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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमत‘सर तन से जुदा’ फिलॉस्फी नहीं छोड़ रहे मुस्लिम नेता—उदयपुर हत्याकांड पर हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने क्या लिखा

‘सर तन से जुदा’ फिलॉस्फी नहीं छोड़ रहे मुस्लिम नेता—उदयपुर हत्याकांड पर हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने क्या लिखा

पिछले कुछ हफ्तों में हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने विभिन्न खबरों और सामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उन पर क्या संपादकीय टिप्पणी की, इसी पर दिप्रिंट का राउंड-अप.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने लिखा है कि उदयपुर हत्याकांड पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले मुस्लिम नेता ‘सर तन से जुदा’ की फिलॉस्फी को पूरी तरह खारिज नहीं कर रहे हैं.

ऑर्गनाइजर के संपादकीय में कुछ ‘तत्वों’ को कट्टरता को प्रोत्साहित करने का जिम्मेदार ठहराया गया जिसमें ‘कम्युनिस्ट, एनजीओ, शिक्षाविद, थिंक टैंक, धर्मनिरपेक्ष राजनेता, तीस्ता सीतलवाड़ जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ता और फैक्ट-चेकर के भेष में (ऑल्टन्यूज के सह-संस्थापक) जुबैर जैसे में फेक न्यूज फैलाने वाले शामिल हैं.’

संपादकीय में लिखा गया है, ‘ये सभी एक्टर घृणा की मानसिकता फैलाते हैं और कट्टरपंथियों को कानून अपने हाथ में लेने का हौसला देते हैं.’

ऑल्टन्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी, इस्लाम में सुधार की आवश्यकता, महाराष्ट्र में एक नई सरकार का गठन और रुपये में गिरावट ऐसे अन्य मुद्दे थे, जो पिछले हफ्ते हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस में काफी मुखरता से छाए रहे.

दिप्रिंट अपने राउंडअप में बता रहा है कि पिछले एक सप्ताह में हिंदुत्व समर्थक प्रेस में किन मुद्दों ने सुर्खियां बटोरीं.

‘काफिरोफोबिया को बढ़ावा देना’

उदयपुर हत्याकांड के आरोपियों गौस मोहम्मद और रियाज अटारी के सुन्नी इस्लाम के सूफी-बरेलवी मरकज से जुड़े पाकिस्तानी संगठन दावत-ए-इस्लामी से कथित संबंधों का जिक्र करते हुए ऑर्गनाइजर के संपादकीय में कहा गया, ‘ऐसे संगठन दुनियाभर में हदीस के मुताबिक इस्लाम के प्रचार-प्रचार में लगे हैं और इस्लाम को न मानने वालों के प्रति एक घृणा का माहौल बनाने हुए काफिरोफोबिया को बढ़ावा दे रहे हैं,’

इसमें लिखा है, ‘बेशक, घटना को अंजाम देने वाले गौस और रियाज हैं. फिर भी, उनके दिमाग इस तरह की बातें भरने वाले और ऐसी सीख देने वाले एजेंट इसमें समान अपराधी हैं.’

न्यूज18 के लिए एक ओपिनियन पीस में आरएसएस पदाधिकारी राजीव तुली ने लिखा कि उदयपुर की हत्या ‘एक खास इस्लामवादी विचारधारा का नतीजा थी जो अन्य धर्मों के लोगों के साथ सह-अस्तित्व को एक घृणित विचार मानती है.’

तुली ने आगे लिखा, ‘इस्लामी कट्टरवाद एक वैश्विक घटना है. इसका उद्देश्य इस्लाम के ‘मूल’ सिद्धांतों पर लौटना है जैसा 7वीं शताब्दी में अरब देशों में होता था. इस फिलॉस्फी का खतरनाक हिस्सा यह है कि यह इस्लामवादी आस्तिक को इस धर्म में विश्वास न रखने वाले अन्य सभी को जबर्दस्ती, हिंसा और अपनी ताकत के बल पर इस्लाम में धर्मांतरित कराने को कहती है.’


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‘क्या जुबैर पत्रकार हैं’

आरएसएस के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य में एक संपादकीय में उन लोगों से सवाल किया गया जिन्होंने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी के बाद उनका समर्थन किया था. जुबैर को दिल्ली पुलिस ने पिछले महीने निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी की 1983 की एक फिल्म के एक सीन के साथ चार साल पुराने ट्वीट के मामले में धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

संपादकीय में सवाल उठाया गया, ‘ये कौन लोग हैं जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हैशटैग ‘मैं जुबैर के साथ हूं’ ट्रेंड करा रहे हैं, जबकि मोहम्मद जुबैर की तरफ से नूपुर (शर्मा) के खिलाफ शुरू किए गए सांप्रदायिक नफरत वाले अभियान का नतीजा उदयपुर के दर्जी कन्हैया लाल का सिर कलम किए जाने के तौर पर सामने आया है.’

जुबैर की गिरफ्तारी की निंदा करने वाले एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के बयानों का जिक्र करते हुए संपादकीय में कहा गया है, ‘ये दोनों संस्थान पत्रकारों के हितों और मामलों को देखने के लिए हैं. क्या जुबैर पत्रकार हैं? फिर ये संगठन उनके बचाव में क्यों आगे आ रहे हैं? उनकी क्या मजबूरी है?’

‘हिंदू लाइव्स मैटर’

ऑर्गनाइजर ने अपनी कवर स्टोरी ‘हिंदू लाइव्स मैटर’ में इतिहासकार सीता राम गोयल के इस्लाम पर एक दशक पुराने लेख का हवाला दिया, जो ‘नेहरूवादी भ्रांतियों को उजागर करने’ के लिए चर्चित रहा है.

कवर स्टोरी में गोयल के लेख को उद्धृत करते हुए लिखा गया, ‘इस्लाम ने भारत पर एक इमरजेंसी लगा दी है, ताकि हर कोई उसके अल्लाह, उसके पैगंबर, उसकी कुरान, उसके इतिहास और उसके नायकों की प्रशंसा करने की पूरी तरह ‘स्वतंत्रता’ हो, लेकिन किसी का यह कहना भर ही उसके लिए मुसीबत का सबब बन जाए कि इस्लाम को कुछ सवालों का जवाब देना चाहिए.’

गोयल के लेख में आगे कहा गया कि औसत मुसलमान ‘इस्लामी धर्मग्रंथ में लिखी बातों से अनजान है’, और ‘अपने हिंदू पड़ोसियों के बारे में सामान्य नैतिक धारणाएं रखते हैं.’ साथ ही जोड़ा गया कि ‘मुस्लिम धर्मावलंबी और राजनेता उसकी अज्ञानता का फायदा उठाते हैं और इस्लाम के दुश्मनों का जिक्र करते हुए उसे सड़कों पर उतार देते हैं.’

गोयल के शब्दों को ‘आज भी प्रासंगिक’ बताते हुए कवर स्टोरी में कहा गया है, ‘भारत आने के बाद इस्लाम ने जो आपातकाल लगाया था और जो लंबे समय तक हिंदुओं में आक्रोश की वजह बना था, उसे अब हिंदू अभिजात्य वर्ग ने पूरी तरह स्वीकार कर लिया गया है.’

इसमें लिखा गया है, ‘सभी धर्मों में समानता थी. लेकिन इस्लाम में कुछ अधिक समानता थी. इसमें कोई अचरज की बात नहीं है कि मुसलमानों ने आत्म-परायणता की एक अभूतपूर्व भावना अपना ली है; उन्होंने एक ऐसी जंग जीत ली है जो उनकी तलवार हजार से अधिक सालों में नहीं कर पाई थी.’


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‘इस्लाम खतरे में होने की धारणा ‘काल्पनिक’

आरएसएस के विचारक राम माधव ने इस्लाम और मुस्लिम राजनीति पर लिखने वाले एक स्तंभकार सुल्तान शाहीन द्वारा दिल्ली से संचालित एक वेबसाइट न्यू एज इस्लाम के लिए लिखे एक लेख में इस्लाम में सुधार का आह्वान किया है.

यह तर्क देते हुए कि राजनीतिक शुद्धता कई लोगों को युवा भारतीय मुसलमानों के कट्टरपंथीकरण को रेखांकित करने से ‘रोकती’ है, माधव ने लिखा, ‘मुसलमानों का यह कट्टरपंथीकरण इस काल्पनिक धारणा पर आधारित है कि ‘इस्लाम खतरे में है.’ जो कि 1990 के दशक के मध्य में उत्तर प्रदेश में अब्दुल नासिर मदनी के इस्लामिक सेवक संघ जैसे संगठनों के उदय के साथ बननी शुरू हुई थी, और केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) जैसे संगठनों के माध्यम से आज भी जारी है.’

माधव ने लिखा, ‘इस्लामी कट्टरवाद पश्चिम एशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में वहां की सरकारों की तरफ से संरक्षण के कारण बढ़ा. लेकिन भारत में उदार राजनीतिक और बौद्धिक समर्थन वाला माहौल और भले ही सीधे तौर पर समर्थन न हो लेकिन मुस्लिम नेतृत्व की तरफ से गहन चुप्पी साध लिया जाना ही ऐसे कट्टरपंथी संगठनों और लोगों को प्रोत्साहन की वजह है.’

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि केरल, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में जहां गैर-भाजपा सरकारें सत्ता में है, खुफिया एजेंसियां इस्लामिक कट्टरपंथ से निपटने के लिए अपना काम करने से ‘मना’ कर देती हैं.

माधव ने लिखा कि खुफिया ब्यूरो (आईबी) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) जैसी केंद्रीय एजेंसियां आतंकवाद और हिंसा को बढ़ावा देने वाले कट्टरपंथी संगठनों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं.

दिप्रिंट को दिए अपने एक इंटरव्यू का हवाला देते हुए माधव ने लिखा कि कुछ नेक इरादे वाले मुस्लिम विद्वानों ने उनके इस बयान कि मुसलमानों को ‘उम्मा, काफिर और जिहाद जैसी अवधारणाओं को त्यागना चाहिए’ का जवाब देते हुए इस बात पर जोर दिया है कि इस तरह की अवधारणाओं का एक अलग अर्थ है.

माधव ने सवाल उठाया, ‘लेकिन हिंदुओं को एक ‘अलग अर्थ’ के बारे में बताने का क्या फायदा, जब मदरसे और मस्जिद लगातार नफरत और अलगाव की भावना फैला रहे हैं! जब कुछ हिंदू सुधार की जरूरत पर जोर देते हैं तो यह ‘इस्लामोफोबिया’ के मुखर तर्क के पीछे छिपने में कैसे मददगार होते हैं.’

एकनाथ शिंदे का ‘मास्टरस्ट्रोक’

महाराष्ट्र के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर ऑर्गनाइजर के लिए एक ओपिनियन पीस में पत्रकार दिव्य कमल बोरदोलोई ने लिखा कि शिंदे की हिंदुत्व अपील ‘गेम-चेंजर’ है.

बोरदोलोई ने लिखा, ‘महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ एमवीए (महाविकास अघाड़ी) भागीदार के रूप में पिछले ढाई सालों के दौरान शिवसेना की विचारधारा कहीं खो जाना ही शिवसैनिकों के बागी गुट में शामिल होने का एक स्पष्ट कारण है. अधिक से अधिक बागी शिवसेना विधायक गुवाहाटी में शिंदे समूह में शामिल होने लगे. विद्रोहियों की ताकत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी, जो शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट की चिंता भी बढ़ा रही थी.’

‘मास्टरस्ट्रोक’ के तौर पर शिंदे की नियुक्ति का स्वागत करते हुए बोरदोलोई ने लिखा कि शिंदे ने ‘भारतीय जनता पार्टी के पूर्ण समर्थन’ के साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

बोरदोलोई ने लिखा, ‘इससे पहले, उम्मीद की जा रही थी कि बागियों का नेतृत्व करने वाले शिंदे उपमुख्यमंत्री और फडणवीस मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. फडणवीस ने 2019 में उस समय सत्ता गंवा दी थी जब शिवसेना ने भाजपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन सरकार का गठन किया था. ठाकरे के इस्तीफे के साथ ही एमवीए सरकार को गिराने का फडणवीस का अभियान पूरा हो गया.’

व्यापार घाटा बढ़ना रुपये की गिरावट के लिए जिम्मेदार

आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच की मासिक पत्रिका स्वदेशी पत्रिका ने अपने जून संस्करण में अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की गिरावट पर एक संपादकीय छापा, जिसमें इसके लिए वैश्विक मुद्रास्फीति और चीन से आयात को जिम्मेदार ठहराया गया.

संपादकीय में लिखा गया, ‘सवाल यह है कि क्या रुपये का लगातार अवमूल्यन अपरिहार्य है या रुपये की मजबूती के लिए कोई रणनीति बनाना असंभव है. लंबे समय से सरकारों द्वारा मुक्त व्यापार की नीति अपनाई जा रही है और कम से कम आयात शुल्क पर आयात की अनुमति दी गई है.’

इसमें लिखा गया है, ‘चीन सहित कई देशों की तरफ से देश में आयात डंपिंग के कारण न केवल हमारा व्यापार घाटा अभूतपूर्व तरीके से बढ़ा, बल्कि हमारे उद्योगों पर भी प्रतिकूल असर पड़ा और आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ी है. व्यापार घाटे में वृद्धि का डॉलर की मांग पर सीधा असर पड़ा और इससे रुपये का अवमूल्यन हुआ.’

संपादकीय में लिखा गया, ‘आयात में कमी से डॉलर की मांग घट सकती है. दूसरी ओर, भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदने और रुपये में भुगतान करने से डॉलर की मांग में और कमी आ सकती है और नतीजा रुपये की मजबूती के रूप में देखा जाएगा.’

‘क्लब वाले पर्यावरणविदों ने आरे कार शेड रोकने की कोशिश की’

न्यूज18 के लिए लिखे एक ओपिनियन पीस में दक्षिणपंथी पत्रकार रतन शारदा ने मुंबई के आरे में प्रस्तावित मेट्रो कार शेड को बनाए रखने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले का समर्थन किया.

यह दलील देते हुए कि आरे ‘कभी संरक्षित वन क्षेत्र नहीं था’ शारदा ने लिखा, ‘यह एक चारागाह भूमि थी और इसके अपने आदिवासी गांव थे. लेकिन निहित स्वार्थों सहित विभिन्न कारणों से आरे डेयरी परियोजना को बंद कर दिया गया था.’

शारदा ने आगे लिखा कि आरे में मेट्रो कार शेड बनाने के राज्य सरकार के फैसले का केवल ‘क्लब-क्लास वाले पर्यावरणविद्’ विरोध कर रहे हैं.

उन्होंने लिखा, ‘परियोजना पूरी होने में देरी का मतलब हर कदम पर मुद्रास्फीति के कारण बढ़ती सैकड़ों करोड़ की लागत और यात्रियों के लिए और अधिक परेशानियां थीं. लेकिन कुछ पेशेवर क्लब-क्लास पर्यावरणविदों ने आरे कार शेड को रोकने की कोशिश की.’

शारदा ने लिखा, ‘गुमराह पर्यावरणविद अदालतों में गए जहां वे केस हारे. लेकिन इस परियोजना को रोकने की कोशिश करते रहे. (लेकिन) दृढ़ प्रतिज्ञ पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की वजह से इस मुद्दे को सुलझा लिया गया.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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