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Friday, 22 November, 2024
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बंगाल के मुसलमान चाहे अब ममता के प्रशंसक नहीं हों, लेकिन उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है

बंगाल में मुसलमान अपनी धार्मिक पहचान से समझौता किए बिना शांति से जीने के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं.

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अधिकांश दिल्ली के टिप्पणीकारों को लगता है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ है. लेकिन, इस तरह का आसान विश्लेषण मतदाता के मूड को भांपने में विफल है.

बंगाल के 27.01 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम इस लोकसभा चुनाव में दुविधा में फंस गए हैं. वे 2009 में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में चले गए और अभी तक पार्टी का समर्थन किया. लेकिन, अब वे व्याकुल दिखाई दे रहे हैं.

ममता बनर्जी सरकार के प्रति बढ़ती नाराज़गी के साथ मुसलमान भी एक विकल्प की तलाश कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस और वामपंथी बंगाल में इस हद तक कमज़ोर हो गए हैं कि उनमें से कोई भी तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है.

हालांकि, पश्चिम बंगाल में भाजपा की मौजूदगी को विफल करने के लिए मुसलमानों की चिंता उन्हें एक बंधन में जोड़ देती है. शेष तीन चरणों के चुनाव में 24 सीटों पर मुस्लिम मतदाता कम से कम आधा दर्जन सीटों पर परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं.

अधूरे वादे

ऑल बंगाल माइनॉरिटी यूथ फेडरेशन के नेता मोहम्मद कमरुज्जमां कहते हैं कि यह सही है कि 2011 में मुसलमान बदलाव के पक्ष में थे. उस वक़्त कांग्रेस और टीएमसी दोनों वाम दलों के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे.

उन्होंने यह भी कहा दक्षिण बंगाल में सुल्तान अहमद, सरदार अमजद अली, इदरीस अली जैसे अधिकांश मुस्लिम नेता कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में शामिल हो गए हैं. मुसलमान भी तृणमूल कांग्रेस के साथ खड़े हो गए हैं.

लेकिन चीज़ें बदलने लगीं. अपने पहले कार्यकाल के एक वर्ष से अधिक समय में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की कि उनकी सरकार ने मुसलमानों के उत्थान के लिए आवश्यक 90 प्रतिशत काम को पहले ही पूरा कर लिया है.

लेकिन कमरुज्जमां कहते हैं कि आज भी ज़मीनी स्थिति नहीं बदली है. ममता ने नए मदरसों को मान्यता देना बंद कर दिया है. वाम सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों दौरान उन्होंने मुसलमानों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने के लिए अध्यादेश जारी किया था. अगर एक कानून बनाया गया होता. तो मुसलमान सरकार में 10 फीसदी आरक्षण के योग्य होते. हालांकि, ममता बनर्जी ने इसका संज्ञान नहीं लिया.

एक जैसा मतदान गुट नहीं

दक्षिण बंगाल जहां पर अगले तीन चरणों में मतदान होने वाले हैं. अधिकांश मुस्लिम मतदाता तृणमूल कांग्रेस के साथ खड़ा है. लेकिन एक वर्ग अब वामदल के साथ अपने संबंधों को नए सिरे से बनाने की कोशिश कर रहा है.

बशीरहाट 2014 तक एक पारंपरिक वामपंथी गढ़ था. सीपीआई के पल्लब सेनगुप्ता को लोकप्रिय अभिनेता और टीएमसी उम्मीदवार नुसरत जहां और भाजपा के सायन बसु से कड़ी चुनौती मिल रही है. तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों द्वारा कथित रूप से सेनगुप्ता की अभियान को बाधित कर दिया गया है. उनका दावा है कि स्थानीय पीरज़ादा (धार्मिक नेता) ने अपने अनुयायियों से उनके जैसे धर्मनिरपेक्ष उम्मीदवार का समर्थन करने की अपील की है. लेकिन, यह प्रमुख ट्रेंड नहीं है.

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस उत्तर दिनाजपुर, मालदा और मुर्शिदाबाद जैसे ज़िलो में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. इन जगहों पर लोकसभा चुनाव के पहले चार चरणों में मतदान किया जा चूका है. मुसलमानों का यहां काफी बोलबाला है और पारंपरिक रूप से 2014 के चुनावों के दौरान भी कांग्रेस या वाम दल का समर्थन किया था.

कांग्रेस ने मालदा ज़िले की उत्तर और दक्षिण दोनों सीटें जीतीं थी और 2014 में बरहामपुर और जंगीपुर पर भी जीत बरकरार रखने में कामयाब रही है. वामदल ने मुर्शिदाबाद और रायगंज लोकसभा सीट पर जीत प्राप्त की थी.

सेंटर फॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज़ कलकत्ता के राजनीतिक वैज्ञानिक मैदुल इस्लाम का कहना है कि मुसलमानों की कई राजनीतिक प्राथमिकताएं हैं और उन्हें एक मतदान गुट में शामिल नहीं किया जा सकता है.

बंगाली मुसलमान जो ग्रामीण क्षेत्रों में किसान हैं. आज़ादी के पहले दो दशकों तक कांग्रेस के साथ थे. लेकिन ग्रामीण बंगाल के कुछ हिस्सों में उन्होंने तेभागा आंदोलन के प्रभाव के कारण कम्युनिस्टों का समर्थन किया था.

वामदल के शासन के दौरान ग्रामीण बंगाल में मुसलमानों के एक बड़े हिस्से ने धीरे-धीरे खुद को वामपंथियों के साथ जोड़ लिया. हालांकि, सिंगूर और नंदीग्राम में वामपंथी सरकार का जबरन अधिग्रहण और सच्चर कमेटी की बंगाल में मुसलमानों की स्थिति पर रिपोर्ट ने उस समर्थन को खत्म कर दिया और तब से उन्होंने ममता बनर्जी ने तृणमूल का समर्थन करना शुरू कर दिया.

हाथ बंधे हुए

लेकिन 2019 में कमरुज़्ज़मा और कई अन्य मुस्लिमों के लिए मोदी और ममता के बीच चयन करना काफी मुश्किल है. अगर मोदी कट्टर हिंदुत्व का चेहरा हैं, तो ममता नरम हिंदुत्व का चेहरा हैं.’

ऐसा नहीं है कि बंगाल में भाजपा पूरे हिंदू वोट बैंक पर काबिज है. ममता बनर्जी ने अब सार्वजनिक सभाओं में अपनी हिंदू पहचान को बताना शुरू कर दिया है. उनकी पार्टी तृणमूल भाजपा के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए राम नवमी और हनुमान जयंती का पर्व मना रही है. आसनसोल में सूर्य मंदिर बनाने की भी योजना बना रही है. ममता बनर्जी ने बार-बार यह दावा किया है कि वह एक पवित्र हिंदू हैं, लेकिन ‘भाजपा के हिंदू धर्म के विचार‘ के खिलाफ हैं.

कमरुज़्ज़मां कहते हैं कि अगर कांग्रेस और वामदल सूझबूझ कर साथ मिलकर चुनाव लड़े होते तो हम उनका तहे दिल से समर्थन करते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

पश्चिम बंगाल में मुसलमानों के लिए यह चुनाव पिछले चुनावों से बिलकुल अलग है. कमरुज़्ज़्मां कहते हैं, यह स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को वादा पूरा न करने के लिए बदला लेने का समय नहीं है.

बंगाल में मुसलमान अपने सुरक्षा और संरक्षण के लिए लड़ रहे हैं. अपनी धार्मिक पहचान से समझौता किए बिना शांति से जीने का उनका अधिकार हैं.

2014 में चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण बंगाल आए थे और बांग्लादेश के ‘अवैध प्रवासियों’ को हटाने की धमकी दी थी. इस बार मोदी ने बंगाल में अपने अभियान की रैलियों में ममता बनर्जी के खिलाफ तीखा हमला किया. नागरिकता और अवैध आप्रवासियों के मुद्दों को अध्यक्ष अमित शाह के ऊपर छोड़ दिया.

तृणमूल कांग्रेस से बढ़ती चिढ़ के बावजूद, बंगाल के कई मुसलमानों द्वारा अभी भी पार्टी के लिए वोट करने की संभावना है ताकि वे भाजपा को बाहर निकल सकें.

(लेखक पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. उनके विचार व्यक्तिगत हैं.)

(इस खबर के अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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