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Wednesday, 24 April, 2024
होममत-विमतगंगा से जुड़े सभी सवाल ऐसे डील किये जा रहे हैं जैसे कि वह इंटरनेट पर बहती हो

गंगा से जुड़े सभी सवाल ऐसे डील किये जा रहे हैं जैसे कि वह इंटरनेट पर बहती हो

गंगा में महाशीर और उस जैसे कई जलीय जीव तकरीबन लड़ाई हार चुके हैं. अफ्रीकन कैट ने इस लड़ाई को जीत कर गंगा पर कब्जा जमा लिया है.

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माइक्रोप्लास्टिक के बीच गंगा में तैरने की कोशिश करती महाशीर बता रही है कि नमामि गंगे ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया.

एक मछली है, विलेन मछली कह लीजिए. नाम है अफ्रीकन कैट. गंगा पथ के लोग इसे थाई मांगुर कहते हैं. महाशीर भी एक मछली है, किस्से कहानियों वाली सुनहरी मछली. जब से गंगा है तब से ही यह मछली भी है. और शायद उससे भी पहले से है क्योंकि महाशीर दुनिया की प्राचीनतम मानी जाने वाली धारा नर्मदा में भी मौजूद है.

गंगा की ठहरी धारा में हलचल है. वहां एक युद्ध चल रहा है. वैसे यह लड़ाई पिछले दो दशकों से जारी है लेकिन अब नदी की चिंता करने वाली संस्थाओं की नजर इस पर गई है. यह अस्तित्व की लड़ाई है जिसे महाशीर और उस जैसे कई जलीय जीव तकरीबन हार चुके हैं. अफ्रीकन कैट ने इस लड़ाई को जीत कर गंगा पर कब्जा जमा लिया है. उसकी जीत पर भारत सरकार ने भी हर्ष ध्वनि की है. अफ्रीकन कैट ने भी वादा किया है कि वह सरकार के नीली क्रांति के सपने को साकार करेगी.

नीली क्रांति के महान और मासूम रोडमैप पर विचार करने से पहले हालिया आई एक रिपोर्ट पर नजर डाल लेते हैं.
टॉक्सिक्स लिंक पर्यावरणीय मुद्दों पर काम करने वाला एक एनजीओ है.

माइक्रोप्लास्टिक नदी और समुद्र को सबसे ज्यादा कर रहा है प्रदूषित 

टॉक्सिक्स लिंक ने गंगा की महत्वपूर्ण पड़ावों हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी में गंगा जल की जांच की. उसने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि गंगा में बड़ी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक है. वाराणसी में माइक्रो बीड्स कानपुर से भी ज्यादा है जबकि सामान्य धारणा यह है कि कानपुर में सबसे ज्यादा टिनरीज और इंडस्ट्रियल सीवेज गंगा में जाता है.

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माइक्रोप्लास्टिक उन महीन सिंथेटिक ठोस कणों को कहते हैं जो पानी में नहीं घुलते. इन कणों का साइज 1 माइक्रोमीटर (माइक्रोन) से लेकर 5 मिलीमीटर (मिमी) तक होता है. यह माइक्रोप्लास्टिक नदी और समुद्र को प्रदूषित करने वाला सबसे खतरनाक तत्व है क्योंकि यह स्थाई होता है. स्थाई मतलब यूं समझिए कि प्लास्टिक की उम्र ब्रह्मा से भी ज्यादा है.


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यह बताने की जरूरत नहीं है कि आपके द्वारा फेंका गया एक पोलीथिन बैग और सरकार द्वारा पौधारोपण के बाद फेंके गए करोड़ों काले पॉलीथिन नष्ट नहीं होते हैं बल्कि नालियों से होते हुए नदी में पहुंचते हैं और एक वक्त के बाद कई महीन टुकड़ों में बंट जाते हैं और अंतिम रूप से समुद्र का हिस्सा बन जाते हैं. फिर ये माइक्रोप्लास्टिक स्वाभाविक रूप से मछली के पेट में जाते है और मछली के स्वाद के साथ हमारे शरीर में.

माइक्रोप्लास्टिक सहित घरेलू और औद्योगिक सीवेज गंगा के जलीय जीव के लिए गंभीर खतरा हैं लेकिन थाई मांगूर यानी अफ्रीकन कैट के लिए यह भोजन का काम करता है. अफ्रीकन कैट एक लड़ाकू प्रजाति है और हर तरह के कचरे सहित गंगा में पाई जाने वाली मछलियों को भी खाती है. अब तक यह भारत की दो हजार से ज्यादा जलीय प्रजातियों को खत्म कर चुकी है या विलुप्ति की कगार पर ला चुकी है. यह तेजी से खाती है और तेजी से बढ़ती है. इसके मांस में सीसा अच्छा खासा पाया जाता है.

भारतीय मांगूर की तरह ही दिखने वाली इस थाई मांगूर का फर्टिलिटी रेट भी देख लिजिए, भारतीय मांगूर जहां एक बार में पंद्रह हजार अंडे देती है वहीं अफ्रीकन कैट एक बार में चार लाख अंडे देती है. एक अनुमान है कि आप बाजार से जब भी मांगूर खरीदते हैं या होटल में खाते हैं तो दस में से नौ बार आपकी थाली में थाई मांगूर होती है.

यह खतरनाक मछली अपने आप समुद्र के रास्ते गंगा तक नहीं पहुंची बल्कि बकायदा उसे आयात कर लाया गया. नीति नियंताओं ने उसकी फर्टिलिटी रेट को देखा और नीली क्रांति को सफल बनाने और मछली पालकों को प्रोत्साहित करने के लिए इसे भारत की नदियों में ले आए. जब अफ्रीकन कैट ने आक्रामकता दिखाते हुए भारतीय प्रजातियों को खाना शुरू किया तब अहसास हुआ कि गलती हो गई. कागजों पर 20 साल पहले ही अफ्रीकन कैट पर बैन लगा दिया गया लेकिन जिनके मुंह मुनाफे का स्वाद लग चुका हो वे कानूनी-गैरकानूनी के गणित में नहीं उलझते. नीली क्रांति के सफल आंकड़ों में अफ्रीकन कैट का बड़ा योगदान है. इसे बड़ी मात्रा में बी टाउन मार्केट में खपाया जाता है.

दूसरी तरफ गोल्डन महाशीर तेजी से नदी से गायब होकर बेवीनारों, पर्यावरणीय चिंताओं, कविताओं और पोस्टर का हिस्सा बन रही है. इसी गोल्डन महाशीर की तस्वीरों को नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा अपने कार्यक्रमों में उपयोग करता है. महाशीर का होना तय करता है कि गंगा का पानी साफ है.

महाशीर का ना होना स्पष्ट संकेत है कि नदी खत्म हो रही है. महाशीर अब हिमालय के ऊपरी हिस्सों में ही मिल पाती है, गंगा का मैदान उसने पूरी तरह छोड़ दिया क्योंकि नमामि गंगे ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया. उसने महाशीर को वर्चुअल गंगा क्वेस्ट का विषय बनाकर छोड़ दिया.

गंगा से जुड़े सभी सवाल इसी तरह डील किए जा रहे हैं गोया गंगा इंटरनेट पर ही बहती हो.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और पर्यावरणविद हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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