निर्मला सीतारामण की अहमियत सिर्फ इसलिए नहीं है कि वे केंद्र सरकार की वित्त मंत्री हैं या कि वह यह पूर्ण कार्यभार संभालने वाली पहली महिला हैं या कि वह नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे वरिष्ठ महिला कैबिनेट मंत्री हैं. उनकी अहमियत इस बात में है कि वह एकमात्र ऐसी वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री हैं जो पत्रकार सम्मेलन करती हैं (बेशक, साल में एक बार) जिसे सभी टीवी चैनलों पर प्रसारित किया जाता है, और वह पत्रकारों को हर तरह से सवाल पूछने की छूट देती हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ऐसा नहीं करते, न ही गृह मंत्री अमित शाह ऐसा करते हैं. राजनाथ सिंह, पीयूष गोयल, स्मृति ईरानी आदि दूसरे केंद्रीय मंत्री ‘मीडिया ब्रीफिंग’ कर सकते हैं लेकिन वे काफी ‘ब्रीफ़’ यानी संक्षिप्त ही होती हैं और प्रायः सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं होती. कई मंत्री सरकारी या राजनीतिक दौरों/यात्राओं में साथ गए पत्रकारों से बात करते हैं मगर वह सब अनौपचारिक होती है और जनता वह बातचीत सुन नहीं पाती.
प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्रिगण अलग-अलग पत्रकारों या मीडिया हाउस को इंटरव्यू देते हैं लेकिन उसमें वह बात नहीं होती जो पत्रकारों से भरे हॉल में वार्ता में होती है जिसमें कई पत्रकार तीखे सवाल भी करते हैं. इस लिहाज से निर्मला सीतारमण का मंगलवार वाला प्रेस कॉन्फ्रेंस विशिष्ट माना जा सकता है.
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मीडिया के निशाने पर
बेशक, ऐसा करने वाली वह न तो पहली मंत्री हैं और न आखिरी मंत्री होंगी. संसद में घंटों लंबा बजट भाषण देने (वैसे, सीतारमण का भाषण सबसे छोटा 100 मिनट का ही था) देने के बाद तमाम वित्त मंत्री पत्रकार सम्मेलन करते रहे हैं जिसका सीधा प्रसारण होता है. वे दूरदर्शन समाचार को भी इंटरव्यू देते हैं. इसलिए सीतारमण एक परंपरा का ही पालन कर रही थीं, जैसा कि वे पिछले चार साल से कर रही हैं.
लेकिन यह इसलिए खास बन जाता है, जिसकी वजह से हम इसका इंतजार करते हैं, कि साल के 365 दिनों में इसी दिन हमें एक वरिष्ठ भाजपा मंत्री को मीडिया के निशाने पर देखने का मौका मिलता है. और निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री स्कूल टीचर वाले अपने खास अंदाज में हर सवाल का जवाब देती हैं. अपना बजट भाषण उन्होंने पूरी गंभीरता से दिया, जिस पर बहुत तालियां नहीं बजीं, न ही विपक्षी बेंचों की तरफ से बहुत टोका-टोकी या ‘हाय-हाय’ ही हुई.
पत्रकार सम्मेलन में वह अधिक तनावमुक्त दिखीं लेकिन जरूरत पड़ने पर कील जैसी नुकीली भी साबित हुईं. इसलिए, जब आयकर में कोई राहत न दिए जाने पर उनसे सवाल पूछा गया तब उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि दो साल से वह इन करों में वृद्धि करने से बचती रही हैं. बजट को ‘मोदी सरकार का शून्य बजट’ बताने वाले राहुल गांधी के बयान से संबंधित एक सवाल को उन्होंने उपेक्षा के साथ यह कहकर खारिज कर दिया कि वह तो ‘यूपी से भागे हुए एमपी’ हैं. जिस बेचारे पत्रकार ने बढ़ती महंगाई के सवाल पर उनके जवाब को ‘गोलमोल’ बताने की हिम्मत की उसकी उन्होंने जिस तरह खबर ली उसे वह शायद ही भूलेगा.
सीतारमण अपने आप में बेमिसाल हैं. उनमें चिड़िया जैसी चपलता दिखी, एक पल वह कहीं नज़र डाल रही थीं तो दूसरे पल कोई टिप्पणी कर रही थीं, वे हर एक के लिए उपलब्ध थीं. कभी वे मुस्करा रही थीं, तो कभी खीझ भी रही थीं. सम्मेलन की बागडोर उनके हाथ में थी, जरूरत पड़ने पर ही वित्त मंत्रालय के अपने सहयोगियों की मदद ले रही थीं वरना पूरे आत्मविश्वास से सवालों का जवाब दे रही थीं. यह टीवी पर अच्छा शो था.
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टीवी चैनलों पर खबरें
चुनाव स्पेशल की तरह बजट की खबरें भी टीवी समाचार चैनलों पर सूचनाप्रद और सारगर्भित होती हैं. सोमवार को और मंगलवार की सुबह समाचार चैनलों (कुछ तो सबेरे 7 बजे से ही) ने आर्थिक स्थिति की निराशाजनक तस्वीर पेश कर दी थी, इसलिए वित्त मंत्री जब संसद में 11 बजे बजट भाषण देने के लिए खड़ी हुईं तब हम सब पहले से तैयार थे.
सभी समाचार चैनलों ने यथासंभव ज्यादा-से-ज्यादा अर्थशास्त्रियों को आमंत्रित कर रखा था, सभी ग्रे सूट वालों को, लेकिन उनके पैनलों पर डॉ. इला पटनायक (दिप्रिंट की अतिथि संपादक) और डॉ. शमिका रवि सरीखी कई महिला अर्थशास्त्री भी मौजूद थीं. हमें पता चला कि एनडीटीवी 24×7 ने ‘हिट्स ऐंड मिस्सेज़’ नामक कार्यक्रम भी दिखाया. अधिकतर विशेषज्ञों ने इस बजट को ‘बूस्टर’ कहा, ‘वाह’ वाला बजट नहीं. एंकरों ने भी सहमति जाहिर की. ‘टाइम्स नाउ’ की नविका कुमार ने कहा कि यह ‘ब्लॉकबस्टर’ तो नहीं था मगर ऐसी बातों को जानने-समझने वालों ने ‘इसकी तारीफ’ की है. अधिकतर चैनलों और उनके एंकरों ने कहा कि बजट से आर्थिक वृद्धि और इन्फ्रास्ट्रक्चर को भारी बढ़ावा मिलेगा मगर इसमें कोई ‘मसाला’ नहीं है.
‘टाइम्स नाउ’ ने इसे ‘कम किसान कमाई’ वाला बताते हुए यह भी जोड़ा— ‘आत्मनिर्भरता के लिए ऊंची छलांग’. सीएनएन न्यूज़18 ने ‘जॉब्स, जनता, जनतंत्र’ का बजट बताकर तारीफ की. ये दो हेडलाइन अपवाद जैसी लगीं क्योंकि सभी चैनलों पर अधिकतर टीकाकारों ने बजट की यह कहकर आलोचना की कि इसमें बेरोजगारी, किसान असंतोष, और मध्यवर्ग की चिंताओं जैसे तात्कालिक मसलों का समाधान नहीं किया गया है. एबीपी न्यूज़ ने इसे ‘मध्यवर्ग को बड़ा झटका’ देने वाला बजट बताया.
समाचार एंकरों ने इन मसलों को उठाने से परहेज नहीं किया. उन्होंने बजट का बचाव करने के लिए तैनात किए गए भाजपा प्रवक्ताओं और हरदीप पुरी (टाइम्स नाउ पर) जैसे केंद्रीय मंत्रियों से इन मसलों पर भी सवाल पूछे. वे आयकर में राहत न दिए जाने को लेकर खास चिंतित थे और अपने मेहमानों से इस मसले पर काफी सवाल किए. जीएसटी आने से पहले के दौर में एंकर लोग सॉफ्ट ड्रिंक, टूथपेस्ट, सिगरेट तक घरेलू सामान की महंगाई पर सवाल पूछा करते थे. आज उनमें से किसी को यह नहीं समझ में आया कि फ़्रोजन मुसेल्स और स्क्विड पर शुल्क में जो कटौती की गई है उस पर क्या सवाल करें. इसलिए आयकर पर तो कुछ करना नहीं ही था.
टीवी पर सरकार के समर्थक
आयकर के बारे में सवालों को हर किसी ने हल्के में नहीं लिया. सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल को आज तक की एंकर अंजना ओम कश्यप के सवाल का लहजा नहीं भाया और वे आपा खो बैठे, उन्होंने कश्यप को बार-बार टोका और कटाक्ष करते हुए सवाल किया कि आप ही बताएं कि खर्च में कहां बचत की जाए. सान्याल ने उन पर राजनीति करने का आरोप भी लगाया.
रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्णब गोस्वामी को अभी भी लगता है कि अपने मेहमानों पर चीखना जरूरी है. उन्होंने नीति आयोग के आमोद कंठ पर सवाल दागा कि ‘टैक्स रिलीफ़ नहीं दी जाएगी तो कंजन्प्शन कैसे बढ़ेगा?’ कंठ ने सान्याल की तरह आपा नहीं खोया मगर उन्होंने भी उपेक्षा करने के लहजे से जवाब दिया कि सभी सेक्टर को ‘टैक्स में छूट’ देना संभव नहीं है. मेरा ख्याल है कि रिपब्लिक टीवी को चूंकि मध्यवर्गीय दर्शक देखते हैं, तो उन्हें यह जवाब पचा नहीं होगा.
सान्याल और कंठ को हरदीप पुरी से सबक लेना चाहिए, जिन्होंने टैक्स पर नविका कुमार (टाइम्स नाउ) के सवाल ‘(मध्यवर्ग के साथ) उस लव अफेयर का क्या हुआ?’ का कहीं अधिक शालीनता से यह जवाब दिया कि बजट में कई परोक्ष राहतें दी गई हैं.
कुल मिलाकर वित्त मंत्री और समाचार चैनलों के काम का एक दिन बढ़िया से बीता. जैसा कि योगेन्द्र यादव ने कहा, यह कोई ‘कविता’ तो नहीं थी लेकिन यह मुनासिब ही था.
(लेखिका द्वारा व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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