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Friday, 29 March, 2024
होममत-विमतन मोदी और न ही योगी, भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में 2022 का चुनाव राम बनाम बाकी सबका होगा

न मोदी और न ही योगी, भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में 2022 का चुनाव राम बनाम बाकी सबका होगा

निष्कर्ष यही है कि राम 2022 के यूपी चुनाव में भाजपा का प्रमुख कार्ड बनने जा रहे हैं लेकिन यह मोदी-शाह की सबसे सशक्त तरकीब ‘यह बनाम वह’ का ही हिस्सा है.

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भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 2017 का विधानसभा चुनाव एक साधारण बाइनरी के साथ लड़ा था- नरेंद्र मोदी बनाम अन्य- बाकी सब इसी में निहित था. 2022 के लिए इसने अभी से एक अन्य बाइनरी निर्धारित कर ली है- राम बनाम अन्य.

पिछले हफ्ते अयोध्या में भव्य भूमि पूजन समारोह के साथ नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई वाली भाजपा ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव और संभवत: 2024 के लोकसभा चुनाव की भी दशा-दिशा तय कर दी है— यदि आप राम के साथ हैं तो आप हमारे साथ हैं, नहीं तो आप बाकी के साथ हैं.

जॉर्ज बुश-एस्क जैसी बाइनरी- या तो आप हमारे साथ हैं या फिर आतंकियों के साथ हैं— का इस्तेमाल एक चतुराई है जो मतदाता के लिए मुकाबले को एकदम एकतरफा मानने और विरोधियों को बेहद असहज और कांटों भरी राह पर चलने को मजबूर कर देती है.

भाजपा इस राजनीतिक कला में माहिर है और सीधा मुकाबला तय करना उसकी पुरानी तरकीबों में शुमार है. 1990 के दशक की शुरुआत में जब राम जन्मभूमि आंदोलन पूरे चरम पर था तब ‘आप बाबर की औलाद के साथ हैं या आप राम के साथ हैं’ से लेकर यह ‘आप पाकिस्तान के साथ हैं या हमारे साथ हैं’ बना और अब यह नरेंद्र मोदी बनाम बाकी के नाम पर सबको पीछे छोड़ रही है.

उत्तर प्रदेश का चुनाव यकीनन भारत में सबसे महत्वपूर्ण है, जो दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की दिशा भी तय करेगा. 2017 में राज्य के साथ-साथ 2019 के लोकसभा चुनाव में भी शानदार प्रदर्शन के बाद 2022 के चुनाव मोदी और शाह के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है और एक नया ‘यह बनाम वह’ ही इस महत्वपूर्ण अभियान का मूल आधार होगा.

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राम फैक्टर

मोदी-शाह की जोड़ी को विपक्ष को एक कठघरे में खड़ा करने की जरूरत के बारे में अच्छी तरह से पता है जिससे बाहर निकलना उसके लिए मुश्किल भरा हो जाता है और वह भाजपा की तरफ से निर्धारित कथ्य के अनुरूप ही चलने पर बाध्य होता है. बाइनरी तय होने से इन उद्देश्यों की प्राप्ति आसान हो जाती है.

2017 में उत्तर प्रदेश में मोदी एक बहुत बड़े ब्रांड थे, जिसमें भाजपा की आवश्यकता कम ही थी. अमित शाह का अंकगणित और सतर्कता से निर्धारित जाति समीकरण दोनों उपयोगी थे लेकिन सबसे बड़े फैक्टर मोदी के साथ सिर्फ सहायक कारक ही रहे. जब मैंने चुनाव की कवरेज के लिए राज्य भर में यात्रा की तो जाना कि मतदाता मोदी का नाम जप रहे थे, उनके नाम पर ही वोट देना चाहते थे, यहां तक कि तमाम मतदाता तो अपने स्थानीय भाजपा उम्मीदवार का नाम तक नहीं जानते थे.

चुनाव को ब्रांड मोदी बनाम बाकी सब का मामला बनाकर भाजपा ने विपक्ष को इसी के अनुरूप प्रतिक्रिया देने के लिए विवश कर दिया था.

ब्रांड का मुकाबला करने के लिए ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने हाथ मिलाया और जैसा उन्होंने सोचा यह सुपर-ब्रांड था. लेकिन ‘यूपी के लड़के’- अखिलेश यादव और राहुल गांधी विफल रहे क्योंकि भाजपा के बाइनरी के खेल के आगे उनके पास करने के लिए बहुत कुछ था नहीं.

2022 के लिए मोदी सबसे बड़े फैक्टर नहीं हो सकते. पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं था, लेकिन इस बार योगी आदित्यनाथ को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. इसलिए, पार्टी ने राम को मैदान में उतारने का फैसला किया है. यदि आपकी राम में आस्था है तो आपको उस पार्टी के साथ रहना होगा जिसने ‘जन्मभूमि’ के लिए संघर्ष किया और राज्य में ‘भव्य व गगनचुंबी’ राम मंदिर का निर्माण करा रही है. यदि आप भाजपा के साथ नहीं हैं तो आप उन लोगों के साथ हैं जो राम पर सवाल उठाते हैं और जिन्होंने उनके लिए कुछ नहीं किया है.

विपक्ष भाजपा के हाथों का खिलौना बनने को बाध्य होगा. कांग्रेस का ‘नरम-हिंदुत्व’ की ओर आकृष्ट होना अब और भी मुखर और जाहिर हो गया है, जब इसके शीर्ष नेताओं में बाबरी मसजिद को चुपचाप भुलाकर मंदिर बनने का स्वागत करने और राम में आस्था जताने की होड़ लगी है. मैदान के दूसरे खिलाड़ियों में शामिल अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी उच्च जाति के हिंदू मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही और ये परशुराम की प्रतिमा लगाने का वादा कर रही हैं जिन्हें एक योद्धा और भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है.

अंतत: निष्कर्ष यही है कि राम 2022 के यूपी चुनाव में भाजपा का प्रमुख कार्ड बनने जा रहे हैं लेकिन यह मोदी-शाह की सबसे सशक्त तरकीब ‘यह बनाम वह’ का ही हिस्सा है.


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बाइनरी का खेल

1990 के दशक की शुरुआत में जब राम जन्मभूमि आंदोलन चरम पर था तो लड़ाई राम को मानने वालों और ‘बाबर’ के प्रति निष्ठा रखने वालों के बीच थी.

दशकों बाद, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भले ही बदल गया हो लेकिन खेल वही रहा. मोदी और शाह के लिए पाकिस्तान हमेशा एक आसान लक्ष्य रहा है और जो इसके साथ नहीं हैं, वे मुस्लिम राष्ट्र के समर्थक हैं. 2015 में बिहार चुनाव से पहले अमित शाह ने कहा था कि अगर बिहार में भाजपा हारती है, तो पाकिस्तान में ‘पटाखे’ फोड़े जाएंगे.

2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी ने यही चिरपरिचित रणनीति अपनाई जब उन्होंने इसे हिन्दू देशभक्त बनाम ‘मियां मुशर्रफ’ बना दिया. मौजूदा समय पर आते हैं तो यहां तमाम सारी बाइनरी हैं. अब हम बनाम वह के खेल के लिए भाजपा के पास कई अभिव्यंजनाएं हैं- अन्य में शामिल हैं बांग्लादेशी ‘घुसपैठिए’ या ‘अरबन नक्सल’ या ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ या फिर ‘राष्ट्र-विरोधी’…समय या चुनाव की जरूरत के हिसाब से जो भी उपयुक्त हो.

2019 का लोकसभा चुनाव भी एक बड़ी बाइनरी पर लड़ा गया था, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने- नामदार बनाम कामदार बना दिया था जिसमें उन्होंने खुद को ‘कड़ी मेहनत’ करने वाले के तौर पर पेश किया और नामदार में वंशवाद की राजनीति से निकलने वाले तमाम नेता शुमार थे.

पार्टी ऐसे विकल्पों को तैयार करती है जिसे चुनना तमाम मतदाताओं के लिए आसान नज़र आता है. आखिरकार कौन पाकिस्तान का समर्थन करता है? या ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ किसे पसंद आएगा? कौन नामदारों का समर्थन कर सकता है? और अब कौन-सा पक्का हिंदू या इस वातावरण में रहने वाला- राम के खिलाफ जा सकता है?

बहरहाल, तब तक मंदिर बन पाए या नहीं, राम ने 2022 में उत्तर प्रदेश में भाजपा का स्टार प्रचारक बनने के लिए खुद को पूरी तरह तैयार कर लिया है.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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