‘लव जिहाद’ एक सियासी फितूर है, लेकिन इसकी सियासी ताकत को कमतर नहीं आंका जा सकता. क्या आप यह सोच रहे हैं कि रामराज्य ही हिंदू राष्ट्र की नींव का असली पत्थर है? इस पर जरा फिर से सोच लीजिए. दरअसल ‘लव जिहाद’ के भूत के इर्द-गिर्द हिंदू सोच के झुकाव पर ही हिंदू राष्ट्र के निर्माण का दारोमदार टिका है.
‘लव जिहाद’ धीरे-धीरे और निरंतर उस बहाने में तब्दील होता जा रहा है जो एक ऐसे शासनतंत्र की स्थापना में मददगार हो सकता है जिसमें राजनीति और धर्म आपस में गड्डमड्ड हो जाएंगे और हिंदू राष्ट्र अंततः एक हकीकत बन जाएगा. बेशक, साधारण बुद्धि वाला कोई भी शख्स यह अंदाजा लगा सकता है कि यह भारत को तबाह कर सकता है. ‘लव जिहाद’ के विचार को जिस तरह व्यापक स्वीकृति मिल रही है, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर बहसों में इसे जिस तरह मान्यता दी जा रही है उसने इसे एक ऐसा काल्पनिक राक्षस बना दिया है जिसे लोग वास्तविक मानने लगे हैं मगर जो कभी दिखता नहीं, और यह उसे और भयावह बना देता है.
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एक धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता की मौत
‘लव जिहाद’ का विश्लेषण बहुत ही दिलचस्प है. चिरकाल से, जमीन के लिए लड़ाइयां लड़ी जाती रही हैं; और किसी साम्राज्य, किसी समुदाय, किसी कबीले की शान बढ़ाने के लिए उसे जीता जाता रहा है. अपने देश में जमीन का ऐसा ही एक टुकड़ा हाल में ‘मुगलों’ से जीत लिया गया है— राम जन्मभूमि. इस तरह, भारत के हिंदुओं का गौरव और सम्मान बहाल किया गया है. लेकिन इस 21वीं सदी में नरेंद्र मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में एक नयी फतह को अंजाम दिया जा रहा है, जिस पर अधिकतर दक्षिणपंथी हिंदुओं की नज़र पड़ चुकी है. और जो शख्स इसे अपनी नज़रों से कतई बचने नहीं दे सकता वे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ.
कुछ अरसे से मुस्लिम मर्दों पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे ‘विदेशी पैसे’ से यहां जिहाद चला रहे हैं जिसके तहत ‘सजीले’ मुस्लिम लड़के मासूम हिंदू लड़कियों को बहला लेते हैं और वे उनसे प्यार करने लगती हैं. इसके बाद ये लड़के उन्हें मोहब्बत की खातिर इस्लाम कबूल करने के लिए राजी कर लेते हैं. इस हथकंडे को ‘लव जिहाद’ नाम दिया गया है, क्योंकि नये भारत में आपसी सहमति से अंतरधार्मिक विवाह की इजाजत नहीं दी जा सकती.
योगी आदित्यनाथ ने खुला ऐलान कर दिया है कि जो भी मुस्लिम शख्स ‘लव जिहाद’ की कोशिश करेगा वह अपनी मौत को ही बुलावा देगा.
उनकी सरकार और हरियाणा तथा मध्य प्रदेश की भाजपा सरकारों ने भी घोषणा कर दी है कि वे ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बनाने जा रहे हैं. एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के ये तीन राज्य बड़ी बेशर्मी से धार्मिक कानून बनाने की घोषणा कर रहे हैं. केरल में भी कैथलिक पादरी इस विचार का समर्थन कर रहे हैं और वहां के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने दावा किया है कि 2006 के बाद से अब तक राज्य में 2,667 लड़कियों ने इस्लाम धर्म को कबूल किया है. पिछले साल राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष जॉर्ज कुरियन ने गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखा था कि केरल का ईसाई समुदाय इस्लामी कट्टरपंथियों का निशाना बन रहा है और वे ‘लव जिहाद’ के जरिए उसकी महिलाओं को धर्म परिवर्तन का शिकार बना रहे हैं.
इस डर व दहशत और सऊदी अरब में वहाबी पुलिसिया आतंक में क्या फर्क है, जहां महिलाओं को कड़ी हिदायतें दी जाती हैं कि उन्हें किस तरह के कपड़े पहनना है, किस तरह का व्यवहार करना है और सार्वजनिक जगहों पर किसे साथ लेकर निकलना है? हम भी सरकार की मंजूरी से फरमान जारी कर रहे हैं कि हमें किससे प्यार करना है.
जब कोई राज्यसत्ता अपने नागरिकों के लिए धर्म के नाम पर फरमान जारी करने लगती है तब वह लोकतांत्रिक सत्ता नहीं बल्कि धार्मिक सत्ता में बदल जाती है. यूरोप इससे लंबा संघर्ष कर चुका है. भारत पर राज कर रही राजनीतिक पार्टी की राज्य सरकारें इस तरह के कानून बनाने की घोषणा करके दरअसल हिंदू राष्ट्र (धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के विपरीत) की नींव के लिए पहला पत्थर डाल रहे हैं, जो अब तक केवल एक नारा था और जिसे भाजपा तथा आरएसएस की सभाओं में दोहराया जाता रहा है. अब इसे वैधानिक आधार देने की पहल की जा रही है.
पितृसत्तात्मक राज्यसत्ता
हिंदू राष्ट्र का विचार पहली नज़र में तो सरल सा लगता है, कि वह एक ऐसा देश होगा जिसमें हिंदू धर्म को अधिकृत सरकारी धर्म का दर्जा हासिल होगा. लेकिन इसकी थोड़ी गहराई में जाएं तो पता चलेगा कि इस विचार में पितृसत्तात्मक और अधिनायकवादी राज्यसत्ता की धारणा शामिल है, जिसके अंतर्गत राज्यसत्ता ही यह भी तय करेगी कि आप किससे शादी कर सकते हैं, और उस राज्यसत्ता की कमान पुरुषों के हाथ में होगी. हम पहले यह समझ लें कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था क्या है. दरअसल ‘लव जिहाद’ का आधार यह मान्यता है कि हिंदू महिलाएं अपना भला-बुरा सोचने में अक्षम हैं और वे इतनी भोली हैं कि धर्म परिवर्तन कराने के मकसद से शादी करने वाले ‘आतंकवादियों’ के झांसे में आ जाएंगी. उनके सामने कोई उपाय नहीं है, न ही उनकी सुरक्षा करने वाली कोई एजेंसी है. अक्सर महिलाओं के माता-पिता या परिजन ‘लव जिहाद’ का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराते हैं, सिर्फ इसलिए कि उनकी बेटियों की पसंद उनकी पसंद से मेल नहीं खाती है.
अधिकतर दक्षिणपंथी हिंदू पुरुषों ने हिंदू महिलाओं को महज गर्भाशय में तब्दील कर दिया है, क्योंकि उनका दावा है कि मुसलमान मर्द हिंदू महिलाओं से केवल मुस्लिम बच्चे पैदा करने के लिए शादी कर रहे हैं. इस तरह वे इस फर्जी मान्यता को बढ़ावा दे रहे हैं कि भारत में मुसलमान अपनी आबादी हिंदुओं की आबादी से ज्यादा करने की कोशिश में जुटे हैं. यानी, ‘हिंदू गर्भाशय’ कम होंगे, तो हिंदू बच्चे कम होंगे.
वास्तव में, अगर आप यह सोचते हैं कि ‘लव जिहाद’ एक नया विचार है, तो आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि 1920 के दशक में भी दक्षिणपंथी हिंदुओं में इस तरह की दहशत फैली थी. इतिहास की प्रोफेसर चारु गुप्ता बताती हैं कि उस दौरान 1924 में कानपुर में और 1928 में मथुरा में हिंदू महिलाओं के कथित अपहरण और उन्हें जबरन मुसलमान बनाने की घटनाओं के खिलाफ दंगे हुए थे.
इस कहानी में आज कोई फर्क नहीं आया है. बिना किसी प्रमाणित तथ्य के यह दावा किया जा रहा है कि नीच किस्म के आकर्षक मुस्लिम मर्द आशिक़ बनकर भारी संख्या में हिंदू महिलाओं को ‘जबरन’ मुसलमान बना चुके हैं. 2009 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में बांटे गए एक पर्चे में दावा किया गया था कि दिल्ली और महाराष्ट्र में ‘लव जिहाद’ के तहत ‘4000 लड़कियों’ को मुसलमान बनाया जा चुका था. आरएसएस की युवा शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा बांटे गए इस पर्चे में इस संख्या का कोई स्रोत नहीं बताया गया था.
लेकिन आज उत्तर प्रदेश में ‘लव जिहाद’ के मामलों के नए आंकड़े पेश किए जा रहे हैं और पुलिस इनकी जांच कर रही है. इस तरह हमें समझ में आ जाना चाहिए कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा में अधिनायकवाद का तत्व किस तरह शामिल है. योगी आदित्यनाथ का प्रशासन इस साल अगस्त में इसके 14 मामलों की जांच कर रहा था. लेकिन इनमें से आधे मामले ऐसे निकले जिनमें हिंदू महिलाओं और मुस्लिम पुरुषों की शादियां आपसी रजामंदी से हुई थीं. इन मामलों की जांच बंद भी कर दी गई है. इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ और उनके साथी दूसरे मुख्यमंत्रियों को ‘लव जिहाद’ का खतरा इतना असली लग रहा है कि वे इसके खिलाफ कानून बनाने पर आमादा हैं.
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(लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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