scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होममत-विमतबिग बॉस चाहते हैं कि उमा भारती गंगा से दूर रहें

बिग बॉस चाहते हैं कि उमा भारती गंगा से दूर रहें

आने वाली ग्यारह अक्टूबर को जीडी अग्रवाल (सानंद) की पहली पुण्यतिथि है. सरकार को डर है कि उमा की यात्रा से सानंद का भूत फिर से सामने ना आ जाए.

Text Size:

उमा भारती ने घोषणा कर दी है कि वह डेढ़ साल हिमालय में रहेंगी. यह उनका नाराज़गी ज़ाहिर करने का तरीका है और इस तरीके को वे पहले भी कई बार आज़मा चुकी हैं. हालांकि अब देश और दिशा दोनों काफी बदले हुए हैं. उमा भारती ने कहा कि वे गंगा के करीब रहना चाहती है इसलिए उन्होंने हिमालय को चुना. वे वास्तव में गंगा यात्रा करना चाहती थी जिसकी अनुमति उन्हे उनकी पार्टी ने ही नहीं दी. भारती ने अध्यक्ष जी को 2013 की अपनी गंगा यात्रा याद दिलाई जिसके बाद भाजपा ने 2014 के चुनाव में गंगा पथ की ज्यादातर सीटें जीती थीं. लेकिन उनसे कहा गया कि गलतफहमी ना पालें, 2014 और उसके बाद मिली सारी विजय सिर्फ मोदी की है.

इसलिए नहीं मिली अनुमति

सरकार अब तक जीडी अग्रवाल की मौत से सहमी हुई है, इतनी कि उसने गंगा मंत्रालय खत्म कर उसे जलशक्ति में समाहित कर दिया है. ताकि ना तो अलग से गंगा पर बात हो ना ही जीडी अग्रवाल पर. अग्रवाल यानी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के आंदोलन को ना संभाल पाने और अनशन करते हुए उनकी मौत हो जाने को संघ से जुड़े लोग सरकार की बड़ी हार मानते हैं. (संघ के वरिष्ठ नेता कृष्णगोपाल ही सरकार और अग्रवाल के बीच बातचीत का जरिया थे. )

यह भी माना जाता है कि इसके लिए कहीं ना कहीं उमा भारती दोषी हैं. दरअसल हुआ यह था कि उमा से गंगा मंत्रालय छीन कर नितिन गडकरी को सौंप दिया गया था. अग्रवाल ने अपने आमरण अनशन की घोषणा गडकरी के कार्यभार संभालने के बाद ही की थी. अनशन के दौरान उमा भारती हरिद्वार मातृ सदन में पहुंची और सानंद की मांगों का समर्थन करते हुए उनकी बात गडकरी से कराई. सानंद खुद तो फोन रखते नहीं थे. इसलिए यह बात भारती ने अपने फोन से कराई – इस बातचीत में गडकरी ने इरीटेड होकर सानंद से कहा आपको जो करना है करिए. इसके कुछ ही दिन बाद सानंद चल बसे. बाद में यह बातचीत लीक हो गई जिससे गडकरी को काफी जिलालत झेलनी पड़ी.


यह भी पढ़ें: गंगा स्वच्छता के दस कदम, ना तो सरकारों को समझ आते हैं ना ही पसंद


आने वाली ग्यारह अक्टूबर को सानंद की पहली पुण्यतिथि है. सरकार को डर है कि उमा की यात्रा से सानंद का भूत फिर से सामने ना आ जाए. एक सवाल उमा की गंगा यात्रा के तय समय पर भी उठता है. वे यदि अक्टूबर की चार या पांच तारीख को गंगोत्री से यात्रा शुरु करती तो ग्यारह को हरिद्वार के आसपास पहुंचती और माहौल गरमाने की पूरी आशंका होती.

भारती की यात्रा का घोषित उद्देश्य भले ही गंगा स्वच्छता पर जन जागरण करना हो लेकिन वास्तव में यह यात्रा उनके लिए नई बीजेपी में जगह बनाने की आखिरी कोशिश है. वे खुद को पार्टी की सिपाही भी बता रही हैं और गंगा मुद्दे को जिंदा करने की कोशिश भी कर रही है. जबकि पार्टी के लोग ही नहीं चाहते कि राष्ट्रभक्ति के जश्न में डूबे देश का ध्यान गंगा की तरफ जाए.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उमा भारती अब कह रहीं है कि लोहारीनाग पाला को दोबारा शुरु करने की कोशिशों का विरोध किया जाएगा. लोहारीनाग पाला को भी जान लीजिए- यह गंगा के मुहाने पर बनने वाली 600 मेगावाट की परियोजना थी. जिसे 2010 में जीडी अग्रवाल के एक लंबे अनशन के बाद मनमोहन सिंह सरकार ने हमेशा के लिए बंद कर दिया था. यूपीए सरकार के रहने तक इस पर कोई भी बातचीत करने से प्रणव मुखर्जी ने इंकार कर दिया था.

2014 में नई सरकार आने के बाद से इसे दोबारा प्रारंभ करने की कोशिशें हो रहीं हैं. पिछले दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद इस पर आगे बढ़ने की उम्मीद बंधी हैं. इससे उत्साहित उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने केंद्र से परियोजना अपने हाथ में लेने की अनुमति मांगी है (पहले यह परियोजना एनटीपीसी द्वारा बनाई जा रही थी.) यदि आपका भोला मन सोच रहा है कि उमा जी बेहद गंगा प्रेमी है तो यह भी जान लिजिए कि अपने मंत्रित्वकाल में उन्होंने लोहारीनाग पाला सहित किसी भी बांध का कोई विरोध नहीं किया. बल्कि यह कह कर समर्थन किया था कि पहाड़ को रोजगार चाहिए और देश को बिजली, तो बांध बनाने ही होंगे.


यह भी पढ़ें: क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी और अभिनेता अक्षय, दोनों हकीकत से दूर फिल्मी दुनिया में रहते हैं


उमा भारती जब तक गंगा मंत्री रही उन्होंने कभी भी गंगा स्वच्छता को लेकर कोई समग्र नीति सामने नहीं रखी. गंगा एक्ट कभी सदन के पटल तक नहीं पहुंचा और ना ही कभी उन उद्योगों पर कोई कार्रवाई हुई जो नदी में अपना वेस्टेज बहाते हैं. हां इस पर बाते खूब हुई, अपने कार्यकाल में तकरीबन 12 बार उमा भारती ने गंगा सफाई की नई तारीख दी, जिस पर कभी अमल नहीं हुआ. वे गंगा मंत्रालय में अपनी नाकामियों का दोष पीएमओ पर यह कहकर मढ़ती रहीं कि उन्हें काम ही नहीं करने दिया गया और उनकी फाइलों को जानबूझकर लटकाया जाता था.

अब जबकि उमा सिस्टम का हिस्सा नहीं है. वे चाहती हैं कि देश की सबसे बड़ी नदी गंगा पर बात हो, और वे आंदोलन का चेहरा बने. उन्हें अपनी योजना पर नए सिरे से विचार करना होगा क्योंकि नया भारत बिग बॉस के नए सीजन और पाकिस्तान में व्यस्त है. और बिग बॉस चाहते हैं कि उमा अब हिमालय में ही रहें.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)

share & View comments