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Friday, 29 March, 2024
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नरेंद्र मोदी ने रणनीति के जरिये तैयार किया है अपना मतदाता वर्ग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया, विज्ञापन और प्रचार की बदौलत मतदाताओं को दो वर्गों में बांट कर एक को अपने हिस्से में पूरी तरह आरक्षित कर लिया है.

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2014 के आम चुनाव में भारतीय मतदाताओं ने युवा नेता राहुल गांधी को नकारते हुए उनसे डेढ़ गुना ज्यादा आयु वाले नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता सौंप कर यह साबित कर दिया था कि मोदी राहुल से ज्यादा युवा, ऊर्जावान और दूरदृष्टि वाले नेता हैं और वहीं से शहरी पार्टी कहलाने वाली भाजपा को मोदी ने गांव के युवाओं, मजदूरों और बुजुर्गों तक की पार्टी बना दिया. इधर पांच बरसों से ताबड़तोड़ हारती आई कांग्रेस के राजस्थान, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ जीत लेने के बाद भी मोदी के आत्मविश्वास में विशेष कमी नहीं आई है. इसका कारण, मोदी की वो सुनियोजित योजनायें हैं जो उन्होंने 2014 में चुनाव जीतने के बाद ही शुरू कर दिया था.

2019 का चुनाव नरेंद्र मोदी के लिए एक सुनहरा अवसर है जो या तो उन्हें भारतीय इतिहास में महानतम शासक के रूप में सदैव के लिए प्रतिष्ठित कर देगा या फिर एक ऐतिहासिक प्रश्न चिन्ह भी लगा देगा, जिसके कारण जनता किसी भी नेता के भाषणों, वादों और भावनात्मक बातों पर विश्वास कर उसे चुनना बंद कर देगी. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के बाद वो सितारे मोदी ही हैं, जिनके भाषणों पर जनता मोहित हुई थी कि इस बार पिछड़ी जाति के चाय वाले को गद्दी देकर देखो शायद हमें विकसित कर दे. और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने धीरे-धीरे मतदाताओं का एक विशाल वर्ग रणनीतिक रूप से तैयार कर दिया जो मजबूती से उनके मोहपाश में बंधा हुआ है.

मनमोहन सिंह से बिल्कुल विपरीत एक सख्त प्रशासक के रूप में: नरेन्द्र मोदी ने अपनी छवि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अलग एक सख्त प्रशासक की बनाई है जहां किसी आरोप की गुंजाइश नहीं. यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के रिमोट कंट्रोल की बैटरी उन्होंने निकाल दी. मंदिर पर तमाम संतों से लेकर, विश्व हिन्दू परिषद और मोहन भागवत रोजाना लाऊड स्पीकर से उन्हें अपनी आवाज सुनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे अनसुना कर केवल विकास की बात कर रहे हैं. प्रायः सरकार के पक्ष में आ रहे वैश्विक रिपोर्टों को जनता के सामने रखते हैं, जिससे जनता का एक बड़ा हिस्सा अभी भी उनके पक्ष में सिर हिला रहा है.

अपने समानांतर ‘कमजोर’ राहुल गांधी को खड़ा किया: मोदी ने केंद्र की सत्ता संभालते ही अपने सामने विपक्षी चेहरे के रूप में ‘कमजोर’ राहुल गांधी को रखना शुरू कर दिया जो वाकपटुता, भाषण, संवाद कला और तीक्ष्ण कटाक्ष के साथ-साथ जमीनी हकीकत में उनसे कम हैं. उन्होंने एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया है जो यह सोचने पर मजबूर है कि एक ही परिवार के लोगों को क्यों बार-बार प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए? यह कोई राजतंत्र तो नहीं है. बार-बार उन्हें ललकारने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, लालू यादव और ममता बैनर्जी जैसे ताकतवर विरोधियों को नजरअंदाज किया, कई न्यायिक मामलों में फंसे केजरीवाल चुप से हो गए और मोदी को राहुल गांधी पर बढ़त मिल गई और उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिला दिया की मोदी का कोई विकल्प नहीं.

परिवारवाद, वंशवाद और क्षेत्रीय दलों पर हमला: भाजपा में अभी उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम सब कुछ मोदी ही हैं. सर्वश्रेष्ठ और एकमात्र राष्ट्रीय प्रचारक जिसने चुनाव प्रचार के क्रम में देश का कोना-कोना नाप डाला है. इससे वो जनता में ऊर्जावान साबित होने के साथ शुरू से ही लोगों को समझाते रहे कि कांग्रेस आजादी के बाद से ही सत्ता में है ,जो घोटालों की बेताज बादशाह है. वह देश को दीमक की तरह चाट गई है. क्षेत्रीय पार्टियों को भी देश के विकास के लिए बाधा बताते रहे हैं. राजद, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, सपा, बसपा, डीएमके, एआईडीएमके, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों को बारम्बार वंशवादी और विकास विरोधी कह कर जनता के मन मस्तिष्क में बिठाने का प्रयास किया है कि ‘मेरा कोई विकल्प नहीं’ कुछेक को छोड़कर लगभग सभी पार्टियों के सुप्रीमो पर कुछ न कुछ आरोप लगे हैं, जिन्हें मोदी अपने पक्ष में करने की फिराक में हैं.

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महत्वपूर्ण योजनाओं का असर: मोदी उज्ज्वला, जनधन, मुद्रा, आयुष्मान भारत जैसी व्यापक प्रसार वाली योजनाओं को जमीनी स्तर तक ले गए जो वोट बैंक में बदल सकता है. प्रधानमंत्री मोदी की ये योजनाएं संजीवनी का काम कर रही हैं. वरना तीन राज्यों में कांग्रेस से मुंहकी खाने के बाद बीजेपी को संभालना मुश्किल था. लेकिन घर-घर गैस सिलेंडर पहुंच जाना, आसानी से सबका बैंक में खाता खुल जाना, बिना गारंटी लोन मिलना पहले शायद सपने जैसा था जिसे मोदी अपने पक्ष में न करें ऐसा भला संभव कहां!

महागठबंधन को दुष्प्रचारित करना: मोदी के खिलाफ बन रहे महागठबंधन ने भी मोदी प्रेमियों में यह विश्वास भरना शुरू कर दिया है कि ‘देखो मोदी देश बचाने में लगे हुए हैं और इनके खिलाफ सारे घोटालेबाज और विकास विरोधी एक हो रहे हैं.’ मोदी इसे भावनात्मक रूप से अपने पक्ष में कर रहे हैं.

नोटबंदी से परपीड़ा का सुख: देश की गरीब और सामान्य जनता को परपीड़ा का सुख मिला था, धनाढ्यों की परेशानियों से गरीब जनता को आनंद आया था कि ऐसी काली कमाई वालों को मोदी सजा दे रहे हैं. नोटबंदी के भारी विपक्षी विरोध के बावजूद भाजपा ने उत्तर प्रदेश का चुनाव जीत लिया था. सरकारी प्रबंधन के लिहाज से तो यह असफल रहा, लेकिन गरीब और निम्न मध्यवर्गीय जनता ने नोटबंदी में परपीड़ा का सुख पाया और लंबी कतारों में लग कर भी इसे सफल बनाया. भाजपा को नोटबंदी के समर्थकों से भी वोटों की उम्मीद है.

नरेन्द्र मोदी अपनी चमकदार छवि को सदैव बरकरार रखते हैं. उन्होंने जब से सत्ता संभाला है घोटालों की ख़बरें आनी लगभग बंद हैं और लोगों में यह विश्वास भरा है कि ‘मोदी आखिर किसके लिए कमा के रखेगा’.

पाकिस्तान विरोध और हिन्दू ह्रदय सम्राट: सत्ता में आने के साथ ही नरेंद्र मोदी की एक छवि यह भी बनी की मोदी ही हैं जो पाकिस्तान को नियंत्रण में रख सकते हैं. तो साथ ही अपनी एक छवि हिन्दू ह्रदय सम्राट की भी बना रखी है जो अपनी धार्मिक यात्राओं को जमकर प्रचारित करते हैं. उसका मीडिया की मुख्यधारा से लेकर सोशल मीडिया तक में जमकर प्रचार होता है. मोदी एक निष्णात धार्मिक व्यक्ति की तरह चंदन-टीका, त्रिपुण्ड, ऊर्ध्वपुंडक करते हैं, रंग-विरंगे अंग वस्त्र धारण करते हैं, हवन-आरती करते हैं कभी केदारनाथ तो कभी पशुपति तो कभी जगन्नाथ मंदिर जाते हैं. पूजा-पाठ सभी दलों के नेता करते हैं. बंगाल में वामपंथी भी दुर्गा पूजा को सहयोग देते हैं, लेकिन प्रायः नेता पूजा-पाठ के मीडिया में प्रचार से बचते दिखते हैं, लेकिन मोदी ने इसे अपनी पार्टी के प्रचार का एक मजबूत अस्त्र-शस्त्र बना लिया है जिसका उनके प्रशंसक सामाजिक व राजनीतिक रूप से भुनाते हैं और हिन्दू होने के गर्व का एहसास लोगों को दिलाते हैं. धार्मिक भावना से ओत-प्रोत लोग भी मोदी के साथ खड़े दिखाई देते हैं.

2014 से अभी तक की योजनाओं के लाभान्वितों का साथ मिलेगा: 2014 के आम चुनाव में भाजपा को 31 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसमें से प्रायः मोदी के साथ जा सकते हैं. मोदी सरकार ने अभी तक लगभग 6 करोड़ गैस सिलेंडर प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत वितरित किया है. प्रधानमंत्री जनधन में लगभग 30 करोड़ से ज्यादा बैंक खाते खुले हैं. मुद्रा योजना मे स्वरोजगार के लिए आसानी से लोन देना, दूसरा छोटे उद्यमों के जरिए रोजगार का सृजन करना भी मोदी के लिए लाभकारी हो सकता है. स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया, सांसद आदर्श ग्राम योजना, अटल पेंशन योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, स्टैंड अप इंडिया स्कीम, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के लाभार्थियों में से 25 प्रतिशत वोट भी मोदी के पक्ष में जाता है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि जीत कितनी बड़ी हो सकती है.

बहुप्रतीक्षित लोकलुभावन बजट: मोदी सरकार ने अंतरिम बजट में छोटे किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत हर साल 6000 रुपए की व्यवस्था, पहले जो आयकर की छूट ढाई लाख रुपये तक सीमित थी उसे बढ़ाकर पांच लाख रुपए कर दिया, मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना है, जिसने एकमुश्त कई करोड़ मतदाताओं को उनके वोट बैंक खाते में डाल दिया है.

सुशासन बाबू के नाम से विख्यात नीतीश कुमार कभी मोदी विरोध के अगुआ और विपक्ष के सबसे चहेते चेहरे थे जिन्हें रामचंद्र गुहा जैसे बड़े लेखक और इतिहासकार ने भी कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की पैरवी कर दी थी. कांग्रेस को मजबूत करने के लिए वे नीतीश भी अब मोदी राग गा रहे हैं. ऐसे में मोदी समर्थक जीत को लेकर उत्साहित हैं. बेशक नीतीश में अब पुरानी चमक बाकी नहीं रह गयी है.

प्रधानमंत्री मोदी की विपक्ष चाहे जितनी आलोचना करे, लेकिन मीडिया, विज्ञापन और प्रचार की बदौलत उन्होंने मतदाताओं को दो वर्गों में बांट कर एक को अपने हिस्से में पूर्णतः आरक्षित कर लिया है, उन्हें शायद सबसे ज्यादा मेहनत रूठे हुए मतदाताओं पर करना होगा, जिन्हें दो करोड़ रोजगार प्रति वर्ष देने को कहा था, लेकिन वो जुमला बन कर रह गया. 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण देकर उन्होंने कुछ संतुलन कायम करने की कोशिश की थी, लेकिन उलटा पड़ गया. अब पूरे देश में इसके विरोध में आवाजें बुलंद हो रहीं हैं. मोदी जी को एक काम और करना होगा कि वे अपने अनुयायियों को उग्रता प्रदर्शन से बचाएं, क्योंकि जनता ज्यादा उग्र नेताओं को कुछ कम पसंद करती है..फिर भी जिसका नाम मोदी है उसकी कौशल, रणनीति, और बाजीगरी का पता तो अब चलेगा कि मैदान से बाहर जाते गेंद को किसी तरह रोक लें.

(लेखक पत्रकार एवं मीडिया प्रशिक्षक हैं)

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