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Wednesday, 8 May, 2024
होममत-विमतपाकिस्तानी खिलाड़ियों को बैंक बैलेंस बढ़ाना आता है, आतंकी हमले पर ग़म जताना नहीं

पाकिस्तानी खिलाड़ियों को बैंक बैलेंस बढ़ाना आता है, आतंकी हमले पर ग़म जताना नहीं

आए दिन पाकिस्तान के जो खिलाड़ी ये कहते रहते थे कि उन्हें हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा प्यार मिला है, आतंकी हमले पर बोलने से उनकी जुबां किसने सिल दी है?

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पुलवामा अटैक के बाद ये मांग जोर पकड़ रही है कि भारत को पाकिस्तान के खिलाफ विश्व कप के मैच का बहिष्कार करना चाहिए. हिंदुस्तानियों का खून गर्म है. हर रोज सुबह की शुरुआत किसी शहीद की बेवा या बच्चों की आंखों के आंसू की खबरों से होती है. ऐसे में क्रिकेट कहीं प्राथमिकता में है ही नहीं. भारत पाकिस्तान पहले से ही ‘बाइलेट्रल’ यानी द्विपक्षीय सीरीज नहीं खेलते हैं. ऐसे में विश्वकप में भी क्यों खेलना?

हरभजन सिंह जैसे अनुभवी खिलाड़ी ने कहा है कि पाकिस्तान से खेले बिना अगर 2 प्वाइंट गंवाना पड़ता है तो भी भारत सेमीफाइनल तक पहुंच जाएगा. विश्व कप में भारत पाकिस्तान मैचों का इतिहास दोनों मुल्कों के क्रिकेट प्रेमियों को याद है, जहां इतिहास में आज तक पाकिस्तान को भारत के खिलाफ जीत नहीं मिली है. हां, लेकिन ये सच है कि विश्व कप आईसीसी का इवेंट है इसलिए इस बारे में कोई भी फैसला सरकार और बीसीसीआई को करना होगा.

फिलहाल, ताज्जुब इस बात का है कि पाकिस्तानी क्रिकेटर्स की जुबां पर किसने ताला जड़ दिया है. आए दिन जो खिलाड़ी ये कहते रहते थे कि उन्हें हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा प्यार मिला है उनकी जुबां किसने सिल दी है. इनकी चुप्पी बताती है कि दरअसल ये क्रिकेटर्स इंसानियत का पाठ भूल गए हैं. हालात और अफसोसनाक इसलिए भी हैं, क्योंकि इन क्रिकेटर्स का मुखिया खुद भी एक क्रिकेटर रहा है.

पुलवामा में हुए कायराना हमले के बाद हम आपको पाकिस्तान के कुछ स्टार क्रिकेटर की जुबां पर लगे ताले की कहानी बताते हैं. गौर कीजिएगा ये वो क्रिकेटर हैं जिनका अगर वश चले तो ये हिन्दुस्तान में ही पले रहें. यहीं से अपना बैंक बैलेंस बढ़ाते रहें. मगर जब बारी हिंदुस्तानी जवानों की शहादत पर मुंह खोलने की हो तो इनकी आंखों पर खुदगर्जी का पर्दा लग जाता है. इस परदे के पीछे छुपे नामों को देखिए. उनकी उम्र भी बताते हैं हम आपको. जिससे पता चले कि वो नादान नहीं है बल्कि जानबूझकर चुप हैं.

नाम- शोएब अख्तर. उम्र 43 साल. पिछले तीन चार दिन में कई बार सोशल मीडिया पर हाजिर हुए. अपना नया यू-ट्यूब चैनल को बनाने की जानकारी दी. उसे देखने की गुजारिश की. इसके बाद उनकी जिम्मेदारी खत्म हो गई. शाहिद अफरीदी. उम्र- 38 साल. पिछले पांच दिन में कई बार सोशल मीडिया पर आए. अपना राग अलापा. प्रधानमंत्री की खुशामद की. वापस मसरूफ हो गए. मोहम्मद हाफीज, उम्र 38 साल. ये भी ट्विटर पर आए, पाकिस्तान सुपरलीग की बात कही और चले गए. शोएब मलिक, पाकिस्तान के पूर्व कप्तान, इनकी पत्नी सानिया मिर्जा हिंदुस्तान की शान हैं. उम्र 37 साल. ये भी ट्विटर पर आए तो दो यंगस्टर खिलाड़ियों की तारीफ करने के अलावा इन्हें कुछ नहीं सूझा.

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वसीम अकरम, पूर्व कप्तान, उम्र 52 साल. इन्हें भी ट्विटर पर आने का समय मिला तो पाकिस्तान सुपर लीग के लिए. वकार यूनिस, उम्र 47 साल. इन्हें ट्विटर पर नजम सेठी की खुशामद की फुर्सत तो मिली, लेकिन इससे आगे कुछ इन्हें समझ नहीं आया. रमीज राजा भी पाकिस्तान सुपर लीग में ही खोए रहे. इंजमाम उल हक तो खैर गायब ही हैं. अफसोस इस बात का है कि इन सभी खिलाड़ियों को हिन्दुस्तान से न सिर्फ बहुत सारा प्यार मिला है, बल्कि इनके बैंक बैंलेंस में भी यहां की कमाई जमकर है.

ये क्रिकेटर्स शायद इस बात को भी भूल गए हैं कि कोई भी अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी सिर्फ अपने देश की नुमाइंदगी भर नहीं करता, बल्कि उसके कुछ सामाजिक सरोकार भी होते हैं. वो सामाजिक सरोकार नदारद दिख रहे हैं. शाहिद अफरीदी कश्मीर को लेकर बीच-बीच में बयान देते रहते हैं. स्विटजरलैंड में कुछ क्रिकेट फैंस के साथ तस्वीर खींचाते वक्त उन्होंने भारतीय तिरंगे को सही तरीके से पकड़ने की बात कही थी, जो तस्वीरें काफी वायरल भी हुई थीं, लेकिन आज जब पाकिस्तान की करतूत से मारे गए सैनिकों की शहादत पर संवेदना व्यक्त करने का वक्त है तो उन्होंने चुप्पी साधी हुई है.

उन्हें इस बात का डर है कि अगर वो कुछ भी कहते सुनते हैं तो उन्हें उनके देश में घेर लिया जाएगा. यही डर बाकि खिलाड़ियों को भी है. यूं भी पाकिस्तान के ज्यादातर क्रिकेटर अपने मुल्क में रहते नहीं है. उन्हें पता है कि वहां के हालात कैसे हैं. शाहिद अफरीदी और उनके जैसे तमाम क्रिकेटर शायद भूल गए कि कुछ बरस पहले जब पेशावर में स्कूली बच्चों पर हमला हुआ था तब भारतीयों ने किस तरह उनके दर्द को बांटा था. इसी सोशल मीडिया पर ट्विटर पर इंडिया विथ पाकिस्तान हैशटैग वायरल हो रहा था. सचिन तेंडुलकर जैसे खिलाड़ी ने इस तरह की घटनाओं की आलोचना की थी.

(शिवेंद्र कुमार सिंह खेल पत्रकार हैं. पिछले करीब दो दशक में उन्होंने विश्व कप से लेकर ओलंपिक तक कवर किया है. फिलहाल स्वतंत्र लेखन करते हैं.)

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