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बुधवार, 23 अप्रैल, 2025
होममत-विमतएनआरसी से जीएसटी तक- कैसे मोदी और शाह ने लोगों को चिंता में उलझाए रखा और चुनाव जीतते रहे

एनआरसी से जीएसटी तक- कैसे मोदी और शाह ने लोगों को चिंता में उलझाए रखा और चुनाव जीतते रहे

आर्थिक मंदी और अलोकतांत्रिक लॉकडाउन के बावजूद नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की रेटिंग बढ़ती जा रही है.

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गृहमंत्री अमित शाह के संसद में कहने के बाद यह आधिकारिक हो गया है. नागरिकता रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी)- एक नागरिकता क्रूरता- असम में फिर से दोहराई जाएगी और इसे अब पूरे देश में आयोजित कराया जाएगा. इस अभ्यास के आभास ने एक बार फिर से सभी भारतीयों की चिंताओं का बढ़ा दिया है, जैसा कि असम में हुआ था. आग से एक बार और खेलने की कोशिश हो रही है.

लेकिन राजनीतिक सवाल यह है कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी भारतीयों को कैसे उलझन में रखते हैं और ये सुनिश्चित करते हैं कि मतदाता अभी भी चुनावों में उनके लिए मतदान करते रहें? नागरिकों को व्यस्त रखें, और सुनिश्चित करें कि रिपोर्ट कार्ड उन पर प्रतिबिंबित हो और न कि भाजपा सरकार पर.

चिंता बढ़ाने वाले समाधान

यह सब विमुद्रीकरण (नोटबंदी), फिर जीएसटी, ईडी छापे, एनआरसी, पाकिस्तान के डर, अनुच्छेद 370, एक नए बहुउद्देश्यीय डिजिटल आईडी कार्ड, फोन टैपिंग, व्हाट्सएप निगरानी और अयोध्या के फैसले से शुरू हुआ. इनमें से कई को बोल्ड और निर्णायक समाधान कहा गया है, मगर उनमें से सभी में कम से कम भारतीयों के एक बड़े वर्ग को बेचैनी है. लेकिन बीजेपी की जोड़ी (मोदी और शाह) ने साल दर साल लोकप्रियता के मामले में शीर्ष स्थान बनाए रखा है और कई राज्यों और लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की है.

जीएसटी एक बड़े धमाकेदार सुधार का हिस्सा था जिसके लिए भारत वर्षों से काम कर रहा था लेकिन दो साल से अधिक समय के बाद भी, कागजी कार्रवाई की जटिलताओं के चलते छोटे व्यवसाय बंद होने लगे.

नोटबंदी के लंबे, दर्दनाक दिनों के बाद, असम में एनआरसी द्वारा शुरू की गई कतारें और कागजी कार्रवाई आपको डच कलाकार एमसी एस्चर द्वारा ‘हाउस ऑफ सीढ़ियों’ नामक 1951 की प्रसिद्ध पेंटिंग की याद दिलाती है. लोग सीढ़ियों से एक क्लौस्ट्रफ़ोबिक भूलभुलैया पर चढ़ने में व्यस्त रहते हैं, जहां वो कहीं जाना चाहते हैं लेकिन असल में कहीं जा नहीं पा रहे हैं. हकीकत में भारत की वर्तमान स्थिति यही है.

हाउस ऑफ स्टेयर्स | कॉमन्स

यह सब गतिविधि और चिंता जो मोदी सरकार ने आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा भारत की रेटिंग के उन्नयन के बीच में आबादी के लिए बनाई है. यह वह समय है जब राजनेताओं को आबादी को नियंत्रित करना चाहिए, उन्हें आश्वस्त करना चाहिए, असुरक्षित नहीं. और यह वह समय भी है जब नागरिकों को उनकी नागरिकता, ईमानदारी और देशभक्ति को साबित करने के लिए मजबूर न करते हुए डिलीवरी पर सरकार से सवाल करना चाहिए.

लेकिन भारत से बाहर हुए हाउडी मोदी कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने देश से बाहर रह रहे लोगों को आश्वस्त किया कि यहां सब अच्छा है. ऑल इज़ वेल.


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तीन तरीकों ने मोदी के लिए काम किया है जिससे उन्होंने लोगों का विश्वास हासिल किया है. मुझे यह पहली बार पता चला जब मैं विमुद्रीकरण (नोटबंदी) पर रिपोर्ट कर रही थी और दूसरी बार इस साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान.

डिलीवरी से मोदी को अलग करना

लोगों के दिमाग में, मोदी और अब अमित शाह नौकरियों की डिलीवरी, आर्थिक विकास और कल्याण के सांसारिक मैट्रिक्स से ऊपर हैं. उन्होंने सबसे बुनियादी अपेक्षाओं में से एक को टाल दिया है, जो मतदाताओं को अपने नेताओं से होती है. मैंने 2016 में पहली बार विमुद्रीकरण के दौरान यह देखा. बहुत सारे ग्रामीणों ने कहा – हां, हमें नुकसान हुआ, लेकिन मोदी महान हैं.

इसी तरह की स्थिति 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी थी. आर्थिक मंदी और नौकरी जाना बड़े कारणों में से नहीं थे जो कि कई सारे लोग कह रहे थे. चुनावी कैंपेन के दौरान मेरी सहयोगी कृतिका शर्मा राजस्थान के कोटा गईं थीं. वहां उन्होंने आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्रों से बात की. लगभग सभी लोगों ने नौकरी मिलने में आने वाले संकटों के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त की लेकिन उन सभी ने रोज़गार सृजित करने के लिए मोदी की जिम्मेदारी के बारे में ही कहा.

एक युवक ने कहा, ‘मैं महसूस करता हूं कि इस स्थिति में सरकार कुछ नहीं कर सकती. यह पूरी तरह से छात्रों पर है कि वो अपनी नौकरी के लिए क्या करते हैं.’

राजनीति के पर्यवेक्षकों के लिए यह डिकप्लिंग बहुत गहरा है. इसका मतलब है कि मतदाता मोदी की तरफ राजनेता के तौर पर नहीं देखते हैं बल्कि एक दूरदर्शी नेता की तरह देखते हैं, एक ऐसा राजनेता जिसकी तरफ उसके काम के इतर होकर लोग सोचते हैं.

यह मत पूछो की देश आपके लिए क्या कर रहा है

मोदी युग में, नागरिकों को हीं खुद को योग्य और सिद्ध करना है. यह वे हैं जिन्हें भारत को बदलना होगा. वह लोगों को व्यस्त रखते हैं. ऐसा करने से, वह नागरिकों के बीच उद्देश्य और गतिविधि की भावना पैदा करते हैं.

कोई आश्चर्य नहीं कि अगस्त में एनआरसी अंतिम सूची से बाहर होने के बाद, एक पॉश दक्षिणी दिल्ली आरडब्ल्यूए में कुछ निवासियों ने सच्चे भारतीयों की पहचान करने का काम अपने हाथों में ले लिया. वे पड़ोसी झुग्गियों में गए और लोगों से आधार कार्ड दिखाने के लिए कहा, और इन वीडियो को अपने आरडब्ल्यूए व्हाट्सएप ग्रुपों में पोस्ट किया – इसके बाद अन्य निवासियों ने कहा कि उनके पड़ोस में एक एनआरसी होने की जरूरत है. इस तरह से मोदी-शाह के कथन ने देश को व्यस्त रखा.

मोदी सरकार ने अनेक चीजों के जरिए नागरिकों को व्यस्त रखा है – जीएसटी और नागरिकता की कागजी कार्रवाई का पालन करना, यह साबित करना कि वे गलत नकदी जमा नहीं कर रहे हैं, व्हाट्सएप पर सरकार की आलोचना नहीं कर रहे हैं और इसके बजाय टेलीग्राम और सिग्नल डाउनलोड कर रहे हैं, कह रहे हैं कि वे सोशल मीडिया पर भारतीय सेना के साथ खड़े हैं और अनुच्छेद 370 हटाए जाने के समर्थन में हैं वो भी तब जब नेताओं को रातोंरात हिरासत में ले लिया गया.


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एक दशक के मौन और लगभग गैर सार्वजनिक मनमोहन सिंह युग के बाद अच्छे-नागरिकता के परीक्षण इसके विपरीत हैं, जब नागरिकों को नहीं पता था कि उन्होंने क्या किया या सोचा, और उन्होंने उन्हें कुछ नया करने के लिए कुछ किया.

जॉन कैनेडी का प्रसिद्ध मंत्र- ‘ये मत पूछो की देश तुम्हारे लिए क्या कर रहा है’ अब मोदी-शाह की जोड़ी के लिए सही बैठती है.

दूसरे के दुख से खुश होने वाली राजनीति

अन्य कारण सबसे सरल है. यदि आप पीड़ित हैं, तो आपको इस विचार से आराम प्राप्त करना चाहिए कि किसी और को दंडित किया जा रहा है. जो लोग नोटबंदी की लाइनों में खड़े थे, उन्हें लगा कि अमीर लोग भी इससे पीड़ित हैं (हालांकि कई अमीर लोग बैंकों में अपने संपर्कों का उपयोग करके इस पीड़ा से बच निकले).

यदि आप एक नागरिक होने के लिए अपनी कागजी कार्रवाई को पूरा करते हुए पीड़ित हैं, तो आपको खुश होना चाहिए कि उन ’दुष्ट’ बांग्लादेशी मुस्लिम प्रवासियों को अधिक नुकसान होगा.

क्रांति का इंतज़ार

तीन दशक पहले ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में मेरे पहले बॉस स्टीव कोल ने मुझसे पूछा कि कहां है क्रांति? जब भी वो सरकारी अन्याय, क्रूरता, अक्षमता और भारत में भ्रष्टाचार से टकराते थे तब वो मुझसे हर बार यही पूछते थे.

आज मेरे पास इसका जवाब है. लोग सवाल नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी को वोट देकर उन्होंने पहले ही क्रांति कर दी है. मोदी ही क्रांति हैं.

और कई मायनों में, वह हैं. जो आपकी पारंपरिक किताबी क्रांति से अलग है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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