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Monday, 23 December, 2024
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‘कोरोना काल’ में कानून व्यवस्था का नया माॅडल दिख रहा यूपी में, पुलिस कर रही मदद

यह पुलिस का नया चेहरा है और इसका श्रेय सीएम योगी को जाता है. अगर कोरोना से हम जीतने जा रहे हैं तो उसमें पुलिस की भी बड़ी भूमिका होगी. जिसका सिर्फ एक विद्रूप चेहरा ही समाज के सामने प्रस्तुत किया जाता रहा है.

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देश अभूतपूर्व वैश्विक महामारी कोरोनावायरस से जूझ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशन में प्रदेश सरकारें इससे बचाव के इंतजाम में लगी हैं. इससे बचाव के लिए 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की गई है लेकिन इसे लागू कराने और इस दौरान आ रही चुनौतियों से निपटने में उत्तर प्रदेश एक माॅडल बन रहा है खासकर पुलिस की भूमिका में.

लॉकडाउन की शुरुआत में जिस तरीके से दिल्ली से मजदूरों का पलायन उत्तर प्रदेश की ओर हुआ, उसे संभालना आसान नहीं था. दिल्ली के आनंद विहार से यूपी की सीमा में प्रवेश करने वाली भीड़ लाखों में बताई जा रही थी. लोग वाहन न मिलने की स्थिति में पैदल ही घर जाने के लिए बेचैन थे. लग रहा था स्थितियां सामान्य नहीं होंगी लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्थितियों के अनुसार फैसला लिया और प्रशासन और पुलिस को दूसरे राज्यों से आकस्मिक पहुंचे लोगों को घर पहुंचाने का जिम्मा सौंप दिया. 1000 से अधिक बसों का इंतजान किया गया. नतीजा 24 घंटे के अंदर सड़कों पर अपार दिख रही भीड़ लगभग गायब हो गई.

पुलिस बनी ‘दोस्त’

यूपी में जगह-जगह पुलिस का मानवीय चेहरा दिखने लगा. वह परेशान लोगों को न सिर्फ घर पहुंचाने में मदद कर रही थी बल्कि उनके खाने, रहने और चिकित्सा के इंतजाम करती हुई दिख रही थी. बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ न सिर्फ पूरी व्यवस्था को मॉनिटर कर रहे थे बल्कि निर्देशित भी कर रहे थे. यह पुलिस का नया चेहरा है और इसका श्रेय सीएम योगी को जाता है. अगर कोरोना से हम जीतने जा रहे हैं तो उसमें पुलिस की भी बड़ी भूमिका होगी. जिसका सिर्फ एक विद्रूप चेहरा ही समाज के सामने प्रस्तुत किया जाता रहा है. नेतृत्व के भरोसे से उस चेहरे का सकारात्मक पहलू इस आपदा में सबके सामने आया.

वैसे भी देश में कानून व्यवस्था का ये माॅडल चर्चा में है. इसकी चर्चा खासकर सोशल मीडिया पर ज्यादा दिख रही है. बड़ी संख्या में लोग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कानून व्यवस्था संभालने के तरीके के समर्थन में हैं तो कुछ लोग इसे बेहद आलोचनात्मक नज़रिए से भी देख रहे हैं.

17 मार्च 2017 को जब योगी आदित्यनाथ ने सूबे का सिंहासन संभाला था तब उनके सामने तमाम चुनौतियां, वर्जनाएं और उनकी फायरब्रांड की छवि को लेकर आशंकाएं थी. अब योगी सरकार को तीन साल हो चुके हैं तो जाहिर है कि कठिन कसौटियों पर सरकार को कसा जाएगा और ऐसा होना भी चाहिए. कानून व्यवस्था के मोर्चे पर पहला काम अपराधियों में भय और आम नागरिकों में सुरक्षा का भाव होना है. इसकी शुरुआत अपराधियों के एनकाउंटर से हुई.

पुलिस के भय से अपराधियों के सरेंडर के लिए तख्ती लटकाने, फल सब्जी बेचने की घटनाएं सुर्खियां बनीं. इससे जो माहौल बना वह देश के अन्य राज्यों को भी प्रभावित करने लगा. दूसरा बड़ा काम अधिकारियों के एक वर्ग के विरोध के बावजूद प्रदेश में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम को लागू करना रहा. तीसरा बड़ा काम सीएए के विरोध में हुए हिंसक उपद्रवों से दृढ़तापूर्वक निपटने, उपद्रवियों से वसूली करने और सार्वजनिक तौर पर पोस्टर लगाने का रहा. न्यायिक आपत्तियों के बाद इस पर अध्यादेश लाकर योगी सरकार ने अपना रूख साफ कर दिया.

यह माॅडल अपराधियों के प्रति किसी भी हद तक जाकर सख्ती करने का है इसलिए कुछ लोगों को छोड़ दें तो सामान्य जनता पूरी तरह योगी आदित्यनाथ के इस मॉडल के साथ है और दूसरे प्रदेश भी इसका अनुसरण करने को उत्सुक दिख रहे हैं. यूपी में आज जिस इन्वेस्टमेंट की बात हो रही है उसका आधार भी कानून व्यवस्था पर बदली धारणा ही है.

वास्तविकता यह है कि बिना दंड के राज्य अधिकार नहीं चलता है और सेवा के बिना शासन नहीं होता. योगी सरकार ने इसे करके दिखाया है. कोरोना की भयावहता को देखते हुए योगी ने पुलिस को लाॅकडाउन का कड़ाई से पालन कराने के लिए पूरी छूट दी. नतीजतन जो मनबढ़ टाईप के लोग इसे हल्के में लेकर बिना काम के सड़कों पर घूमने लगे, उन्हें दंडित भी किया गया और जो जरूरतमंद या पीड़ित थे, उनकी ओर मदद का हाथ भी बढ़ाया गया. लखनऊ में खुद डीजीपी परेशान लोगों को मदद करते दिखे. एक अच्छी कानून व्यवस्था का यही माॅडल होना चाहिए.

(लेखक यूपी के पूर्व डीजीपी रहे हैं, वर्तमान में एक प्राइवेट यूनीविर्सिटी के कुलपति हैं. ये उनके निजी विचार हैं)

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