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शुक्रवार, 27 जून, 2025
होममत-विमतमोदी-शाह की अक्साई चीन पर गीदड़ भभकी ने एलएसी को पार करने के लिए चीन की यिंग पाइ को सक्रिय कर दिया है

मोदी-शाह की अक्साई चीन पर गीदड़ भभकी ने एलएसी को पार करने के लिए चीन की यिंग पाइ को सक्रिय कर दिया है

अगस्त-सितम्बर 2019 में, ये बात ज़ाहिर हो गई कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सब कुछ ठीक नहीं है, जब पीएलए की ओर से भारतीय गश्त को रोका जाने लगा.

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उम्मीद भरी सुर्ख़ियों की जगह अब इस अहसास ने ले ली है कि लद्दाख की ऊंचाईयों पर सब कुछ ठीक नहीं है, जहां भारत और चीन आंखों में आंखें डाले डटे हैं. इनके रेटिना बहरहाल अब ठीक से नहीं दिख रहे, क्योंकि कुछ चीनी ट्रक्स अब पीछे हट गए हैं लेकिन पीपल्स रिपब्लिकन आर्मी के ज़मीनी बल, उन क्षेत्रों में जमे हुए हैं जहां वो अप्रैल 2020 से पहले नहीं थे. दिल्ली की नरेंद्र मोदी सरकार भले ही इसपर पर्दा डालने या इसे छिपाने की कोशिश करे लेकिन दुखभरी सच्चाई अब बाहर आ गई है.

उन लोगों की ओर से अज्ञात सैन्य सूत्रों का खंडन करने की हमेशा संभावना रहती है, जो लद्दाख में घुसपैठ पर यकीन नहीं करना चाहते, लेकिन एक स्थानीय बीजेपी पार्षद कई जगह पर चीनी घुसपैठ की पुष्टि करते हैं, इतने बड़े पैमाने पर, जो पहले नहीं देखा गया. लेह स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद में चुशुल के प्रतिनिधि, कोंचोक स्टेंज़िन ने अधिकृत रूप से, चीनी घुसपैठ की घटनाओं की पुष्टि की है.

2020 में कुछ बदल गया है और चीनी मीडिया की ऊंची आवाज़ और अभिप्राय दोनों, उस से बिल्कुल अलग है जो 2017 में पिछले बॉर्डर संकट के दौरान थे. उस साल सितम्बर में, संकट के ठंडा हो जाने के बाद, मेजर जनरल कियाओ लियांग ने, अपनी एक बहुत ही मैत्रीपूर्ण व्यक्तिगत राय लिखी थी. किसी सैनिक का एक मिलाप कराने वाला लेख लिखना, कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन मेजर जनरल लियांग 1990 के मध्य में, एक खास निबंध के सह-लेखक भी थे, जिसने लोकतांत्रिक सेनाओं में खतरे की घंटी बजा दी थी. उनकी अनरेस्ट्रिक्टेड वॉरफेयर पीएलए को गहराई से समझने के लिए एक आवश्यक अध्ययन बन गई है. इसलिए उनका ये लिखना, ‘चीन और भारत, पड़ोसी और प्रतिस्पर्धी दोनों हैं, लेकिन सभी प्रतिस्पर्धियों के साथ कड़ाई से नहीं निपटना चाहिए’ और, ‘बहुत से लोग कहेंगे कि चीनी इलाके में सड़क निर्माण से, भारत का कोई लेना-देना नहीं था. क्या ऐसा सोचना सही है? कुछ हद तक ये मुनासिब भी है, क्योंकि इस क्षेत्र में सड़क निर्माण सही या गलत का मसला नहीं है…बस ठीक समय पर ठीक काम करना ही सही है’- ये बात नोट करने लायक है.


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भारत का स्थाई रहस्य

तो क्या 2020 की गर्मियां, चीन के लिए ‘सही समय पर सही चीज़’ का मौका है? भारतीय पर्यवेक्षक, सैन्य और कूटनीतिक दोनों, इस जवाब के लिए जूझते रहे हैं कि आख़िर, ‘अभी क्यों?’ ये एक ऐसी पहेली है, जो दो सीधे कारणों से अभी तक अनसुलझी है.

अपने सैनिक रुख और नीतियों को लेकर, बीजिंग कभी भी बहुत पारदर्शी नहीं रहा है और ज़्यादा अहम ये है कि भारत कभी इस बात को नहीं समझ पाया है कि चीन कैसे काम करता है. सदियों के मेल-मिलाप के बाद भी, चीन के काम करने के ढंग को लेकर, भारत का ज्ञान और जागरूकता पर्याप्त नहीं है.

सभ्यता वाले बाकी बचे दूसरे राज्यों के उलट, चीन ने अपनी ‘कोर्ट’ प्रेरित शासन संस्कृति और मानव अस्तित्व के केंद्र के रूप में, इसके अंदर अपने दृढ़ विश्वास को काफी हद तक बचाए रखा है. और जैसा ऐसे कोर्ट्स में होता है, यहां भी अलग अलग गुट हैं. चीन में तेज़ी से बढ़ता हुआ एक सैन्य-नौकरशाही ग्रुप है, जिसे यिंग पाइ, बाज़, या गरुड़ कहते हैं.

माइकल पिल्सबरी ने द हंड्रेड इयर मैराथन: चाइनाज़ सीक्रेट स्ट्रैटजी टु रिप्लेस अमेरिका एज़ ग्लोबल सुपर पावर (2015) में लिखा, ‘इनमें से बहुत से यिंग पाइ, जनरल्स, एडमिरल्स और सरकारी हार्ड लाइनर्स हैं…ये वो चीनी अधिकारी और ऑथर्स हैं, जिन्हें मैं सबसे अच्छे से जानता हूं, क्योंकि 1973 से अमेरिकी सरकार ने, मुझे उनके साथ काम करने का निर्देश दिया हुआ है…मेरे लिए तो वो, चीन की असली आवाज़ की नुमाइंदगी करते हैं.’

यिंग पाइ जनरलों को सक्रिय करना

ये ‘चीन की असली आवाज़’ अब राष्ट्रीय पदचिन्ह बढ़ाने के अपने मिशन पर है. योजना, दूरदर्शिता और पहचाने जाने योग्य लक्ष्य के साथ, ये किसी भी अवसर को झपट लेते हैं. भारत ने बस वही एक ज़रा सा मौका दे दिया, जब अगस्त 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने, पाक अधिकृत कश्मीर और चीन के कब्ज़े वाले अक्साई चिन में, ख़ून बहाने का संकल्प लिया. उसके कुछ ही समय बाद अगस्त-सितम्बर 2019 में, ये बात ज़ाहिर हो गई कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सब कुछ ठीक नहीं है, जब पीएलए की ओर से भारतीय गश्त को रोका जाने लगा.


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उसके बाद, कोरोनावायरस ने भारत की अयोग्यता, इसके अजीबो-गरीब फैसलों, और इसकी सीमित क्षमताओं की पोल खोल कर रख दी. इस तरह भारत, संसाधनों वाला पहला ऐसा देश बन गया, जिसने अपने ही नागरिकों को अपनी सीमाओं के अंदर नहीं आने दिया, वो अकेला देश बन गया जिसने अपने सबसे गरीब लोगों को, हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर घर लौटने को मजबूर कर दिया और वो अकेला देश भी, जहां ट्रेनें अपना रास्ता भटक गईं.

आर्थिक तंगी ने मोदी सरकार को, रक्षा खर्चों में कटौती के लिए भी मजबूर कर दिया, जिससे यिंग पाइ जनरलों को यकीन हो गया कि गृह मंत्री अमित शाह की गीदड़ भभकी की पोल खोलने के लिए हालात बिल्कुल सही थे, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के बीच, नीतियां बनाने की जगह, राजनीतिक तेवर दिखाने को ज़्यादा अहमियत दी थी.

जोड़ी की ख़ामोशी

लेकिन जब दोनों सेनाओं के बीच एलएसी पर धक्का-मुक्की और पत्थरबाज़ी हुई, तो प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री के ऊपर बिल्कुल ख़ामोशी छा गई. वो प्रधानमंत्री जिन्होंने चीन के इतने दौरे किए, जितने उनके सारे पूर्ववर्तियों ने कुल मिलाकर नहीं किए, वो अकेले प्रधानमंत्री जिन्होंने चीन के सेंट्रल मिलिटरी कमीशन के अध्यक्ष के साथ झूला साझा किया, वो अकेले प्रधानमंत्री जिन्होंने बंगाल की खाड़ी में, किसी चीनी राष्ट्रपति की मेज़बानी की, उन्हें एशियाई शेरों की गणना के आंकड़े साझा करना मुनासिब लगा, लेकिन भारतीय क्षेत्र में पीएलए की मौजूदगी पर एक शब्द नहीं बोला.


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उनके गृह मंत्री ने, जो अक्साई चिन के लिए ‘अपनी जान देने को तैयार’ थे, पैंगॉन्ग त्सो के लिए ऐसा कोई संकल्प नहीं दोहराया है, जिससे चीनियों को इस बात की पुष्टि हो गई है, कि भारत की सत्ताधारी पार्टी का नेशनल मिशन केवल अगला चुनाव है. बीजिंग विश्व वर्चस्व हासिल करने के अपने सौ वर्षीय मैराथन के 70वें वर्ष में है और यिंग पाइ ने साफतौर पर, पूर्वी लद्दाख़ के ऊपर माहौल गर्म कर दिया है.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक कांग्रेस नेता हैं और डिफेंस एंड सिक्योरिटी अलर्ट के एडिटर-इन-चीफ हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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3 टिप्पणी

  1. भारत इतना कमजोर नहीं है कश्मीर में हजारों आतंकवादी मारे हैं लडना अच्छी तरह जानता है भारत

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