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Saturday, 2 November, 2024
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नेपाल का नक्शा नहीं, असल विवाद केपी ओली के कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर चल रहा है

नेपाल के 68 वर्षीय प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के लिए भारत के साथ मानचित्र विवाद अपने सत्तारूढ़ गठबंधन में खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश और सशक्त पड़ोसी मुल्क से मिले निर्देश को मानने के तौर पर देखा जा सकता है.

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काठमांडू के राजनीतिक प्रतिष्ठान नई दिल्ली के खिलाफ चीन द्वारा खेली जा रही चाल का विरोध नहीं कर पा रहे हैं. यह कोई रहस्य नहीं है कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की महत्वपूर्ण बैठक से कुछ दिन पहले, चीनी राजदूत होउ यानिकी ने अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ कई बैठकें कीं. बीजिंग ने अपनी चिंता स्पष्ट कर दी कि नेपाल के सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर चल रही कलह चीन के हित में नहीं है, जिसने नेपाल में भारी निवेश किया है और काठमांडू को नई दिल्ली के लिए अधिक से अधिक मुश्किलें पैदा करने के लिए कहा है.

नेपाल के 68 वर्षीय प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के लिए भारत के साथ मानचित्र विवाद अपने सत्तारूढ़ गठबंधन में खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश और सशक्त पड़ोसी मुल्क से मिले निर्देश को मानने के तौर पर देखा जा सकता है.

बीमारी से ठीक होने के बाद संसद में दिए अपने भाषण में ओली ने वादा किया था कि वो कालापानी-लिम्पियाधुरा-लिपुलेख को किसी भी कीमत पर प्राप्त करने का अपना दावा करेंगे, जो कि 1800 किलोमीटर लंबे भारत और नेपाल की सीमा का एक हिस्सा है. इस कथानक को और मजबूत करने के लिए केपी ओली ने नेपाल के नए मानचित्र को कैबिनेट से मंजूरी दिलवाई जिसमें विवादित जगह को उसके हिस्से में बताया गया है. भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और नेपाल में गोरखा प्रमुखों के बीच 1816 में हस्ताक्षरित सुगौली की दो शताब्दी पुरानी संधि के आधार पर नया नक्शा तैयार किया गया लगता है. भारतीय सेना 1962 के युद्ध के बाद से त्रिकोणीय जंक्शन में तैनात है.

बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन (बीआरओ) द्वारा कैलाश मानसरोवर के रास्ते में 80 किलोमीटर लंबी सड़क के 9 मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा किए गए उद्घाटन के बाद गतिरोध शुरू हुआ. सड़क के शुरू होने के दो दिन बाद नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार गयावाली ने ‘राजनयिक नोट’ भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को दिया जिसमें सड़क के बनने को लेकर विरोध जताया गया वो भी उस क्षेत्र में जिसे काठमांडू विवादित क्षेत्र मानता है. रिपोर्ट्स के अनुसार नेपाल इस क्षेत्र में सुरक्षा पोस्ट बनाने का काम कर रहा है. ये विवाद को और बढ़ाएगा.


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लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय सेना प्रमुख एमएम नरवाणे के ये कहने पर कि नेपाल की आपत्ति किसी और के कहने पर है (संभावित संकेत चीन था), इसने ओली के इगो को और बढ़ा दिया है. ओली ने इसका जवाब देते हुए कहा कि ‘उनकी सरकार राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर और उसी पर दावा करती है जो देश का है, न कि किसी और के दबाव के कारण कोई मुद्दा उठाती है.’ लेकिन ये अब भी स्पष्ट नहीं होता है कि उनकी सरकार बीजिंग के कहने पर ये सब नहीं कर रही है.

एक वायरल दृश्य बनाना

नक्शे के विवाद से इतर पीएम ओली ने एक अजीब बयान दिया कि ‘भारतीय वायरस चीनी या इतालवी वायरस से कहीं अधिक घातक है’. पीएम ओली ने पिछले मंगलवार संसद में दिए अपने भाषण में कहा, ‘जो अवैध तरीके से भारत से आ रहे हैं वो देश में वायरस फैला रहे हैं और कुछ स्थानीय प्रतिनिधि और पार्टी नेता बिना उचित परीक्षण के भारत से लोगों को लाने के लिए जिम्मेदार हैं.’ सदन के पटल पर इस तरह का गैर-जिम्मेदाराना बयान देना देश के प्रधानमंत्री के लिए न केवल गलत है, बल्कि अनैतिक भी है.

नेपाल के बीरगंज से सटे रक्सौल बॉर्डर स्थित छपकैया के मस्जिद में रह रहे 21 लोगों में से 12 अप्रैल को तीन भारतीय नागरिक कोरोना संक्रमित पाए गए थे. प्रांत 2 में यह पहला कोरोनावायरस केस था, पूरे देश में तीन हॉटस्पॉट में से एक घोषित किया गया था, और इससे नेपाल में कोविड-19 मामलों की कुल संख्या 12 हो गई थी. बाकी बचे 9 लोग नेपाली नागरिक थे जो कैलाली, कंचनपुर, बंगलंग और काठमांडू से थे. स्थानीय पुलिस अवैध तौर पर आए लोगों के मामले की जांच कर रही है लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार ये तीन लोग पिछले चार महीने से नेपाल में थे. एक अधिकारी ने काठमांडू पोस्ट को बताया, ‘अगर ये पिछले चार महीने से नेपाल में थे तो ये संक्रमित कैसे हुए.’


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नेपाल में 12 मई को कोविड के नए मामले सामने आए, वो भी एक ही दिन में 83 संक्रमित मामले, जिसके बाद टेस्टिंग बढ़ाई गई. इसने राष्ट्रीय आंकड़े को 217 पर ला दिया जो कि उतना ज्यादा नहीं था. 21 मई तक नेपाल में 457 मामले सामने आ चुके हैं. सभी स्थानीय ही है, किसा का भी भारत से यात्रा का इतिहास नहीं है.

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर कलह पर भारत की नज़र

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) और सरकार में टकराहट साफ तौर पर देखी जा सकती है. इस महीने की शुरुआत में एनसीपी की बैठक के बाद पार्टी की स्टैंडिंग कमिटी को 7 मई को बैठना था लेकिन इसे रद्द कर दिया गया. इसका कारण पार्टी के प्रमुख केपी ओली है. उनके द्वारा लाए गए हालिया दो अध्यादेश ने स्टैंडिंग कमिटी के सदस्यों के साथ विवाद छेड़ दिया है, जिनका कहना है कि उन्होंने बिना किसी सलाह के इसे जारी कर दिया.

सत्तारूढ़ पार्टी के पास संसद की 275 सीटों में से 174 सीट है जिसमें 121 सीपीएन-यूएमएल के और 53 माओवादी सेंटर के हैं. दोनों पार्टियों के बीच काफी टकराहट है और माओवादी दल धमकी देता है कि अगर उसकी मांगे नहीं पूरी हुई तो वो सर्मथन वापस ले लेगा. दो अध्यादेश पार्टी के विभाजन और पंजीकरण को आसान बनाने के लिए थे, लेकिन इसके बजाय समाजबादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल ने एकजुट होकर जनता समाज समाजबादी पार्टी (जेएसपी) का गठन किया, जिसमें 33 सदस्य हैं.


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मानचित्र का मुद्दा पार्टी के भीतर भी विवाद पैदा कर रहा है. नेपाल के कम्युनिस्ट पार्टी के वाइस चेयरमैन बामदेव गौतम ने एक बयान जारी कर प्रधानमंत्री को नए नक्शे का श्रेय नहीं लेने की चेतावनी दी. 44 स्थायी समिति के सदस्यों में से बीस ने प्रधानमंत्री के इशारे पर निर्धारित बैठक स्थगित होने के बाद एक अलग बैठक की. सभी ने कहा, वर्तमान ट्रूस अस्थायी लगता है. जल्दी या बाद में, सरकार का समर्थन करने वाले दल नेतृत्व में बदलाव की अपनी मांग को बढ़ा सकते हैं और ओली सरकार को गिरा सकते हैं जिससे एक नए नेता के नेतृत्व में नई सरकार बन सके.

भारत नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी में चल रहे गतिरोध और उसके परिणामों की प्रतीक्षा करेगा. मानचित्र का मुद्दा सिर्फ ओली को खुद को मजबूत साबित करने के तौर पर दिखता है न कि कोई सुरक्षा खतरे जैसा. लेकिन भारत को काठमांडू को इस बात के लिए राजी करना होगा कि वो कोरोनावायरस महामारी के बाद बैठकर इस मुद्दे पर बात करे.

(लेखक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी कमेटी के सदस्य और ऑर्गनाइज़र के पूर्व संपादक हैं. ये उनके अपने विचार हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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