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Thursday, 19 December, 2024
होममत-विमततौबा तौबा, इमरान ख़ान के मंत्रियों के पास हर परेशानी का एक ही हल है, भारत पर एटम बम गिरा दो

तौबा तौबा, इमरान ख़ान के मंत्रियों के पास हर परेशानी का एक ही हल है, भारत पर एटम बम गिरा दो

इमरान ख़ान से नई दिल्ली पर परमाणु हमले की ‘तौबा तौबा टीवी पत्रकार’ की अपील के कुछ ही दिन बाद उनके रेल मंत्री ने भारत को पाव-आधा पाव के एटम बमों की धमकी दे डाली.

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‘मेरे पास मां है’ का ज़माना जा चुका है. आज अमिताभ बच्चन के उस बेहतरीन सवाल ‘तुम्हारे पास क्या है’ का संभावित जवाब होगा: मेरे पास एटम बम है!

परमाणु बम अब कोई छुपाने की चीज़ नहीं रह गई है; ये तो नवीनतम फैशन है और जिस किसी देश के पास ये हथियार हैं वो इसका प्रदर्शन करे, या उससे भी बेहतर, दुश्मन को इसकी धमकी दे. इमरान ख़ान के ‘परमाणु शक्ति संपन्न देश’ का शासक होने का दम भरने के बाद, उनके रेल मंत्री अब खुलेआम भारत के स्थान विशेष को पाकिस्तान के ‘पाव-आधा पाव के एटम बमों’ से निशाना बनाने की बात कर रहे हैं.

परमाणु सिद्धांत को एक गंभीर विषय माना जाता रहा है. पर आज राजनीतिक विमर्श में जिस लापरवाही से एटम बमों और परमाणु युद्ध का ज़िक्र किया जा रहा, उससे ऐसा लगता है मानो परमाणु हथियार बच्चों का खेल हों.

तौबा तौबा, परमाणु बम?

इस स्थिति का थोड़ा श्रेय पाकिस्तान के एक टीवी रिपोर्टर को जाता है. इसी साल फरवरी में पुलवामा हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान को टमाटरों के निर्यात पर पाबंदी की धमकी दी थी, तब एक पाकिस्तानी टीवी पत्रकार ने जवाबी हमले का आगाज़ किया था और उसके बाद से सीमा के दोनों तरफ के पत्रकारों ने अपनी सरकारों से युद्ध – परमाणु या परंपरागत – छेड़ने की गुहार बंद नहीं की है. उस पाकिस्तानी पत्रकार ने भारत की धमकी के जवाब में ‘टमाटर का जवाब एटम बम से देंगे’ का ऐलान किया था. उसकी धमकी ऐसी थी मानो वो घर के गार्डन से एटम बम तोड़ कर नियंत्रण रेखा पर फेंक आएगा. हालांकि बारंबार ‘तौबा तौबा’ कहते हुए वह अपनी बात को लेकर संजीदा लग रहा था.

छह महीने के बाद, तौबा तौबा रिपोर्टर वापस सामने आया है. नहीं, उसे अब भारत के टमाटर नहीं चाहिए. सोशल मीडिया पर वायरल एक नए क्लिप में वह कश्मीर में 5 अगस्त से ही ठप संचार माध्यमों को लेकर प्रधानमंत्री ख़ान से नई दिल्ली पर परमाणु बम गिराने की मांग कर रहा है. उसकी सोच का अंदाज़ा उसके इस कथन से लग जाता है कि ‘यदि कश्मीर दुख में डूबा है, तो हर भारतीय बच्चे को दर्द का अनुभव कराया जाना चाहिए.’


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‘किसके कहने पर एटम बम गिराया जाएगा’ के मुद्दे पर जारी कड़ी प्रतियोगिता में रेल मंत्री और सदाबहार नेता शेख रशीद बाकियों से बहुत आगे दिखते हैं. और हों भी क्यों नहीं जब वह खुद को ‘जीएचक्यू का बंदा’ या ‘बिना वर्दी का जनरल’ बताते हैं.

पुलवामा हमले के बाद शेख ने अपने ऑफिस में बैठे-बैठे भारत को धमकी दे डाली थी कि वो चूड़ियां पहन कर नहीं बैठे हैं और किसी ने पाकिस्तान को बुरी नज़रों से देखने की ज़ुर्रत की तो उसकी आंखें निकाल ली जाएंगी. अपनी धमकी पर एटमी मुलम्मा चढ़ाते हुए उन्होंने कहा था, ‘ना तो तुम्हारे यहां (भारत में) खुशहाली रहेगी, ना ही तुम्हारे मंदिरों में घंटियां बजेंगी.’

मोदी का कश्मीर-बम

नरेंद्र मोदी सरकार के जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले ने शेख जैसे बड़बोलों में नई जान फूंकने का काम किया है. एक दिन वो जनता को बताते हैं कि पाकिस्तान के पास स्मार्ट बम है, और अगले ही दिन भारत को याद दिलाते हैं कि उनके देश के पास ‘पाव आधा पाव’ के एटम बम भी हैं. हमलोग अभी इस रहस्योद्घाटन से उबर भी नहीं पाए थे कि शेख रशीद ने ऐलान कर दिया कि पाकिस्तान पर वजूद का संकट है और एटमी जंग ही एकमात्र समाधान है.

स्तब्ध न्यूज़ एंकर सलीम सफ़ी ने जब सवाल किया कि ‘परमाणु युद्ध?’, तो मंत्री ने कहा, ‘वो स्मार्ट युद्ध.’ अब ये स्मार्ट युद्ध क्या बला है? ‘स्मार्ट बम कह दिया, जो मर्ज़ी उसको नाम दो.’ हां, आप जो कहना चाहें कह लें. ये बम है और ये युद्ध को जन्म देगा, इसलिए संतुष्ट रहें.

उन्माद के इस माहौल में, रशीद का कहना है कि पाकिस्तान के पास और कोई विकल्प नहीं है. पर 1998 में नवाज़ शरीफ़ सरकार जब परमाणु परीक्षण करने जा रही थी तो रशीद पहली उपलब्ध उड़ान लेकर देश से भाग खड़े हुए थे. उनका कहना था कि वह डर के मारे भागे थे. ‘वो पटाखा आगे पीछे हो जाए, कहीं से लीकेज हो जाए.’ हां, परमाणु परीक्षण से वे इतना ज़्यादा भयभीत थे.

शेख रशीद के मौजूदा बॉस इमरान ख़ान ने अपने भाषणों, संबोधनों और अब संपादकीय पेज पर छपे एक लेख के ज़रिए दुनिया को आगाह किया है कि क्षेत्र में परमाणु खतरे की आशंका है. मैं सहमत हूं, क्षेत्र को ख़ान के मंत्रियों और खुद उनके ट्वीटों से गंभीर खतरा है. यदि ख़ान के ट्वीट एटमी होते तो अभी तक हम लोग धुआं बन कर गायब हो चुके होते. जहां मोदी दुनिया घूमते हैं, ख़ान बस ट्वीट करते हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो का 1965 के प्रसिद्ध बयान को बारंबार दोहराया जाता रहा है कि ‘यदि भारत (परमाणु) बम बनाता है, तो हम घास या पत्ते खाएंगे, भूखे भी रह लेंगे, पर हम खुद का बम बनाएंगे. हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है!’ इस बयान के ज़रिए पाकिस्तान के दुनिया का सातवीं एटमी ताकत होने पर ज़ोर दिया जाता था. पर आगे चल कर ये बयानबाज़ी बेतुकी हो गई. पाकिस्तान के पूर्व जनरल हामिद गुल का एटम बम से लगाव जगजाहिर था. उन्होंने एक बार कहा था: ‘हमारे पास मद्रास (चेन्नई) को नष्ट करने की परमाणु क्षमता है; निश्चय ही वही मिसाइल तेल अवीव का भी वही हाल कर सकती है.’

परमाणु बम क्या करता है?

धार्मिक दल पाकिस्तानी एटम बम को ‘इस्लामिक बम’ कहना पसंद करते हैं. उनका कहना है कि इसकी मिल्कियत उनके पास है और वे जब भी चाहें इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. जैसे खादिम हुसैन रिज़वी ने कहा था, ‘यदि मुझे एटम बम मिल जाए, मैं धरती से हॉलैंड का नाम मिटा दूंगा, इससे पहले कि वो (पैगंबर मोहम्मद पर) कार्टून की प्रतियोगिता करा पाए.’

इसलिए, इस्तेमाल की कौन कहे, पाकिस्तानी एटम बम को कितनी दूर या किस जगह फोड़ा जाएगा, ये भी युद्धोन्मादी ही तय करेंगे. पर हां, भारत और इज़राइल पसंदीदा निशाने हैं.


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एटम बम आखिर है क्या चीज़? ये आपके ड्राइंग रूम में रखी कोई सजावटी चीज़ नहीं है, ना ही यह शबेबारात या शादियों के मौके पर इस्तेमाल होने वाला पटाखा. किसी शादी में कौन एटम बम फोड़ना चाहेगा? इसलिए परमाणु हथियारों पर बयानबाज़ी से स्पष्ट है कि इनके विनाशक प्रभावों को लेकर कितना भ्रम है. क्या इससे कोई फर्क पड़ता है? सिर्फ ये बात मायने रखती है कि हम मान सकते हैं कि अत्यंत छोटे एटम बम भी मौजूद हैं, जो हम अपने ड्राइंग रूम में भी रख सकते हैं, जिसे हम जब और जिस पर चाहें, फोड़ सकते हैं.

स्तंभकार आर्देशिर कोवासजी बरसात के इस मौसम में हमें याद दिला रहे होते, ‘साला, गटर बना नहीं सकते, एटम बम बनाते हैं. सीमेंट में बजरी ज़्यादा मिलाते हैं और इमारत पे माशाअल्लाह लिखते हैं.’

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. यहां प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं.)

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