मालेगांव के एक दुकानदार ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के खिलाफ भोपाल से भाजपा की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मैदान में उतारने की ख़बर पर यह प्रतिक्रिया दी कि यह मालेगांव के लोगों पर एक और हमला है.
मालेगांव निवासी का कहना है कि यह हमारे जख्म पर नमक छिड़कने जैसा है.
प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी की घोषणा ने मालेगांव में लोगों की 29 सितंबर 2008 की भयानक यादों को वापस ताज़ा कर दिया है. 2008 में मालेगांव में बम विस्फोट हुआ था. प्रज्ञा ठाकुर इस केस में ट्रायल पर हैं.
ब्लास्ट और परिणाम
विस्फोट रात में लगभग 9.40 मिनट पर हुआ, जब लोग रमज़ान के महीने के दौरान सलात-उद-तरावीह (रमज़ान महीने में रात की विशेष नमाज़) खत्म करने वाले थे. तभी उन्हें विस्फोट की तेज़ आवाज़ आयी. पहले तो उन्हें लगा कि यह सिलेंडर ब्लास्ट हादसा हो सकता है. लेकिन जल्द ही यह सामने आया कि यह एक बम विस्फोट था.
ब्लास्ट की जगह अंजुमन चौक पर लेडीज़ फैशन मार्केट से कुछ मीटर की दूरी था. जहां महिलाओं और बच्चों की भारी भीड़ ईद उल-फितर की खरीदारी में व्यस्त थी. धमाके की जगह भिक्कू चौक के पास अव्यवस्थता थी. खून से लथपथ ब्लास्ट में पीड़ित सौ से अधिक लोगों को मौके पर जो भी मिला उससे अस्पतालों में पहुंचाया गया.
विस्फोट में छह लोगों की जान चली गई. उनमें से एक 5 वर्षीय फरहीन शेख थी. जो, कुछ स्नैक्स खरीदने के लिए निकली थी और अपनी दादी के साथ रमज़ान का खाना खाने के बाद घर वापस आ रही थी.
घायलों में शकील ट्रांसपोर्ट के अब्दुल्ला जमालुद्दीन अंसारी भी शामिल थे. प्रारंभिक जांच के दौरान, 75 वर्षीय अंसारी ने कहा था कि उसने एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल को देखा था, जिसे बाद में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के पास पाया गया था. जिसके, कारण उसकी गिरफ्तारी हुई थी. मोटरसाइकिल उस दिन दोपहर से उनके कार्यालय के सामने खड़ी थी. विस्फोट स्थल से पत्थर फेंकने की सूचना उन्होंने पुलिस चौकी को दी थी, लेकिन उनका दावा है कि कोई कार्रवाई नहीं की गई थी.
मालेगांव विस्फोट में एक फोटोकॉपी की दुकान के मालिक जावेद अंसारी भी घायल हो गए थे. उनको ठीक होने और फिर से काम शुरू करने के लिए तीन साल से अधिक का समय लगा. विस्फोट पीड़ितों का जीवन उस सितंबर की रात के बाद से कभी पहले जैसा नहीं नहीं रहा.
हालांकि, जावेद अंसारी और फरहीन शेख के परिवार ने विस्फोट के बाद इस इलाके को छोड़ दिया था. वहीं, शकील ट्रांसपोर्ट के अब्दुल्ला अंसारी का पिछले साल निधन हो गया. अंसारी अक्सर अपनी दुकान में दीवार घड़ी को देखते थे. विस्फोट के समय रात 9.37 पर घड़ी ने काम करना बंद कर दिया था और तब से अबतक उन्होंने न्याय का इंतज़ार किया.
कोई भी यह नहीं जानता कि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने और लोकसभा चुनाव लड़ने की खबरों पर उन्होंने क्या प्रतिक्रिया दी होती.
चौंकाने वाला नहीं है, बल्कि बहुत दर्दनाक है
साध्वी प्रज्ञा को चुनावी मैदान में उतारकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोगों को यह बताना चाहती है कि मालेगांव विस्फोट मामलों में गिरफ्तार किए गए अन्य अभियुक्तों को ‘मनगढ़ंत’ केस में फंसाया गया है और ‘भगवा आतंक’ एक मिथक है.
लेकिन ऐसा करते समय, भाजपा को यह ध्यान देना चाहिए था कि 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अभी भी एक महत्वपूर्ण अभियुक्त हैं. अदालत के पेपर्स के अनुसार, उनकी गिरफ्तारी का पहला सबूत एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल था जो उनके नाम पर पंजीकृत था और बम को प्लांट करने के लिए इस्तेमाल किया गया था. मामले में कुछ ऑडियो टेप और विज़ुअल भी मिले हैं. इन सबूतों के आधार पर, बॉम्बे ट्रायल कोर्ट के जज ने माना था कि विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की भूमिका स्थापित करने के लिए पर्याप्त आधार थे.
विडंबना यह है कि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को पार्टी के उम्मीदवार के रूप में नामांकित करने से पहले भाजपा इस बारे में नहीं सोचती है कि साध्वी प्रज्ञा को टिकट देने से दुनिया भर के नेताओं के बीच क्या संदेश जायेगा जबकि मोदी अक्सर उन्हीं नेताओं के बीच आतंकवाद का मुद्दा उठाते हैं.
मालेगांव के लोग इस मामले में कुछ अधिकारियों और सरकारी वकील रोहिणी सालियन पर दबाव की बात सुन रहे थे. उन लोगों ने अब न्याय पाने की उम्मीद खो दी है. मुंबई एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे जिन्होेंने मामले की जांच शुरु की थी, की पत्नी ने 26/11 के हमलों के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के मुआवज़े को ठुकरा दिया.
इस चुनाव में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मैदान में उतारने का भाजपा का निर्णय मालेगांव के अधिकांश लोगों के लिए न तो चौंकाने वाला है और न ही आश्चर्यजनक. लेकिन विस्फोट पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए यह दर्दनाक है.
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