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Saturday, 21 December, 2024
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लालू सिर्फ बीजेपी नहीं, अपने लोगों की वजह से भी जेल में हैं!

यह महत्वपूर्ण है कि लालू यादव पर चार्जशीट उस सरकार के कार्यकाल में हुई, जिसमें वे खुद हिस्सेदार थे. संघ की मंशा को अंजाम तक लालू के अपने लोगों ने पहुंचाया.

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लालू यादव को चारा घोटाले के एक मामले में जमानत मिल गई है. लेकिन तीन और मामलों में उन पर सजाएं चल रही हैं. इसलिए, एक केस में जमानत मिलने के बावजूद उन्हें जेल में ही रहना होगा. लालू यादव आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट से बेदाग बरी हो चुके हैं. यानी उन पर रिश्वत खाने का आरोप नहीं है. जो मुकदमे हैं, वे आपराधिक षड्यंत्र के हैं, क्योंकि जिस दौरान चारा घोटाला चल रहा था और सरकारी खजाने से गलत तरीके से रुपए निकाले जा रहे थे, तब वे मुख्यमंत्री थे और अभियोजन पक्ष ने निचली अदालत में साबित कर दिया है कि लालू इस षड्यंत्र में शामिल थे. ये भारतीय राजनीति पर एक कड़वी टिप्पणी है कि राजनेता लालू यादव जेल में हैं और आतंकवाद के आरोप में जमानत पर रिहा प्रज्ञा ठाकुर संसद में हैं.

सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया है कि चारा घोटाले में हर ट्रेजरी से रुपए निकाले जाने के केस अलग-अलग हैं और हर केस में अलग मुकदमा चलेगा. यानी लालू यादव के खिलाफ अभी कई फैसले और आने हैं. हालांकि, इससे पहले पटना हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि एक ही अपराध के लिए किसी के खिलाफ दो या अधिक बार मुकदमा नहीं चल सकता. खैर, अदालती फैसलों पर कोई टिप्पणी किए बगैर, अगर इस केस को राजनीतिक नजरिए से देखा जाए, तो कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं.


यह भी पढ़ें : जेल में बंद लालू यादव क्या 2019 में होंगे सत्ता के किंगमेकर?


लालू यादव को अपनों ने फंसाया

दरअसल, लालू यादव को संघ विरोध के साथ, बड़बोलेपन और दुश्मन बना लेने की आदत की भी कीमत चुकानी पड़ी है. लालू यादव एक दौर में बिहार में पिछड़ों के मसीहा बन गए थे. देश में सेकुलर राजनीति के वे सबसे चमकते प्रतीक थे, जो शायद वे आज भी हैं. आडवाणी की राम रथ यात्रा को रोककर उन्होंने ये तमगा हासिल किया था. इसके अलावा उनके शासनकाल में बिहार लगभग पूरी तरह दंगा मुक्त भी रहा. यह तथ्य उनके राजनीतिक विरोधियों ही नहीं, प्रतिद्वंद्वियों के गले से नीचे नहीं उतर रहा था.

उनके विरोधियों में न सिर्फ संघ परिवार के लोग थे. बल्कि अपने भी थे. बिहार में संघ परिवार के लिए लालू प्रसाद यादव एक दौर में गले की हड्डी बन गए थे. उत्तर भारत की हिंदी पट्टी का ये अकेला राज्य है, जहां आज तक बीजेपी की अपनी सरकार नहीं बन पाई है. लालू से निपटने के लिए संघ ने अपना आजमाया हुआ तरीका अपनाया. किसी नेता, राजनेता की लोकप्रियता को ध्वस्त करने का सबसे मजबूत हथियार चरित्र हनन होता है. संघ परिवार ने इस हथियार का इस्तेमाल महात्मा गांधी से लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू तक के खिलाफ किया है.

देवगौड़ा ने लिया लालू यादव से बदला

बिहार में लालू यादव की बढ़ती राजनैतिक ताकत के चलते लालू यादव भी संघ के निशाने पर थे. बिहार भाजपा के नेताओं ने लालू यादव को चारा घोटाले में फंसाने के लिए हर हथकंडा इस्तेमाल किया. इसमें मददगार हुए लालू यादव की अपनी पार्टी के लोग. एचडी देवगौड़ा जिस जनता दल में रहते हुए प्रधानमंत्री बने, उसके अध्यक्ष लालू यादव ही थे. लालू यादव ने एक बार किसी बैठक में देवगौड़ा का अपमान कर दिया था. देवगौड़ा ये भी जानते थे कि लालू यादव की चमक के सामने उनका आभामंडल निखर नहीं रहा है. देवगौड़ा ने अपने चहेते अफसर और पूर्व सीबीआई प्रमुख जोगिंदर सिंह के जरिए लालू यादव से बदला ले लिया. संघ जो चाहता था, वह देवगौड़ा ने जाने-अनजाने कर ही दिया. इसकी पृष्ठभूमि पर नजर डालनी चाहिए.

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित लालू यादव पर लिखी पुस्तक (लेखक- अंबरीश कुमार) में इसका ब्यौरा दिया है. तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 11 अप्रैल 1997 को लोकसभा में विश्वास मत पर हुई बहस का जवाब देते हुए कहा- ‘मैंने पिछले दस महीनों में किसी भी नेता के खिलाफ सीबीआई को कोई आदेश नहीं दिया. लेकिन किसी नेता के खिलाफ चल रही जांच में किसी तरह का दखल भी नहीं दिया और तो और एक मामले हमारे एक मुख्यमंत्री भी शामिल थे.’ बाद में 23 अप्रैल 1997 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के विश्वास मत प्रस्ताव पर बोलते हुए भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने पूछा ‘वह मुख्यमंत्री कौन हैं?’ वाजपेयी ने यह भी कहा कि 30 मार्च को देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस लेने के रहस्य से भी अभी पर्दा नहीं उठा है. वाजपेयी ने शरद यादव की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘आप तो जानते ही होंगे कि वह मुख्यमंत्री कौन है.’ वाजपेयी के जवाब में शरद यादव ने जो सफाई दी, उससे सभी समझ गए कि वे लालू यादव हैं. दरअसल, लालू यादव और देवगौड़ा में खींचतान पहले से ही चल रही थी. जनता दल टूटने के बाद दूसरे धड़े के अध्यक्ष शरद यादव ही बने.

सीबीआई प्रमुख जोगिंदर सिंह बने माध्यम

राजनीतिक हलके में ऐसी चर्चा थी कि किसी काम के लिए लालू यादव प्रधानमंत्री देवगौड़ा के पास गए, पर देवेगौड़ा ने वह काम नहीं किया. नाराज लालू ने उन्हें काफी खरी-खोटी सुना दी. बाद में जनता दल की एक बैठक में फिर लालू और देवगौड़ा के बीच तकरार हुई. लालू ने देवगौड़ा को किसी बात पर झिड़क दिया था. लालू इसके लिए मशहूर भी थे. वे गुजराल से लेकर दंडवते तक को वे अपमानित कर चुके थे. देवगौड़ा लालू से नाराज हो गए. देवगौड़ा ने कर्नाटक कैडर के आईपीएस जोगिंदर सिंह को सीबीआई का मुखिया बना दिया था. जोगिंदर सिंह को लेकर लालू यादव आशंकित भी थे. इसी वजह से वे देवगौड़ा के खिलाफ मोर्चा खोल चुके थे.

जानकारों के मुताबिक देवगौड़ा को उनके कुछ सलाहकारों ने यह भी समझा दिया था कि लालू को रास्ते से किसी तरह भी हटाएं, वरना पिछड़ों की राजनीति करने वाला यह नेता उन्हें किनारे लगा देगा. लालू यादव का नाम उन दिनों प्रधानमंत्री पद के लिए चलता भी था, क्योंकि वे गठबंधन के सबसे बड़े दल के अध्यक्ष थे. सीबीआई मुखिया जोगिंदर सिंह ने इस मामले में देवगौड़ा की मदद की. लालू ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी की मदद से देवगौड़ा को हटवा कर इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री तो बनवा दिया पर सरदार जोगिंदर सिंह उनसे भी तेज निकले. उन्हें पता था लालू उन्हें सीबीआई मुखिया पद से हटवा देंगे. जब तक प्रधानमंत्री गुजराल सीबीआई प्रमुख जोगिंदर सिंह का तबादला करते, उससे पहले ही अचानक 27 अप्रैल 1997 को जोगिंदर सिंह ने लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले में चार्जशीट दाखिल करने की घोषणा कर दी. यह महत्वपूर्ण है कि लालू यादव पर चार्जशीट उस सरकार के कार्यकाल में हुई, जिसमें वे खुद हिस्सेदार थे.


यह भी पढ़ें : लालू यादव ने वंचित जनता को स्वर्ग नहीं, लेकिन स्वर ज़रूर दिया


सत्तारूढ़ दल के शीर्ष पर बैठे किसी नेता को इसकी खबर नहीं थी. लालू यादव सोच भी नहीं सकते थे कि गुजराल को प्रधानमंत्री बनवाने के बावजूद, वे इस तरह फंसा दिए जाएंगे. लालू यादव उस समय बिहार में सोनपुर के पास सबलपुर दियारा के एक छोटे से मंदिर में विष्णु यज्ञ करवा रहे थे, ताकि चारा घोटाले में विरोधी कामयाब न हो जाएं. पर विपत्ति तो उनके अपने ही लेकर आए थे. देवगौड़ा ने अपना हिसाब पूरा कर लिया. देवगौड़ा दरअसल मोहरा बने थे. कुछ नेताओं के, जिनमें संघ वाले भी शामिल माने जाते है. सीबीआई के राजनैतिक इस्तेमाल को लेकर सीबीआई के पूर्व मुखिया आलोक वर्मा ने सहयोगी राकेश अस्थाना के बारे में बहुत कुछ कहा था. ये वही अस्थाना हैं, जिन्होंने चारा घोटाले में लालू यादव से पूछताछ की थी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. जयप्रकाश नारायण की छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जुड़ाव रहा है.)

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं)

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1 टिप्पणी

  1. Why Print wire like anti national channel always after nationalist forces,they try to defame them and protect Muslim fundamentalist organisation, separatist,turkey gang and corrupted politicians,with an agenda to spread hatred against Hindus and nationalist forces
    We demand probe about their funding, management,link with enemies and agenda.

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