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शनिवार, 17 मई, 2025
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हर सातवें साल की दिक्कत: पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए चाहिए ‘टू-माइनस-वन’ का फॉर्मूला

पाकिस्तान और उसके छद्म सैनिकों को लगभग हर सात साल पर जबरदस्त खुजली होती रही है. युद्ध को बढ़ाने वाली हर कार्रवाई भारत को औसतन कई वर्षों तक पाकिस्तान के अंदर खौफ पैदा करने का मौका देता है.

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पाकिस्तान में नौ आतंकी अड्डों को भारतीय वायुसेना और थलसेना ने जिस तरह ध्वस्त किया उसके एक हफ्ते बाद एक सीधा-सा सवाल: तमाम देश फौज क्यों रखते हैं?

क्या उन्हें लड़ाई लड़ने के लिए रखा जाता है? कोई मूर्ख या मर्दानगी के जोश से लबालब कोई युवा ही यह बात कह सकता है, तो क्या सेना अपनी रक्षा के लिए रखी जाती है? यह तो छोटे देश करते हैं. महान राष्ट्र तो ऊंचे मकसद के लिए सेना रखते हैं.

ऊंचा मकसद है : लड़ाइयों को रोकना. देश जितना ताकतवर होगा, उसे उतनी ही ताकतवर सेना की ज़रूरत होगी — क्षेत्रों को जीतने के लिए नहीं और न दूसरों पर धौंस जमाने के लिए बल्कि अपने संप्रभु क्षेत्रों को मिलने वाली चुनौतियों को नाकाम करने के लिए. इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि सेना का मकसद दूसरे देशों के दुस्साहस को रोकने के लिए उनमें खौफ पैदा करना होता है.

इसके बाद यह सवाल उभरता है कि क्या हमने पाकिस्तान में इतना खौफ पैदा कर दिया है कि वह कोई दुस्साहस न करे? पहलगाम में आतंकवादी हमले ने दिखा दिया कि हम ऐसा नहीं कर पाए हैं. क्या यह हमने तब हासिल कर लिया जब संघर्ष विराम की मांग की गई?

बदला ले लेने का काफी जश्न मनाया जा रहा है, खासकर सोशल मीडिया पर, जिसने पाकिस्तानियों के साथ अपनी अलग जंग छेड़ रखी थी और जिस पर अभी संघर्ष विराम नहीं हुआ है.

पहलगाम में हमले के बाद हमारे विमर्श में आक्रोश भर गया तो यह समझ में आता है. ऐसा लगता है कि हर कोई बदला लेने को उतावला था, लेकिन संप्रभु देश खुद को प्रतिशोध में सीमित नहीं कर सकते. उन्हें और भी कुछ करना होता है. हम कह चुके हैं कि हमें दूसरे देशों के साथ शक्ति संतुलन बनाना होता है और इसमें सज़ा देने की ताकत भी जुड़नी चाहिए.

यह ‘रामचरितमानस’ के दोहे ‘भय बिन होहि प्रीति’ का सार भी है, जिसे एयर मार्शल ए.के. भारती ने तीनों सेनाओं द्वारा ब्रीफिंग के दौरान उद्धृत किया था. आतंकी आदतों पर भारत के शुरुआती हमलों का पाकिस्तान ने जिस तरह जवाब दिया उससे ज़ाहिर है कि अभी हम उसमें खौफ नहीं पैदा कर पाए हैं. सज़ा देने की ताकत 10 मई की सुबह सामने आई, जब पाकिस्तानी वायुसेना (पीएएफ) के सबसे प्रशंसित अड्डों, हवाई सुरक्षा और मिसाइल बैट्रीज़ पर कई हमले किए.

यह भयंकर सज़ा देने वाला हमला था और कीबोर्ड और प्राइम टाइम के योद्धा चाहे जो कहें, ऊंचे महकमों में सरकार की ओर से संदेश ‘बदला’ लेने का नहीं बल्कि खौफ पैदा करने का दिया गया था: अब आगे हर आतंकवादी गतिविधि को युद्ध माना जाएगा और हम तुरंत और कई गुना ज्यादा जवाबी कार्रवाई करेंगे, इसलिए बाज आ जाओ!

वैसे, तथ्य और इतिहास हमें यह विश्वास नहीं दिलाते कि आतंकवाद के खिलाफ भारतीय प्रतिरोध को राष्ट्रीय नीति के रूप में स्थापित किया जा चुका है.


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हमें यह आकलन करने की ज़रूरत है कि 2016 के बाद से जवाबी सैनिक कार्रवाई के स्तर को निरंतर ऊपर उठाते जाकर भारत ने क्या हासिल किया: 2019 में उरी, पुलवामा-बालाकोट और 2025 में पहलगाम – ‘ऑपरेशन सिंदूर’. वास्तव में हमें इनसे पहले से ही शुरुआत करनी चाहिए, जब 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमला किया गया था.

वह पाकिस्तानी सेना/आईएसआई की ओर से छद्म युद्ध की शुरुआत थी, जिसके बारे में गलत कहा गया था कि नागरिकता विहीन तत्वों ने युद्ध जैसा संकट पैदा कर दिया था. भारत ने इसके जवाब में पूरी सेना की तैनाती कर दी थी. इसने भारत को 26/11, 2008 तक अपेक्षाकृत शांति प्रदान की. यानी सात साल तक इस्तेमाल किया जाने वाला खौफ पैदा कर दिया गया था.

भारत ने अजमल आमिर कसाब को ज़िंदा पकड़ लिया, अमेरिकी नागरिक मारे गए और यहूदियों को खास तौर से निशाना बनाया गया — इन सबने पाकिस्तान को शर्मसार किया और दुनियाभर में शोर मचा. इसके बाद 8 साल तक डगमग शांति का दौर मिला.

अगला प्रकरण 2016 में पठानकोट और उरी कांडों के रूप में सामने आया. इसके जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक की गई. इसने पाकिस्तान को यह कहकर बचने का रास्ता दे दिया कि कुछ भी नहीं हुआ. इसे अब मुख्य रास्ते से उतरना कहा जाता है. 2019 में हुए पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी प्रशिक्षण अड्डे पर हमले का पीएएफ की ओर से जवाब आया. फिर भी, भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई स्पष्ट थी जिससे इनकार नहीं किया जा सकता था, लेकिन पाकिस्तान को दिखाने के लिए एक युद्धबंदी मिल गया था.

सिलसिले पर गौर कीजिए. पाकिस्तान और उसके छद्म सैनिकों को लगभग हर सात साल पर जबरदस्त खुजली होती रही है. आप चाहें तो तारीखों पर फिर से गौर करें. अब इस बार भारत ने लगभग युद्ध के रूप में अब तक का जो सबसे सख्त सैन्य जवाब दिया है वह क्या फिर सात साल तक पाकिस्तान को खौफ में रखेगा? भारत इससे बेहतर कार्रवाई कर सकता है.

आईएसआई और उसके छद्म सैनिक जल्दी ही फिर धमक सकते हैं. वह जेट विमानों, टैंकों, और ‘संभवतः’ परमाणु हथियारों के बूते जिहाद करने के सपने देखते रहते हैं. यह उनकी कल्पना है और इसे वह अपनी ‘तकदीर’ मानते हैं. भारत से जंग तो होनी ही है, यह ‘लिखा’ हुआ है, इसलिए वह जंग आज ही क्यों नहीं? इसे तब तक के लिए क्यों टालें, जब शक्ति संतुलन की खाई और चौड़ी हो जाएगी?

इस सिक्के के दोनों पहलुओं को ध्यान से देखने की ज़रूरत है, कि वह विराम के इन 5-7 साल में क्या करते हैं और हम जवाबी जंग लड़ने की तैयारी करेंगे, या खौफ पैदा करने की? इन बातों को वह इस तरह देख सकते हैं: खुद को निर्णायक मामलों में और मजबूत करें, ‘अगली बार’ भारत जब जवाब देता है तब उसके साथ खेलें. भारत को नियोजित, अपेक्षित जवाब देने से वंचित करें.

और, भारत किस तरह जवाब देता है? क्या हम जोखिम के स्तर को इसलिए ऊपर उठाते रहते हैं ताकि ज्यादा वक्त ले सकें? यह निरंतर गोल-गोल घूमते रहना है या एक ही घेरे से अंदर-बाहर कूदते रहना है. महाशक्ति बनने की ख्वाहिश रखने वाला और समृद्ध अर्थव्यवस्था वाला देश अपनी भावी पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए ऐसी योजना नहीं बनाता. यह उसे उसी सात साल की खुजली का कैदी नहीं बना रहने दे सकती.


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यही वजह है कि इसके खत्म होने के बाद पीढ़ियों आगे पर नज़र क्यों रखना ज़रूरी है. प्रतिरक्षा पर ज्यादा खर्च करें, रक्षा बजट को अगले तीन साल तक जीडीपी के 2.5 प्रतिशत के बराबर कर दें. इस साल इसे 1.9 प्रतिशत के बराबर रखा गया है, जो काफी कम है और जरा ध्यान दीजिए कि जवाहरलाल नेहरू के राज में 1962 की लड़ाई से पहले के साल में इसका जो अनुपात था उससे भी यह कम है. इसमें प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि आज खर्च के लिए 35,000 करोड़ और दिला सकती है.

इस अतिरिक्त राशि को अगली बार सज़ा देने और खौफ पैदा करने की ऐसी निर्णायक क्षमता बनाने पर खर्च कीजिए ताकि पाकिस्तान के पास जवाब देने की कोई गुंजाइश ही न बचे. मलक्का स्ट्रेट को बंद करने की ताकत हासिल करने का इंतज़ार किया जा सकता है. वैसे, भी हमें इस बात पर नज़र रखनी चाहिए कि क्या ‘क्वाड’ डोनाल्ड ट्रंप के बाद भी कायम रहेगा? केंद्रीय मुद्दा यह है कि हम हमेशा अपने दो मोर्चों का रोना नहीं रोते रह सकते और खुद को उलझाए नहीं रख सकते.

पांच साल तक सभी नया खर्च केवल एक मोर्चे पर करें. भारतीय वायुसेना को कहीं ज्यादा दूरी तक मार करने वाली ज्यादा मिसाइलें दी जाएं और उसके नंबरप्लेट वाले स्क्वॉड्रनों को भरा जाए. लक्ष्य इसकी आधी फाइटर सेनाओं को ‘बियोंड विजुयाल रेंज’ क्षमता से लैस करने का होना चाहिए. स्वदेशी हो या आयातित, कोई फर्क नहीं पड़ता. भारत और इंतज़ार नहीं कर सकता क्योंकि बुरे तत्व इंतज़ार नहीं करेंगे. अगर लंबी दूरी तक मार करने वाली तोपों को सज़ा देने वाले हथियार बनाना है तो एक बार में एक सौ की खरीद न करें, जैसे बच्चे हैमलेस से खिलौने खरीदते हैं, बल्कि एक बार में 1000 खरीदें. पाकिस्तान जब एलओसी के पार से 10 तोपों से फायर करता है तो आप 200 तोपों से फायर कीजिए. लंबी दूरी तक मार करने वाली तोपें जब भारी संख्या में तैनात होती हैं तब वह भयानक खौफ पैदा करती हैं. भारत यह कर सकता है. इसके लिए युद्ध को तेज़ करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यह गंभीर उकसावे का जवाब होगा.

अगर आप यह सही तरीके से करते हैं तो एक मोर्चा समस्या नहीं रह जाएगी. यह अपनी दो मोर्चों वाली या पाकिस्तान और चीन को मिलाकर त्रिशूल वाली स्थिति से उबरने का एक उपाय हो सकता है. अपने दो में से एक प्रतिद्वंद्वी के साथ अपने विवादों का निबटारा करने के दूसरे जिस विकल्प की तलाश शिमला समझौते के बाद 50 साल से हमारे सभी प्रधानमंत्री करते रहे हैं, वह इस पंगुकारी रणनीतिक बोझ के कारण हताशा पैदा कर चुकी है.

चीन को हमारे साथ स्थायी शांति कायम करने की कोई वजह नहीं नज़र आती क्योंकि पाकिस्तान उसके लिए एक ऐसा सस्ता औज़ार है जिसके बूते वह हमें असंतुलित कर सकता है. पाकिस्तान को उन लोगों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है जो इसमें यकीन करते हैं कि ‘यह हमारी तकदीर में लिखा है’. भारत को सिर्फ पाकिस्तान के ‘मोर्चे’ को बेअसर करने के लिए प्रतिरक्षा पर अतिरिक्त खर्च करके इस खेल को बदलना होगा.

पाकिस्तान अगर इसका मुकाबला करना चाहेगा तो उसे पर भी बोझ बढ़ेगा. यह भी याद रहे कि भारत-पाकिस्तान शक्ति संतुलन में एकमात्र प्रभावी खौफ पारंपरिक युद्ध के बूते ही पैदा किया जा सकता है. जब तक हम परमाणु विकल्प की बात करेंगे तब तक हम वैसे भी हवा हो जाएंगे. यह नामुमकिन है कि अमेरिका अब पाकिस्तान को नया कुछ देगा. चीन और तुर्किए दे सकते हैं, लेकिन अमेरिका की तरह वह उपहार नहीं देते.

ठहरी हुई अर्थव्यवस्था और तेज़ी से बढ़ती आबादी के कारण पाकिस्तान पैसे कहां से लाएगा? भारत को पाकिस्तान की किसी ज़मीन की ख्वाहिश नहीं है, उसे इस त्रिशूल से छुटकारा चाहिए.

भारत-पाकिस्तान पर यह बोझ डाल सकता है, एक साल के लिए नहीं बल्कि अगले 25 साल के लिए. वरना यह ‘विकसित भारत’ की राह का रोड़ा बना रहेगा. अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त एक बड़ी अर्थव्यवस्था को ऐसी प्रतिरक्षा चाहिए जो न केवल अभेद्य न हो बल्कि अपने दो में से कम-से-कम एक प्रतिद्वंद्वी में खौफ पैदा कर सके.

मोदी सरकार अब तक तो इसे अच्छी तरह निभाती रही है, लेकिन अगली बार खेल का कोई नया तरीका ढूंढना होगा. यह निश्चित मान कर चलिए कि अगली बार जरूर आएगा. ऑपरेशान सिंदूर का सबक यह है कि हम यह संकल्प लें कि ‘वह’ अगली बार हम कभी नहीं आने देंगे.

(नेशनल इंट्रेस्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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