इसे कंगना रनौत के नाम खुली चिट्ठी मानें.
आपको क्या हो गया है? आप एक शानदार अभिनेत्री से एक ट्विटर ‘ट्रोल’ बन गई हैं. आप बॉलीवुड के भाई-भतीजावाद की सड़ांध को उजागर करने वाली एक साहसिक महिला और एक उत्साही नारीवादी से बदलकर भयावह व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की चिल्लाने और अकड़ने वाली प्रवक्ता बन गई हैं. आप दुनिया के अपने कदमों में होने का दावा करती हैं. और आपका कहना है कि आप चुटकी बजाकर मीडिया को जुटा सकती हैं. लेकिन क्या आप जानती हैं कि आत्मविश्वास और अहंकार के बीच बस बारीक-सा ही अंतर होता है? आप अशिष्ट नज़र आती हैं, फिर भी आपको लगता है कि आप कभी कुछ गलत कर या कह नहीं सकतीं. भारत की कई प्रसिद्ध शख्सियतों का इसी चक्कर में पतन हुआ है.
हम आपके समर्थन में खड़े हुए थे और आपने हमें निराश किया.
बेशक, आप कहेंगी कि कोई आपके बारे में कुछ भी राय रखे, आपको परवाह नहीं. लेकिन सच कहें तो आपको परवाह है. हम सभी की तरह ही, आप निरंतर खुद को सही बताने और दूसरों की सहमति हासिल करने की कोशिश करती हैं. इसलिए आपके साक्षात्कारों में करण जौहर का हमेशा जिक्र होता है. आपकी ट्विटर फीड में दिलजीत दोसांझ से आपकी झड़प को देखकर भी यही लगता है. फिर आपने तापसी पन्नू और स्वरा भास्कर को ‘बी-ग्रेड एक्टर’ करार दिया. आयुष्मान खुराना को आप ‘औसत दर्जे का’ बताती हैं. बिडंबना ये है कि ये सारे कलाकार गैरफिल्मी परिवारों से आए हैं और उन्होंने अपने दम पर नाम कमाया है. बेशक, आप उनकी कामयाबी की ‘पोल खोलने’ के लिए उन्हें ‘चापलूस’ भी बताती हैं.
लेकिन कंगना, हमें ये बात समझ में नहीं आती है कि ये आखिर हुआ कैसे? बॉलीवुड का डेविड कैसे भारत का गोलायथ बन गया?
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आइने में झांकें
कंगना रनौत, आप उन लोगों जैसा ही बन चुकी हैं जिनसे कि आप नफरत करती हैं. आत्मसंतुष्टि और आत्मश्लाघा से परिपूर्ण. जब आप कहती हैं कि ‘मैं इनकी वाट लगा दूंगी’, तब क्या आपको इस बात का अहसास नहीं होता है कि ‘कुनबापरस्त गैंग’ और ताकतवर लोगों की यही प्रवृति होती है? अपने जैसी सोच नहीं रखने वाले लोगों को सबक सिखाना.
मज़ेदार बात ये है कि जब आप किसी व्यवस्था को बदलने की कोशिश करते हैं या बदलते हैं, तो खुद आपके बदलाव का प्रतीक बनने की अपेक्षा की जाती है. लेकिन आप तो उसी दैत्य का रूप ले चुकी हैं जिससे आप लड़ रही थीं. अभिमानी. बड़बोला. नाखुश. जिसे दूसरों की भावनाओं की कद्र नहीं हो. निश्चय ही, हज़ारों लोग आपके समर्थन में खड़े हैं लेकिन इतिहास गवाह है कि अनेकों बुरे लोगों का भी जयजयकार हुआ है. उदारवादी भी कभी आपकी तारीफ करते थे, पर ताकतवरों को सच का आइना दिखाने के लिए. आज, आप उनके खिलाफ बोलती हैं और घटिया टिप्पणी करती हैं. आपका पाखंड सबके सामने है.
‘लव जिहाद’ के मुद्दे पर प्रीतीश नंदी से असहमत होने पर आपने उनके लेखन को ‘विकृत’ करार दिया. फिर, प्रदर्शनकारी किसानों का समर्थन करने वालों को आपने ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ बताया और ‘खालिस्तानी’ जैसे शब्दों का उपयोग किया. आपने महिलाओं को ‘अवसादग्रस्त और आत्मघाती छुईमुई नारीवादी’ बताया. ये उस महिला के शब्द हैं जो मानसिक ब्रेकडाउन की दहलीज पर धकेल दिए गए सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने के लिए आवाज़ उठा रही थी.
और लगे हाथ मैं आपको वास्तविकता से भी अवगत करा दूं कि आप कितनी अ-भारतीय हैं. आप जिस ‘अखंड भारत‘ का दम भरती हैं, वो संस्कार और कर्म के प्राचीन सिद्धांतों की बुनियाद पर खड़ा है. अपने खुद के धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर देखें– आप देखें कि उनमें गरिमा, ईमानदारी, सम्मान और तमीज़ की बात है. इसकी बुनियाद में दूसरों को धमकाने और नीचा दिखाने की बात नहीं है. आप एक सच्चा भारतीय बनने से कोसों दूर हैं. डुकाटी की सवारी करने वाले पूंजीवादी गुरु सदगुरु के साथ एक बार चर्चा कर लेने भर से आप प्रबुद्ध नहीं बन जाते. बेशक, 2018 के उस संवाद ने ‘असली भारत’ बताकर मॉब लिंचिंग को आम घटनाओं की श्रेणी में डालने का भी काम किया था. लेकिन यहां बात उसकी नहीं है. अच्छे बात-व्यवहार के लिए आपको बुद्धिमान बनने की दरकार नहीं होती है. और, विद्रोही होने के लिए अहंकारी होना ज़रूरी नहीं होता.
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सिर्फ मैं
हर कोई आपके बारे में एक ही सवाल पूछ रहा है, कंगना. आगे क्या?
एक आगामी फिल्म में जयललिता की भूमिका करते हुए आपने निश्चय ही अपनी अगली पारी– राजीनीतिक नेता के बारे में ज़रूर सोचा होगा. क्योंकि इस वक्त आप बॉलीवुड के खाली अखाड़े में मुक्के बरसा रही हैं. जोश से लबालब, अगली लड़ाई के लिए तैयार.
बेशक, कंगना आपकी राजनीतिक उड़ान स्मृति ईरानी जैसी हो सकती है, जैसा कि बहुतों को उम्मीद है. यानि एक अत्यंत लोकप्रिय अभिनेत्री का कैबिनेट के सर्वोच्च गलियारे में जगह बनाना. लेकिन ईरानी से आपकी तुलना सही नहीं लगती. अटल बिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज के बाद, आज स्मृति ईरानी शायद भारतीय जनता पार्टी की सर्वाधिक वाकपटु नेता हैं, जिसकी अपनी कही बात पर पूरी पकड़ होती है.
हालांकि जैसा कि आप जानती होंगी, राजनीति में किसी खास काबिलियत की ज़रूरत नहीं होती है– किसी भी विभाग में सीधी भर्ती (लेटरल एंट्री) से बात बन जाती है. शायद यही आपका सपना है. स्मृति ईरानी की तरह ही विभिन्न विभागों की मंत्री बनना. बारंबार आप दिखा चुकी हैं कि किसी भी विषय पर आप अपनी राय दे सकती हैं, पलक झपकते ही. लेकिन खूब बोलना और समझदारी भरी बातें करना, दोनों एक ही चीज नहीं होती. रनौत खूब बोलती हैं. जबकि ईरानी की बातों में मतलब होता है.
कंगना, आपने अपनी छवि इस बेहद सार्वजनिक ड्रामा की सरल नायिका के रूप में चित्रित की है. आपका कहना है कि आपने तमाम गोलायथों से टक्कर ली है– बॉलीवुड माफिया, ठाकरे परिवार, मीडिया, उदारवादी, आरक्षण समर्थक लॉबी आदि-आदि. लेकिन वाई-प्लस सुरक्षा के घेरे में एयरपोर्ट से बाहर आने वाले डेविड नहीं होते हैं.
(लेखिका राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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