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Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतओवैसी पर गोलियां चलने पर विपक्षी चुप हैं, उनका यह सोचना गलत है कि इससे हिंदू भड़क जाएंगे

ओवैसी पर गोलियां चलने पर विपक्षी चुप हैं, उनका यह सोचना गलत है कि इससे हिंदू भड़क जाएंगे

विपक्षी नेताओं ने कुछ पूर्वाग्रह पाल रखे हैं कि अगर वे मुसलमानों से संबंधित मसलों को उठाएंगे तो हिंदू समुदाय किस तरह प्रतिक्रिया करेगा. वे यह नहीं समझ पाते कि अधिकांश हिंदू इतने समझदार और उदार जरूर हैं कि वे ओवैसी के भड़काऊ बयानों को हंसी में उड़ा दें.

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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी की जान लेने के लिए की गई गोलीबारी पर कुछ प्रमुख नेताओं की चुप्पी कान फाड़ने वाली है. उनकी जान बच गई मगर पिछले बृहस्पतिवार को मेरठ के पास दो लोगों द्वारा चलाई गई गोलियों ने उनकी कार में सुराख कर दिए.

यही घटना किसी और सांसद, या लोकसभा तथा कम-से-कम तीन विधानसभाओं में अपनी मौजूदगी जताने वाली किसी और पार्टी के अध्यक्ष के साथ घटी होती तब जरा कल्पना कीजिए की क्या हंगामा मचता. यह बात तो समझ में आती है कि भाजपा इस गोलीबारी पर शोर नहीं मचाने वाली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वे किसी सांसद पर हुए घातक हमले की निंदा करेंगे, खासकर ओवैसी के साथ घटने वाली घटना की.

इस घटना पर भाजपा के जिस एकमात्र महत्वपूर्ण नेता ने प्रतिक्रिया दी वह हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. उन्होंने इसे ‘अस्वीकार्य’ कहा. लेकिन इसी के साथ उन्होंने राजनीतिक दलों के नेताओं से किसी समुदाय की भावनाओं को आहत करने वाले भाषण न देने की अपील की. घटना के एक दिन बाद योगी की प्रतिक्रिया को स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता. उन्होंने इस घटना पर ‘न्यूज़18’ के सवाल पर यह प्रतिक्रिया दी थी.

उम्मीद है कि इस घटना पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सोमवार को संसद में बयान देंगे.


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विपक्षी नेताओं की चुप्पी

लेकिन सबसे आश्चर्यजनक है विपक्षी नेताओं की उदासीनता. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और तेलंगाना राष्ट्र समिति के के.टी. रामराव तथा तेलंगाना के कुछ स्थानीय कांग्रेस नेताओं को छोड़ किसी बड़े विपक्षी नेता ने ओवैसी पर हुए हमले की निंदा नहीं की— न गांधी परिवार ने, न ममता बनर्जी, जगन मोहन रेड्डी, अरविंद केजरीवाल ने, और न ही किसी और मुख्यमंत्री या किसी पार्टी अध्यक्ष ने. यह तब है जब इस घटना ने उन्हें भाजपा पर हमला करने का अच्छा हथियार थमाया. यह घटना भाजपा शासित राज्य में हुई, जिसके मुख्यमंत्री को पार्टी के चुनाव प्रचार गीत में बंदूक थामे दिखाया गया है. और तो और, हमलावर खुद को भाजपा का सदस्य बता रहा है, उसने अपनी सदस्यता संख्या के साथ-साथ बड़े भाजपा नेताओं के संग खिंचाई गई अपनी फोटो भी दिखाई.

आखिर ये विपक्षी नेता हिचक क्यों रहे हैं? इसकी तीन वजहें समझ में आती हैं.

पहली यह कि उन्हें यह घटना ध्यान देने लायक नहीं लगती. गोलियां कार में लगीं, ओवैसी को कुछ नहीं हुआ. लेकिन यह वजह दमदार नहीं लगती. किसी महत्वपूर्ण नेता पर हमला एक गंभीर मामला है, लेकिन अपने परिवार के बलिदानों की बातें करने वाले विपक्षी नेताओं को यह बहुत गंभीर नहीं लगता.

दूसरी वजह यह हो सकती है कि विपक्षी नेता जो शोर मचाते हैं उस पर विश्वास भी रखते हैं कि वे ओवैसी को भाजपा की ‘बी टीम’ मानते हैं जो उनके मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव पैदा कर रही है. बेशक, उनकी यह सोच गलत है. पिछले छह साल में एआईएमआईएम के नेताओं ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा उनके नतीजों का ‘दप्रिंट’ ने जो विश्लेषण किया उससे जाहिर होता है कि इस पार्टी ने तथाकथित सेकुलर दलों की तकदीर को शायद ही प्रभावित किया.

लेकिन ये तथ्य विपक्षी नेताओं के लिए महत्व नहीं रखते. वे यह तो चाहते हैं कि ओवैसी उनके ‘सेकुलर’ लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करें लेकिन वे ओवैसी के साथ रोटी की भागीदारी नहीं करना चाहते. वे तो बस यह चाहते हैं कि ओवैसी उनकी मुरादों की खातिर खुद को बलि चढ़ा दें. ओवैसी यह करने को राजी नहीं हैं, और यह बात ‘सेकुलर’ नेताओं को गवारा नहीं है. एआईएमआईएम के एक नेता ने एक बार मुझसे तल्खी के साथ कहा था— ‘वे (सेकुलर पार्टियां) हमारा इस्तेमाल… की तरह करना चाहती हैं. उनसे हम रात के अंधेरे में मिलें लेकिन दिन में उनके आसपास भी न दिखें.’ आप समझ गए होंगे कि ये पार्टियां उनके साथ क्या सलूक करती हैं.

विपक्षी नेताओं की चुप्पी की तीसरी वजह उनका सियासी गणित और मजबूरियां भी हो सकती हैं. अगर वे ओवैसी पर हमले को मुद्दा बनाते हैं तो आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने में मदद मिल सकती है. इस तर्क के पीछे उनकी यह मान्यता है कि ओवैसी ऐसी शख्सियत हैं कि उनका समर्थन करने से उनके अपने हिंदू वोट उनसे छिटक सकते हैं.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी को गुन्टूर में विवादास्पद जिन्ना टावर पर तिरंगा फहराने के लिए अपने गृहमंत्री एम. सुचरिता को भेजने में कोई दिक्कत नहीं हुई. इससे हिंदू वाहिनी नमक संगठन को वैधता मिली हो तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. राहुल गांधी हरिद्वार की हर की पैड़ी में ‘गंगा आरती’ कर सकते हैं, भले ही वे कर्नाटक में हिजाब को लेकर उभरे विवाद पर बयान देने के लिए ‘मां सरस्वती’ का नाम भी ले सकते हैं.

उदार हैं हिंदू

विपक्षी नेताओं ने कुछ पूर्वाग्रह पाल रखे हैं कि अगर वे मुसलमानों से संबंधित मसलों को उठाएंगे तो हिंदू समुदाय किस तरह प्रतिक्रिया करेगा. वे यह तथ्य नहीं समझ पाते कि हिंदू लोग ओवैसी के विचारों से सहमत हों या न हों, लेकिन अधिकांश हिंदू इतने समझदार और उदार जरूर हैं कि वे ओवैसी के भड़काऊ बयानों को हंसी में उड़ा दें. वे जानते हैं कि ओवैसी भी मोदी, राहुल, ममता आदि की तरह अपने समर्थकों को ध्यान में रखकर बातें करते हैं और अपनी सियासत कर रहे हैं.

लेकिन ये विपक्षी नेता ओवैसी पर जान लेने के इरादे से किए गए हमले की निंदा करने के राजनीतिक नतीजों को लेकर चिंतित नज़र आते हैं. लेकिन ऐसा कोई नतीजा होता नहीं. वे चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के, जो खुद को नेताओं का राजनीतिक सहायक कहा जाना पसंद करते हैं, इस बयान को पढ़ लें तो बेहतर, जो उन्होंने ‘दप्रिंट’ के ‘ऑफ द कफ़’ के कार्यक्रम में दिया था— ‘सबसे ज्यादा ध्रुवीकृत चुनाव में भी भाजपा को 50-55 फीसदी वोट से ज्यादा नहीं मिले हैं.’
लोकसभा चुनाव 2019 में जब मोदी अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे तब भी करीब आधे हिंदुओं ने भाजपा को वोट नहीं दिया था (उसे कुल 80 फीसदी हिंदू आबादी में से केवल 37 फीसदी के वोट ही मिले थे). भाजपा को वोट देने वाले हिंदुओं में से 50-55 प्रतिशत हिंदू भी जरूरी नहीं कि उग्र हिंदुत्ववाद के लिए उसे वोट देते हों. उनमें से अधिकतर के लिए मोदी, उनकी शख्सियत, ईमानदारी, विकास का एजेंडा, राष्ट्रवाद, और बेशक उनकी हिंदू पहचान ही महत्व रखता है.

‘अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण’ के आरोप का जवाब देने के लिए गंगा आरती, चंडीपाठ, हनुमान चालीसा पाठ आदि को ‘स्मार्ट’ सियासत कहा जाता है. ‘मैं भी हिंदू’ का नारा भी चलेगा. लेकिन ध्रुवीकरण के डर से ओवैसी के ऊपर हमले की निंदा करने या उन्हें शुभकामनाएं देने से परहेज करना, एक तेज-तर्रार मुस्लिम नेता के समर्थक के रूप में देखे जाने से कतराना उनमें गहरी असुरक्षा भावना और कमजोरी को उजागर करता है. जरूरत इस बात की है कि विपक्षी नेता हिंदुओं तथा हिंदू धर्म को कुछ बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करें.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. विचार निजी हैं.)


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