भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने शनिवार को स्वदेश वापसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ज़ोरदार स्वागत किया, हालांकि वह अमेरिका के साथ बहुप्रचारित व्यापार समझौता नहीं कर पाए. साथ ही, ‘हाउडी, मोदी!’ कार्यक्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मोदी के दोस्ताना संबंधों के खुले प्रदर्शन के बावजूद उनके बीच कश्मीर का मुद्दा और अधिक उलझ गया है.
अमेरिका के अपने हफ्ते भर के दौरे में व्यापार के विवादित मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी वास्तव में कुछ भी हासिल करने में नाकाम रहे. जबकि निश्चय ही व्यापार दोनों देशों के रिश्तों में एक बड़ा अवरोध है, और दोनों पक्षों के बीच विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भी व्यापार विवादों पर लड़ाई जारी है.
ये सही है कि वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल वाशिंगटन में अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइज़र के साथ वार्ताएं जारी रखे हुए हैं, पर कथित ‘सीमित’ व्यापार समझौता वास्तविकता से अब भी उतनी ही दूर है जितना मोदी की यात्रा से पहले था.
कोई व्यापार समझौता नहीं
जब इस साल भारी जीत के साथ मोदी सरकार सत्ता में वापस आई तो स्पष्टतया अमेरिका को खुशी नहीं हुई. सरकार ने अभी कार्यभार संभाला ही था कि ट्रंप प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए मई में जेनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ प्रेफ्रेंसेज़ (जीएसपी) व्यवस्था के तहत भारत को मिलने वाली तरजीही व्यापार की सुविधा छीन ली. अमेरिका भारतीय चुनावों से पहले से ही ऐसा करने की धमकी दे रहा था. अमेरिका का ये कदम अभूतपूर्व है क्योंकि 1974 में जीएसपी व्यवस्था लागू किए जाने के बाद से, भारत को उससे कभी बाहर नहीं किया गया था.
ये सही है कि पूर्ववर्ती अमेरिकी प्रशासनों ने भी, खासकर बराक ओबामा प्रशासन ने, इस सुविधा को खत्म करने की धमकी दी थी, पर धमकी पर कभी अमल नही किया गया था.
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दूसरी तरफ भारत, चाहे मनमोहन सिंह का कार्यकाल हो या मोदी का, ने हमेशा दंभपूर्वक दावा किया कि जीएसपी की सुविधा छीने जाने से भारत के विदेश व्यापार पर ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा. सरकार का सार्वजनिक रूप से यही रुख रहा है कि भारत को जीएसपी या अमेरिकी बाज़ारों में अपने उत्पादों के शुल्क-मुक्त प्रवेश की ज़रूरत ही नहीं है क्योंकि भारत अब कोई अविकसित देश नहीं है.
पर, निर्यातक दूसरी ही कहानी कहते हैं. जीएसपी व्यवस्था के तहत भारतीय निर्यातकों को 6.4 अरब डॉलर का फायदा मिलता था, जो कि खत्म हो गया. आमतौर पर यही माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान एक बार भारत को जीएसपी कार्यक्रम में शामिल कर लिया जाएगा. ‘हाउडी, मोदी’ कार्यक्रम के बाद तो ऐसा होने की संभावना बहुत अधिक लग रही थी, पर अंतत: ऐसा हुआ नहीं.
ये स्थिति ट्रंप के मोदी के ‘सच्चे, गर्मजोशी वाले, दोस्ताना और सुलभ’ मित्र होने के बावजूद है.
प्रधानमंत्री मोदी अपने इस बड़े दौरे में भारतीय इस्पात और अल्युमिनियम पर अमेरिका द्वारा थोपे गए भारी शुल्क में रियायत भी नहीं ले सके. याद रहे कि मार्च 2018 में, अमेरिकी व्यापार विस्तार अधिनियम, 1962 की धारा 232 के तहत ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के नाम पर भारत से इस्पात और अल्युमिनियम के आयात पर तटकर बढ़ा दिया गया था. बहुत अनुरोध के बाद भी अमेरिका ने इसमें कोई रियायत नहीं दी है.
वर्तमान में, दोनों पक्ष व्यापार समझौते पर वार्ताएं कर रहे हैं और इस प्रक्रिया से जुड़ी जानकारियों को गुप्त रखा जा रहा है. पर भारत अमेरिका की अपेक्षा के अनुरूप सूचना एवं संचार टेक्नोलॉजी (आईसीटी) के उत्पादों पर शुल्क में कमी या चिकित्सा उपकरणों पर मूल्य नियंत्रण को हटाने जैसे उपाय नहीं कर रहा है.
ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में दोनों देशों के व्यापार संबंध बदतर हुए हैं. अमेरिका ने 2017 के बाद दोनों देशों के बीच सालाना व्यापार वार्ता – अमेरिका-भारत व्यापार नीति फोरम – आयोजित नहीं किया है.
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इस बीच, दोनों पक्ष डब्ल्यूटीओ में कई विवादों पर महंगी कानूनी लड़ाई में जुटे हुए हैं. वास्तव में 2017 में, पोल्ट्री संबंधी एक दशक पुराने विवाद को लेकर अमेरिका भारत पर डब्ल्यूटीओ के ज़रिए प्रतिबंध लगाने के कगार पर आ गया था.
निवेश सम्मेलन में कुछ नहीं निकला
हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि शुरू से ही मोदी सरकार का दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रतिकूल रहा है. इसने अपने पहले कार्यकाल में विभिन्न साझेदार देशों के साथ तमाम व्यापार समझौतों की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू की थी, जो अब भी जारी है.
प्रधानमंत्री मोदी की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में अधिक दिलचस्पी है. इसलिए, उनके दौरे में एक अहम आयोजन ‘इन्वेस्ट इंडिया’ के तहत निवेश पर एक गोलमेज सम्मेलन का था, जिसमें अमेरिकी कंपनियों के अधिकारियों ने भाग लिया.
अपने हफ्ते भर की यात्रा में मोदी ने टेक्सस में तेल एवं गैस उद्योग की 17 बड़ी अमेरिकी कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की, जबकि न्यूयॉर्क में वे बैंकिंग से लेकर रक्षा उद्योग तक की 40 बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधियों से मिले. ये कवायद भी फलदायक साबित नहीं हुई क्योंकि मुलाकात के दौरान ‘मोदी की परिकल्पना’ की तारीफ करने वाली एक भी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने अभी तक बड़े स्तर पर निवेश की कोई घोषणा नहीं की है. धीमी होती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ये निवेश सहारा बन सकता था, जब बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियों पर खतरा बना हुआ है.
हालांकि ये ऐसा अवसर है जब अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के गरमाते जाने के मद्देनज़र चीन स्थित अमेरिकी कंपनियां अपना व्यापार किसी अधिक सुरक्षित जगह पर ले जाने के लिए हाथ-पांव मार रही हैं.
मोदी के दौरे में सिर्फ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुआ. भारत की पेट्रोनेट और तेल एवं गैस की बड़ी अमेरिकी कंपनी टेलुरियन के बीच हुए इस समझौते के तहत पेट्रोनेट 2.5 अरब डॉलर का निवेश कर टेलुरियन के प्रस्तावित ड्रिफ्टवुड एलएनजी टर्मिनल में 18 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करेगी. दोनों पक्ष अगले साल 31 मार्च तक इस समझौते को अंतिम रूप दे सकेंगे. इसलिए इस सौदे के ज़रिए 60 अरब डॉलर के व्यापार और 50,000 नौकरियों का मोदी का वादा भी अभी कोरी कल्पना मात्र ही है.
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व्यवसाय करने की सहूलियत बढ़ाने और टैक्स व्यवस्था सरल करने के भारत के दावे के बावजूद अमेरिकी निवेशकों ने डेटा के स्थानीयकरण, टैक्स संबंधी जटिलताओं और अन्य कड़े नियामक प्रावधानों को भारत में निवेश की राह में बाधक बताया है.
कश्मीर मुद्दा और अधिक उलझा
कश्मीर मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री मोदी अपने ‘मित्र’ ट्रंप से ज़्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाए. ट्रंप जहां कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने की रट लगाते रहे, वहीं अमेरिका ने भारत से जम्मू कश्मीर में पाबंदियों में ढील देने के लिए ‘त्वरित कार्रवाई’ करने और वहां ‘यथाशीघ्र’ चुनाव कराने की मांग भी कर डाली.
अपनी द्विपक्षीय बैठक के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि अमेरिका के लिए आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान से बड़ी चिंता ईरान है. मोदी के सामने ही ट्रंप ने ये भी कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री की अपने पाकिस्तानी समकक्ष इमरान ख़ान से ‘अच्छी निभेगी’, जब भी दोनों मिलेंगे.
प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी की ट्रंप से ये तीसरी मुलाकात थी. पर ये उम्मीदों के विपरीत साबित हुई क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात में राष्ट्रपति ट्रंप की आखिरी टिप्पणी थी: ‘मैं समझता हूं प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री ख़ान जब परस्पर मिलेंगे तो उनमें अच्छी निभेगी. मुझे लगता है उस मुलाकात से बहुत-सी अच्छी बातें निकलेंगी.’
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