मोहम्मद अली जिन्ना के जीवन में सिर्फ तीन महिलाएं नजर आती हैं. उनकी पत्नी रत्नाबाई, पुत्री दीना वाडिया और बहन फातिमा जिन्ना. उनके अपनी पत्नी और पुत्री से कभी नहीं बनी. वे उनकी अनदेखी करते रहे. जिन्ना के पास अपनी पत्नी और पुत्री के लिए कभी वक्त नहीं था. हां,बहन उनके साथ हमेशा रहीं.
जिन्ना की साल 1892 में 15 साल की उम्र में पहली शादी इमीबाई से हुई थी. उस समय इमीबाई की उम्र 14 साल की थी. शादी के एक साल बाद तक जिन्ना अपनी पढ़ाई करने विलायत चले गए. इस बीच, इमीबाई का निधन हो गया. वह एक तरह से बाल –विवाह था.
बहरहाल, जिन्ना की पत्नी रत्नबाई उनके एक दोस्त की पुत्री थीं. दोनों की उम्र में लगभग बीस-बाइस सालों का अंतर था. वे वर्ष 1916 में अपने मित्र दिनशॉ पेतित से मिलने दार्जिलिंग गए. उधर जिन्ना की मुलाकात दिनशॉ की 16 साल की बेटी रत्नबाई से हुई. 40 साल पार कर चुके जिन्ना रत्नबाई की खूबसूरती के दीवाने हो गए. वे भूल गए कि वह लड़की उनसे बहुत छोटी है और उनके मित्र की पुत्री है. वे नैतिकता की सारी मर्यादाओं तोड़ते हुए उसके इशक में पागल हो गए. दार्जिलिंग में ही, उन्होंने उसके साथ कुछ दिन वक्त गुजारा. वे जितना रत्नबाई के साथ रहते, वे उसके हुस्न के उतने ही बड़े कद्रदान होते जाते. इस बीच, वह भी जिन्ना से प्रभावित हो गई. एक दिन रत्नबाई के पिता का अच्छा मूड देखकर जिन्ना ने उनसे अपनी पुत्री का विवाह उनसे करने के लिए कहा.
कहते हैं कि ये सुनते ही रती के पिता भड़क गए. वे जिन्ना को पीट देते, पर लिहाज कर गए दोस्ती का. उन्हें तुरंत घर से बाहर जाने को कहा. इस घटना के बाद दिनशॉ ने रती पर जिन्ना से कभी भी मिलने पर रोक लगा दी. लेकिन 20 फ़रवरी, 1918 को जब रत्नबाई 18 साल की हुईं तो उन्होंने एक छाते और एक जोड़ी कपड़े के साथ अपने पिता का मुंबई का घर छोड़ दिया. दोनों ने इस्लामी तरीके से विवाह कर लिया. लेकिन उसी रतनबाई से विवाह करने के बाद जिन्ना ने उसे कभी पूछा नहीं. उनका रतनबाई को लेकर प्रेम ना होकर वासना भर था. जिस कन्या ने उनके लिए सब कुछ त्यागा था, उसके लिए जिन्ना के पास वक्त नहीं था. एकाकी जीवन से दुखी रहने के कारण वो बीमार रहने लगी और उसका 20 फरवरी, 1929 को मुंबई में निधन हो गया. वो तब सिर्फ 29 साल की थी. यानी भरी जवानी में रती ने संसार को छोड़ दिया. उसे बंबई में दफन किया गया. जिन्ना दफन करने के बाद कभी उसकी कब्र पर नहीं गए.
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वकालत और राजनीति में व्यस्त जिन्ना
जब रतनबाई का निधन हुआ तब तक जिन्ना और रतनबाई की बेटी दीना बड़ी हो रही थी. जिन्ना के लिए उसके लिए भी कोई वक्त नहीं था. वो राजनीति और वकालत में बिजी रहते थे. दीना ने अपनी मां को दुखी होते हुए संसार से जाते हुए देखा था हालांकि वो तब तक बहुत छोटी थी. पर बचपन की स्मृतियां उससे कभी ओझल नहीं हुई थीं. उसे पता था कि उसके पिता ने उसकी मां का भरपूर अनादर किया. वो बड़ी हुई तो वो भी पिता के व्यवहार से नाखुश रहने लगी. पर जिन्ना को तो मानो इसकी कोई परवाह ही नहीं थी.
इस बीच दीना की बंबई के नेविल वाडिया से दोस्ती हो गई. वो दीना के सुख-दुख सुनने लगा. दोनों मुंबई के एक एलिट सर्किल में मिलते-जुलते थे. दोनों ने विवाह का फैसला किया. दीना ने अपने भावी पति के संबंध में पिता जिन्ना को बताया. जिन्ना आग बबूला हो गए. कहने लगे कि, ‘तुम्हें कोई पैसे वाला मुसलमान नहीं मिला.’ वो इस विवाह के लिए तैयार नहीं थे. हालांकि उन्होंने खुद एक पारसी से शादी की थी. पर अब पुत्री के मामले में वे बिदक रहे थे. उनकी शख्सियत के दोहरे मापदंड सामने आ रहे थे.
दीना भी जिद्दी थी. उसने नेविल से ही विवाह किया. अपनी पुत्री के किसी पारसी से शादी करने से जिन्ना पागल हो गये. उन्होंने दीना से संबंध तोड़ लिए. दीना ने इसकी परवाह नहीं की कि उसके पिता उनसे खफा है. जब देश का बंटवारा हुआ तो दीना अपने पति के साथ बंबई में ही रह रही थी.
कहते हैं कि 7 अगस्त,1947 के पहले हफ्ते में मुंबई जाने से पहले उन्होंने दीना को पाकिस्तान चलने के लिए कहा था. दीना ने इस प्रस्ताव का सिरे से खारिज कर दिया था. वो सारी जिंदगी मुंबई में ही रहीं एक भारतीय नागरिक की तरह. उनका 2017 में न्यूयार्क में निधन हो गया था. दीना के पुत्र नुस्ली वाडिया बाम्बे डाइंग उद्योग समूह के चेयरमेन हैं. उनका छोटा बेटा इंडिगो एयरलाइन चलाता है,जबकि बड़ा बेटा आईपीएल की टीम किंग्स इलेवन पंजाब का मालिक भी है.
इस बीच,ये बात समझ से परे है कि फातिमा ने बड़े भाई जिन्ना के लिए सब कुछ क्यों त्याग दिया. फातिमा डेंटल सर्जन थीं. वो जिन्ना के साए की तरह से रहीं. वो रतनबाई के निधन के बाद अपने भाई के घर में ही रहने लगी थीं. दोनों का साथ तब छूटा जब 11 सितंबर 1948 को मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हो गई. जिन्ना की मौत के बाद उन्हें सियासत से दूर रखने की भरपूर कोशिश की गई. पर यह नहीं हुआ. फातिमा जिन्ना अयूब खान के खिलाफ 1965 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ीं और हार गईं. आरोप लगते हैं कि फातिमा जिन्ना का 30 जुलाई 1967 को कत्ल कर दिया गया था.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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