नेपाल हिन्दू राष्ट्र है, पर भारत से नाराज़ है. नाराज़गी उस समय अधिक बढ़ी है जब दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. क्यों है इतनी नाराज़गी? शायद दिल्ली में इस सवाल को लेकर बहुत अधिक गंभीरता नहीं दिखाई जा रही.
नेपाल द्वारा भारतीय करंसी पर पांबदी लगाने के कुछ दिन बाद ही हमारा नेपाल दौरा शुरू हुआ. स्वाभाविक सा सवाल था कि आख़िर नेपाल ने एकाएक भारतीय करंसी विशेषकर दो हज़ार व पांच सौ के नोट बंद क्यों किए? नेपाल तो अपना मित्र देश है? नेपाल और भारत में ज़मीनी स्तर पर ज़्यादा अंतर नहीं है? धर्म-संस्कृति सब कुछ तो मिलता है?
पर नेपाल जा कर देखा तो वास्तविकता कुछ और देखने को मिली. कोई माने या न माने नेपाल नाराज़ है और नाराज़गी में वो भारत से दूर होता चला जा रहा है. चीन की दख़लंदाज़ी हर क्षेत्र में बढ़ रही है. ख़ासकर युवा वर्ग में भारत को लेकर ज़बर्दस्त नाराज़गी है. नेपाली लोगों से बात करने पर बड़ा गहरा अर्थ लिए हुए जवाब मिलता है- ‘हम कट्टर हिन्दू हैं, पर भारत को पसंद नहीं करते. हमारा दोस्त चीन है.’ यह बात कहने वाले वहां का प्रबुद्ध वर्ग, पत्रकार, व्यापारी आदि तो हैं हीं, वे लोग भी हैं जो आमतौर पर राजनीति और अन्य बड़े मुद्दों से दूर रहते हैं.
2015 की नेपाल नाकेबंदी के लिए नेपाल में अधिकतर लोग भारत को ज़िम्मेवार मानते हैं. आम लोगों के साथ-साथ नेपाल सरकार में बैठे महत्वपूर्ण लोग भी मानते हैं कि नाकेबंदी में भारत की बड़ी भूमिका थी. नाकेबंदी को हुए तीन से ज़्यादा वर्ष बीत चुके हैं, पर नेपाल उन दिनों की मुश्किलों को भूला नहीं है.
नेपाल स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारी भी मानते हैं कि भारत को लेकर नाराज़गी बढ़ी है और चीन का दखल बढ़ा है. नाकेबंदी के बाद चीन ने कईं रास्ते खोले हैं और बड़े पैमाने पर चीन नेपाल में पैसा लगा रहा है. दुनिया भर के पर्यटकों में मशहूर पोखरा शहर में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण कर रहा है. भारत-नेपाल सीमा से सटे लुम्बिनी शहर के हवाई अड्डे का विस्तार भी चीन द्वारा किया जा रहा है.
कई अन्य परियोजनाओं में भी चीन दिलचस्पी ले रहा है. चीन ने अपने बंदरगाह तक नेपाल के लिए खोल दिए हैं. सड़क मार्ग से भी दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है. तिब्बत से काठमांडू तक रेल लाइन परियोजना को लेकर भी चीन उत्साहित है.
काठमांडू और पोखरा सहित कई शहरों में चीनी रेस्तरां खुलते चले जा रहे हैं. नेपाली बाज़ारों में लगभग हर दूसरी दुकान के बोर्ड नेपाली व अंग्रेज़ी भाषा के साथ-साथ चीनी भाषा में लिखे देखे जा सकते हैं. बड़ी तेज़ी से नेपाली बाज़ारों में चीन का क़ब्ज़ा होता जा रहा है.
चीन के पर्यटकों की तादाद बढ़ी
गत कुछ वर्षों से नेपाल में चीनी पर्यटकों की तादाद भी बढ़ी है. नेपाल टूरिज़्म बोर्ड के मीडिया सलाहकार शरद प्रधान के अनुसार 2018 के पहले छह माह में चीन से लगभग 75,745 पर्यटक नेपाल से आए. जबकि 2017 में इसी अवधि में चीन से आने वाले पर्यटकों की संख्या 55,960 थी. प्रधान के अनुसार 2018 की दूसरी छमाही के आकंडे़ अभी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं है, पर अनुमान है कि 2018 में डेढ़ लाख के क़रीब चीनी पर्यटक नेपाल आए.
2017 में चीन के कुल 10,4664 लाख पर्यटक नेपाल आए, जबकि भारत से 2017 में नेपाल जाने वालों की संख्या 16,0832 लाख थी.
हालांकि, अभी भी नेपाल में सबसे अधिक भारतीय पर्यटक ही जाते हैं, पर चीन तेज़ी से यहां भी भारत को कड़ी टक्कर दे रहा है. जानकारों का कहना है कि जिस तरह का उछाल चीन के पर्यटकों की संख्या में देखा जा रहा उसे देखते हुए वो दिन दूर नहीं जब चीन नंबर एक पर होगा. चीन द्वारा नेपाल में दिखाई जा रही दिलचस्पी की वजह से ही चीन के पर्यटकों की संख्या में उछाल हो रहा है.
सरकार में चीन का प्रभाव
न सिर्फ़ कारोबार में चीन का हस्तक्षेप बढ़ा है, बल्कि जानकारों के अनुसार नेपाल सरकार व प्रशासन के भीतर भी चीन के समर्थक लोग बढ़ रहे हैं. नेपाल सेना व नेपाल सशस्त्र पुलिस तक को चीन की ओर से प्रशिक्षण दिया जा रहा है. हाल ही में नेपाल सशस्त्र पुलिस को चीन ने एक अत्याधुनिक प्रशिक्षण केंद्र बना कर दिया है. इस प्रशिक्षण केंद्र को लेकर नेपाल में ख़ूब चर्चा है. पहले इसे भारत द्वारा किया जाना था. 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेपाल दौरे के दौरान इसकी घोषणा भी की गई थी, मगर यह घोषणा मात्र घोषणा ही रह गई. नेपाल में इसे भारत द्वारा वादाखिलाफी के तौर पर देखा जा रहा है.
और भी कईं परियोजनाएं हैं, जिनमें भारत ने पहले दिलचस्पी दिखाई, मगर बाद में उन्हें बीच में छोड़ दिया. पत्रकार रमेश बिसता का कहना है कि परियोजनाओं से हाथ खींच लेने की वजह से नेपाल में भारत की साख को धक्का लगा है.
नेपाल और भारत के बिगड़ते रिश्तों के बीच कुछ भारत विरोधी तत्व भी नेपाल में सक्रिय होने लगे हैं, जो कि बेहद ख़तरनाक स्थिति है. चीन ही नहीं, कुछ पाकिस्तान समर्थक तत्व धीरे-धीरे अपनी पकड़ बना रहे हैं. जानकारों के अनुसार पिछले कुछ समय से काठमांडू स्थित पाक दूतावास बेहद सक्रिय हुआ है. गंभीर बात यह है कि नेपाल प्रशासन तक में इन तत्वों की गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं.
भारत-नेपाल के रिश्तों में जमी बर्फ़ अगर जल्दी नहीं पिघली तो आने वाले दिनों में नेपाल भारत के लिए नया सिरदर्द बन सकता है .
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है. हाल ही में नेपाल प्रेस काउंसिल के बुलावे पर जम्मू कश्मीर से पत्रकारों के एक दल के साथ लेखक का नेपाल जाना हुआ था.)