scorecardresearch
मंगलवार, 3 जून, 2025
होममत-विमतऑपरेशन सिंदूर प्रधानमंत्री मोदी की जीत थी, लेकिन उनकी पार्टी के नेता ही इसे कमज़ोर बना रहे हैं

ऑपरेशन सिंदूर प्रधानमंत्री मोदी की जीत थी, लेकिन उनकी पार्टी के नेता ही इसे कमज़ोर बना रहे हैं

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पीएम मोदी ने फिर से अपनी ताकत दिखा दी है, लेकिन एक बात का अफसोस उन्हें जरूर होगा – उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेताओं को हमारी सेना का अपमान करने दिया. क्या राजनीति इतनी ज़रूरी थी?

Text Size:

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ज़ाहिर तौर पर तब नाराज़ दिखे जब उन्हें पता चला कि ऑपरेशन सिंदूर की पहली रात कुछ भारतीय फाइटर जेट पाकिस्तानियों ने गिरा दिए थे. वह चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान के हालिया बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे थे, जिसमें उन्होंने इस संघर्ष के दौरान भारत के एयरक्राफ्ट नुकसान की बात मानी थी. खरगे ने नरेंद्र मोदी सरकार पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की, यह कहते हुए कि 140 करोड़ “देशभक्त भारतीयों” को “कुछ बेहद अहम सवालों” के जवाब मिलना चाहिए.

सीडीएस का यह स्वीकारना कोई जुबान फिसलना नहीं था. उन्हें इस सवाल की उम्मीद रही होगी. उन्होंने पारदर्शिता चुनी, जबकि पाकिस्तानियों ने अपनी हार को ‘सेलिब्रेट’ करके अपनी घायल प्रतिष्ठा को शांत करने की कोशिश की.

खरगे और उनके पार्टी सहयोगियों को सीडीएस की बात ध्यान से सुननी चाहिए: “अच्छी बात यह है कि हम अपनी टैक्टिकल गलती को समझ पाए, उसे सुधारा और दो दिन बाद उसे फिर से लागू किया और अपने सभी जेट्स उड़ाए और लंबी दूरी को टारगेट किया.”

जैसा कि सीडीएस ने कहा, हां, एक “टैक्टिकल गलती” हुई और कुछ नुकसान भी हुआ, लेकिन युद्धों में ऐसा होना सामान्य है. जो मायने रखता है वह यह है कि हमारी वायु सेना ने कितनी जल्दी उसे सुधारा और सिर्फ 48 घंटों में पलटवार किया. उन्होंने पाकिस्तान के एयरबेसों पर जबरदस्त हमला किया, जिससे वह काम नहीं कर सके और पाकिस्तान की सेना को सीज़फायर की मांग करनी पड़ी.

तो खरगे किस बात से नाराज़ हैं? इस बात से कि सरकार ने खबर नहीं बताई और देश को गुमराह किया? पर सरकार संघर्ष के दौरान ऑपरेशनल जानकारी तो नहीं दे सकती थी. कुछ हमारे एयरक्राफ्ट गिरे हो सकते हैं, लेकिन हमारे पायलटों को कुछ नहीं हुआ. 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए कुछ मिलियन डॉलर के सैन्य हार्डवेयर का नुकसान कोई बड़ी बात नहीं है. सड़कों पर लोगों से बात कीजिए, उन्हें तो यही याद रहेगा कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को झुका दिया.

अगर यही ‘महत्वपूर्ण सवाल’ कांग्रेस विशेष सत्र में उठाना चाहती है, तो इससे मोदी सरकार को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. अब तक विपक्षी नेताओं के बयानों से लगता है कि वह अगला सवाल यह पूछ सकते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप ने सीजफायर में ‘मध्यस्थता’ की या ‘दबाव’ डाला. उनका मकसद मोदी की विश्वगुरु वाली छवि पर चोट करना है. वह यह दिखाना चाहते हैं कि मोदी का विदेशी नेताओं से गले मिलना महज़ घरेलू दर्शकों के लिए है, जबकि असल में ट्रंप जैसे नेता उन्हें गंभीरता से नहीं लेते.

पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने रविवार को इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने कॉलम में कांग्रेस का हमला कुछ इस तरह पेश किया: “दोस्ती के बावजूद, अमेरिका ने भारतीय ‘अवैध’ प्रवासियों को हथकड़ियों और बेड़ियों में डिपोर्ट किया. प्रधानमंत्री ने एक शब्द भी नहीं कहा…भारत से आयात पर भारी टैरिफ लगाया गया; एक शब्द नहीं. अमेरिका ने पाकिस्तान को आईएमएफ का लोन दिलाने में समर्थन किया; एक शब्द नहीं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों को रोका गया; एक शब्द नहीं. भारतीय छात्रों के वीज़ा रद्द होने का खतरा है; एक शब्द नहीं. स्टूडेंट वीज़ा इंटरव्यू बंद हो गए; एक शब्द नहीं. इस दोस्ती की धज्जियां उड़ चुकी हैं.”

असल में, कांग्रेस नेताओं का कहना है कि विश्वगुरु वाला दावा खोखला है. हां, इनमें से कुछ हमले मोदी को थोड़ा चुभ सकते हैं, लेकिन भारत के लोगों को अब ट्रंप के बारे में भी अच्छी समझ है. रेज नाम की किताब में, बॉब वुडवर्ड ने ट्रंप के दामाद जेरेड कुशनर के हवाले से लिखा है कि ट्रंप को समझने का एक अच्छा तरीका है — ऐलिस इन वंडरलैंड का चेशायर कैट. “अगर आपको नहीं पता कि आप कहां जा रहे हैं, तो कोई भी रास्ता वहां पहुंचा देगा.”

सैन्य जीत मायने रखती है

मोदी अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जिन्हें ट्रंप ने चौंकाया हो. इसलिए भले ही कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका के राष्ट्रपति से “दोस्ती” की याद दिलाकर थोड़ा मज़ाक उड़ा ले, लेकिन यह वह बात नहीं है जिससे मोदी की नींद उड़ जाए. एक व्यापार समझौता यहां, एक सुकूनभरी नींद वहां—ट्रंप जल्द ही मोदी को फिर से गले लगा सकते हैं.

विपक्ष शायद ‘अंतर्राष्ट्रीय अलगाव’ का मुद्दा उठाए — जैसे पाकिस्तान को मिला आईएमएफ का बेलआउट पैकेज और पहलगाम आतंकी हमले पर दुनिया की खामोशी, लेकिन ये ऐसे मुद्दे हैं जो आमतौर पर कुलीन वर्ग की बहसों में उठते हैं. बीजेपी को पता है कि आम भारतीयों के लिए पाकिस्तान की धरती पर आतंकी ठिकानों और सैन्य ठिकानों पर गिरते भारतीय मिसाइलों के दृश्य ही काफी हैं जिससे मोदी की लोकप्रियता फिर से बढ़ जाती है. उनके लिए मोदी ने एक बार फिर पाकिस्तान को हरा दिया और बस यही मायने रखता है.

तो मोदी को विपक्ष की चिंता नहीं है, जब वह देश के हर कोने में रोड शो और रैलियों में लोगों को बताते हैं कि उनका प्रधानमंत्री कितना साहसी और निर्णायक है. वह खुद को या अपनी सरकार को ऑपरेशन सिंदूर पर संसद के किसी विशेष सत्र में सवालों के घेरे में नहीं आने देंगे.

लेकिन वह ये देखकर जरूर मज़ा लेंगे कि कांग्रेस पार्टी विदेश से लौटे शशि थरूर और सलमान खुर्शीद से कैसे निपटती है. कांग्रेस उनके साथ क्या करेगी, जब उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर और अनुच्छेद 370 पर सरकार के रुख का समर्थन किया है?

मोदी की चिंताएं

प्रधानमंत्री को जो बात सबसे ज्यादा परेशान करनी चाहिए वह है उनकी अपनी — भारतीय जनता पार्टी. उनके साथियों ने ही जीत की खुशी पर पानी फेर दिया. सबसे पहले, मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की, उन्हें पहलगाम के आतंकवादियों की बहन कह दिया. फिर, मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने सेना का अपमान करते हुए कहा कि देश की सेना प्रधानमंत्री के चरणों में नतमस्तक है.

हरियाणा से बीजेपी के राज्यसभा सांसद राम चंदर जांगड़ा ने कहा कि पहलगाम में मारे गए पर्यटक हाथ जोड़कर मरे क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री की अग्निपथ योजना में ट्रेनिंग नहीं ली थी. उन्होंने पीड़ितों की विधवाओं पर भी तंज कसा कि वह बहादुरी नहीं दिखा पाईं.

उधमपुर ईस्ट से बीजेपी विधायक आरएस पाठानिया ने उधमपुर एयरबेस के वायुसेना कर्मियों को “नालायक” कहा और कहा कि वह ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सो रहे थे.

सबसे शर्मनाक बात यह रही कि राष्ट्रीय स्तर की बीजेपी और उसके शीर्ष नेताओं ने इन नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई करना ज़रूरी नहीं समझा — या फिर सेना और पहलगाम हमले के पीड़ितों के खिलाफ दिए गए इन अपमानजनक बयानों की निंदा तक नहीं की. दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी, जिसे नरेंद्र मोदी जैसे ताकतवर नेता चला रहे हैं, आखिर इन बड़बोले नेताओं को सज़ा क्यों नहीं दे पाई? शायद ये नेता पार्टी के लिए राजनीतिक रूप से ज़रूरी हैं, जिन्हें नाराज़ नहीं किया जा सकता. या फिर बीजेपी को लगता है कि जनता तो वैसे भी नरेंद्र मोदी को वोट देगी.

समस्या यह है कि जब लोग मोदी को यह कहते हुए सुनते हैं कि भारत ने पाकिस्तान को हराया और पहलगाम का बदला लिया, तो उनके मन में शाह, देवड़ा, जांगड़ा और पाठानिया की बातें भी गूंजती हैं और क्योंकि बीजेपी ने इन नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, इसलिए ऐसी और आवाज़ें भी उठेंगी.

प्रधानमंत्री मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपनी खोई रफ्तार फिर से हासिल कर ली है. जब मोदी, मोदी के बारे में बोलते हैं, तो हमें पता चलता है कि वह आत्मविश्वास में हैं. उनके पास अपने निर्णायक और साहसी नेतृत्व पर गर्व करने का पूरा कारण है. शायद उन्हें बस एक बात का अफसोस रहेगा — कि उन्होंने क्यों अपने पार्टी साथियों को सेना का अपमान करने की खुली छूट दी. क्या राजनीति इतनी ज़रूरी थी? यह सवाल उन्हें हमेशा परेशान करता रहेगा.

डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: मोदी-शाह 2024 में योगी के साथ वैसा क्यों नहीं कर सकते जैसा वाजपेयी ने 1999 में कल्याण सिंह के साथ किया था

share & View comments