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Saturday, 4 May, 2024
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अपनों पर आरोप लगते ही पाकिस्तानी मीडिया #मीटू अभियान का साथ छोड़ देता है

यौन उत्पीड़न के पीड़ितों की बात सुनी जाए इसके लिए अब पाकिस्तान में उनका मीडिया के ‘सही’ खेमे में होना आवश्यक है.

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पाकिस्तान के #मीटू अभियान पर अपनों के ही पाखंड का खतरा बन गया है. यौन उत्पीड़न के पीड़ितों की बात सुनी जाए इसके लिए अब उनका मीडिया के ‘सही’ खेमे में होना आवश्यक है.

एक छात्रा द्वारा यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाए जाने के बाद भारी दबाव से गुजर रहे एमएओ कॉलेज के अध्यापक मोहम्मद अफज़ल ने पिछले दिनों आत्महत्या कर ली थी. अफज़ल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि वह मामले को ‘अल्लाह की अदालत में’ छोड़ रहे हैं. आंतरिक जांच में निर्दोष करार दिए जाने के महीनों बाद भी कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें क्लीन चिट नहीं दी थी, और ऐसी स्थिति में ही पत्नी के छोड़ जाने के एक दिन बाद अफज़ल ने आत्महत्या कर ली.

खुद यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे अभिनेता और गायक अली ज़फ़र इस घटना के बाद #मीटू अभियान के दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठाने वाले शुरुआती लोगों में से थे.

अपनों का बचाव

अफज़ल की आत्महत्या के बाद झूठे आरोप लगाए जाने और आरोपियों की दुर्दशा को लेकर बहस शुरू हो गई. लेकिन उसके बाद जो हुआ उससे अंदाजा लग जाता है कि पाकिस्तान को #मीटू की वास्तव में कितनी परवाह है.

#मीटू अभियान के समर्थन में आगे आते हुए वीडियो निर्देशक और फिल्मकार जामी मूर ने खुलासा किया है कि 13 साल पहले एक बड़े मीडिया उद्यमी ने उनके साथ बलात्कार किया था. एक-एक कर कई ट्वीट संदेशों में मूर ने कहा कि #मीटू अभियान को निशाना बनाया जाते देखने के बाद उन्होंने अपनी पीड़ा साझा करने का फैसला किया. उन्होंने ट्वीट किया, ‘सब सही होता है, पीड़ित जो भी बताते हों या जैसे कहते हों या जो भी छुपाते हों… इसलिए एक अनुचित मौत का ये मतलब नहीं है कि सारे पीड़ित फर्जी और झूठे हैं. मुझे बहुत बुरा लग रहा है कि इस अभियान और पीड़ितों को निशाना बनाया जा रहा है, इसीलिए करीब 13 साल बाद मैं अपनी पीड़ा बयान कर रहा हूं कि 99.99 फीसद मामलों में पीड़ित व्यक्ति बिल्कुल सच बयां कर रहे होते हैं. संदेह की कोई गुंजाइश नहीं!’

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पर जामी के आरोपों पर प्रमुख मीडिया कंपनियों की प्रतिक्रियाएं अटपटी और पाखंडपूर्ण रही हैं. उनकी व्यथा पर केंद्रित एक खबर को डॉन की साइट से पहले हटा लिया गया और फिर संपादित कर उसे दोबारा लगाया गया. इसी तरह, जियो टीवी ने पहले तो अपनी रिपोर्ट में जामी के साथ एक बड़े मीडिया उद्यमी द्वारा बलात्कार की रिपोर्ट चलाई, पर बाद में कथित तौर पर मीडिया उद्यमी का जिक्र हटा दिया गया. जामी के खुलासे के बारे में क्षेत्रीय मीडिया में कवरेज नगण्य रही है. इससे यही साबित होता है कि पाकिस्तानी मीडिया अपनों का बचाव करता है.

जामी #मीटू अभियान के मुखर समर्थक रहे हैं और उन्होंने इसी वर्ष लक्स स्टाइल अवार्ड्स में अली ज़फ़र को नामित किए जाने का विरोध किया था.


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पिछले महीने, मीशा शफ़ी के मानहानि के मुकद्दमे पर संडे टाइम्स ने ‘मीशा शफ़ी के मैनेजर ने कोई उत्पीड़न होते नहीं देखा’ शीर्षक रिपोर्ट छापी जिसमें दावा किया गया कि म्यूज़िक शो ‘जहां कि मीशा शफ़ी के अनुसार उत्पीड़न की घटना हुई थी’, में मौजूद शफ़ी के मैनेजर को ‘उत्पीड़न की वैसी कोई घटना’ देखने को नहीं मिली थी.

अखबार के इस दावे को डिजिटल अधिकारवादी कार्यकर्ता और शफ़ी की वकील निघत दाद ने बकवास बताया है. उन्होंने ट्वीट संदेशों की एक सीरीज में कहा कि मैनेजर फरहान अली ने अदालत में अपनी गवाही में बताया कि उत्पीड़न की घटना पर उसकी नज़र इसलिए नहीं पड़ी, क्योंकि उस वक्त ज़फ़र और शफ़ी के बजाय उसका ध्यान अपने साज़ पर था. मैनेजर ने अपने बयान में भी कहा कि ‘इस तरह के कार्यक्रमों में वाद्ययंत्र बजा रहे किसी कलाकार के लिए किसी व्यक्ति विशेष पर ध्यान केंद्रित करना संभव नहीं होता है.’ पत्रिका ने इस तथ्य की तो अनदेखी कर दी, पर रिपोर्ट को इस तरह से घुमाया ताकि एक पक्ष विशेष दोषमुक्त नज़र आए.

चुप रहो या दफा हो जाओ

पाकिस्तान में #मीटू अभियान को पश्चिमी देशों का शगल माना जाता है जो कि कथित तौर पर पाकिस्तानी समाज को नुकसान पहुंचा सकता है. कुछ लोग इसे ‘विदेशी एजेंडे पर काम करने वाले माफियाओं’ का फर्जीवाड़ा बताते हैं कि जिसका लक्ष्य महिलाओं का शोषण करना है. कुछ अन्य इसे इज़रायली एजेंडा बताते हैं जो कि कथित तौर पर पाकिस्तान के पारिवारिक मूल्यों को खत्म कर देगा.

पर, निर्देशक खलीलुर रहमान क़मर जैसे लोग भी हैं जिनकी नज़र में #मीटू का वास्ता महिलाओं की सहमति से नहीं है, बल्कि इसका संबंध महिलाओं द्वारा पुरुषों के साथ बलात्कार के वास्ते बराबरी की मांग से है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘यदि आपको बराबरी चाहिए तो आप भी पुरुषों का अपहरण करें. बस लूटें, किसी पुरुष का सामूहिक बलात्कार करें, ताकि मैं समझ सकूं कि बराबरी से आपका (महिलाओं का) क्या मतलब है. कोई मुझे #मीटू में घसीट कर तो देखे, मैं परवाह नहीं करता.’

#मीटू का संदर्भ हो या नहीं, यौन उत्पीड़न की शिकार पाकिस्तानियों को लंबे समय तक चुप्पी ओढ़े रहना पड़ा है, क्योंकि शर्मिंदगी और दोषारोपण पीड़ितों के लिए होता है, न कि दोषियों के लिए. अधिकतर मामले उजागर ही नहीं हो पाते हें, और जो अपनी बात सामने रखने की कोशिश करते हैं उन्हें ज़लील किया जाता है, उनके चरित्र और उनकी नैतिकता पर सवाल उठाए जाते हैं.

2014 में 17 वर्षीया महिला क्रिकेटर हलीमा रफ़ीक़ को मुल्तान क्रिकेट क्लब के पदाधिकारियों द्वारा यौन उत्पीड़न की बात का खुलासा करने के बाद आत्महत्या करनी पड़ी थी.

रफ़ीक़ और चार अन्य क्रिकेटरों ने आरोप लगाया था कि सूबे की टीम में जगह दिलाने के नाम पर पदाधिकारियों ने यौन-संबंध बनाने की मांग की थी. इस मामले को लेकर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने एक जांच कमेटी का गठन किया था, जिसने आरोपी पदाधिकारियों को दोषमुक्त करार देते हुए पांचों महिला खिलाड़ियों पर छह महीने का प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद जब एक पदाधिकारी ने रफ़ीक़ पर 20,000 डॉलर का मानहानि का दावा किया तो किशोरी इस दबाव को झेल नहीं पाई.

पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी की सांसद आयशा गुलाली ने 2017 में अपने पार्टी नेता इमरान ख़ान पर यौन उत्पीड़न करने और भद्दे संदेश भेजने का आरोप लगाया था. उन्हें पार्टी के भीतर और सोशल मीडिया में निशाना बनाया गया. उनका राजनीतिक करियर बाधित हो गया.


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जहां तक कानून की बात है तो औपचारिक मामले दर्ज कराने वालों को या तो इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया जाता है या उन पर मानहानि के मामले चलाए जाते हैं. 2017 में पीटीवी की दो प्रस्तुतकर्ताओं, तंज़ीला मज़हर और याशफ़ीन जमाल, ने चैनल के तत्कालीन निदेशक आगा मसूद शोरिश पर यौन उत्पीड़न और पद के दुरुपयोग के आरोप लगाए थे. शोरिश को आगे चलकर बर्खास्त कर दिया गया, जबकि दोनों महिलाओं को नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा.

दोषारोपण हमेशा पीड़ितों पर

कहने को तो पाकिस्तान में कार्यस्थल पर उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा का कानून बना हुआ है, पर एक तो इसे ठीक से लागू नहीं किया जाता और दूसरे अपने पेशेवर और सामाजिक जीवन में महिलाओं को जिस तरह के मुश्किलों का सामना करना पड़ता है उनमें से बहुतों को इस कानून में शामिल ही नहीं किया गया है.

पुरुष-प्रधान समाज हमेशा ही अपनी बात रखने वाली यौन हिंसा की पीड़ितों को हिकारत भरी नज़रों से देखेगा. पूर्व तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ़ ने एक बार कहा था कि महिलाएं विदेश जाने के लिए बलात्कार का शोर मचाती हैं: ‘यदि आप विदेश जाना और कनाडा का वीज़ा या नागरिकता लेना और करोड़पति बनना चाहती हैं, तो अपना बलात्कार कराएं.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @nailainayat हैंडल से ट्वीट करती हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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