जब हमारे पहले से ही इतने सारे न्यूज चैनल हैं तो कोई मनोरंजन चैनल क्यों देखना चाहेगा?
या फिर वह नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार, अमेज़ॉन प्राइम जैसे ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म – जो नई- नई, मौलिकता वाली और कभी-कभी उत्तम दर्जे की सीरीज भी पेश करते हैं – पर भी क्यों ध्यान देगा. हालांकि मुझे फैमिली मैन सीजन 2 के बारे में आपके विचार अभी पता नहीं हैं लेकिन मनोज बाजपेयी ने उसमे बहुत उम्दा अदाकारी की है, है ना?
मनोरंजन चैनलों को अमिताभ बच्चन (कौन बनेगा करोड़पति, सोनी) और सलमान खान (बिग बॉस, कलर्स) जैसे महानायकों पर हर साल कुछ महीनों तक भरोसा करना पड़ता हैं, जबकि प्रधानमंत्री तो लगभग-लगभग हर दिन समाचार चैनलों पर छाए होते हैं.
यह कहना कि 1980 के दशक में महाभारत या रामायण के बाद से मनोरंजन टीवी जगत में कोई भी मौलिकता आधारित धारावाहिक नहीं आया है थोड़ी ज्यादती तो होगी, लेकिन निश्चित रूप से, 2000 के बाद से उनके लिए तब से समय रुक सा गया है जब से सास-बहू की जोड़ियों ने हमें कसके अपनी साड़ियों के पल्लू में लपेट लिया और हमें – और साथ-साथ कैमरों को भी – उन्माद, षडयन्त्र, तथा ‘अच्छी’ और ‘बुरी’ बहुओं के बीच की शाश्वत लड़ाई के सर्वव्यापक आनंद की यात्रा पर ले गए.
वह साल केबीसी का भी पहला साल था, जिसने अपने प्रत्येक संस्करण में एक या दो करोड़पति बनाने का काम अभी बंद नहीं किया है और बच्चन साहब पिछले काफी समय से इस वर्ष के अंत में आने वाले इस क्विज़ शो के अगले सीज़न का प्रचार कर रहे हैं.
सपाट और सामान कंटेंट
अगर आज आप रिमोट हाथ में ले मुख्य मनोरंजन चैनलों की एक समीक्षा करें तो पाएंगे कि इनकी विषय सामग्री में कुछ खास नहीं बदला है- और यही बात समाचार चैनलों के लिए भी कही जा सकता है.
आइए इसका एक रियलिटी चेक करते हैं. इसके बारे में अगर बात करें तो यदि इंडियन आइडल (सोनी), सा रे गा मा पा (ज़ी टीवी) और बिग बॉस अभी भी मजबूती के साथ चलाये जा रहे हैं, तो द नेशन वॉन्ट्स टू नो (रिपब्लिक टीवी), वी द पीपल, बिग फाइट और हम लोग (एनडीटीवी 24×7, एनडीटीवी इंडिया) – यहां तक कि आप की अदालत (इंडिया टीवी) – जैसे समाचार कार्यक्रम भी अनवरत जारी हैं.
जहां तक रियलिटी शो फियर फैक्टर: खतरों के खिलाड़ी (कलर्स) की बात है, तो हमें न्यूज चैनलों पर भी डर का सामना करना पड़ता है.
बानगी देखिये, उत्तर प्रदेश में लखनऊ के पास बसे करौनी गांव में, निवासियों ने कोविड टीकाकरण से इनकार कर दिया है – वे कहते हैं कि उन्हें डर हैं कि ‘टीका ‘ उन्हें मार देगा (इंडिया टीवी). बिहार के कैमूर में महिलाएं मुफ्त भोजन छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन उन्हें टीका नहीं लगवाना है क्योंकि उन्हें डर है कि यह मौत की सुई है (ज़ी न्यूज़). और क्या आप को पता हैं कि इन समाचारों में, आप उनके डर को ‘सूंघ’ सकते हैं; फियर फैक्टर पर, तो हमें इसके प्रतियोगियों द्वारा किये जा रहे अद्भुत स्टंट के प्रयासों के कारण बहा पसीना हीं सूंघने/देखने को मिलता है.
और, जरा ये तो सुनिए. 2019 में जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने की अफवाहों पर टिप्पणी करते हुए, सीएनएन न्यूज 18 के एंकर ने इस बुधवार को कहा, ‘उस समय, पूरे के पूरे टीवी शो प्रसाद के कांग्रेस छोड़ने की खबर के प्रति समर्पित थे – तब, यह एक ‘टॉक शो’ था, अब यह एक ‘रियलिटी शो’ है.’ तो, अब भला मनोरंजन जगत के चैनलों के रियलिटी शो के लिए क्यों परेशान होना?
जीईसी (जनरल एंटरटेनमेंट कैटेगरी) चैनलों पर आने वाली एक और आम चीज है सोप ओपेरा – या लम्बे- लम्बे धारावाहिक. ये आमतौर पर समान पात्रों और बार -बार दिखने वाले एक से कलाकारों के सहारे सप्ताह के दिनों में चलते है. यही बात समाचार चैनलों के बारे में भी सच है – अर्नब गोस्वामी, नविका कुमार, राजदीप सरदेसाई, श्रीनिवासन जैन, ज़क्का जैकब, रुबिका लियाकत, अंजना ओम कश्यप, सुधीर चौधरी, रजत शर्मा, आदि, हर शाम घड़ी में रात के 8 या 9 बजने के साथ अवतररित होते हैं और संबित पात्रा, सुप्रिया श्रीनेत, गौरव भाटिया, पवन खेड़ा, प्रियंका चतुर्वेदी जैसे चैनलों में घूम-घूम कर आने वाले राजनेताओं के एक ही जैसे पैनल की मेजबानी करते है. वहीं डॉ रणदीप गुलेरिया और डॉ नरेश त्रेहन जैसे लोग डॉक्टरों के दाल का नेतृत्व करते हैं.
और क्या आपको ये सब लोग – या कम से कम इनमे आने वाले एंकर – इमली, मोक्ष, सौम्या, माही और इनके जैसे कई अन्य धारावाहिकों की तुलना में बहुत अधिक मनोरंजक नहीं लगते?
हिंदी धारावाहिक आम तौर पर पानी की लबालब टंकी जैसे होते हैं: इनके पात्र, महिलाएं और पुरुष दोनों, जब चाहे अपनी आंसू की नलिकाओं को चालू कर देते हैं और एपिसोड के अधिकांश समय में रोते हीं रहते हैं : इसके लिए शक्ति : अस्तित्व के एहसास की (कलर्स), तेरी मेरी इक जिंदरी (ज़ी टीवी ), या ये रिश्ता क्या कहलाता है (स्टार प्लस) देखे, जहां सभी महिलाएं किसी-न-किसी प्रियजन की मौत के शोक में आंंसुओं से भींगी- नहाई हुई दिखती हैं.
हाल ही में, हमने भी टेलीविजन समाचारों के माध्यम से देख और सुन कर उन लोगों के दुख को साझा किया है, जिन्होंने इस महामारी के कारण या उसके दौरान अपने किसी प्रियजान को खो दिया। आगरा के पारस अस्पताल मामले में मंगलवार को शोक संतप्त रिश्तेदारों को रोते हुए देखा गया, साथ ही वे कथित तौर पर एक ‘मॉक ड्रिल‘ के दौरान ऑक्सीजन की आपूर्ति को काट दिए जाने के कारण अपने स्वजनों की मौतों पर हंगामा भी कर रहे थे.
और हमने इतने सारे शव देखे हैं – चिताओं पर जलते हुए, एम्बुलेंस में, मोटरसाइकिल पर और नदी के किनारे बिखरे हुए भी – कि जब एक जोड़े ने सावधान इंडिया (स्टार भारत) के दौरान एक आदमी के शरीर – जिसे उन्होंने मार डाला था – को बेरहमी से घसीटा, तो हम न तो डरे और न ही चौंके.
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संघर्ष और संघर्ष
टीवी धारावाहिक संघर्ष/ विवाद के सहारे ही फलते-फूलते हैं और जीवित रहते हैं, तो फिर राजनीतिक ‘युद्ध का मैदान‘ – से बढ़िया खबर क्या होगी और कुछ इसी तरह पश्चिम बंगाल के चुनावों को हर जगह पेश किया गया.हर हेडलाइन, हर बहस में विपक्षी दलों के बीच कभी न पाटे जा सकने वाले मतभेद – ज्यादातर राजनीतिक और ज्यादातर भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच – ही दिखाई देते हैं.
सोमवार शाम को, प्रधान मंत्री मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन के बाद आपने चैनलों पर इस बात पर ‘सियासत’ देखी होगी कि उनके द्वारा घोषित टीकाकरण नीति में बदलाव के लिए श्रेय का असली हकदार कौन है – पात्रा बनाम चतुर्वेदी (आज तक) – यही आम कवायद है…. पिछले हफ्ते ऐसा हीं कुछ एक आईएएस अधिकारी को लेकर पीएम बनाम दीदी के मामले में था.
धारावाहिकों की तरह समाचार चैनलों में भी अच्छे लोग / पात्र (टीवी एंकर और आमतौर पर भाजपा), बुरे लोग /पात्र (राहुल गांधी, कांग्रेस, टीएमसी, और इन दिनों आप), सनसनीखेज़ नाटक (मेलोड्रामा) (समाचार चैनलों पर हर रात होने वाली तीखी बहस ज़ी टीवी के तुझसे है राब्ता की कड़ी प्रतिद्वंद्वी साबित होगी), और शादियां (क्या जितिन प्रसाद बुधवार को अपनी बरात लेकर भाजपा कार्यालय नहीं गए थे?) भी होते है.
रहस्य और मिथक
मनोरंजन चैनल साज़िश, रोमांच, रहस्य और रहस्यमय महिलाओं को पसंद करते हैं – खास तौर से धारावाहिकों के मामले में और सीआईडी जैसे जासूसी शो में, जो अभी भी सोनी या क्राइम पेट्रोल (दंगल) पर दुबारा से चलाया जा रहा है.
लेकिन समाचार चैनल भी अपने पास भगोड़े मेहुल चोकसी अभिनीत ‘एंटिक्स इन एंटीगुआ एंड डोमिनिका’ जैसा शो होने का दावा कर सकते हैं, इसमें भारतीय जांच एजेंसियां, जो डोमिनिका गई और फिर खाली हाथ वापस लौटी और मायावी बारबरा जराबिका – जिसने इंडिया टुडे को दिए ‘एक्सक्लूसिव‘ में चोकसी के इस दावे को खारिज कर दिया कि उसका अपहरण करने के लिए उनका इस्तेमाल किया गया था – जैसे अन्य पात्र भी है. इंडिया टुडे चैनल ने तो इस महिला को चोकसी द्वारा भेजे गए संदेशों को भी चलाया / दिखाया जिनमे से एक में ‘किस्सेस, किस्सेस किस्सेस’ लिखा हुआ था…उसके बाद आगे पढ़ें.
इन दिनों न्यूज़ एक्स पर पूरे दिन, ‘व्हाटएवर हैपेंड इन वुहान ‘ जैसी और भी रहस्यमयी ख़बरें चलती हैं, क्योंकि यह चैनल कोरोनोवायरस महामारी को एक चाइनीज लैब में हुई लीक से जोड़ने की जी-जान कोशिश कर रहा है.
सभी अच्छे धारावाहिक परिवारों के बारे में होते हैं – वैसे ही यहां के गांधी परिवार या ममता बनर्जी और उनके भतीजे, एम.के. स्टालिन और उनके बेटे जैसे परिवार से बेहतर और क्या होगा.
समाचार टीवी पर व्यंग्यपूर्ण कार्यक्रमों – द वीक दैट वाज़ नॉट (सीएनएन न्यूज़ 18) और सो सॉरी (इंडिया टुडे) – के रूप में हास्य विनोद भी शामिल रहते है – और यहां तक कि अधिकांश हिंदी समाचार चैनलों पर टीवी धारावाहिकों की हलचलों के बारे में भी रोज दिखाया जाता है – तो फिर भला मनोरंजन चैनल देखने की जहमत क्यों उठाई जाए?
अंततः, टेलीविजन मनोरंजन चैनक पौराणिक कथाओं – महाभारत, उत्तर रामायण, देवों के देव… महादेव, विघ्नहर्ता गणेश, और अन्य – के घर जैसे होते है.
समाचार चैनल उन दैविक ऊंचाइयों तक तो नहीं पहुंच सकते हैं, लेकिन उन्होंने मोदी के मिथक-निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है – वे अब हमारे सामने लंबे, सफेद बालों और दाढ़ी में दिखाई देते हैं – बिलकुल एक आधुनिक साईं बाबा (मेरे साईं, सोनी) की तरह.
वास्तव में, समाचार चैनल ही ‘असली’ मनोरंजन प्रदान करते हैं. पिछले साल लम्बे समय तक चले – ‘हू किल्ड सुशांत सिंह राजपूत?’- के बारे में सोचिये जरा.
लेकिन यह अगले हफ्ते की कहानी है.
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(यहां व्यक्त विचार निजी है)