scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतसरकार को अगर एअर इंडिया को बेचना है तो उठाने होंगे ये पांच कदम

सरकार को अगर एअर इंडिया को बेचना है तो उठाने होंगे ये पांच कदम

1977 तक टाटा इस कंपनी के चेयरमैन रहे और उनकी देखरेख में इसका विस्तार होता रहा. इसका लोगो या प्रतीक चिन्ह 'महाराजा' था जो विदेशियों को बहुत भाता था और इसलिए इसे महाराजा भी बुलाया जाता है.

Text Size:

आज से लगभग 72 साल पहले जेआरडी टाटा ने दो इंजनों वाले एक विमान से एक एयर लाइंस की उड़ानों की शुरुआत की जो देखते ही देखते दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित विमान सेवाओं में शामिल हो गई. 1932 में शुरू की गई इस कंपनी को 1946 में पब्लिक लिमिटेड का दर्जा दिया गया. 1948 में भारत सरकार ने इसका 49 प्रतिशत हिस्सा खरीद लिया और 1953 में इसका पूरी तरह से राष्ट्रीयकरण कर दिया.

उस समय तक यह लंदन, पेरिस, रोम, नैरोबी जैसे विदेशी शहरों तक उड़ान भर रही थी. 1977 तक टाटा इस कंपनी के चेयरमैन रहे और उनकी देखरेख में इसका विस्तार होता रहा. इसका लोगो या प्रतीक चिन्ह ‘महाराजा’ था जो विदेशियों को बहुत भाता था और इसलिए इसे महाराजा भी बुलाया जाता है.

2001 में वाजपेयी सरकार ने इसका निजीकरण करने की कवायद शुरू की. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और यह घाटे में डूबती चली गई. इसके बावजूद एयरलाइंस प्रबंधन विमान खरीदती गई. कैग ने तो इसके बढ़ते घाटे का कारण उस समय 111 विमानों को खरीदना बताया था. इसका घाटा बढ़ता ही गया और हालत खराब होती चली गई. 2013 में जब तत्कालीन मंत्री चौधरी अजीत सिंह ने इसके निजीकरण की कवायद शुरू की तो सीपीएम और बीजेपी ने इसका विरोध किया. इसके बाद मोदी सरकार ने तमाम कोशिशें कीं और इसमें बड़े पैमाने पर निवेश भी किया.

2007 के पहले एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस दो अलग-अलग कंपनियां थीं लेकिन उस साल दोनों का विलय कर दिया जो इसके पतन का एक बड़ा कारण भी था. विदेशों को उड़ान भरने वाली एयर इंडिया भारी भरकम स्टाफ और उच्च प्रबंधन की उपेक्षा तथा भ्रष्टाचार के कारण घाटे में रहती थी. उसे इंडियन एयरलाइंस के साथ मिलाकर उसकी भी हालत खराब कर दी गई. इसे आगे बढ़ाने की बजाय मंत्री ने अरब मुल्कों की एयरलाइंस को वरीयता दी और लाभप्रद विदेशी रूट पर सीटें घटा दीं.

पिछले साल मोदी सरकार ने इसके 76 प्रतिशत शेयर बेचने की कोशिश की लेकिन कोई उपयुक्त खरीदार नहीं मिला. अब सरकार फिर से इसे बेचने जा रही है और इस बार वह इसके लिए पूरी कोशिश करेगी.

लेकिन इसके लिए सरकार को पांच बड़े कदम उठाने ही होंगे. पांच कदम इस प्रकार हैं.

स्टाफ में कटौती

एयर इंडिया की वही समस्या है जो एमटीएनएल-बीएसएनएल की है. यानी भारी भरकम स्टाफ. इस समय इसके पास 136 विमान हैं और 20 हजार से भी ज्यादा स्टाफ. एक समय इसकी प्रति विमान स्टाफ संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा थी. अब भी प्रति विमान यह संख्या 100 से ज्यादा है. दरअसल इस एयरलाइंस में राजनीतिक हस्तक्षेप बहुत ज्यादा रहा और कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर नियुक्ति की गई. न तो जरूरत के हिसाब से लोग रखे गए और न ही उपयोगिता की दृष्टि से. हालत यह है कि कर्मचारियों को वेतन देने में लाले पड़ रहे हैं. इससे एयरलाइंस को बहुत नुकसान हुआ. कोई भी कंपनी जो इस एयरलाइंस को खरीदना चाहेगी, इतना बड़ा स्टाफ नहीं रखना चाहेगी क्योंकि लागत घटाने के लिए उसे छंटनी करनी पड़ेगी. सरकार को अभी से ही वीआरएस जैसी योजना लानी पड़ेगी. लागत में कटौती के लिए यह दूरगामी कदम होगा.


यह भी पढ़ें : निजीकरण से मोदी सरकार को मदद मिलेगी, लेकिन यह राजनीतिक जोखिम से भरा है


ठोस और दीर्घकालीन योजनाएं

पिछली सरकारों ने कभी भी कोई ऐसी दूरगामी योजनाएं नहीं बनाईं जिससे इस एयरलाइंस का उद्धार हो सके. आईएएस या रेल अफसर को इसका प्रमुख बनाना महज प्रशासनिक कदम था और इसका इस एयरलाइंस को घाटे से निकालने के लिए कोई महत्व नहीं था. दरअसल इतना ऐसेट रखने वाली कंपनी के लिए उसी तरह की योजनाएं बनानी चाहिए थी जैसी दुनिया भर की कंपनियां बनाती हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है स्विस एयर लाइंस. 2002 में इसके पहले की कंपनी स्विसएयर का दिवालिया निकल गया था और फिर इसे नई योजनाओं तथा रणनीति के साथ पुनर्जीवित किया गया. तीन साल तक घाटे में चलने के बाद आज यह 40 अरब रुपए से भी ज्यादा की कमाई कर रही है. इसकी वज़ह सीधी सी थी कि नए प्रबंधन ने दूरगामी योजनाएं बनाईं और स्टाफ को जरूरत के हिसाब से ही रखा.

सरकार को इस विनिवेश के पहले स्टाफ की संख्या को घटाना ही होगा. अनुत्पादक स्टाफ की कोई जरूरत नहीं है.

सरकार का नियंत्रण

पिछली बार जब सरकार ने इसके विनिवेश के लिए प्रयास किया तो उसने सिर्फ 76 प्रतिशत बेचने का इरादा जताया. वह 24 प्रतिशत अपने पास रखकर अप्रत्यक्ष नियंत्रण चाहती थी. कोई भी कंपनी या वित्तीय संस्था अपने कारोबार में किसी भी सरकार की दखलंदाजी पसंद नहीं करती है. भारतीय ब्यूरोक्रेसी अपनी मनमानी और अड़ियल रवैये के लिए मशहूर है. इसके अलावा हमारे राजनेता भी कम नहीं हैं और वे भी हस्तक्षेप करने के लिए जाने जाते हैं. सरकार को अगर एयर इंडिया को बेचना है तो उसे पूरी तरह से अपने नियंत्रण से निकालना होगा. यह एक बहुत बड़ा कारण था जिससे खरीदार इससे विमुख हो गए.

कुशल प्रबंधन

इस विशालकाय एयरलाइंस को बेचने के पहले सरकार को इसके प्रबंधन में भी काफी बदलाव करना होगा. इसके लिए प्रोफेशनल प्रबंधकों की एक टीम लानी होगी जो इसके लिए योजनाएं बनाए और उसे लागू करे. किसी भी सरकार ने इस पहलू पर गौर नहीं किया और सिर्फ चेयरमैन ही बदलती रही और वह भी ब्यूरोक्रैट. आज वह जमाना नहीं है. इस तरह के हाई एंड ऑपरेशन के लिए कुशल और पेशवर प्रबंधक चाहिए.

जेट एयरवेज के डूबने का एक कारण यह भी था कि उसके प्रमोटर पेशेवर मैनेजरों की बजाय खुद भी कंपनी चलाते रहे. यह बात एयर इंडिया के साथ भी लागू होती है. यूपीए सरकार ने एक बार एक विदेशी फर्म को सलाह देने के लिए अनुबंधित किया था तो उसने एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलय करवा कर उसे भी बर्बाद कर दिया. इसलिए जरूरी है कि देसी प्रोफेशनल जिनका कोई व्यक्तिगत हित न हो, प्रबंधन में लाए जाएं. अगर एक बार कंपनी सही रास्ते पर जाते दिख जाएगी तो इसके विनिवेश में दिक्कत नहीं आएगी.

कमाई का मॉडल

सच तो है कि एयर इंडिया की टिकटें सबसे महंगी हैं और उसने 2018-19 में लगभग 30,000 करोड़ रुपए का कारोबार किया था. इसके बावजूद यह पूरी तरह से घाटे में है. इसका कारण यह है कि इसके पास अपना कोई रेवेन्यू मॉडल नहीं रहा. राजनीतिक दबाव से यहां सारा काम होता था, यहां तक कि विमान भी खऱीदे गए. पेरिस, न्यूयॉर्क जैसे महंगे शहरों में इसके दफ्तर थे जिससे लागत बढ़ी. इसके विपरीत कमाई का कोई मॉडल नहीं था. साल के शुरू में इस पर 58,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का कर्ज था जिसमें से सरकार ने 22,000 करोड़ रुपए की देनदारी खुद देने का प्रस्ताव किया है.


यह भी पढ़ें : ये दस कदम उठाकर मोदी देश को ले जा सकते हैं ऊंचाइयों पर


इसके अलावा भी सरकार ने इसका पूरा वर्किंग कैपिटल कर्ज यानी 15,500 करोड़ रुपए भी माफ करने का वादा किया है. लेकिन इसके बावजूद इस पर 20,000 करोड़ रुपए का कर्ज रह जाएगा. सरकार इस पर भी विचार कर रही है.

इसके लिए वह इसकी फालतू संपत्ति की नीलामी करने जा रही है. लेकिन अब महाराष्ट्र में अगाड़ी की सरकार बन जाने से वहां इसमें बाधा आएगी क्योंकि मुंबई की मशहूर एयर इंडिया बिल्डिंग खरीदने में पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस दिलचस्पी दिखा रहे थे. लेकिन यह बिल्डिंग ऐसी है जिसका कोई न कोई खरीदार जरूर मिल जाएगा. अगर सरकार कर्ज को रीस्ट्रक्चर करती है तो फिर कई खरीदार आगे आ सकते हैं क्योंकि एयर इंडिया के पास महत्वपूर्ण स्थानों पर परिसंपत्तियां हैं और उससे यात्रा करने के इच्छुक यात्री भी.

अगर एयर इंडिया अगली दो तिमाही में अपना बैलेंस शीट सुधार लेती है तो इसके लिए खरीदार भी आ जाएंगे. दुनिया में सबसे ज्यादा हवाई यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी भारत में हो रही है. यह दर पिछले साल 18.6 प्रतिशत है. बेहतर होगा कि सरकार इसमें जल्दबाजी न करे, सभी भागीदारों को साथ ले और कर्मचारियों के कल्याण की व्यवस्था भी करे. इसके बाद ही इसका विनिवेश उचित होगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)

share & View comments

1 टिप्पणी

Comments are closed.