2019 लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए विपक्ष के लिए बिहार एक महत्वपूर्ण राज्य है।
नितीश कुमार से किसी ने नहीं कहा था कि वह भाजपा से हाथ मिलाएं। बल्कि उन्होंने अपने उप मुख्यमंत्री तेजश्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए अपनी मर्ज़ी से ऐसा किया था।
इस गणना के साथ, कि विपक्ष के पास 2019 में मोदी को हटाने की सम्भावना नहीं है, यह सच में एक बेशर्मी भरा अवसरवादी निर्णय था। नितीश कुमार ने पक्ष बदलने के बाद घोषणा की थी, “2019 में मोदी को कोई भी नहीं हरा सकता”।
उत्तर प्रदेश में महागठबंधन ने अभी तक तो आव्यूह को पुनः व्यवस्थित किया है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनके चरम के बाद से कम हुई है।
अपेक्षित रूप से, हवा की तरह रुख बदलने वाले, नितीश कुमार ने भाजपा के खिलाफ शोर मचाना शुरू कर दिया है।
वह जल्द ही राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में लौटने के इच्छुक हो सकते हैं। क्या वे उन्हें स्वीकार करेंगे? आप दुबारा से एक ऐसे आदमी के साथ सम्बन्ध कैसे स्थापित कर सकते हैं जो आपको बिना हिचकिचाए छोड़ने के लिए करने के लिए तत्पर हो? कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं है लेकिन लालू और तेजस्वी यादव के अपमान के बाद क्या राजद ऐसा करेगी?
नितीश कुमार जैसे व्यक्ति पर कोई भरोसा कैसे करता है?
राजनीति में विश्वास नहीं बल्कि आत्महित सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। भाजपा और शिवसेना एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन फिर भी एक गठबंधन में हैं। एच.डी. कुमारस्वामी भाजपा के पास जा सकते हैं लेकिन कांग्रेस कर्नाटक में उनका समर्थन कर रही है। स्वार्थ अविश्वास से बढ़कर है।
अपने स्वयं के आत्महित के लिए, राजद को नितीश कुमार का इस्तेमाल करने के लिए तब तक तत्पर रहना चाहिए जब तक इसे इनकी जरूरत है। और इसे इनकी जरूरत तो है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तेजस्वी यादव का कद एक युवा नेता के रूप में कितना बढ़ गया है।
तेजस्वी को नितीश की जरूरत क्यों है?
बिहार में लालू यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के ‘पुनरुत्थान’ को ज्यादा आँका जा रहा है। मुस्लिम वर्चस्व वाले क्षेत्रों के चुनावों में एक या दो जीतें राज्य की बड़ी वास्तविकता का कोई संकेतक नहीं हैं।
बड़ी वास्तविकता यह है कि मुख्य निर्वाचक घटक के रूप में भाजपा और जद(यू)के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की स्थिति जाति अंकगणित के मामले में ज्यादा मजबूत है और अभी तक हम मोदी के ब्रांड को गिन नहीं रहे हैं।
कांग्रेस के साथ राजद मुस्लिम और यादव मतदाताओं की निष्ठा को नियंत्रित करती है जो कुल मतदाताओं का 30% हैं। राजद अन्य मतदाताओं को लुभाने के लिए बहुत मेहनत कर रही है, खासतौर पर महादलितों को, लेकिन इन प्रयासों के साथ भी राजद-कांग्रेस 40% वोट शेयर से ज्यादा प्राप्त नहीं कर सकते हैं जिसमें 60% वोट शेयर एनडीए के लिए छूटता है।
राजद ने 2014 में 40 लोकसभा सीटों में से चार सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने दो सीटें जीती थीं। 6 सीटों का यह हिसाब 10 सीटों तक पहुँच सकता है, यह देखते हुए कि 2014 की त्रिकोणीय प्रतियोगिता के विपरीत यह एक द्वि-ध्रुवीय प्रतियोगिता होगी।
2015 के विधानसभा चुनाव के महागठबंधन की तरह, लालू-नितीश गठबंधन दोनों के ही लिए फायदेमंद है। शायद तेजस्वी यादव यह कहना जारी रखें कि 2015 का जनादेश राजद के लिए था क्योंकि इसे अधिक सीटें मिली थीं लेकिन सच्चाई यह है कि इसने उन सीटों को कुछ हद तक नितीश कुमार के चेहरे के दम पर जीता था।
नितीश कुमार बिहार में तुरुप का इक्का हैं। उनकी लोकप्रियता, विशेष रूप से अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के बीच, उन्हें यादव-प्रभुत्व वाले राजद या ऊपरी जाति-प्रभुत्व वाली भाजपा के लिए जरूरी बनाता है।
राष्ट्रीय महागठबंधन
बिहार में राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन की सफलता के बाद दूसरे दलों को भी प्रेरणा मिली थी। विपक्षी दलों में, भाजपा के खिलाफ दौड़ में रहने के लिए केवल एक विपक्षी उम्मीदवार होने की जरूरत पर सर्वसम्मति है। विपक्षी एकता की सूची में अधिकतम दल होने चाहिए।
इसी वजह से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में एक असम्भाव्य चुनाव पूर्व गठबंधन में एक साथ आये हैं। यहाँ तक कि यदि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन भाजपा को सामान्य झटका भी देता है तो मोदी की पार्टी बड़ी संख्या में सीटें खो सकती है।
लेकिन उत्तर प्रदेश पर्याप्त नहीं होगा। उत्तर प्रदेश की क्षति भाजपा को एकल पार्टी बहुमत से गठबंधन सरकार तक ही नीचे उतार सकती है।
यदि जदयू, राजद और कांग्रेस बिहार में अपने महागठबंधन में वापस लौटते हैं तो वे बिहार में एनडीए को 2014 में 31 सीटों की तुलना में 10 सीटों तक सीमित कर सकते हैं।
दूसरे शब्दों में, यदि नितीश कुमार और लालू यादव दोस्ती का हाथ वापस बढ़ाते हैं तो वे एनडीए को 20 और सीटों का नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह भाजपा को गठबंधन सरकार भी बनाने से रोकने में महत्वपूर्ण हो सकता है।
यदि विपक्ष 2019 में अखिल भारतीय रणनीति की संधि के बारे में गंभीर है तो यह बिहार को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है। और यदि बिहार में भाजपा को रोकना है तो यह नितीश कुमार को साथ लिए बिना नहीं किया जा सकता है।
Read in English: Opposition may not trust Nitish Kumar, but it needs to use him anyway