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Thursday, 7 November, 2024
होममत-विमतसिर्फ मोदी का व्यक्तित्व नहीं, 2019 के चुनावों में भाजपा की भारी जीत के पीछे थीं ये प्रमुख वजहें

सिर्फ मोदी का व्यक्तित्व नहीं, 2019 के चुनावों में भाजपा की भारी जीत के पीछे थीं ये प्रमुख वजहें

भाजपा के प्रदर्शन के इर्द-गिर्द धारणाएं शायद ही इसे ड्राइविंग सीट पर बैठाने के लिए काफी थीं. मगर भाजपा को 200 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में 50 प्रतिशत वोट मिले.

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2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत एक से ज्यादा तरीकों से असाधारण है. 1984 के लोकसभा चुनाव के बाद किसी भी राजनीतिक दल के लिए पहली बार 300 सीटों की सीमा को पार करना अपने आप में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है. पर ये कितनी बड़ी जीत है इसका अंदाज़ा इस बात से होता है कि निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर हर एक जीत कितनी बड़ी थी.

16 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को मिलकर पूरे देश में 200 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा को 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर मिला है. इसका मतलब यह है कि हर निर्वाचन क्षेत्र में, भाजपा उम्मीदवार को अन्य सभी उम्मीदवारों की तुलना में अधिक वोट मिले हैं. भाजपा के प्रदर्शन से पता चलता है कि अधिकांश राज्यों में चाहे विपक्षी दल एक साथ आए हों या नहीं, शायद ही इससे कोई फर्क पड़ता. गठबंधन और वोट कटवा ने चुनाव अभियान के दौरान खूब हो हल्ला किया था. वास्तव में, भाजपा को उत्तर प्रदेश की कुल 80 सीटों में से लगभग आधी सीटों पर 50 फीसदी से अधिक वोट मिले जहां अधिकांश राजनीतिक पर्यवेक्षकों (इन स्तंभकारों सहित) ने अनुमान लगाया था कि सपा-बसपा गठबंधन, अपनी शक्तिशाली जाति अंकगणित से यहां की लड़ाई को बहुत मुश्किल बना देगा.


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भाजपा के आश्चर्यजनक जीत को रहस्यमय नहीं रखने की कोशिश करने वाले अधिकांश पर्यवेक्षक विशेष रूप से एक व्यक्ति- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व प्रभाव पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. प्रमुख बात यह है कि मोदी का व्यक्तित्व भाजपा के प्रदर्शन का व्यापक कारक है. ये पर्यवेक्षक शायद यह भूल रहे हैं चुनाव को राष्ट्रपति-शैली के व्यक्तित्व के संपूर्ण प्रतियोगिता में बदलने के प्रयासों के बावजूद, भारत में चुनाव कभी भी किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर नहीं जीता जा सकता है. भले ही वह व्यक्ति नरेंद्र मोदी क्यों न हो. वह देश के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक नेताओं में से एक हैं. ऐतिहासिक रूप से भारत के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक नेता जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक को बड़े हिस्से में चुनावी सफलता मिली. क्योंकि उन्होंने कुछ विचारों और संदेशों का प्रतिनिधित्व किया. संदेश के बिना व्यक्तित्व एक खाली बर्तन के समान है.

तीन कारण

कोई भी सरकार जो सत्ता में होती है. उसके लिए चुनावी सफलता या विफलता का निर्धारण करने में भूमिका निभाने के तीन प्रमुख कारक हैं: प्रदर्शन, संगठन और दृष्टि.

पिछले पांच वर्षों में भाजपा के प्रदर्शन के आसपास की धारणाएं शायद ही इसे मजबूत स्थिति पर रखने के लिए पर्याप्त थीं. अधिकांश मैक्रो-आर्थिक संकेतक उच्च बेरोज़गारी और व्यापक ग्रामीण संकट की ओर इशारा करते हैं. जबकि मोदी सरकार ने प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में सफलता प्राप्त की है. शौचालय और गैस से लेकर लाखों ग्रामीण नागरिकों तक बिजली और आवास सब कुछ प्रदान करना. कई मतदाताओं में प्रचलित धारणा यह थी कि सरकार का समग्र प्रदर्शन बहुत बेहतर था.

हालांकि, संगठन के मोर्चे पर भाजपा का कोई मुकाबला नहीं था. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे सहयोगी दलों को कई सीटों पर जीत दर्ज होने के बावजूद अपने सहयोगियों को सीट दे दी थी. दूसरी तरफ कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों ने ठीक इसके विपरीत काम किया. अधिकांश सीटों और मुद्दों पर विवाद किया. उदाहरण के लिए, दिल्ली की सिर्फ सात सीटों के लिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ सहयोगी होने के अपने फैसले पर आगे और पीछे होते नज़र आए, महीनों तक ट्विटर पर तर्क और संबंधित पार्टी नेताओं के बीच सार्वजनिक दोषारोपण का खेल खेला.

विपक्षी दल मुद्दों पर भी एकजुट होने में विफल रहे. चुनाव प्रचार के हर मोड़ पर भाजपा ने एजेंडा तय किया और विपक्ष को फॉलो करने के लिए मजबूर होना पड़ा. जबकि ज़मीनी स्तर पर भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं ने अपने अध्यक्ष अमित शाह के दुस्साहसिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अथक परिश्रम किया. जिससे यह सुनिश्चित हो गया कि पार्टी पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे नए राज्यों में पैठ बनाने में कामयाब हुई. उन्होंने उत्तर प्रदेश में अमेठी (कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सीट) और मध्य प्रदेश में गुना (जहां से कांग्रेस की मौजूदा ज्योतिरादित्य सिंधिया हार गए ) जैसी सीटों के लिए कड़ी मेहनत करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी.


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जबकि, भाजपा के श्रेष्ठ पार्टी संगठन ने निश्चित रूप से चुनावी सफलता में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. केवल एक चीज़ पार्टी की जीत के व्यापक पैमाने को स्पष्ट करती है वो है विज़न. किसी पार्टी या नेता का विज़न मूल विचारधारा और संदेश को समेटता है. जबकि कांग्रेस और अधिकांश विपक्षी दलों ने मोदी के नकारात्मक गुणों और नीतिगत गलत कदमों के आसपास अपने पूरे अभियान को केंद्रित किया. वे खुद के विज़न को रेखांकित करने में विफल रहे. न्याय को कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र माना जाता था, लेकिन न्याय एक विज़न नहीं है, बल्कि यह सिर्फ एक नीति वक्तव्य है. बहुत कम लोग जानते थे कि इस चुनाव में कांग्रेस वास्तव में किस स्थिति में थी.

इसके विपरीत, नरेंद्र मोदी ने सफलतापूर्वक एक नैरेटिव का निर्माण किया. जो जनता में कामगार रहा. यहां तक कि पुलवामा त्रासदी जैसी चुनौतियों को अपने विज़न में बेचने के अवसरों में परिवर्तित किया. मतदाताओं ने एक मज़बूत भारत के अपने दृष्टिकोण के साथ गहराई से पहचान की जो आतंकवाद पर पाकिस्तान से लड़ने को तैयार था. वे अपने विचार में यह लाये कि हमारी राजनीति पर ‘कामदारों’ (मेहनती कार्यकर्ताओं) का वर्चस्व होना चाहिए, न कि ‘नामदारों’ (वंशवाद) का और अपने घरेलू मैदानों पर विपक्ष के कई बड़े-बड़े वंशों को चौंका दिया. वे हिंदू धर्म के प्रति प्यार को जाहिर करते हैं और यहां तक कि वो मालेगांव आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए तैयार थे. जिन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रशंसा की और साथ ही प्रचार अभियान के दौरान कई विवादास्पद बयानों के बावजूद उसका समर्थन किया.

मोदी की एक सफल अभिव्यक्ति थी, जो जनता के बीच गूंजती थी. जिसने 2019 के चुनाव में उनकी पार्टी को ऐतिहासिक जीत दिलाई. वास्तव में, यह स्वयं किसी शख्स का व्यक्तित्व नहीं है, लेकिन अंतर्निहित संदेश दे रहे हैं कि वह सभी से अलग तरीके से प्रतिनिधित्व करने आए हैं. मोदी ने यह सुनिश्चित किया है कि उनका व्यक्तित्व उन संदेशों से जुड़ा है जो बहुसंख्यक भारतीय मतदाताओं के साथ गहराई से पहचान करता है. ऐसा होना एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण उपलब्धि है.

(प्रदीप छिब्बर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के साथ हैं)

(हर्ष शाह कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के पूर्व छात्र हैं. एक राजनीतिक विश्लेषक हैं और निजी क्षेत्र में काम करते हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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