेजिनिंग पाकिस्तान’ है।

Read in English : Pakistani Generals’ arrogant stupidity makes Nawaz Sharif rise as a heroic fighter for democracy

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