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Sunday, 3 November, 2024
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आजादी की जंग अब भी लड़ रहा पाकिस्तान, राजनीतिक थ्रिलर से कहीं ज्यादा नाटकीय है कहानी

आईएमएफ के पंजों में फंसा एक नाकारा लोकतंत्र- यही है पाकिस्तान के 75 साल की कहानी.

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आजादी के 75वें साल भी पाकिस्तान अपनी हकीकी आजादी की तलाश में लगा हुआ है. आजादी का एक ऐसा सोप ओपेरा जिसमें डेज़ ऑफ़ अवर लाइव्स की तुलना में अधिक सीज़न हैं और किसी भी राजनीतिक थ्रिलर की तुलना में अधिक नाटकीय उतर-चढ़ाव और ड्रामा जो आपने कभी कहीं और नहीं देखा होगा.

कथानक लगभग एक सा रहता है. आईएमएफ के पंजे में फंसा एक नकारा लोकतंत्र जो किसी भी तरफ जा नहीं पा रहा है और ‘दोस्ताना मुल्कों’ से मिले डॉलर के ‘मदद’ पर निर्भर है. हालांकि इस देश को चलाते दिखने वाले लोग असल अदाकार भी नहीं हैं. प्रधानमंत्री की सीट पर बिठाये गए एक अदाकार का बागी हो जाना इस नाटक में आया वह मोड़ था जो कि पटकथा लेखकों ने लिखा भी नहीं था. लेकिन यहां हम जिन्न को फिर से वापस बोतल में डालने के लिए किया जा रहा जादुई करतब देख रहे हैं.


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कैसे बीता 75वां साल?

एक समय वह भी था जब इमरान खान 10 साल तक सत्ता में रहने का वादा कर रहे थे. और फिर एक नई सरकार आई, जिसने चांद-सितारे तोड़ लाने का वादा किया. लेकिन बढ़ती महंगाई, डॉलर के दर में आई तेजी और जल्दी चुनाव करवाने के बढ़ते दबाव के मद्देनजर इसका भविष्य स्याह ही बना रहा. वह पंजाब का उपचुनाव हार गयी और न्यायपालिका ने इमरान खान के उम्मीदवार के पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे वह मुख्यमंत्री बन गए. लोग कहने लगे कि दीवार पर साफ-साफ लिखा है- शहबाज शरीफ की गठबंधन सरकार को जाना होगा.

फिर, सभी महान थ्रिलरों (रोमांचक नाटकों) की तरह, सब कुछ तो नहीं पर कुछ चीजें फिर से बदल गईं. डॉलर की दर दो सप्ताह में फिर नीचे आ गई और आईएमएफ से मिलने वाले कर्ज के रूप में एक ‘अच्छी खबर’ भी आ गई. और फिर, खान और शरीफ की किस्मत एक बार फिर से बदल गईं.

विदेशी फंडिंग मामले में आये फैसले में दोहराया गया कि इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने कई विदेशी संस्थाओं, व्यक्तियों और कंपनियों से पैसे लिए, जिसमें भारतीय और इजरायली चंदा देने वाले भी शामिल थे. यह एक ऐसा फैसला है जो इमरान खान को हमेशा के लिए पाकिस्तानी राजनीति से बेदखल कर सकता है. और वह खान साहेब की समस्याओं की शुरुआत भी नहीं है. उनके खिलाफ सरकार को मिले तोहफे खुले बाजार में बेचने और 142 मिलियन पाकिस्तानी रुपये मूल्य के तोहफों के बारे में कोई ऐलान भी नहीं करने के लिए तोशखाना वाला मामला भी चल रहा है.

एकाएक, सरकार अपनी नींद से जाग गई और फिर इसने महसूस किया कि अब वह अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ फंदा और कस सकती है. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह हुई कि सत्ता का प्रतिष्ठान अब इस बात के इशारे कर रहा था कि ‘इन्हें चलने दो’ की रणनीति अब लागू है. आमतौर पर, जब बहुप्रचारित इमरान खान प्रोजेक्ट जैसी अन्य योजनाएं उलटा असर दिखाती हैं, तो जिन नेताओं को आपने निकल बाहर कर दिया था, वे ही एकमात्र विकल्प रह जाते हैं.


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बाजवा, मेरी मां

इमरान खान के स्वयंभू चीफ ऑफ स्टाफ शहबाज गिल, जो बहुत देर तक ‘मेरी मां बाजवा है’ का राग अलाप रहे थे, अब किसी और मूड में आ गए हैं. वह टेलीविजन चैनल एआरवाई न्यूज पर यह दावा करते हुए दिखाई दिए कि कैसे पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मध्य और निचले दर्जे का अधिकारियों को खान के खिलाफ नफरत की पट्टी पढ़ाई जा रही है. शहबाज गिल ने अधिकारियों से कोई भी ‘असंवैधानिक आदेश’ नहीं मानने की गुजारिश भी की और कहा कि उन्हें अपने ‘जमीर’ की आवाज को सुनना चाहिए.

उनके इस भाषण को एक मंच देते हुए एआरवाई ने न केवल इस को बार-बार प्रसारित किया, बल्कि इसके एक विश्लेषक ने यहां तक सहमति व्यक्त की कि निचले रैंक के अधिकांश अधिकारी पीटीआई के समर्थक हैं. एक उत्साहित विश्लेषक चौधरी गुलाम हुसैन ने कहा, ‘उनके मन में इमरान खान भरे हुए हैं.’

इस पूरे प्रकरण को कतई हल्के में न लेते हुए शहबाज शरीफ सरकार ने शहबाज गिल के खिलाफ मामला दर्ज किया, जिसके बाद सशस्त्र बलों के भीतर विद्रोह को उकसाने के आरोप में उनकी गिरफ्तारी भी हुई. अब कुछ इस तरह के विकल्प पर भी बात चल रही है कि अगर सैन्य प्रतिष्ठान फैसला करता है तो गिल पर आर्मी एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है.

टेलीविजन चैनल एआरवाई न्यूज भी अब सरकारी गुस्से की जद में है और आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने उसके द्वारा दिए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया है और साथ ही इसके प्रबंधन के खिलाफ मामले भी दर्ज किए गए हैं. एआरवाई, जो कभी पाकिस्तान प्रतिष्ठान के मुखपत्र के रूप में काम करता था और असंतुष्टों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, राजनेताओं को वतनफरोश घोषित करने वाले अभियानों में सबसे आगे रहता था, अब खुद को उसी गड्ढे में गहरे दबा पा रहा है.

फर्जी खबरों को लेकर कई मुकदमे हारने के बाद यूनाइटेड किंगडम में एआरवाई न्यूज पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, यह अब यूके में एनवीटीवी के रूप में काम करता है. पाकिस्तान में, एआरवाई ने इमरान खान के किराए के टट्टू के रूप में काम करना जारी रखा, न कि उन लोगों के जो उसके असली ‘शुभचिंतक’ थे.

पूर्व प्रधानमंत्री के लिए यह बात एक झटके के रूप में आई कि कैसे उनके ‘चीफ ऑफ स्टाफ’ ने जो कुछ भी कहा वह आउट-ऑफ-लाइन था या उन अनकही लेकिन सभी को मालूम ‘रेड लाइंस’ को पार कर गया था. खासकर तब जब पिछले चार महीनों में खान ने ‘मीर जाफर, मीर सादिक’, ‘अमेरिकन एजेंट’, ‘गद्दर’, ‘न्यूट्रल इज एनिमल’ कह कर चुटकियां ली, तो उसकी प्रतिक्रिया में एक पत्ता तक नहीं खड़का. वास्तव में यह चौंकाने वाली बात तो थी क्योंकि इमरान खान अपने 2014 के धरने के दिनों से ही यही सब कह या कर रहे हैं: सविनय अवज्ञा का ऐलान, बिजली के बिल जलाना, पुलिस अधिकारियों को धमकाना और नौकरशाही से तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के आदेश नहीं लेने की गुजारिश करना. लेकिन कल के लाडलों को आज वापिस धकियाए जाते हुए देखना फाइव-स्टार रेटिंग देने वाला है.

साजिश का खेल

कल के वतनफरोश (देशद्रोही) आज के वतनपरस्त (देशभक्त) हो गए हैं. इमरान खान जैसे लोग पिछले दस सालों से एक ही स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं, जैसे कि नवाज शरीफ को 26/11 के शूटर अजमल कसाब का पाकिस्तान वाला पता देने के लिए दोषी ठहराना. लेकिन अब कोई इसके फेर में नहीं आने वाला है. कसाब का फरीदकोट गांव वाला पता पहले से ही मुख्यधारा की मीडिया में था और दुनिया को सूचित करने के लिए शरीफ को अपने पते ठिकाने वाली किताब (एड्रेस बुक) निकालने की जरूरत नहीं थी. हम निश्चित रूप से जमात उद दावा प्रमुख हाफिज सईद को आतंकी समूहों को पैसे देने के मामलों में हुई कैद, वह भी पीटीआई सरकार के दौरान, जैसी बातों को अहमियत दे रहे हैं. पाखंड के आधार पर राजनीतिक नैरेटिव बनाने की यही तो खासियत है.

अब एक और चीज जो कोई भी असर नहीं डाल पा रही है वह है पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के लिए की गई साजिश की बात, जो 10 अप्रैल के बाद शुरू हुई थी. यह कहना कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के साथ मिलकर इमरान खान को सत्ता से निकाल बाहर कर दिया, एक ऐसा रिकॉर्ड है जिसे हमने अपने पूरे जीवनकाल के लिए पर्याप्त रूप से सुन रखा है. लेकिन फिर, हाल ही में पाकिस्तान स्थित अमेरिकी राजदूत, डोनाल्ड ब्लोम और उस नेता- यानी की इमरान खान- के बीच में हुआ एक कथित ‘गुप्त वीडियो कॉल’ सामने आया जो कहता है कि उसके खिलाफ साजिश रची गई थी.

हालांकि इस अफवाह वाली कॉल, जिसमें खान ने डोनाल्ड लू के विचारों के बारे में बात करते हुआ कहा कि कैसे इसे अमेरिकी सरकार का आधिकारिक बयान नहीं बनना चाहिए था, से पीटीआई ने इनकार किया है लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जिनसे कोई इनकार नहीं कर सकता: अमेरिकी राजदूत ने निश्चित रूप से खान को यह कहते सुना होगा कि ‘हम कोई गुलाम हैं आप की, आयातित राजदूत नामंज़ूर !’ खासकर उस खुदमुख्तारी (संप्रभुता) और खुद्दारी की भारी खुराक को देखते हुए जिसे वह हम पाकिस्तानियों को खिला रहे हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खैबर पख्तूनख्वा की पीटीआई सरकार यूएसए द्वारा दान किए गए 36 वाहनों की चाबियां नहीं ले सकती है!

अतीत की इस बात को याद करते हुए कि डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनके रिश्ते कितने अच्छे थे, इमरान खान कहते हैं कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने उन्हें वह प्रोटोकॉल वाला सम्मान दिया जो पहले किसी भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को कभी नहीं मिला था. ट्रंप ने उन्हें इतना सम्मान दिया, जबकि जो बाइडन ने तो कभी फोन तक नहीं किया. इसका गुस्सा अभी भी है. और फिर यू-टर्न वाली बात भी ऐसे ही हैं. नहीं तो हमें यह क्यों पता लगता कि पीटीआई ने अमेरिका के साथ अच्छे संबंधों के मकसद के साथ वाशिंगटन में एक लॉबिंग फर्म को काम पर लगाया है? अब भी अगर बाइडन ने फोन नहीं किया तो क्या होगा? खान साहेब के लिए अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. उनकी जादुई टोपी से एक नया नैरेटिव निकलने का समय आ गया है. जी नहीं, यह ड्रामा इतनी जल्द खत्म होने वाला नहीं है.

(लेखिका पाकिस्तान की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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