भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की जो बैठक 2010 में इंदौर में हुई थी उसे कई बातों के लिए आज भी याद किया जाता है. उसमें 52 वर्षीय नितिन गडकरी पार्टी के सबसे युवा अध्यक्ष बने थे. उस बैठक में गडकरी ने ‘सादगी’ के जो उपाय किए थे वे काफी चर्चा में आए थे. करीब 4400 पार्टी प्रतिनिधियों को तंबुओं में रहना पड़ा था. तंबुओं में सांप न घुसें इसके लिए सपेरों को तैनात किया गया था. मच्छरमार दवाओं आदि की भारी मांग की गई थी.
असुविधाएं चाहे जो भी रही हों, नवनिर्वाचित पार्टी अध्यक्ष ‘हिट’ हो गए थे. कभी नागपुर में दीवारों पर पार्टी के पोस्टर चिपकाने और नारे लिखने वाले साधारण कार्यकर्ता गडकरी पार्टी के सर्वोच्च पद पर बैठे थे. परिषद के अंतिम दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम में गडकरी ने मन्ना डे का गाना ‘ज़िंदगी कैसी है पहेली हाए, कभी ये हंसाए, कभी ये रुलाए …’ गा कर सबका खूब मनोरंजन किया था.
लेकिन आज केंद्रीय सड़क परिवहन तथा राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी नागपुर में एक आयोजन में कुछ दार्शनिक अंदाज में नज़र आए तो उनके साथी उनका गया उपरोक्त गाना याद कर रहे थे. गडकरी ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि आज राजनीति का किस तरह ‘शत-प्रतिशत सत्ताकरण हो गया है. मैं इस पर बहुत सोच रहा हूं कि राजनीति से कब अलग हो जाऊं. ज़िंदगी में राजनीति के सिवा भी बहुत कुछ है करने के लिए.’
राजनीति से संन्यास? वह भी मात्र 65 की उम्र में? यह विचार उनके मन में आया क्यों? आखिर उनके पास एक भारी-भरकम मंत्रालय है. उन्होंने नया लक्ष्य तय किया है, प्रतिदिन 60 किलोमीटर राजमार्ग बनाने का. वे एकमात्र नहीं, तो गिनती के उन कैबिनेट मंत्रियों में शुमार हैं जो अपने फैसले खुद करके अपना मंत्रालय चलाते हैं.
बाकी मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से निर्देशों का इंतजार करके खुश रहते हैं. अफसर लोग एक वाकये को याद करते हैं जब गडकरी के मंत्रालय के सचिव को ऊपर से यह फोन आया कि वे अपने मंत्री जी को कहें कि वे हर सप्ताह के अंत में नागपुर जाना बंद करें, जो कि आरएसएस का मुख्यालय है. सचिव ने यह अप्रिय काम संयुक्त सचिव को सौंप दिया. उसने जब गडकरी को हल्के से यह संदेश सुनाया तो वे हंस पड़े: ‘जिस किसी ने यह संदेश भेजा है उसे कह दीजिए कि नागपुर मेरा चुनाव क्षेत्र है. वहां हजारों लोग अपना काम करवाने के लिए मेरा इंतजार करते हैं. मैं उन्हें निराश नहीं कर सकता.’
मोदी युग में भी आरएसएस के आला नेतृत्व के साथ गडकरी के रिश्ते मजबूत बने हुए हैं. इसने उन्हें वित्तीय गड़बड़ी के अप्रमाणित आरोप में दोबारा पार्टी अध्यक्ष न बनाए जाने के बावजूद राजनीति में बनाए रखा है.
जहां तक ‘सत्ताकरण’ की राजनीति को लेकर उनके आक्रोश का सवाल है, अगर वे भाजपा के मौजूदा नेतृत्व पर कटाक्ष न कर रहे हों तो इसे उनका सबसे गंभीर बयान माना जा सकता है. केवल एक उदाहरण काफी होगा, यह उस नेता का बयान है, जो 2017 में देर रात पंजिम में पहुंचा, और 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा में मात्र 13 विधायकों वाली भाजपा वहां अपनी सरकार बनाने में सफल हो गई थी.
इसलिए, उनकी दार्शनिक जुगाली का क्या मतलब है? जैसा कि ऊपर बता दिया गया है, वे मोदी मंत्रिमंडल में गिनती के उन मंत्रियों में शुमार हैं जो अपना मंत्रालय खुद चलाते हैं. जब वे भाजपा अध्यक्ष थे तब कहा करते थे कि उनकी पार्टी को सत्ता हासिल करने के लिए बस 10 फीसदी और वोट चाहिए. तब उसे करीब 18 फीसदी वोट मिलते थे. बहरहाल, 2009 के बाद भाजपा के वोट प्रतिशत में दोगुनी वृद्धि हो गई है. इसके लिए वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जरूर आभारी होंगे.
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अज्ञात भय
यहां एक पेच है. गडकरी विचारों और लक्ष्यों के आदमी हैं— दिल्ली-मुंबई के बीच बिजली की गति वाला हाइवे, दिल्ली से आगरा के ताजमहल तक होवरक्राफ्ट, समुद्री विमान, बालों से अमीनो एसिड, खादों का आयात बंद करने के लिए देश में मूत्र संचय, आदि-आदि. मौजूदा शासन में उनके विचारों पर ध्यान देने वाले कम ही हैं.
देशभर में सड़कों का जाल बिछाने के लिए जिन्हें भाजपा सांसद तापिर गारो ने ‘स्पाइडरमैन’ नाम दिया है, उन गडकरी का ग्राफ निरंतर नीचे जा रहा है. मोदी के राज में वे भले सबसे लोकप्रिय नेता न हों लेकिन मोदी के पहले कार्यकाल में उन्हें एक कुशल प्रशासक माना गया था. 2014 में, उन्हें सड़क परिवहन और हाइवे के साथ जहाजरानी मंत्रालय भी दिया गया था. 2017 में उन्हें उमा भारती का जल संसाधन, नदी विकास, गंगा सफाई मंत्रालय भी सौंपा गया. 2014 में, गोपीनाथ मुंडे के दुखद निधन के बाद कुछ समय के लिए ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय का भी जिम्मा सौंपा गया था.
हालांकि उन्हें सुरक्षा मामलों की अहम कैबिनेट कमिटी से बाहर रखा गया लेकिन मोदी के पहले कार्यकाल में वे एक वजनी मंत्री थे. उनके करीबियों को लगा था कि वे रेलवे समेत सर्वव्यापी इन्फ्रास्ट्रक्चर मंत्रालय भी चाहते थे.
लेकिन मोदी के दूसरे कार्यकाल में वे अपना वजन खो रहे हैं. मई 2019 में उनके हाथ में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तो रहने दिया गया मगर जहाजरानी और नदी विकास तथा गंगा सफाई मंत्रालय से वंचित कर दिया गया. इसकी जगह उन्हें माइक्रो, स्माल ऐंड मीडियम इंटरप्राइजेज़ मंत्रालय दिया गया और बाद में वह भी वापस ले लिया गया.
मोदी सरकार में गडकरी का घटता वजन
एक समय था जब गडकरी मंत्रिमंडल की चर्चाओं में खूब भाग लेते थे. सरकारी अधिकारी बताते हैं कि अब वे शायद ही दखल देते हैं. गडकरी रिपोर्टरों को कहते रहे हैं कि वे तो दिल्ली में एक ‘बाहरी’ व्यक्ति हैं. भाजपा के नेता लोग बताते हैं कि 2010 की सर्दियों में गडकरी दिल्ली आए थे तब स्वेटर भी लेकर नहीं आए थे. पार्टी के एक सहयोगी उन्हें स्वेटर खरीदवाने ले गए थे. जब तक वे दिल्ली नहीं आए थे तब तक पार्टी के नेता शाम सात बजे तक काम खत्म कर देते थे. गडकरी देर रात तक बैठकें करने लगे. वे बड़े मेजबान थे. भाजपा नेता मज़ाक में कहा करते कि गडकरी उन्हें इतना भरपूर खिला देते थे कि वे उनींदे हो जाते और गडकरी जो कहते उसमें हां-में-हां मिलाते.
गडकरी जब भाजपा अध्यक्ष बने तब तथाकथित ‘डी-4’ या ‘दिल्ली-4’ के नाम से मशहूर चौकड़ी (अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार की) का बोलबाला था. बाहर वालों के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी. आज कोई डी-4 नहीं है लेकिन मोदी-शाह के दरबार में भी गडकरी ‘बाहरी’ हैं. भाजपा अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कई नेताओं— केवल दो नाम लें तो धर्मेंद्र प्रधान और स्मृति ईरानी— को आगे बढ़ाया. आज वे गडकरी से सुरक्षित दूरी बनाए हुए हैं.
गडकरी भाजपा की सर्वोच्च निर्णायक संस्था संसदीय मंडल के सदस्य हैं. लेकिन इसकी बैठकें बस मोदी और अमित शाह द्वारा पहले ही किए जाचूके फैसले पर मुहर लगाने की औपचारिकता पूरी करती हैं. भाजपा ने महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को गिरवाकर बागी शिवसैनिक एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया. गडकरी किनारे बैठकर यह नाटक देखते रहे.
गडकरी दार्शनिक क्यों हुए
मोदी और शाह नयी पीढ़ी के नेताओं को आगे बढ़ा रहे हैं, जो मूलतः उनके वफादार हैं. अब पुराने नेता अज्ञात को लेकर, अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर डरे हुए हैं. 2014 में मोदी ने भाजपा से 19 कैबिनेट मंत्री बनाए थे. उनमें से चार—मुंडे, स्वराज, जेटली और अनंत कुमार—का निधन हो गया. वेंकैया नायडू उप-राष्ट्रपति बना दिए गए, और तीन को राजभवनों में भेज दिया गया. उन 19 में से केवल चार ही आज मोदी मंत्रिमंडल में हैं—गडकरी, राजनाथ सिंह, नरेंद्र तोमर, और ईरानी.
2014 के बाद से 69 मंत्री मोदी मंत्रिमंडल से निकल चुके हैं. उनमें से अधिकतर तो बियावान की ओर बढ़ रहे हैं. उमा भारती शराब की दुकानों पर पत्थर फेंक कर खबरों में तो बनी हुई हैं मगर बाकी लोग पुनर्वासित किए जाने का इंतजार कर रहे हैं. इनमें कई पूर्व अहम मंत्री भी शामिल हैं, मसलन रवि शंकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर, हर्षवर्द्धन, सुरेश प्रभु, रमेश पोखरियाल निशंक, महेश शर्मा.
मंत्रिमंडल में इनकी वापसी तो नहीं होने वाली है. 2014 से जो इसमें किसी तरह बने हुए हैं उन्हें भी सावधान रहने की जरूरत है. मोदी के दूसरे मंत्रिमंडल में पहले के चार मंत्री ही बचे हैं तो कल्पना की जा सकती है कि उनके तीसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल में कितने रह पाएंगे, बशर्ते विपक्ष के लिए कोई चमत्कार सच न हो जाए.
मोदी और शाह सरकार और पार्टी में थोक परिवर्तन करने की प्रक्रिया चला रहे हैं. यही वजह है कि पुराने अनुभवी नेता दार्शनिक अंदाज में दिखने लगे हैं. गडकरी को याद होगा कि 2010 में इंदौर में उस शाम यह गाना गाया था— ‘ओ, नदिया चले चले रे धारा, चंदा चले चले रे तारा, तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा’.
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