20 मई, 1991 को राजीव गांधी ने दिल्ली के निर्माण भवन में लोकसभा चुनाव के लिए अपना वोट दिया और वे निकल गए चुनाव प्रचार के लिए. 21 मई, 1991. अपने अखबार में रात की शिफ्ट को खत्म करने के बाद हम लोग घर निकलने की तैयारी कर रहे थे. रात के एक बजे होंगे कि अचानक से पीटीआई की मशीन से अजीब सी आवाजें आने लगीं. पता चला राजीव गांधी नहीं रहे.
धमाके में मारे गए. देर रात को ही पीटीआई ने एक फोटो रिलीज़ की. फोटो राजीव गांधी के धमाके से छलनी हो गए शरीर की थी. उसके आसपास कुछ और शव भी पड़े. राजीव गांधी के मृत शरीर को तमिलनाडु कांग्रेस के नेता जी.के. मूपनार और जयंती नटराजन भय और अविश्वास के मिले-जुले भाव से देख रहे थे. अगले दिन दफ्तर पहुंचे तब तक खबरें आ रही थीं की सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और परिवार के मित्र सुमन दूबे मद्रास से राजीव गांधी के शव को लेकर दिल्ली आ गए हैं.
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अंत्येष्टि की तैयारी तीन मूर्ति भवन में
राजीव गांधी के शव को जनता के दर्शन के लिए तीन मूर्ति भवन में रखा गया. इधर से ही उनकी शव यात्रा को निकलना था. दिल्ली में गर्मी का कहर था. पूरा देश टूटा हुआ था. तब तक राहुल गांधी अपने परिवार के करीबी मित्र अमिताभ बच्चन के साथ अमेरिका से वापस भारत आ चुके थे. राहुल उन दिनों अमेरिका में ही पढ़ते थे. वे कुछ समय पहले दिल्ली के सेंट स्टीफंस कालेज से अमेरिका पढ़ने के लिए गए थे. लुटियंस दिल्ली से आईटीओ राजधानी में शांति स्थल के करीब शक्ति स्थल पर अंत्येष्टि की तैयारियां पूरी हो गईं थी. राजीव गांधी की शव यात्रा लुटियंस दिल्ली से निकलकर आईटीओ होते हुए अपने गंतव्य पर पहुंच रही थी.
सड़क के दोनों तरफ अपार जनसमूह अपने अजीज़ नेता के अंतिम दर्शन के लिए खड़ा था. और अब वक्त आ गया राजीव गांधी को अलविदा कहने का. शाम सवा 5 बजे अपार जनसमूह के सामने अंत्येष्टि वैदिक मंत्रोच्चार के बीच शुरू हुई. सोनिया गांधी काला चश्मा पहने अपने पुत्र राहुल को पिता की चिता पर मुखाग्नि देने के कठोर काम को सही प्रकार से करवा रहीं थीं. जो भी उस मंज़र को देख रहा था, उसका कलेजा फट रहा था. अमिताभ बच्चन भी वहां पर थे. तब तक उनके गांधी परिवार से मधुर संबंध थे. अंत्येष्टि के दौरान बनारस से खासतौर पर आए पंडित गणपत राय राहुल गांधी और अमिताभ बच्चन को बीच-बीच में कुछ समझा रहे थे.
विश्व के नेता देख रहे थे अंतिम संस्कार
इस सारे मंजर को दुनियाभर से आई गणमान्य हस्तियां देख रही थीं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ, उनकी प्रतिद्वंद्वी बेनज़ीर भुट्टो, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया, फिलीस्तीन मुक्ति संगठन के प्रमुख यासर अराफात वगैरह मुरझाए चेहरों के साथ बैठे थे. अराफात तो बार-बार फफक कर रो भी पड़ते थे. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, राजीव गांधी की कैबिनेट के सभी सदस्य, अटल बिहारी वाजपेयी, ज्योति बसु, लाल कृष्ण आडवाणी, सुनील दत्त समेत तमाम गणमान्य लोग भी अंत्येष्टि स्थल पर मौजूद थे. सभी गमगीन थे.
करीब डेढ़ घंटे तक चली अंत्येष्टि. शक्ति स्थल से वापस दफ्तर जाने का कोई साधन नहीं था. सड़कों पर लाखों लोग उमड़े पड़े थे. पैदल ही कस्तूरबा गांधी स्थित दफ्तर पहुंचे. अंत्येष्टि की खबर को कैसे लिखा, मालूम नहीं. अपने को कोस रहा था कि काश इस खबर को लिखने का मौका नहीं मिलता.
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अजीब इत्तेफाक है कि तीन मूर्ति भवन से ही उनके पिता फिरोज़ गांधी और नाना पंडित जवाहर लाल नेहरू की भी शव यात्राएं निकली थीं. कहने वाले कहते हैं कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी की शव यात्राओं में भी जनता की भागेदारी बहुत थी. पर राजीव गांधी की शवयात्रा को बहुत बड़ी शवयात्रा के रूप में याद किया जाता है. हालांकि इस लिहाज से दिल्ली में महात्मा गांधी से बड़ी शव यात्रा किसी ने नहीं देखी. तब तो कहते हैं कि सारी दिल्ली और आसपास के शहरों के लोग बापू के अंतिम दर्शन के लिए सड़कों से लेकर राजघाट पहुंच गए थे. सैकड़ों लोग अपने घरों से अंत्येष्टि के लिए घी लेकर आए थे. हज़ारों ने अपने सिर मुंड़वाए थे.
(वरिष्ठ पत्रकार और गांधी जी दिल्ली पुस्तक के लेखक हैं )